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Idealism(आदर्शवाद)
Sep 10, 2022   Ritu Suhag

Idealism(आदर्शवाद)

Idealism(आदर्शवाद)

भूमिका ( Introduction)

आदर्शवाद दर्शन एक प्राचीन विचारधारा है।यह दर्शन की वह विचारधारा है।जो ब्रह्माण्ड को आध्यात्मिक शक्ति द्वारा निर्मित मानती है।आदर्शवाद इस बात पर बल देता है कि वास्तविकता पदार्थ,वस्तुओं और शक्तियों के स्थान पर(की अपेक्षा)भावों,विचारों,मूल्यों एवं आदशों के अस्तित्व से बनी है।इस दर्शन के दृष्टिकोण के अनुसार भौतिक संसार की अपेक्षा आध्यात्मिक संसार श्रेष्ठ है।अपने मूल रूप में आदर्शवाद वह दर्शन है जो शाश्वत मूल्यों एवं आदशों में विश्वास करता(रखता) है।

आदर्शवाद की उत्पत्ति (Origin of Idealism)

आदर्शवाद(Idealism) की उत्पत्ति में दो शब्द निहित हैं-पहला Idea और Ideal;इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि आदर्शवाद का संबंध विचारों एवं आदशों से है।कुछ दार्शनिक आदर्शवाद की उत्पत्ति प्लेटो (Plato) के आध्यात्मिक Founder's सिद्धांत से मानते हैं कि-अंतिम वास्तविकता विचारों या विचारवाद में है।(Ultimate reality consists of idea or idea-ism)।यहाँ इस बात का उल्लेख करना अनिवार्य है कि सही एवं उचित शब्द तो 'Idea-ism' है किंतु उच्चारण की सुविधा हेतु इसमें L (Idealism) जोड़ दिया गया है।'इस अवधारणा के अनुसार आध्यात्मिक जगत, भौतिक जगत की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आध्यात्मिक जगत ही सत्य है;जबकि भौतिक जगत नाशवान एवं असत्य है।इस संदर्भ में जॉर्ज टी.डब्ल्यू. पैट्रिक का विचार है कि भौतिकवाद संसार को आधार 'पदार्थ'(Matter) के रुप में देखता है;जबकि आदर्शवाद संसार को आधार 'मन'(Mind) के रुप में देखता है। कहने का अभिप्राय यह है कि भौतिकवाद 'पदार्थ' को 'मन' से पहले की वस्तु मानता है;जबकि आदर्शवाद 'मन' को 'पदार्थ' से पहले की।

आदर्शवादी विचारक(Idealistic Philosophers/Thinkers)

कुछ प्रमुख आदर्शवादी विचारक निम्नलिखित हैं-प्लेटो(Plato),सुकरात(Socrates),अरस्तु(Aristotal),कॉमेनियस(Comenious),पेस्टालॉजी(Pestalozzi),फ्रोबेल(Forebel),कांट(Kant),हीगल(Hegel),फिक्टे(Fichte),टी.पी.नन(T.P. Nunn),जेम्स रॉस(James Ross),हरबर्ट(Herbart),बर्कले(Burkley),शॉपनहावर(Schopenhauer),टी.एच.ग्रीन(T.H. Green),स्वामी विवेकानंद(Swami Vivekanand),स्वामी दयानन्द( Swami Dayanand),महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi),राधाकृष्णन(Radhakrishanan),रविन्द्रनाथ टैगोर(Rabindranath Tagore),अरविन्द घोष(Arvind Ghosh)आदि।

आदर्शवाद का अर्थ(Meaning of Idealism)

आदर्शवाद के अर्थ को निम्न प्रकार/आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता हैं।

आदर्शवाद का दार्शनिक अर्थ(Philosophical Meaning of Idealism)

आदर्शवाद का दार्शनिक अर्थ जिसे प्रायः आध्यात्मिकतावाद कहा जाता है मनुष्य तथा सृष्टि की व्याख्या आत्मा एवं मन के रुप में करता है और यह मानकर चलता है कि भौतिक संसार की अपेक्षा आध्यात्मिक संसार श्रेष्ठ है।यह दर्शन शाश्वत मूल्यों एवं आदशों में विश्वास करता है।

आदर्शवाद का प्रचलित अर्थ(Popular Meaning of Idealism)

आदर्शवाद का प्रचलित अर्थ उच्च नैतिक,सौन्दर्यात्मक तथा विभिन्न सामाजिक-धार्मिक आदर्शों को स्वीकार करता है तथा उनके अनुसार ही जीवनयापन करने में विश्वास रखता है।

आदर्शवाद का व्युत्पत्ति अर्थ(Derivative Meaning of Idealism)

आदर्शवाद का व्युत्पत्ति अर्थ यह मानकर चलता है कि इसकी उत्पत्ति idea तथा ideal शब्दों के सामंजस्य से हुई है और इसका संबंध ऊँचे आदर्शों एवं विचारों से है।कुछ दार्शनिक इसकी उत्पत्ति प्लेटो के आध्यात्मिक सिद्धांत से भी मानते हैं। आदर्शवाद का शब्दकोशीय अर्थ(Dictionary Meaning of Idealism)

