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Veda and Vedanta (वेद एवं वेदान्त)
Sep 18, 2022   Ritu Suhag

Veda and Vedanta(वेद एवं वेदान्त)

After reading this article you will be able to know about

*What is Veda?

*What is vedanta?

*What are different parts of Veda?

*What are different types of Vedas?

*Main principles of Vedas

*Characteristics of Vedas 

Veda and Vedanta(वेद एवं वेदान्त)

वेद(Veda)

वेद शब्द संस्कृत भाषा की 'विद्' धातु से बना है। जिसका अर्थ होता है जानना, ज्ञान आदि। वेद हिन्दू धर्म के पवित्र प्राचीन ग्रंथों का नाम है। वेदों को श्रुति भी कहा जाता है, क्योंकि पहले मुद्रण की व्यवस्था न होने के कारण इनको एक-दूसरे से सुन-सुनकर याद रखा गया।इस प्रकार वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वचिक/श्रुति (श्रवण) परम्परा की अनुपम कृति है जो पीढ़ी-दर पीढ़ी हजारों वर्षों से चली आ रही है।वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च एवं सर्वोपरि धर्मग्रंथ हैं।

वेद के प्रकार(Types of Veda)

वेद चार प्रकार के हैं

1.ऋग्वेद-यह सर्वप्रथम वेद है और यह वेद मुख्यतः ऋषि मुनियों के लिए होता है। इस वेद में देवताओं का आहवान करने के लिए मंत्र है।

2.सामवेद-इस वेद में यज्ञ में गाने के लिए संगीतमय मंत्र हैं।यह वेद मुख्यतः गन्धर्व लोगों के लिए होता है।

3.यजुर्वेद-यजुर्वेद में यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य मंत्र हैं और यह वेद मुख्यतः क्षत्रियों के लिए होता है।

4.अथर्ववेद-इस वेद में जादू,चमत्कार एवं आरोग्य यज्ञ के लिए मंत्र हैं और यह वेद मुख्यतः व्यापारियों के लिए होता है।

वेद के भाग(Parts of Veda)

प्रत्येक वेद के चार भाग होते हैं। पहले भाग (संहिता) के अलावा प्रत्येक में का अथवा भाष्य के तीन स्तर होते हैं।वेद के प्रमुख भाग हैं

*पहला भाग-संहिता(मंत्र भाग)

*दूसरा भाग ब्राह्मण ग्रंथ(गद्य में कर्मकाण्ड की विवेचना )

*तीसरा भाग आरण्यक(कर्मकाण्ड के पीछे उद्देश्य की विवेचना)

*चौथा भाग-उपनिषद् (परमेश्वर,परमात्मा ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और संबंध का बहुत ही दार्शनिक एवं ज्ञानपूर्वक वर्णन)

वेद के ये चार भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं जो हिंदू धर्म के सर्वोच्च ग्रंथ हैं।बाकी ग्रंथ स्मृति के अन्तर्गत आते हैं।

वेदों का महत्त्व(Importance of Vedas)

वेदों के महत्त्व से संबंधित वर्णन निम्नलिखित है

1.वेद हिंदू धर्म का आधार हैं और ये हमारे सबसे पुराने धर्म-ग्रंथ हैं।

2.वेद भारतीय संस्कृति के मूल/ मूलाधार हैं।

3.वेदों का धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ ऐतिहासिक दृष्टि से भी असाधारण महत्त्व है।

4.वैदिक युग के आर्यों की संस्कृति और सभ्यता को जानने के एकमात्र साधन यही हैं।

5.विश्व के वाङ्मय में इनसे प्राचीनतम कोई पुस्तक नहीं है।

6.मानव जाति और विशेष रुप से आर्य जाति ने अपने शैशव में धर्म और समाज का विकास किस प्रकार किया इसका ज्ञान भी वेदों से ही मिलता है।

7.आर्य भाषाओं का मूलस्वरुप निर्धारित करने में वैदिक भाषा बहुत अधिक सहायक सिद्ध हुई है।

वेदान्त (Vedanta)

