After reading this article you will be able to answer the following questions-
-What is universalisation of primary education?
-some programmes and strives for the implementation of universalisation of primary education
-what is district primary education programme?
-what is mid day meal scheme?
-what is sarva shiksha abhiyan?
Universalization of Primary Education(प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण)
सार्वभौमिक शिक्षा का अर्थ(Meaning of Universal Education)
सार्वभौमिक शिक्षा का अर्थ है सभी को शिक्षा से संबंधित समान शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराना।सार्वभौमिक शब्द सर्वजन (लोगों के संदर्भ में) एवं सर्वव्याप्त (क्षेत्र के संदर्भ में)का प्रतिनिधित्व करता है।
शिक्षा के सार्वभौमिकरण के संदर्भ में इसका अर्थ यह है कि एक निश्चित आयु वर्ग के प्रत्येक बालक को बिना किसी भेदभाव एवं विभिन्नताओं (रंग,धर्म,जाति,प्रजाति व्यक्तिगत भिन्नता अथवा योग्यता आदि से संबंधित) के एक निश्चित स्तर विशेष तक अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना।
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से संबंधित कुछ तथ्य/तत्त्व(Some Facts Related to Universalization of Primary Education)
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से संबंधित प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं
1.सभी बच्चों के लिए कक्षा एक से कक्षा आठ तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान।
2.प्रत्येक बच्चे की शिक्षा के लिए उसके घर के समीप ही शिक्षा की व्यवस्था करना।
3.बच्चों को 14 वर्ष की आयु तक विद्यालय में रोके रखना अर्थात् बच्चे द्वारा बीच में ही विद्यालय को न छोड़ना
4.प्राथमिक शिक्षा से संबंधित संवैधानिक अनुच्छेदों का पालन करना।
5.शिक्षा के मौलिक अधिकार को व्यावहारिक रूप प्रदान करना। वर्ष 2002 में संविधान के संशोधन द्वारा अनुच्छेद 211 अ) के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल किया गया है।
प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण:एक परिचय(Universalization of Primary Education: An Introduction)
प्राथमिक शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की एक पूर्व शर्त है।यह व्यक्ति के शैक्षिक जीवन की इमारत की आधारशिला होती है तथा साथ ही यह बच्चे के जीवन को एक विशेष आधार भी प्रदान करती है।प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक बच्चे के लिए प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता पर बल देते हुए प्राथमिक शिक्षा से संबंधित गुणात्मक सुधारों एवं कार्यक्रमों को लागू करवान इसमें अन्तर्गत व्यवस्था की सार्वभौमिकता,दाखिले की सार्वभौमिकता एवं सार्वभौमिक का प्रतिधारण(Universality of Retantion) शामिल है।इसमें व्यवस्था की सार्वभौमिकता का अभिप्राय यह है कि प्राथमिक विद्यालय बच्चे के घर में नजद हो। दाखिले की सार्वभौमिकता का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक बच्चे के लिए प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए दाखिले का प्रबंध करना अर्थात् उनके प्रवेश को सुनिश्चित करना तथा सार्वभौमिकता का प्रतिधारण का आशय है कि प्रत्येक बा को तब तक विद्यालय में रखा जाए जब तक कि वह एक निश्चित आयु नहीं प्राप्त कर लेता अथवा निर्धारित पाठ्यक्रम को पूरा नहीं कर लेता।यदि हम शिक्षा अथवा प्राथमिक शिक्षा के संदर्भ में सार्वजनीकरण अर्थात् सार्वभौमिकरण की अवधारणा पर विचार करें तो यह जा सकता है कि यह वह शिक्षा व्यवस्था है जिसमें सभी को रंग, रुप,धर्म,लिंग,प्रजाति या योग्यता की विभिन्नता के बावजूद उचित शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं।
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण की आवश्यकता(Need of Universalization of Primary Education)
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण की आवश्यकता के पक्ष में निम्न तर्क दिए जा सकते हैं