ऑक्सफोर्ड इंग्लिश शब्दकोश के अनुसार आदर्शवाद का अभिप्राय वस्तुओं को उनके आदर्श रूप दर्शाना तथा उनको एक सुव्यवस्थित वैचारिक आधार प्रदान करना है। 

आदर्शवाद की परिभाषाएँ (Definitions of Idealism)

आदर्शवाद से संबंधित प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

बूबेकर के अनुसार- "आदर्शवादी इस बात में विश्वास करते हैं कि संसार के बोध में मन को मुख्य भूमिका होती है। उनके लिए संसार को समझने के प्रयास में मानसिक क्रिया के अतिरिक्त कोई और वास्तविकता नहीं।'"Idealists points out that it is mind that is central in understanding the world. To them nothing gives a greater sense or reality than the activity of mind engaged in trying to comprehend its worlds"--Brubacher

डी.एम. दत्ता के अनुसार- "आदर्शवाद वह सिद्धांत (विश्वास) है जो कि अंतिम सत्ता आध्यात्मिक मानता है।"“Idealism holds that ultimate reality is spiritual.”-D.M. Dutta 

जे.एस. रॉस के अनुसार- “आदर्शवाद के बहुत से और विविध रूप हैं लेकिन सबका आधारभूत तत्त्व यह है कि संसार का उत्पादक कारण मन या आत्मा है और मानसिक स्वरुप ही वास्तविक सत्य है।"

"Idealistic philosophy takes many and varied form but the postulate underlying all is that mind or spirit is the essential world stuff that the true reality is of a mental character-J.S. Ross

एच. हॉर्ने के अनुसार- "आदर्शवाद का सार है कि ब्रह्मांड बुद्धि एवं इच्छा की अभिव्यक्ति है और भौतिकता की व्याख्या बुद्धि द्वारा ही की जाती है। ""Idealism is the conclusion that the universe is an expression of intelligence and will and the material is explained by the mental."-H. Horne

हेरोल्ड टाइट्स के अनुसार-"आदर्शवाद इस बात पर बल देता है कि वास्तविकता विचारों, मन तथा आत्मा में निहित है न कि भौतिक वस्तुओं तथा शक्ति में।"“Idealism asserts that reality consists of ideas, thought, minds or selves rather than materials, objects or force"-Harold Titus एफ. ब्रुश रोजेन के अनुसार- " आदर्शवादियों का यह विश्वास है कि ब्रह्मांड की अपनी बुद्धि एवं इच्छा हैं और सब भौतिक वस्तुओं को उनके पीछे विद्यमान मन द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।""The idealists believe that the universe has an intelligence and a will that all material things are explainable in terms of a mind standing behind them." -F.Bruce Rosen

जॉर्ज टी.डब्ल्यू.पैट्रिक के अनुसार "आदर्शवादियों का विचार(विश्वास) है कि संसार का एक निश्चित अर्थ,एक निश्चित अभिप्राय एवं एक निश्चित लक्ष्य है और सृष्टि के हृदय तथा मनुष्य की आत्मा में एक प्रकार का आंतरिक सामंजस्य है।यह ऐसा सामंजस्य है कि मानव बुद्धि प्रकृति के बाह्य को भेदकर कम-से-कम कुछ सीमा तक आंतरिक शक्ति अथवा चरम तत्त्व तक पहुँच सकती है।""Idealists believe that the world has a meaning, a purpose, perhaps a goal and that there is a kind of inner harmony between the heart of the universe and soul of man, such that human intelligence can piercethough the outer curst of nature and penetrate to its inner being at least in some measure." - George.T.W.Patrick

आदर्शवाद के विभिन्न रूप(Various Forms of Idealism)

पाश्चात्य् विश्व में आदर्शवादी विचारधारा को निम्न भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं

1.सुकरात एवं प्लेटो का नैतिक (Moral) आदर्शवाद-इस आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार सार्वभौमिक सत्ता नैतिक विचारों की है।और सत्यम् शिवम् एवं सुन्दरम् की प्राप्ति करना ही मनुष्य का चरम एवं अंतिम उद्देश्य होता है।

2.हीगल का निरपेक्ष(Absolute) आदर्शवाद-निरपेक्ष आदर्शवाद के अनुसार दो मूल तत्त्व हैं-मन(Mind) और पदार्थ (Matter)।मन का चरम रुप ईश्वर है जो विचारशील है एवं इस संसार की रचना करने वाला है।ईश्वर ही परम आत्मा है और इस संसार में इसी का ही अंश विद्यमान है।

3.बर्कले का आत्मनिष्ठ (Subjective) आदर्शवाद-आत्मनिष्ठ आदर्शवाद के अनुसार वस्तु का अस्तित्व केवल मन के ही कारण है अपने आप में नहीं।

4.कांट का प्रपंचवाद(Phenomenalism)- आदर्शवाद इस विचारधारा के अनुसार अनुभव,अंतरात्मा,कर्त्तव्यों एवं नैतिक मूल्यों का जगत ही वास्तविक एवं सत्य जगत होता है।

5.वस्तुनिष्ठ(Objective)आदर्शवाद-

वस्तुनिष्ठ आदर्शवादियों का यह विचार है कि बाहरी संसार वास्तव में मनुष्यों के द्वारा बनाया गया है तथा संसार का अंतिम स्वरुप मानसिक है।

