शिक्षा का अधिकार (Right to Education) - निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार बनाने के लिए संविधान (83वां संशोधन), विधेयक 1997 में 6-14 वर्ष की आयु समूह के सभी बालकों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के लिए संविधान में अनुच्छेद 21-ए को अन्तःस्थापित करने के लिए राज्य सभा में पेश किया गया। विधेयक का मुख्य उद्देश्य बच्चों की अनिवार्य शिक्षा के लिए मूल अधिकार प्रदान करना था जिससे प्रारंभिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण तथा अशिक्षा का उन्मूलन हो सके। लेकिन विधेयक 27-11-2001 को वापिस ले लिया गया। इस विषय की मानव संसाधन विकास पर संसद की स्थायी समिति द्वारा समीक्षा की गयी और इस पर भारतीय विधि आयोग 165वीं रिपोर्ट में भी विचार किया गया। विधि आयोग की रिपोर्ट और स्थायी समिति की अनुशंसा पर विचार करने के बाद नया विधेयक, संविधान (93वां संशोधन) विधेयक, 2001 पुनः स्थापित किया गया। जो लोक सभा में 28-11-2001 को सर्व-सम्मति से तथा राज्य सभा द्वारा 14-05-2002 को औपचारिक संशोधनों द्वारा पारित किया गया।
अनुच्छेद 21-ए-राज्य 6-14 वर्ष की आयु के बीच सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा ऐसे ढंग से प्रदान करेगा, जैसा कि राज्य, विधि द्वारा, अवधारित करे।
अनुच्छेद 45-राज्य सभी शिशुओं के लिए प्रारम्भिक बचपन सावधानी से तथा शिक्षा प्रदान करने की कोशिश करेगा, जब तक कि 6 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेते।
अनुच्छेद 51-(ए) : (के)-6-14 वर्ष की आयु के बीच अपने शिशु या यथास्थिति, प्रतिपाल्य को शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करने के लिए माता-पिता या संरक्षक हैं।
शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार बनाने के लिए संवैधानिक कार्यवाही प्रारम्भ करने के पूर्व, उच्चतम न्यायालय ने उन्नीकृष्णन, जे.पी. एण्ड अदर्स बनाम स्टेट ऑफ आन्ध्र प्रदेश एण्ड अदर्स में अवधारित किया था कि, “इस देश के प्रत्येक नागरिक को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार है, जब तक कि वह चौदह वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेता।"
शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2005
(Right to Education Act, 2005)
1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, आस्था, पूजा, विश्वास आदि की स्वतन्त्रता, अवसर एवं हैसियत की समानता और मनुष्य की प्रतिष्ठा तथा राष्ट्र की एकता व अखण्डता सुनिचिश्त करने हेतु भ्रातृत्व प्राप्त है।
2. संविधान की धारा 45 के अनुसार संविधान लागू होने के 10 वर्षों के भीतर राज्य 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा।
3. संविधान में 86वें संशोधन (2002) के फलस्वरूप धारा 21ए के अनुसार 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मूल अधिकार है।
4. धारा 45 के अनुसार 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की बचपन पूर्व देख-रेख एवं शिक्षा की व्यवस्था हेतु राज्य प्रयास करेगा।
5. संविधान की धारा 51 (ACK) (जो नागरिकों के मूल कर्तव्य के बारे में है) के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह मूल कर्तव्य है कि वह अपने बच्चे/पाल्य को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए।
6. एक मानवीय एवं समतामूलक सभाज के सृजन हेतु जिसमें पंथ-निरपेक्ष मूल्य तथा भारत की स्थानीय धार्मिक व सांस्कृतिक विविधता शामिल है।
7. लोकतन्त्र सामाजिक न्याय एवं समता के उद्देश्यों की प्राप्ति सिर्फ समता पूर्ण गुणवत्ता वाली शिक्षा सबको मुहैया कराने से ही हो सकती है। शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2005 की धारा 3 में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं।