1.शिक्षा के रुप में मानवीय पूँजी के विकास के संदर्भ में।
2.शिक्षा के द्वारा समाज के लोगों के लिए उचित जीवन स्तर प्रदान करने के संदर्भ में।
3.शिक्षा के द्वारा सामाजिक प्रगति के विकास के संदर्भ में।
4.शिक्षा के माध्यम से सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के संदर्भ में।
5.शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के अर्थिक विकास के संदर्भ में।
6.शिक्षा के मौलिक अधिकार के संदर्भ में
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के प्रमुख लक्ष्य(Main Aims of Universalization of Primary Education)
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से संबंधित कुछ प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं 1.सार्वभौमिक पहुँच(Universal Access)
2.सार्वभौमिक नामांकन(Universal Enrollment)
3.सार्वभौमिक ठहराव(Universal Retention)
4.शिक्षा में समान अवसर(Equal Opportunity in Education)
5.अध्ययन के वातावरण की प्राप्ति(Provide Learning Environement)
6.समाज के प्रत्येक वर्ग की सहभागिता(Cooperation of the Society)
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के मार्ग में प्रमुख बाधाएँ(Main Obstacles in the Way of Universalization of Primary Education)
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं का वर्णन निम्न प्रकार है
1.ग्रामीण अभिभावकों की निम्न आर्थिक स्थिति अर्थात् निर्धनता का होना।
2.अभिभावकों का असहयोग एवं उनका निरक्षर होना।
3.छोटे एवं बिखरे हुए गाँव एवं बच्चों की कम संख्या के कारण विद्यालयों का उपलब्ध न होना।
4.सरकारी मशीनरी एवं संसाधनों का अभाव होना।
5.प्राथमिक शिक्षा के संदर्भ में सामाजिक सहभागिता का अभाव होना।
6.प्राथमिक शिक्षा से संबंधित आधारभूत संसाधनों का अभाव होना ।
7.शिक्षा के प्रति सामाजिक लैंगिक भेद की भावना विद्यमान होना।
8.बच्चों का विशेषतः लड़कियों का घरेलू कार्य में लगे रहना/होना।
9.प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव होना।
10.विद्यालय विरतता (Drop out) की दर ऊँची होना।
11.जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होना।
12.समाज में सहभागिता का अभाव होना।
13.क्षेत्रीय असमानताओं का होना।
14.प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय एवं अवरोधन का होना।
15.शिक्षा से संबंधित राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव होना।
16.उचित एवं प्रभावी नियंत्रण का न होना।
ब्रिटिश काल के दौरान भारत में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण हेतु किए गए प्रयास(Efforts Related to Universalization of Primary Education during the British Period in India)
ब्रिटिश काल के दौरान भारत में 16 मार्च 1911 में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा केन्द्रीय धारा सभा में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने हेतु एक विधेयक प्रस्तुत किया गया था परंतु 19 मार्च 1912 को यह विधेयक अस्वीकार कर दिया गया। यद्यपि गोखले केन्द्रीय धारा सभा में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा संबंधी विधेयक प्रस्तुत करने वाले पहले भारतीय थे लेकिन इससे पहले बड़ौदा के नरेश सायाजीराव गायकवाड़ द्वारा बड़ौदा में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की गई थी। वर्ष 1906 एक अधिनियम बनाकर समूची बड़ौदा रियासत में सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गई।यद्यपि गोखले के विधेयक को सफलता नहीं मिली परंतु इस संदर्भ में विट्ठल भाई पटेल ने बम्बई की प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया जिसको 'बम्बई प्राथमिक शिक्षा अधिनियम' अथवा 'पटेल अधिनियम' के नाम से जाना जाता है।इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य प्रांत में नगरपालिका क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाना था। यह कहा जा सकता है कि ब्रिटिश काल के दौरान भारत में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाने का यह प्रथम प्रयास था।इस अधिनियम के अन्तर्गत 7 से 11 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक की व्यवस्था का प्रावधान था।इसी कड़ी में सन् 1919 में पंजाब, बिहार एवं उड़ीसा तथा सन् 1920 में बम्बई एवं मद्रास में इस प्रकार के अधिनियम पारित किए गए।