6.व्यक्तिगत(Personal)आदर्शवाद-

इस आदर्शवाद के अनुसार व्यक्ति एक निजी व्यक्तित्व एवं विचारक है तथा वास्तविकता चेतन व्यक्तित्व का स्वरुप है। इस विचारधारा के समर्थक व्यक्तिगत मूल्यों,नैतिक आदर्शों तथा मानवीय स्वतन्त्रता पर अधिक बल देते हैं।

आदर्शवाद के मूल सिद्धांत/मान्यताऐं(Fundamental Principles/Assumptions of Idealism)

आदर्शवाद के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं

1.यह ब्रह्मांड आध्यात्मिक शक्ति द्वारा निर्मित है।

2.भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत श्रेष्ठ है।

3.जड़ प्रकृति की अपेक्षा मनुष्य को अधिक महत्त्व।

4.वस्तु की अपेक्षा विचार को महत्त्व

5.मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है।

6.आध्यात्मिक मूल्यों में आस्था

7.मन तथा निजत्व को विशेष प्राथमिकता। 8.व्यक्तित्व के विकास पर अधिक बल।

9.विभिन्नता में एकता का सिद्धांत।

10.विश्व का अस्तित्व आत्मा में है।

11.जीवन मूल्यों एवं सामाजिक विज्ञानों पर बल

1.यह ब्रह्मांड आध्यात्मिक शक्ति द्वारा निर्मित है (This Universe is the Creation of Spiritual Power)-आदर्शवादियों का विचार है कि इस ब्रह्मांड के निर्माण के पीछे आध्यात्मिक शक्ति निहित है।यह ऐसी शक्ति है जो अपने स्वरुप में अनादि एवं अनन्त है।इस शक्ति की विशेषता यह है कि यह दिखाई नहीं देती बल्कि इसकी अनुभूति की जाती है।इस शक्ति को कोई ब्रह्म के नाम से संबोधित करता है तो कोई परमात्मा के नाम से।

2.भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत अधिक श्रेष्ठ है(Spiritual World is Superior than Physical World)- आदर्शवादी विचाराधारा सम्पूर्ण जगत को दो रूपों में विभाजित करती है;पहला- भौतिक जगत;और दूसरा-आध्यात्मिक जगत।आदर्शवादी भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत को अधिक श्रेष्ठ मानते हैं तथा उसे उचित महत्त्व प्रदान करते हैं।आदर्शवादियों का तर्क है कि भौतिक संसार पदार्थों से बना है और पदार्थ नाशवान होते हैं।अतःभौतिक जगत नाशवान है।इसके विपरीत आध्यात्मिक जगत विचारयुक्त है और विचार कभी नष्ट नहीं होते इसलिए आध्यात्मिक जगत सत्य है।आदर्शवादियों के अनुसार मानव जीवन का प्रमुख लक्ष्य आध्यात्मिक जगत का ज्ञान प्राप्त करना है न कि भौतिक जगत का।कहने का आशय यह है कि मानव के लिए भौतिक पदार्थों की अपेक्षा मन एवं आत्मा को जानना अधिक आवश्यक एवं उपयोगी है।

3.जड़ प्रकृति की अपेक्षा मनुष्य को अधिक महत्त्व(Man is More Important than Nature)-मनुष्य एक विचारशील प्राणी है अर्थात् उसमें विचार करने, अनुभव करने एवं रचना करने की विशेष क्षमता होती है।इसी विचार को ध्यान में रखते हुए आदर्शवादी जड़ प्रकृति की अपेक्षा मनुष्य(मानव) को अधिक महत्त्वपूर्ण एवं विशेष प्राणी मानता है।आदर्शवादियों के अनुसार मनुष्य एक विवेकयुक्त एवं बुद्धियुक्त प्राणी है।वह वातावरण का दास नहीं है बल्कि आवश्यकता के अनुरुप वह उसमें परिवर्तन भी करता है।मनुष्य विवेकशील एवं विचारशील होने के नाते विभिन्न क्रियाओं का संपादन एवं संचालन भी करता है।

4.वस्तु की अपेक्षा विचार को महत्त्व(Idea is More Important than Matter/Object)- आदर्शवादी वस्तु की अपेक्षा विचार को अधिक महत्त्व प्रदान करते हैं।उनके अनुसार वस्तु एवं पदार्थ असत्य है। केवल विचार ही सत्य,अपरिवर्तनशील एवं सर्वव्यापी हैं।आदर्शवादियों के अनुसार मन एवं आत्मा का ज्ञान केवल विचारों के द्वारा ही संभव हो सकता है।विचारों में संसार के समस्त तत्त्व समाहित होते हैं तथा विचार अंतिम एवं सार्वभौमिक महत्त्व वाले होते हैं।

5.मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है(Man is the Noblest of all Human Being)-आदर्शवादियों के अनुसार मनुष्य इस जगत का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है।उनका विचार है कि मनुष्य के पास अन्य प्राणियों की भाँति भौतिक शक्तियाँ तो होती हैं,साथ ही साथ उनमें(मनुष्यों में) आध्यात्मिक शक्तियों का भी समावेश होता है।ये आध्यात्मिक शक्तियाँ मनुष्य के उचित विकास में सहायक होती हैं एवं मनुष्य के जीवन को सुखमय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं।