वेद प्राचीन भारतीय चिंतन परम्परा के विशिष्ट स्रोत हैं।वैदिक दर्शन से संबंधित अंतिम सिद्धांतों को वेदान्त कहा गया/जाता है।दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वेदान्त का अर्थ है-वेदों का अंतिम भाग।वेदान्त केवल एक ही सत्य (ब्रह्म अथवा ईश्वर की सत्ता में विश्वास) को मानता है और उस एक सत्य में ही समस्त शास्त्र सिद्धांत पाए जाते हैं।इस संदर्भ में डॉ. आर.पी. पाठक का विचार है जिसमें समस्त वेदों का अंतिम लक्ष्य वर्णित हो, वहीं वेदांत है और वेदान्त सब शास्त्रों का शिरोमणि है।वेदान्त में मुख्य रुप से इस बात का विवेचन है कि मोक्ष क्या है?एवं उसकी प्राप्ति एवं उपलब्धि के क्या-क्या साधन हैं?वेदान्त यह मानकर चलता है कि ब्रहा सत्य है और यह जगत मिथ्या है अर्थात् 'ब्रह्म सत्य जगन्मिथ्या'।वेद के अंतिम भाग उपनिषद् को वैदिक युग का अंतिम साहित्य कहा जाता है एवं उपनिषदों को वेद का गूढ़ रहस्य माना जाता है;अतः इस संदर्भ में वेद के अंतिम भाग अर्थात् अ को वेदान्त कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जो ज्ञान हमें यथार्थ एवं वास्तविकता की अनुभूति कराता है,वही वेदान्त है।

उपरोक्त वर्णन के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि वैदिक दर्शन के अंतिम सिद्धांतों को वेदान्त कहा जाता हैं;जैसे

1.शंकराचार्य का अद्वैत वेदान्त

2.भास्कराचार्य का भेदाभेद वेदान्त

3.मध्वाचार्य का द्वैतवादी वेदान्त

4.वल्लभाचार्य का शुद्धाद्वैत वेदान्त

5.रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत वेदान्त

6.निम्बार्काचार्य का द्वैवाद्वैत वेदान्त

7.विज्ञानभिक्षु का अविभाद्वैतवादी वेदान्त

वेदान्त के प्रमुख सिद्धांत(Main Principles of Vedanta)

वेदान्त के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं

1.आत्मा एवं ब्रह्म एक है।

2.ज्ञान व्यक्ति के अवगुणों अर्थात् दोषों का निवारण करता है।

3.मनुष्य मूल रुप से एक आध्यात्मिक प्राणी है।

4.मनुष्य का मन,बुद्धि एवं शरीर आदि उसका वास्तविक स्वरुप नहीं है।

5.मानव जीवन में ब्रह्मानुभूति सबसे महत्त्वपूर्ण है।

6.प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर ब्रह्म की शक्ति है।

7.वेदान्त का प्रमुख सिद्धांत है-उठो! जागो!और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।

8.वेदान्त के सिद्धांत के अनुसार त्याग भाव अत्यन्त आवश्यक है 

9.निर्भिकता से ही विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ पनपती हैं।

वेदान्त दर्शन की विशेषताएँ(Characteristics of Vedanta Philosophy)

वेदान्त दर्शन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1.वेदान्त में धर्म एवं नैतिकता को प्रमुख स्थान दिया गया है।

2.जीवन चेतन है एवं यह भी ईश्वर की रचना का ही प्रमाण है।

3.वेदान्त दर्शन हमें भारतीय परम्परा, संस्कार एवं संस्कृति का उचित ज्ञान करता है।

4.वदान्त दर्शन जीवन की यथार्थता को सिद्ध करता है

5. वेदान्त दर्शन को उत्तर-मीमांसा के नाम से भी जाना जाता है। (मीमांसा से आशय है- ब्रह्म ज्ञान। यदि हम ब्रह्म को और अधिक स्पष्ट करे तो यह परिलक्षित होता है कि ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति 'बृह' धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है- 'बढ़ना' अर्थात् ब्रह्म ही इस सृष्टि का मूल कारण है तथा यह निर्गुण एवं सगुण दोनों ही है।)

6. ब्ह्म ही सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश का कारण है।

7.ब्रह्म ही परम सत्य है।

8.परमात्मा की प्राप्ति ब्रह्म ज्ञान द्वारा ही संभव होती है।

9.सत्य निर्बाध एवं काल बंधनों से मुक्त होता है।

10.माया ब्रह्म का केवल एक अंश मात्र है। 11.वेदान्त मोक्ष एवं मुक्ति को अंतिम लक्ष्य मानता है।

12.वेदान्त के अनुसार ब्रह्म के वास्तविक स्वरुप को जानने के दो लक्षण हैं

(i)स्वरुप लक्षणः स्वरुप लक्षण पदार्थों की वास्तविकता एवं सत्यता से संबंधित परिचय देता है।

(ii)तटस्थ लक्षणः तटस्थ लक्षण आकस्मिक एवं आगन्तुक गुणों के विषय में बताता है।

13.वेदान्त चारों पुरुषार्थों में से मोक्ष को अधिक महत्त्वपूर्ण मानता है।

14.शिक्षा और जीवन एक-दूसरे पर आश्रित हैं।

वेदान्त एवं मीमांसा(Vedanta and Mimansa)