स्वतन्त्र भारत में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से संबंधित प्रयास(Efforts Related to Universalization of Primary Education in In dependent India)
जब देश स्वतन्त्र हुआ तो उस समय देश की साक्षरता दर लगभग 18% थी।देश के हजारों गाँवों में प्राथमिक विद्यालयों का अभाव था।इस संदर्भ में प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क, अनिवार्य एवं सार्वभौमिक बनाने हेतु स्वतन्त्र भारत के संविधान
के अनुच्छेद-45 में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख किया है तथा उस समय इसकी समयावधि 10 वर्ष निर्धारित की गई थी।
स्वतन्त्र भारत में अर्थात् स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से प्राथमिक शिक्षा के प्रसार एव प्रचार का उत्तरदायित्व प्रमुखतया राज्य सरकारों का था।इस संदर्भ में शिक्षा के स्तर को उठाने एवं इसको व्यापक बनाने के संदर्भ में सन् 1963-64 में केन्द्रीय सरकार की सहायता से राज्य शिक्षा संस्थाओ(State Institute of Education) की स्थापना की योजना को क्रियान्वित किया गया।
देश में शिक्षा के उचित विकास के लिए भारत सरकार द्वारा तात्कालिक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. डी. एस. कोठारी की अध्यक्षता में एक शिक्षा समिति का गठन किया गया जिसने विद्यालय के लगभग सभी स्तरों पर शिक्षा के विकास की सिफारिश की तथा साथ ही प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से संबंधित निम्न संस्तुतियाँ की गई-
1.सभी बच्चों के लिए उत्तम और प्रभावशाली शिक्षा की व्यवस्था की जाए। 2.अपव्यय एवं अवरोधन को रोकने पर विशेष बल दिया जाए।
3.प्राथमिक विद्यालयों के विस्तार के लिए ऐसी योजना बनाई जाए जिससे कि छात्र को एक किलोमीटर के घेरे में ही विद्यालय मिल जाए।
4.कुपोषण से ग्रसित बच्चों छात्रों की ओर विशेष ध्यान दिया जाए।
5.सभी बच्चों/छात्रों के लिए दोपहर के भोजन की व्यवस्था की जाए।
6.शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से विकलांग छात्रों पर विशेष ध्यान देते हुए उनके लिए विशिष्ट विद्यालय स्थापित किए जाएं।
समय-समय पर गठित किए शिक्षा से संबंधित विभिन्न आयोगों एवं समितियों के सुझावों के आधार पर सन् 1986 में पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई। इस नीति में इस विषय पर विशेष बल दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद-45 के अन्तर्गत घोषित 16 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बालकों के लिए निःशुल्क एवं 'अनिवार्य शिक्षा' से संबंधित ठोस प्रयास किए जाए तथा साथ ही ऐसे कार्यक्रम भी तैयार किए जाए जिससे कि विद्यालया में मौजूद अपव्यय एवं गतिरोध को दूर किया जा सके।सन 1986 में वह राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई जिससे आपल्य ब्लैक बोर्ड राष्ट्रीय साक्षरता मिशन बालिकाओं के लिए माध्यमिक स्तर तक निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था नवोदय विद्यालयों की स्थापना जिला स्तरीय शैक्षिक एवं प्रशिक्षण संस्थानों का स्थान आदि से संबंधित कुछ विशिष्ट कार्यक्रमों का शामिल किया गया। इस शिक्षा नीति में यह भी वर्णित किया गया कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि 21 वीं सदी में प्रवेश करने से पूर्व 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को संतोषजनक गुणवत्ता वाली निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अवश्य प्रदान की जानी चाहिए और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की जानी चाहिए। इसके पश्चात् वर्ष 1990 में 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986' से संबंधित समीक्षा हेतु 'आचार्य राममूर्ति समिति' का किया गया जिसके आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नया प्रारूप एवं संशोधित कार्य योजना 1992 में तैयार की गई। 1992 की शिक्षा नीति के नए प्रारूप एवं संशोधित कार्य योजना में शिक्षा प्रणाली को अधिक कुशल एवं उत्तरदायी बनाने पर बल दिया गया।