(क) 6 वर्ष की उम्र प्राप्त प्रत्येक बच्चे को पूर्णकालिक प्रारम्भिक शिक्षा में भाग लेने तथा उसे पूरी करने का अधिकार है। इस उद्देश्य के लिए उसे पड़ोस विद्यालय में मर्ती किया जएगा और उसे निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाएगी।
(ख) इस विधेयक के लागू होने के समय बिना दाखिला वाला 9-14 वर्ष का बच्चा पड़ोस विद्यालय में विशेष कार्यक्रम में शिक्षा प्राप्त कर सकेगा। यह कानून लागू होने होने के 3 वर्षों के भीतर उपयुक्त कक्षा में दाखिला पाने का हकदार होगा।
(ग) इस कानून को लागू करने के समय 7-9 वर्ष की आयु समूह का कोई भी बच्चा जिसने दाखिला नहीं पाया है 1 वर्ष के भीतर विद्यालय में उम्र के मुताबिक उपयुक्त कक्षा में प्रवेश पाने का हकदार होगा।
(घ) प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं होने तक कोई भी बालक स्कूल से निकाला नहीं जाएगा।
इस विधेयक की धारा 4 में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
1. जो विद्यार्थी कक्षा 8 से कम की पढ़ाई वाले विद्यालयों में पढ़ रहे हों, उनके प्रवेश स्थानीय अधिकारी मुफ्त प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने हेतु दूसरे विद्यालय में कराने की व्यवस्था करेंगे।
2. जो बच्चे दूसरे राज्य के विद्यालय में पढ़ने के लिए जाएंगे उन्हें पहले वाले विद्यालय के प्रधानाध्यापक के द्वारा स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र दिया जाएगा।
3. अगर किसी बच्चे के पास स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र नहीं है तो नए विद्यालय में प्रवेश के लिए इंकार नहीं किया जाएगा और न ही विलम्ब होगा। उसके प्रवेश के लिए जाँच परीक्षा भी नहीं ली जाएगी। इस विधेयक की धारा 5 में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
1. यह सुनिश्चित करना कि आर्थिक, सामाजिक, भाषायी, लैंगिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, अक्षमता स्थानिक या अन्य अवरोध बच्चे की प्रारम्भिक शिक्षा में सहभागिता एवं उसे पूरा करने को रोक न सके।
2. प्रत्येक बच्चे के नामांकन, उपलब्धि और सहभागिता की स्थिति का नियमित अनुश्रवण करने हेतु एक पद्धति तैयार करना। प्रत्येक बच्चे के लिए आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाना।
3. प्रत्येक बच्चे को मुफ्त शिक्षा प्राप्त करवाना। अगर किसी क्षेत्र में विधलय न हो तो वहां के बच्चों के लिए दूसरे विद्यालय में जाने हेतु यातायात की सुविधा उपलब्ध करवाता। आवासीय विद्यालय की सुविधाएँ उपलब्ध करना।
4. यह निश्चित करना कि प्रत्येक बच्चा समतामूलक गुणवत्ता वाली तथा संविधान में निहित मूल्यों की पोषक शिक्षा प्राप्त करे।
धारा 6 में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
1. 7-9 वर्ष के बिना दाखिला वाले बच्चे इस कानून के लागू होने के एक साल के अन्दर पड़ोस विद्यालय में नामांकन करा लें।
2. पड़ोस विद्यालय में 9-14 वर्ष के बच्चों को भर्ती कराया जाए। पड़ोस विद्यालय में उन्हें उपयुक्त कक्षा में भर्ती कराया जाए। धारा 7 के प्रावधान-कम से कम 5 और 6 वर्ष के बीच की उम्र वाले बच्चों को सरकार सभी शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराएगी और ऐसी सुविधाएँ न होने पर विद्यालयों के नजदीक दूसरे कार्यक्रम उपलब्ध कराएगी। धारा 8 के प्रावधान-धारा 8 में प्रावधान दिए गए हैं कि यदि कोई बच्चा 14 वर्ष की उम्र पूरी होने के बाद भी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी नहीं करता और यदि विद्यालय में पढ़ रहा हो, तो उसे 18 वर्ष की उम्र तक उस विद्यालय में निःशुल्क शिक्षा दी जाएगी तक तक उसकी प्ररम्भिक शिक्षा पूरी नहीं हो जाए। धारा 9 में निम्नलिखित प्रावधान दिए गए हैं-
1. राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट आदेश के आलोक में कदम उठाना।
2. राज्य सरकारों से समय-समय पर सलाह लेकर केन्द्र सरकार इस कानून के लागू करने पर लगने वाले खर्च का हिस्सा निर्धारित करके राज्य सरकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करेगी।
3. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या विकसित करना, प्रशिक्षण के लिए मानदण्ड विकसित व लागू करना, प्रारंभिक शिक्षा के लिए शिक्षकों की योग्यता जो सहभागिता तथा परामर्श पर आधारित होगा।
धारा 10 में इसे निम्नलिखित तरीके से स्पष्ट किया गया है-
1. विद्यालयों में शिक्षक नियुक्त करना।
2. अतिरिक्त जरूरी विद्यालयों की स्थापना करना और चालू करना।
3. आवश्यक चीजें समय पर निःशुल्क उपलब्ध करवाना।
4. विस्तृत आंकड़ा आधार विकसित करना।
धारा 11 में प्रावधान किया गया है कि-
1. इस कानून के शुरू होने के छः माह के भीतर प्रशिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन करना।
2. सरकार द्वारा प्रशिक्षित शिक्षकों की पूर्ति करना अगर कमी होती है तो केन्द्र सरकार की अधिसूचना के मुताबिक अधिकतम 5 वर्षों में इस जरूरत को पूरा करने के लिए उपयुक्त कदम उठाए।
धारा 12 में निम्नलिखित प्रवधान किए गए हैं-
1. यह निश्चित करना कि कोई बच्चा 6-14 वर्ष के बीच में विद्यालय में दाखिले के बिना तो नहीं है अगर है तो उसे दाखिला दिलवाया जाए और उसकी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करवाई जाए।
2. आवश्यक प्रवासी परिवारों को बच्चों की सही शिक्षा हेतु विशेष कदम उठाना चाहिए।
3. निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा हेतु विद्यालय मैपिंग के जरिए विद्यालय की हर कमी को पूरा करना। बजट आदि तैयार करना।
4. 6-14 वर्ष की उम्र के सभी बच्चों विशेषकर वंचित समूहों के बच्चों का अभिलेख संचारित करना।
संविधान 13 में यह कहा गया है कि-
1. प्रारम्भिक शिक्षा के लिए वार्षिक बजट सक्षम/केन्द्र सरकार बनाकर राज्य के विधानमण्डल में रखेगी।
2. प्रत्येक विद्यालय प्रवन्धन समिति वार्षिक, मध्यम तथ दीर्घकालिक विद्यालय विकास योजना बनाएगी जिससे समता मूलक गुणवत्ता वाली शिक्षा देने हेतु उसके पड़ोस में रहने वाले बच्चों की जरूरतें पूरी की जाएंगी।
3. उपधारा 3 में वर्णित योजनाओं के आधार पर राष्ट्रीय प्रारम्भिक शिक्षा आयोग इस कानून के कार्यान्वयन का अनुश्रवण करेगा।
धारा 14 में प्रावधान दिए गए हैं कि-
1. राज्य के विद्यालय, निर्दिष्ट श्रेणियों के विद्यालयों को छोड़कर, सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अग्रलिखित तरीके से प्रदान करेंगे।
2. सहायता प्राप्त विद्यालय अपने यहाँ नामांकित बच्चों को कम से कम उस अनुपात में नामांकन करेंगे जो इसके वार्षिक खर्च इसे प्राप्त वार्षिक आवर्ती सहायता का रहता है-किन्तु कम से कम 25%।
3. राज्य के निर्दिष्ट श्रेणियों के विद्यालय तथा गैर-सहायता प्राप्त विद्यालय इस कानून के शुरू होने से कक्षा में भर्ती बच्चों के कम से कम 25 प्रतिशत बच्चे जो कमजोर वर्गों के हों जो निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार विद्यालय द्वारा चयनित किए जाएंगे। मगर किसी भी विद्यालय में मुफ्त शिक्षा सबसे पहले पड़ोस में रहने वाले योग्य बच्चों को दी जाएगी और उसके बाद स्थान रिक्त होने पर अन्य योग्य बच्चों को दी जाएगी। किसी विद्यालय ने केन्द्र सरकार, सक्षम सरकार या अन्य प्राधिकरण एजेन्सी से मुफ्त में अथवा अनुदानित दर पर जमीन, भवन, उपकरण या अन्य सुविधाएँ प्राप्त की हों तो ऐसा विद्यालय उपर्युक्त प्रतिपूर्ति पाने का हकदार नहीं होगा।
धारा 15 के अनुसार-कोई भी विद्यालय प्रारम्भिक चरण में प्रवेश के लिए बच्चों की स्क्रीनिंग नहीं करेगा और उनके परिवारों द्वारा कोई कैंपिटेशन शुल्क भुगतेय नहीं होगा।
धारा 16 में प्रावधान दिया गया है कि बच्चों का प्रवेश यथा सम्भव शैक्षिक वर्ष के प्रारम्भ में होगा अथवा निर्धारित अन्य अवधि तक होगा। परन्तु कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा। इस वर्ष के शुरू होने के चार महीने के भीतर भर्ती बच्चा पहले वाले बच्चों के साथ सत्र पूरा कर सकेगा। किन्तु बाद में भर्ती बच्चा जो स्थानान्तरण हो कर नहीं आया हो वह दूसरे बैच के साथ पढ़ाई पूरी करेगा जब तक कि विद्यालय सन्तुष्ट न हो जाए कि यह बच्चा बचे हुए दिनों में अगले बच्चों के साथ अगली कक्षा में जा सकता है। धारा 17 में निम्नलिखित प्रावधान हैं-