मीमांसा का विषय 'ब्रह्मज्ञान' से संबंधित है। मीमांसा को दो भागों में विभाजित किया जाता है: पूर्व-मीमांसा एवं उत्तर-मीमांसा ।

1.पूर्व मीमांसा धर्म जिज्ञासा से संबंधित है।

2.उत्तर-मीमांसा ब्रह्म जिज्ञासा से संबंधित है।

वेदान्त दर्शन एवं शिक्षा का अर्थ(Vedanta Philosophy and Meaning of Education)

वेदान्त का प्रथम सूत्र है- 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' अर्थात् अब ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी जाती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शिक्षा का सही अर्थ ब्रह्म जिज्ञासा है। वेदान्त के अनुसार व्यावहारिक शिक्षा वह है जिसका कि प्राप्त ज्ञान का कार्य विशेष में उपयोग किया जा सके। ज्ञान का कर्म में उपयोग न होने से ज्ञान अथवा शिक्षा को कोई मूल्य अथवा महत्त्व नहीं रह जाता है।

वेदान्त के अनुसार शिक्षा की विशेषताएँ एवं कार्य(Features and Functions of Education According to Vedanta)

वेदान्त के अनुसार शिक्षा की विशेषताएँ/कार्य निम्नलिखित हैं

1.ज्ञान का कर्म में व्यावहारिक प्रयोग करना।

2.शिक्षा का सही अर्थ है-ब्रह्म जिज्ञासा।

3.अविद्या रूपी अंधकार से व्यक्ति को मुक्ति प्रदान करना।

4.शिक्षा एक समन्वयकारी प्रक्रिया है।

5.वेदान्त जीव,जगत एवं ब्रह्म सभी के बारे (संबंध) में विचार करता है।

6.प्राकृतिक परिवेश अर्थात् प्रकृति से प्रत्यक्ष सम्पर्क में शिक्षा

वेदान्त एवं शिक्षा के उद्देश्य(Vedanta and Aims of Education)

वेदान्त एवं शिक्षा के उद्देश्यों से संबंधित वर्णन निम्नलिखित है

1.मनुष्य को ब्रह्मज्ञान प्रदान करना अर्थात् उसको अविद्या से मुक्त कराना।

2.मनुष्य को अच्छा जीवन जीने की कला सीखाना।

3.व्यक्ति का उचित विकास करना एवं उसे सद्जीवन की ओर प्रेरित करना ।

4.'वसुधैव कुटुम्बकम्' की अवधारणा पर बल देना अर्थात् समस्त संसार को अपना कुटुम्ब समझना एवं उसके आदर्श पर चलना

5.ब्रह्म साक्षात्कार कराना अर्थात् ब्रह्म की प्राप्ति कराना।

6.शिक्षा के द्वारा मानव को विभिन्न बंधनों से मुक्ति दिलाना।

7.शिक्षा के द्वारा श्रेष्ठ व्यक्तियों का निर्माण एवं उनका विकास करना।

8.शिक्षा को मोक्ष प्राप्ति का साधन बनाना।

9.शिक्षा के द्वारा व्यक्ति में निहित ब्रह्म ज्ञान को जागृत करना।

10.शिक्षा का उद्देश्य न केवल जानकारी प्रदान करना है अपितु उसका उद्देश्य ब्रह्मात्मा से एक्य स्थापित करना है।

11.शिक्षा के द्वारा श्रेष्ठ समाज का निर्माण करना।

वेदान्त दर्शन एवं पाठ्यक्रम(Vedanta Philosophy and Curriculum)

1.आध्यात्मिक पाठ्यक्रमः आध्यात्मिक पाठ्यक्रम के अन्तर्गत श्रुति,वेद,उपनिषद्,स्मृति,दर्शन,उपासना,भक्ति की क्रियाएँ यान्त्रिक क्रियाएँ एवं साधना से संबंधित प्रत्यता को शामिल किया जाता है।

2.व्यावहारिक पाठ्यक्रमः व्यावहारिक पाठ्यक्रम को लौकिक पाठ्यक्रम के नाम से भी जाना जाता है।इस पाठ्यक्रम के अन्तर्गत जड़ एवं चेतन पदार्थों से संबंधित विषयों का समावेश किया जाता है;जैसे

(i)मनोविज्ञान

(ii) भौतिक विज्ञान

(iii) मानव विज्ञान

(iv)औषधि एवं स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान/विषय 

(v)भाषा

(vi)सामाजिक क्रियाएँ एवं आचरण संबंधी ज्ञान/संस्कार

(vii)जीव विज्ञान

(viii)गृहविज्ञान

(ix)रसायन विज्ञान

(x) साहित्य कला

वेदान्त दर्शन एवं विद्यार्थी(Vedanta Philosophy and Education)