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लिए प्रारंभ किए गए कुछ कार्यक्रम एवं प्रयास(Some Programmes and Strives for the Implementation of Universalization of Primary Education)
1.अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम (Informal Education Programme)-सर्वप्रथम छठी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम को देश में शैक्षिक रुप से पिछड़े राज्यों बिहार,उड़ीसा,राजस्थान,मध्य प्रदेश, असम,आन्ध्र प्रदेश,उत्तर प्रदेश,जम्मू व कश्मीर,पश्चिमी बंगाल एवं अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों में केन्द्रीय सहायता कार्यक्रम के रुप में प्रारंभ किया गया। अनौपचारिक शिक्षा के ये केन्द्र उन बच्चों के लिए विशेष उपयोगी थे जो घर से विद्यालय की अधिक दूरी के कारण, परिवार की अत्यधिक निम्न अर्थिक स्थिति के कारण एवं परिवार के कृषि कार्यों में मदद करने के कारण नियमित रुप से विद्यालय नहीं जा पाते थे। बाद में इस कार्यक्रम को संशोधित कर (राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के पश्चात् ) इसे सभी राज्यों की शहरी मलिन बस्तियों, आदिवासी एवं जनजातीय क्षेत्रों तथा सुदूर क्षेत्रों में कार्य करने वाले बच्चों तक उपलब्ध कराया गया।
2.आपरेशन ब्लैक बोर्ड(Operation Black Board)
आपरेशन ब्लैक बोर्ड का प्रारम्भ 1987-88 में किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्राथमिक पाठशालाओं में पर्याप्त सुविधाएँ एवं संसाधन प्रदान करने से संबंधित विभिन्न प्रयास किए गए। इन सुविधाओं एवं संसाधनों में शामिल हैं
1.दो कमरों का भवन जो प्रत्येक मौसम के लिए उपयोगी हो।
2.विद्यालय में कम-से-कम दो अध्यापकों का होना जिनमें एक महिला हो।
3.विद्यालय में खेलों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री जैसे रस्सी,रबड़ की गेंद फुटबाल आदि का होना।
4.विद्यालय में विज्ञान एवं गणित शिक्षण से संबंधित किटों (Kits) का होना।
5.विद्यालय में श्यामपट्ट,चाकू एवं झाड़न इत्यादि का होना।
6.विद्यालय में पाठ्य-पुस्तकें, चार्ट एवं नक्शों का होना।
7.छात्र एवं छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालयों की सुविधा का होना।
8.बैठने के लिए दरी एवं फर्नीचर का होना।
9.पीने के जल की व्यवस्था,मटके एवं गिलास आदि का होना।
10.कूड़ेदान का होना।
3.जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम(District Primary Education Programme)
जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत सन् 1994 में की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालाओं में बच्चों के दाखिले बढ़ाने के संदर्भ में केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम में विश्व बैंक,यूरोपीय आयोग,नीदरलैण्ड एवं यूनीसेफ आदि का सहयोग प्राप्त है।प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लिए इस कार्यक्रम में जिला स्तरीय नियोजन प्रणाली की व्यवस्था की जाती है और डी. पी. ई. पी. (D.P.E.P.) के माध्यम से इसको आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना है।
4.मध्याहन भोजन योजना(Mid-day Meal)
प्राथमिक शिक्षा में पोषाहार सहायता से संबंधित राष्ट्रीय कार्यक्रम 'मध्याहन भोजन योजना' की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को हुई।इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य कक्षा 1-5 में पढ़ रहे बच्चों के नामांकन, विद्यालय में उनकी उपस्थिति,उन्हें स्कूल में बनाए रखने तथा उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं पर ध्यान रखते हुए प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण को बढ़ावा देना है।प्रारम्भ में इस कार्यक्रम के माध्यम से लगभग 1 करोड़ बच्चों को सहायता पहुँचाना अथवा शामिल करना था।