6.आध्यात्मिक मूल्यों में आस्था(Faith in Spiritual Values)-आदर्शवादी मूल्यों में विशेष आस्था रखते हैं। उनके अनुसार आध्यात्मिक मूल्य ही सर्वश्रेष्ठ हैं।ये मूल्य चिरस्थायी मूल्य है।जयम्(ruth),शिवम्(God),एवं सुन्दरम् (Beaury) इन मूल्यों को जानने का अर्थ है-ईश्वर को जानना।आदर्शवादियों के अनुसार मनुष्य के जीवन का लक्ष्य मूल्यों की प्राप्ति है।लेकिन व्यक्ति को इन मूल्यों की प्राप्ति केवल अपने स्वार्थ के लिए नहीं करनी चाहिए अपितु सत्य के लिए की जानी चाहिए।

7.मन तथा निजत्व को विशेष प्राथमिकता(Special Priority of Mind and Privacy)-आदर्शवादी मन एवं निजत्व को विशेष प्राथमिकता देते हैं। आदर्शवादियों के अनुसार मन पदार्थ से अधिक उत्तम है।आदर्शवाद यह मानता है कि मन वास्तविक है एवं मूलभूत वास्तविकता तो मन,विचारों एवं निजत्व से ही बनती है।मन ही सभी घटनाओं पर नियंत्रण रखता है और उनकी व्याख्या करता है।उनके अनुसार विश्व किसी प्राकृतिक चमत्कार का परिणाम नहीं है बल्कि यह मन की रचना है।

8.व्यक्तित्व के विकास पर अधिक बल(More Emphasis on Personality Development)-आदर्शवाद व्यक्तित्व के विकास पर अधिक बल देता है तथा इस संदर्भ में वह व्यक्ति को एक आदर्श मानव अर्थात् पूर्ण मानव के रूप में विकसित करने पर बल देता है।आदर्शवाद का विचार है कि शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के अन्दर उन समस्त गुणों का विकास किया जाना चाहिए जिससे कि वह व्यक्ति एक आदर्श एवं पूर्ण नागरिक बन सके।

9.विभिन्नता में एकता का सिद्धांत(The Principle of Unity in Diversity)

आदर्शवादी 'विभिन्नता में एकता' के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं।उनका विचार है कि यद्यपि सभी वस्तुएँ अलग-अलग हैं परंतु उन सभी में एकरुपता अर्थात् वे किसी-न-किसी रुप अथवा माध्यम से एकता के सूत्र में बँधी हुई हैं और इनको एकता के सूत्र में बाँधने का कार्य ईश्वरीय शक्ति अर्थात् परमात्मा द्वारा सम्पादित किया जाता है।अतःआदर्शवादी इस वक्तव्य में अटल विश्वास रखते है कि संसार में विद्यमान सभी वस्तुओं में एकरुपता होती है और वे किसी-न-किसी रूप में एक-दूसरे से अवश्य जुड़ी होती हैं।

10.विश्व का अस्तित्व आत्मा में है(The Universe Exists in Spirit)-आदर्शवादी विश्व का अस्तित्व आत्मा में स्वीकार करते हैं।उनके अनुसार आत्मा संसार का मूल तत्त्व है एवं यही सच्ची वास्तविकता है।आत्मा एक स्वतन्त्र सत्ता है एवं उसका अस्तित्व अनादि व अनन्त है।आत्मा को इन्द्रियों के द्वारा नहीं जाना जा सकता अपितु इस बुद्धि के द्वारा समझा जा सकता है।

11.जीवन मूल्यों/ आदर्शो एवं सामाजिक विज्ञानों पर बल(Emphasis on Social Sciences and Values/Ideals of Life)-आदर्शवादी शिक्षा के क्षेत्र में जीवन से संबंधित मूल्यों/आदर्शो एवं सामाजिक विज्ञानों पर विशेष बल देते हैं।उनका विचार है कि ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया में आदर्शों एवं मूल्यों के साथ-साथ सामाजिक विज्ञानों का भी विशेष महत्त्व होता है।ये ज्ञान प्राप्ति के संदर्भ में व्यक्ति विशेष को विशेष सहायता प्रदान करते हैं।

शिक्षा में आदर्शवाद(Idealism in Education)

शिक्षा के क्षेत्र में आदर्शवाद का एक प्रमुख स्थान है।कॉमेनियस को शिक्षा के क्षेत्र में आदर्शवाद का जन्मदाता माना जाता है लेकिन इस दर्शन का जन्म प्लेटो एवं सुकरात के विचारों से हुआ।आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा एक आत्मिक आवश्यकता है न कि प्राकृतिक।यह दर्शन पर इस बात में विश्वास करता है कि मनुष्य इस धरती पर आध्यात्मिक ज्योति लेकर उत्पन्न होता है एवं शिक्षा मनुष्य को इस योग्य बनाती है कि वह अपने अन्दर इस आध्यात्मिकता को महसूस कर सके एवं उसके दर्शन कर सके।शिक्षा के द्वारा आध्यात्मिकता के क्षेत्र का विस्तार हो जाता है जिसके माध्यम से मानव जीवन के अंतिम उद्देश्य की प्राप्ति आसानी से कर सकता है।

आदर्शवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य(Idealism and Aims of Education)