1.विद्यार्थी शरीर एवं आत्मा से युक्त एक प्राणी है।

2.विद्यार्थी में भौतिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों का समावेश होता है।

3.विद्यार्थी में अपनी स्वतन्त्र संकल्प शक्ति होती है।

4.विद्यार्थी एक नैतिक प्राणी होता है।

5.विद्यार्थी का स्वतन्त्र अस्तित्व होता है। 6.विद्यार्थी में दिव्य शक्ति का समावेश होता है।

7.विद्यार्थी के अन्दर व्यक्तिगत विभिन्नताएँ विद्यमान होती हैं।

8.स्वरुप लक्षण की दृष्टि से सभी विद्यार्थी समान हैं।

वेदान्त एवं शिक्षण विधियाँ(Vedanta and Teaching Methods)

वेदान्त के संदर्भ में शिक्षण विधियों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

1.उपदेश विधि

2.एकाग्रता विधि

3.सूत्र विधि

4.तर्क विधि

5.स्मरण विधि

6.स्वाध्याय विधि

7.नवधा भक्ति विधि(माया को दूर रखने एवं ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति से संबंधित विधि) 8.उपासना विधि

9.इन्द्रिय विधि(ज्ञान प्रप्ति हेतु इन्द्रियों के प्रयोग पर बल)

(i)श्रवणेन्द्रिय 

(ii)कर्मेन्द्रिय

(iii)ज्ञानेन्द्रिय आदि।

10.शिक्षा एवं ज्ञान की वृद्धि के लिए उदाहरण एवं श्लोकों का प्रयोग।

वेदान्त एवं अनुशासन(Vedanta and Discipline)

वेदान्त के संदर्भ में अनुशासन से संबंधित वर्णन निम्नलिखित हैं

1.आत्मानुशासन एवं आन्तरिक अनुशासन पर बल देना।

2.आश्रम धर्म का पालन अनुशासन के एक अंग के रूप में करना।

3.आत्मसंयम अर्थात् इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना।

4.अनुशासन से आत्म-आनन्द की प्राप्ति पर बल देना।

5.अनुशासन में व्यक्तिगत एवं सामाजिक अनुशासन पर विशेष बल ।

वेदान्त एवं विद्यालय(Vedanta and School)

वेदान्त के संदर्भ में विद्यालय से संबंधित वर्णन निम्नलिखित है

1.विद्यालय ज्ञान प्राप्ति का एक प्रमुख स्थल ।

2.विद्यालय शांत वातावरण में स्थित होना चाहिए।

3.प्राचीन परम्परा के अनुसार विद्यालय गुरु का निवास स्थान होता था।

4.विद्यालय की अवधारणा बाद में मठ और पीठ के रुप में प्रचलित हुई।

5.मठ एवं पीठ के उपरान्त विद्यालय मंदिर के रुप में भी स्थापित हुए।

वेदान्त एवं शिक्षक(Vedanta and Teacher)

वेदान्त के संदर्भ में शिक्षक से संबंधित वर्णन निम्नलिखित है

1.शिक्षक छात्र के व्यक्तित्व का आदर करें।

2.शिक्षक अध्ययन एवं अध्यापन कार्य में रत हो।

3.शिक्षक ब्रह्म ज्ञान से युक्त हो।

4.शिक्षक छात्र के चरित्र का उत्थान करें।

5.शिक्षक छात्र के प्रति अपने पुत्र का सा व्यवहार करें।

6.शिक्षक का व्यक्तित्व तथा चरित्र आदर्श होना चाहिए।

7.शिक्षक शंकाओं का निवारण करने में सक्षम हो।

8.शिक्षक संयमी एवं धर्म का जानकार होना चाहिए।

9.शिक्षक छात्रों के शारीरिक,मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील होना चाहिए।

अतः उपर्युक्त विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय चिंतन परम्परा में वेदान्त का विशिष्ट महत्त्व है। यदि हम व्यावहारिक रूप से विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट होता है कि जितने भी आस्तिक दर्शन हैं।सभी इसी को अपना आधार मानते हैं।वेदान्त की व्याख्याएँ कई प्रकार से हुई हैं और सभी व्याख्याएँ महत्त्वपूर्ण रही हैं;अतः अंत में वेदान्त के संदर्भ में इतना कहना ही काफी होगा कि जो ज्ञान हमें यथार्थ एवं वास्तविकता की ओर ले जाता है वही वेदान्त है।वेदान्त दर्शन में आत्मा,जगत,मानव,सत्य,आध्यात्मिकता,ईश्वर एवं मोक्ष आदि विषयों पर विचार बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से किया है और यह दर्शन समस्त दर्शनों का मुकुटमणि है।

Reference -Dr Naresh Kumar Yadav 

 


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