5.प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना(Pradhanmantri Gramodaya Yojana)
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना का प्रारंभ 2000-01 में हुआ।इस योजना के घटकों के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा,प्राथमिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विद्युतीकरण संबंधित घटक आते हैं।इस योजना के अन्तर्गत निर्धारित क्षेत्र निधि मुख्य प्राथमिक शिक्षा एवं इसके सार्वभौमिकरण को बढ़ाने के संदर्भ में प्रयोग के जाती है।
6.सर्व शिक्षा अभियान(Sarva Shiksha Abhiyaan)
भारत सरकार द्वारा 'सर्व शिक्षा अभियान' का प्रारंभ वर्ष 2001 में मुख्य से निर्धन एवं वंचित वर्गों तक प्राथमिक शिक्षा की सुलभता सुनिश्चित करते संदर्भ में किया गया। इस अभियान के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1.संतोषजनक प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था जिसमें जीवन उपयोगी शिक्षा को
महत्त्व दिया गया हो, पर बल देना।
2.सभी बच्चों के लिए वर्ष 2003 तक विद्यालय,वैकल्पिक विद्यालय,शिक्षा गांरटी केन्द्र एवं बैक टू स्कूल(Back to School) की व्यवस्था अथवा उपलब्धता को सुनिश्चित करना।
3.सभी बच्चों के लिए वर्ष 2007 तक कक्षा 8 तक की शिक्षा की उपलब्धता को सुनिश्चित करना ।
4.प्राथमिक स्तर पर बालक-बालिका असमानता एवं सामाजिक वर्गभेद को 2007 तक समाप्त करना।
5.वर्ष 2010 तक उच्च प्राथमिक स्तर पर बालक-बालिका असमानता एवं सामाजिक वर्गभेद को समाप्त करना,आदि।
7.जनशाला कार्यक्रम(Jansala Programme)
जनशाला एक समुदाय आधारित प्राथमिक शिक्षा से संबंधित कार्यक्रम है।यह कार्यक्रम भारत सरकार एवं संयुक्त राष्ट्र के पाँच अभिकरणों (UNDP,UNICEF,ILO,UNFPA और UNESCO) के सहयोग से संचालित कार्यक्रम है।जिसका मुख्य उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा की पहुँच को और अधिक प्रभावी (विशेष रुप से पिछड़े एवं वंचित वर्ग की लड़कियों एवं बच्चों,अनुसूचित जातियों/जनजातियों,अल्पसंख्यकों एवं कार्यशील बच्चों हेतु) बनाने का प्रावधान है। वर्तमान में यह कार्यक्रम देश के 9 राज्यों (जिनमें कर्नाटक,मध्य प्रदेश, झारखंड,छत्तीसगढ़,राजस्थान,उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश,महराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश शामिल हैं) के 139 विकास खंड़ों में संचालित है।
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से संबंधित बाधाओं को दूर करने के उपाय/सुझाव(Suggestions to Remove the Obstacles Related to Universalization of Primary Education)
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से संबंधित बाधाओं को दूर करने से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय/सुझाव निम्नलिखित हैं
1.शिक्षा के प्रति लोगों की उदासीनता को दूर करना।
2.पिछड़े क्षेत्रों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार करना।
3.प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना करना ।
4.जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करना।
5.प्राथमिक क्षेत्रों में सुविधाओं का विस्तार करना
6.पाठ्यक्रम का निर्माण बच्चों एवं समाज की आवश्यकताओं के अनुरुप करना।
7.अशिक्षित अभिभावकों को शिक्षित करना ।
8.मॉनीटरिंग कमेटी की स्थापना करना।
9.विद्यालयों की जवाबदेही को सुनिश्चित करना।
10.सर्वशिक्षा अभियान को सुदृढ़ता प्रदान करना।
11.पंचायती राज संस्थानों की भूमिका को सुनिश्चित करना।
12.शैक्षिक सुविधाओं का विकास करना। 13.लोगों में शिक्षा के प्रति जागरुकता उत्पन्न करना एवं इस संदर्भ में जनसंचार साधनों (माध्यमों)(Mass Media) का उचित उपयोग करना।अतः उपर्युक्त विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्राथमिक शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की एक अनिवार्य शर्त है और शिक्षा की सार्वभौमिकता शिक्षा से संबंधित सार्वभौमिक पहुँच, सार्वभौमिक नामांकन, सार्वभौमिक ठहराव एवं शिक्षा के समान अवसरों की उपलब्धता को सुनिश्चित करती हैं।
Reference-Dr Naresh Kumar Yadav