आदर्शवाद तथा शिक्षा से संबंधित उद्देश्यों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

1.आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करना।(To develop spiritual values)

2.आत्मानुभूति का विकास।(Development of self-realization)

3.नैतिक मूल्यों का विकास करना(To develop moral values)

4.संस्कृति एवं सभ्यता का विकास।(Development of culture and civilization)

5.इच्छाशक्ति का विकास करना। (Development of will power)

6.व्यक्तित्व का विकास करना।(Development of personality)

7.सादा जीवन एवं उच्च विचार पर बल(Emphasis on simple living and high thinking)

8.अनेकता में एकता की भावना पर बल(Emphasis on the feeling of unity in diversity)

9.शारीरिक,बौद्धिक एवं चारित्रिक विकास पर बल(Empasis on physical, intellectual and character development)

10.शिक्षा के सार्वभौमिकरण पर बल(Emphasis on Universalization of Education) 11.वस्तु की अपेक्षा विचारों को महत्त्व(Importance of ideas than object)

12.सामाजिक कल्याण पर बल(Emphasis on Social Welfare)

13.जड़ प्रकृति की अपेक्षा मनुष्य को महत्त्व(Importance of Man than Nature)

14.रचनात्मक शक्तियों का विकास करना।(To develop creative powers)

15.पवित्र जीवन के लिए तैयार करना(To prepare for a Holy life)

16.शिक्षा के तात्कालिक एवं अन्तिम उद्देश्यों पर बल(Emphasis on immediate and ultimate aims of education) आदर्शवादी शिक्षा के दो प्रकार के उद्देश्यों पर बल देते हैं (i) तात्कालिक उद्देश्य (Immediate Aim ) : तात्कालिक उद्देश्यों के अन्तर्गत-बालक / मनुष्य के स्वास्थ्य,कुशलता,बुद्धि,सामाजिक न्याय,कला एव अच्छे आचरण का विकास करना।(ii) अंतिम उद्देश्य-अंतिम उद्देश्य के अंतर्गत मानवता का सम्पूर्ण विकास करना

आदर्शवाद एवं पाठ्यक्रम(Idealism and Curriculum)

आदर्शवादी पाठ्यक्रम को शिक्षा प्रक्रिया में विशेष महत्त्व प्रदान करते हैं एवं वे इसको उद्देश्य पूर्ति का प्रमुख साधन मानते हैं।आदर्शवादियों के अनुसार पाठ्यक्रम के द्वारा प्रत्येक छात्र को हर प्रकार के अच्छे अनुभवों का ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए तथा पाठ्यक्रम में विभिन्न विज्ञानों तथा मानव-शास्त्रों को उचित स्थान दिया जाना चाहिए।वास्तव में आदर्शवादी शिक्षा का पाठ्यक्रम विचार प्रधान है तथा ये पाठ्यक्रम में जीवन से संबंधित विभिन्न आदर्शों,मूल्यों एवं अनुभवों आदि को सम्मिलित करने पर विशेष बल देते हैं।आदर्शवादी पाठ्यक्रम में उन सभी विषयों एवं क्रियाओं को विशेष महत्त्व देते हैं जो व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास में सहायक हों।विभिन्न आदर्शवादी दार्शनिकों/विचारकों ने पाठ्यक्रम से संबंधित अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए हैं जिनका वर्णन संक्षिप्त रुप में निम्नलिखित है

1.प्लेटो के अनुसार पाठ्यक्रम(Curriculum According to Plato)-प्लेटो के अनुसार मनुष्य का परम लक्ष्य ईश्वर-प्राप्ति अर्थात् आध्यात्मिक सुख प्राप्त करना होता है और इसके लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा का पाठ्यक्रम 'सत्यम् (Truth),शिवम्(Goodness), सुन्दरम्(Beauty) पर आधारित हो।इसलिए प्लेटो ने शिक्षा के पाठ्यक्रम में इन आध्यात्मिक मूल्यों एवं आदर्शों के समावेशन पर बल दिया।ये तीनों मूल्य/आदर्श तीन प्रकार की क्रियाओं बौद्धिक,नैतिक एवं कलात्मक/सौन्दर्यात्मक को बल प्रदान करते हैं।प्लेटो ने पाठ्यक्रम के स्वरुप को कुछ इस प्रकार निर्धारित किया है-

(क)सत्यम् (Truth)-सत्यम् के अन्तर्गत बुद्धि से संबंधित वृत्तियों एवं बौद्धिकता से संबंधित विकास पर बल दिया है।सत्यम् में निम्न प्रकार के पाठ्य विषयों को सम्मिलित किया जाता है

(i)भाषा(Language)

(ii)साहित्य(Literature)

(iii)विज्ञान(Science)

(iv)गणित(Mathematics)

(v)इतिहास(History)

(vi)भूगोल(Geography)

(ख)शिवम् (Goodness) -शिवम् के अन्तर्गत नीति (Moral) संबंधी वृत्तियों का समावेश होता है तथा इन वृत्तियों के माध्यम से नैतिकता का उचित विकास किया जाता है।शिवम् के अन्तर्गत निम्न पाठ्य-विषयों को सम्मिलित किया जाता है अर्थात् शिवम् के अन्तर्गत निम्न पाठ्य-विषय आते हैं

(i)धर्म(Religion)

(ii)नीतिशास्त्र(Ethics)

(iii)अध्यात्म(Metaphysics/Spiritual)

(ग)सुन्दरम्(Beauty) -सुन्दरम् के अन्तर्गत सौन्दर्यानुभूति(कलात्मक/Aesthetic) अर्थात् सौन्दर्य से संबंधित वृत्तियों के विकास का समावेशन होता है।इसके अन्तर्गत निम्न विषयों को शामिल किया जाता है

(i)कलाएँ(Arts)

(ii)संगीत(Music)

(iii)कविता(Poetry)

(iv)नृत्य(Dance)

(v)चित्रांकन(Painting) आदि।

2.जेम्स रॉस के अनुसार पाठ्यक्रम(Curriculum Accoding to James Ross)

जेम्स रॉस ने आदर्शवादी पाठ्यक्रम को मानवीय क्रियाओं के आधार पर दो भागों में विभक्त किया है

(i)शारीरिक क्रियाएँ(Physical Activities)

(ii)आध्यात्मिक क्रियाएँ(Spiritual Activities)

3.टी.पी.नन के अनुसार पाठ्यक्रम(Curriculum Accoding to T.P. Nunn)

टी.पी.नन का विचार है कि बालक को विद्यालय में एक निश्चित प्रकार की शिक्षा न देकर उसे महत्त्वपूर्ण सांसारिक क्रियाओं के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।इस संदर्भ में नन ने दो प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख किया है

(i)व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की रक्षा/संक्षरण(Preservation of Individual and Social Life)

(ii)संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण/विकास(Cultivation/Development of Culture and Civilization)

4.हरबर्ट के अनुसार पाठ्यक्रम(Curriculum Accoding to Herbart)

हरबर्ट के अनुसार शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नैतिकता का विकास करना है। इस संदर्भ में उन्होंने शिक्षा के पाठ्यक्रम को भागों में विभाजित करने पर बल दिया है (i)मुख्य विषय-इसमें शामिल हैं-साहित्य,कला,संगीत,इतिहास

(ii)गौण विषय-इसमें शामिल हैं-भूगोल,गणित,विज्ञान आदि।

आदर्शवाद एवं शिक्षण विधियाँ(Idealism and Methods of Teaching)

आदर्शवादी शिक्षण विधियों का चयन उद्देश्यों के आधार पर करते हैं।वे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को किसी एक विधि विशेष तक ही सीमित नहीं रखना चाहते अपितु इसके लिए बालक की रुचि, आयु एवं योग्यता आदि को विशेष रुप से ध्यान में रखते हैं।आदर्शवादी दर्शन/विचारधारा से संबंधित कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं

1.प्रश्न विधि(Question Method)

2.संवाद विधि(Dialectic Method)

3.खेल-कूद विधि(Play-way Method)

4.वार्तालाप विधि(Conversation Method)

5.व्याख्यान/भाषण विधि(Lecture/Speech Method)

6.वाद-विवाद विधि(Debate Method) 7.आगमन एवं निगमन विधि(Inductive and Deductive Method)

8.निर्देशन/निर्देश विधि(Instruction Method)

9.कहानी-कथन विधि(Story Telling Method)

10.विचार-विमर्श विधि(Discussion Method)

11.प्रयोग एवं अभ्यास विधि(Exercise and Practice Method)

12.सरल से कठिन(Simple to Complex)

13.मूर्त से अमूर्त(Concrete to Abstract)

14.विभिन्न क्रियाएँ(Different Activities)

15.नाटक एवं पत्र लेखन(Drama&Letter Writing)

16.पाठ्य-पुस्तक विधि(Textbook Method)

17.अनुदेशन,क्रियाओं एवं अनुभव के मेल द्वारा शिक्षण(Teaching through the combination of Instruction,Activities and Experience)

आदर्शवाद एवं अध्यापक(Idealism and Teacher)

आदर्शवाद शिक्षा के संदर्भ में अध्यापक को एक विशेष स्थान प्रदान करता है।एवं वह अध्यापक को बच्चे के एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में देखता है।अध्यापक बच्चे को निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करता है तथा उसे प्रगति के पथ की ओर अग्रसर करता है अर्थात् उसे गलतियों से बचाते हुए अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।आदर्शवादी अध्यापक को एक दार्शनिक,मित्र,परामर्शदाता तथा पथ-प्रदर्शक के रूप में देखते हैं।इसी संदर्भ में जैनटाइल का विचार है कि "अध्यापक सम्यक् व्यवहार का एक आध्यात्मिक प्रतीक है।"(A Teacher is a spiritual symbol of right conduct.–Gentile) |आदर्शवादी इस बात में विश्वास रखते हैं कि अध्यापक बौद्धिक,नैतिक,सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रुप से सुविकसित होना चाहिए तभी वह बालकों को सही मार्ग की ओर प्रशस्त कर सकेगा।इसी वजह से आदर्शवादी शिक्षा प्रक्रिया में अध्यापक को प्राथमिक स्थान एवं बालक को गौण स्थान प्रदान करते हैं।ईश्वर के बाद अध्यापक का स्थान होती है तथा वही बालक को ईश्वर तक परम लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग दिखलाता/बताता है।आदर्शवादी शिक्षक को एक जीवित आदर्श के रूप में देखते हैं तथा फ्रोबेल ने अध्यापक को एक माली की संज्ञा प्रदान की है।

आदर्शवाद द्वारा प्रतिपादित अध्यापक से संबंधित कुछ प्रमुख गुणों की चर्चा कर ली जाए-

1.अध्यापक छात्रों के लिए एक प्रेरणास्रोत होना चाहिए।

2.अध्यापक 'सादा जीवन एवं उच्च विचार के सिद्धांत को अपनाने वाला अर्थात् उसका अनुसरण करने वाला होना चाहिए।अध्यापक को अपने विषय का सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

4.वह छात्रों का मित्र एवं शुभाकांक्षी होना चाहिए।

5.अध्यापक को मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों से ओत-प्रोत होना चाहिए।

6.अध्यापक को अपने व्यवसाय से संबंधित विभिन्न कौशलों एवं विधियों का ज्ञान होना चाहिए।

7.अध्यापक उच्च योग्यता एवं उच्च चरित्र वाला होना चाहिए।

8.अध्यापक को लोकतांत्रिक मूल्यों एवं सिद्धांतों का पूर्ण ज्ञान एवं उन पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए।

9.अध्यापक अच्छे आचरण एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने वाला होना चाहिए।

10.अध्यापक का व्यक्तित्व छात्रों के लिए आदर्श होना चाहिए।

11.अध्यापक को व्यक्तित्व से संबंधित सद्गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए।

12.अध्यापक स्वाध्याय एवं नवीन ज्ञान की ओर निरन्तर उन्मुख होना चाहिए।

13.अध्यापक छात्रों की व्यक्तिगत विशेषताओं को पहचानने वाला एवं उनकी समस्याओं का समाधान करने वाला होना चाहिए।

आदर्शवाद एवं छात्र(Idealism and Student)

छात्र/छात्रों के संदर्भ में आदर्शवादियों के प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं

1.आदर्शवादी छात्र को अध्यापक के अधीन मानते हैं।

2.अध्यापक छात्र के भाग्य का निर्माता है। 3.छात्र को अध्यापक की आज्ञा का पालन करना चाहिए।

4.अध्यापक एवं छात्र में मैत्रीपूर्ण एवं रागात्मक संबंध होने चाहिए।

5.छात्र में गुरु(अध्यापक) के प्रति आदर भावना होनी चाहिए।

6.छात्र में अनुशासन,समर्पण एवं एकाग्रता से संबंधित गुणों का समावेश होना चाहिए।

7.छात्र में अच्छे एवं बुरे की समझ तथा सही(उचित) एवं गलत(अनुचित) आदि से संबंधित निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए।

8.छात्र विवेकी एवं अनुशासनप्रिय होना चाहिए।

9.शिक्षा प्रक्रिया में छात्र को गौण स्थान प्रदान करना/होना।

छात्र के संदर्भ में बी.बी. बोगोस्लोवास्की का विचार है कि-"छात्र एक सीमित व्यक्ति है एवं उसे शिक्षा प्राप्त करके असीमित व्यक्ति के रुप में विकसित होना है।"(“The student is a finite person,growing,when properly educated,into the image of an infinite person."--B.B.Bagoslovasky)

आदर्शवाद तथा अनुशासन(Idealism and Discipline)

आदर्शवाद के संदर्भ में आदर्शवादी विचार निम्नलिखित हैं-

1.आदर्शवाद कठोर अनुशासन में विश्वास करता है।

2.अनुशासन व्यक्ति एवं समाज के नैतिक एवं सांस्कृतिक स्तरों एवं आदर्शो

3.आंतरिक अनुशासन पर बल अर्थात् छात्र आंतरिक रुप से अनुशासित होना चाहिए।

4.सैनिक प्रकार के बाह्य अनुशासन में विश्वास न होना अथवा उसका विरोध करना

5.शक्ति पर आधारित अनुशासन का विरोध क्योंकि इस प्रकार का अनुशासन क्षणिक एवं अस्थायी होता है।

6.अनुशासन के लिए स्वतन्त्रता अनिवार्य है किंतु यह उचित प्रकार से निर्देशित होनी चाहिए अर्थात् स्वतन्त्रता एवं अनुशासन के बीच उचित समन्वय होना चाहिए।

7.अनुशासन के लिए आत्म-त्याग,विनम्रता,मानवता एवं आज्ञा-पालन आदि गुणों का विकास छात्रों के अन्दर किया जाना चाहिए।

8.अनुशासन आत्म-विश्लेषण एवं आत्म-दृष्टि से प्रेरित होना चाहिए।

9.अनुशासन में किसी भी प्रकार का बाहरी दवाब नहीं होना चाहिए अर्थात् अनुशासन छात्र के ऊपर बाहर से थोपा नहीं जाना चाहिए।

10.अनुशासन के संदर्भ में अध्यापक का रुप छात्रों के समक्ष एक आदर्श मानव के रुप में होना चाहिए।

11.अनुशासन का मुख्य उद्देश्य छात्रों के अन्दर उचित मूल्यों एवं आदर्शों का विकास करना होना चाहिए।

12.अनुशासन की भावना छात्र के अन्दर से सहज एवं स्वाभाविक रुप से प्रकट होनी चाहिए अर्थात् अनुशासन छात्र की आत्मा से पैदा होना चाहिए।

13.अनुशासन में विभिन्न प्रकार के गुणों; जैसे-ईमानदारी,आज्ञाकारिता,विनम्रता, शिष्टता,नैतिकता आदि का उचित समावेश होना चाहिए।

14.आदर्शवादियों के अनुसार अनुशासन दमनात्मक न होकर प्रभावात्मक होना चाहिए,दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आदर्शवादी बाह्य नियन्त्रण एवं शारीरिक दंड का विरोध करते हैं तथा सहानुभूतिपूर्ण क्रियाओं के आधार पर अनुशासन की स्थापना चाहते हैं।आदर्शवादियों के अनुसार बाह्य प्रतिबंध एवं शारीरिक दण्ड अनुशासन के साधन नहीं हैं और न ही इसके द्वारा प्रभावी अनुशासन की स्थापना की जा सकती है। आदर्शवाद एवं विद्यालय(Idealism and School)

आदर्शवादी शिक्षा प्रदान करने के संदर्भ में विद्यालय को विशेष महत्त्व देते हैं।उनका विचार है कि बालक के व्यक्तित्व का उचित विकास विद्यालय के वातावरण में ही किया जा सकता है।इसी संदर्भ में फ्रोबेल का विचार है कि-"विद्यालय एक उद्यान है, शिक्षक उसका सचेत माली है और बच्चा एक पौधा है।"आदर्शवादी विद्यालय के एक आदर्श रुप की कल्पना करते हैं जिसमें बालक का सम्पूर्ण विकास हो सके।उनका विचार है कि विद्यालय 'सादा जीवन एवं उच्च विचार' के सिद्धांत पर आधारित होने चाहिए।विद्यालय के संदर्भ में टी.पी. नन का विचार है कि- "विद्यालय राष्ट्र की आध्यात्मिक शक्ति को सुदृढ़ करता है,उसकी ऐतिहासिक निरन्तरता को कायम रखता है,उसकी उपलब्धियों को सुरक्षित रखता है तथा उसके भविष्य की गांरटी देता है।"आदर्शवादी विद्यालय को शिक्षक एवं छात्र की आत्मा का मिलन स्थल मानते हैं एवं उनका विचार है कि विद्यालय ही शिक्षा की समूची प्रक्रिया को उचित रूप से संचालित एवं व्यवस्थित कर सकता है।

आदर्शवाद एवं पाठ्यपुस्तकें (Idealism and Textbooks)

पाठ्यपुस्तकों के संदर्भ में आदर्शवादियों के विचार निम्नलिखित हैं -

1.पाठ्यपुस्तकें छात्रों की मूल्यवान सम्पदा है।

2.पाठ्यपुस्तकें सीखने का महत्त्वपूर्ण साधन है।

3.पाठ्यपुस्तकें सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक ज्ञान प्रदान करती हैं।

4.पाठ्यपुस्तकें शिक्षा का प्रमुख आधार होती है।

5.पाठ्यपुस्तकें समूचे ज्ञान की आधारशिला होती है।

आदर्शवाद का मूल्यांकन(Evaluation/Assessment of Idealism)

आदर्शवाद का मूल्यांकन इसके गुण एवं दोषों के आधार पर निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है

आदर्शवाद के गुण(Merits of Idealism)

-आदर्शवाद ने सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् को शिक्षा का आधार माना है।

2.आत्म-अनुशासन एवं आत्म-नियन्त्रण पर विशेष बल देना।

3 बालकों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास पर विशेष बल देना।

4.शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में अध्यापक का महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करना।

5.पाठ्यक्रम की विस्तृत एवं उचित व्याख्या प्रस्तुत करना।

6.उद्देश्यों के अनुरूप शिक्षण विधियों के चयन पर बल

7.बालक में आत्मानुभूति की क्षमता का उचित विकास करना।

8.शिक्षा से संबंधित उद्देश्यों का उचित निर्धारण एवं विस्तृत व्याख्या

9.पाठ्यक्रम में मानवीय विषयों/क्रियाओं को विशेष महत्त्व प्रदान करना।

10.बालक के व्यक्तित्व के आदर पर विशेष बल।

11.शिक्षा के द्वारा बालक की रचनात्मक शक्तियों के विकास पर बल।

12.बालक के उत्कृष्ट चरित्र निर्माण पर बल

13.पाठ्यक्रम में आध्यात्मिक विषयों पर अधिक बल

14.स्व: अनुशासन की अवधारणा पर बल देना।

दर्शवाद के दोष/अवगुण(Demerits of Idealism)

1.बालक को गौण स्थान प्रदान करना।

2.कठोर अनुशासन पर अधिक बल देना।

3.अध्यापक को आवश्यकता से अधिक महत्त्व प्रदान करना।पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक विषयों को गौण स्थान प्रदान करना।

4.शिक्षा के उद्देश्यों का अमूर्त होना।

5.आध्यात्मिक विषयों पर अधिक बल देना जो कि आज के विज्ञान एवं तकनीकी के युग में संभव नहीं है।

6.आदर्शवाद दर्शन वर्तमान भौतिक युग में असंभव प्रतीत होता है। 

Reference -book by Dr. Naresh kumar yadav


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