1. इस कानून के लागू होने के समय जो विद्यालय सूची में बनाए गए नियमों का पालन नहीं कर रहा है तो उसे तीन साल के अन्दर उन नियमों का पालन करना होगा।
2. सूची में दिए गए नियमों को पूरा किए बगैर कोई भी विद्यालय स्थापित नहीं किया जाएगा। किसी अन्य विद्यालय को किसी सक्षम प्राधिकर द्वारा मान्यता नहीं दी जाएगी।
धारा 18 में कहा गया है कि- राष्ट्रीय प्रारम्भिक शिक्षा आयोग केन्द्र तथा सक्षम सरकारों से सलाह-मशवरा करके किसी भी समय इस कानून की अनुसूची में पूरे देश या किसी क्षेत्र के बाबत संशोधन कर सकता है।
धारा 19 के तहत प्रावधान दशकीय जनगणना, राज्य विधानमण्डल, संसद का चुनाव, आपदा राहत कार्य तथा स्थानीय निकाय को छोड़कर किसी सरकारी या पूर्णतः सहायता प्राप्त विद्यालय के शिक्षक को गैर-शिक्षण कार्य हेतु प्रतिनियुक्त नहीं किया जाएगा।
धारा 20 के प्रावधान-कोई भी शिक्षक अपने नियोक्ता या पर्यवेक्षक द्वारा सौंपे गए कार्य के लिए आर्थिक लाभ हेतु अन्य निजि शिक्षण नहीं कर सकेगा।
धारा 21 के प्रावधान-विद्यालय प्रबन्धन समिति प्रत्येक सरकारी और पूर्णतः सहायता प्राप्त विद्यालय के कार्यों के अनुश्रवण पर्यवेक्षण के लिए गठित की जाएगी। विद्यालय के समग्र विकास हेतु अभिभावकों, शिक्षकों, समुदाय एवं स्थानीय प्राधिकरण के प्रतिनिधियों के साथ योजना तैयार करेगी तथा उत्तरदायी होगी। विद्यालय प्रबन्धन समिति में समुदाय के सभी अनुभागों-अभिभावकों, शिक्षकों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों तथा शिक्षा के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों का प्रतिनिधित्त्व होगा। विद्यालय प्रबन्धन समिति को मिली राशि का अलग खाता होगा तथा उसका प्रयोग निर्दिष्ट तरीके से किया जाएगा।
1. इस कानून के लागू होने के समय सरकारी और पूर्णतः सहायता प्राप्त विद्यालयों, निर्दिष्ट श्रेणी के सरकारी विद्यालयों को छोड़कर शिक्षकों को विशिष्ट विद्यालयों में नियोक्ता अधिकारी द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी समय कुल स्वीकृत पदों के 19 प्रतिशत से अधिक पद रिक्त ना रहें। स्थानीय प्राधिकरण तथा सक्षम सरकारें सुनिश्चित करेंगे कि अनुसूची के अनुसार शिक्षकों और उनके स्वीकृत पदों को दिया जाए और ग्रामीण विद्यालयों की कीमत पर शहरी विद्यालयों में ज्यादा शिक्षक न प्रतिनियुक्त हो जाएँ।
2. इस कानून के शुरू होने के बाद निर्दिष्ट श्रेणियों के सरकारी विद्यालयों को छोड़कर सरकारी तथा पूर्णतः सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों की नियुक्ति किसी विशिष्ट विद्यालय के लिए स्थानीय प्राधिकार या विद्यालय प्रबन्धन समिति के द्वारा की जाएगी और उनका स्थानान्तरण वहां से नहीं होगा। परन्तु सक्षम सरकार के एक आदेश द्वारा किसी जिला, ब्लॉक या राज्य में स्थानीय प्राधिकारों विद्यालय प्रबन्धन समितियों द्वारा शिक्षकों का चयन और तत्पश्चात् नियोक्ता अधिकारियों के नाम भेजने सम्बन्धी निर्देश दे सकती है।
धारा 24 के तहत प्रावधान में कहा गया है कि केवल राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षण परिषद् द्वारा निर्धारित योग्यता वाले शिक्षकों की नियुक्ति ही की जाए। अगर जिस राज्य में सेवा-पूर्व प्रशिक्षण क्षमता न हो वहां अध्यापक शिक्षण परिषद् केन्द्र सरकार ऐसे प्रशिक्षण के बारे में निर्धारित अवधि एवं सीमा तक छूट दे सकेगी। इस कानून के शुरू होने के समय कार्यरत अप्रशिक्षित शिक्षकों को 5 वर्ष के अन्दर ऐसी योग्यता के समकक्ष योग्यता प्राप्त करनी होगी। इसमें नियोक्ता अधिकारी निर्धारित शुल्क आदि का भुगतान करेंगे।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2005 की कमियाँ (Demerits of Right of Education Act, 2005)
1. विद्यालय प्रबन्धन समिति को शिक्षकों को केवल लघु दण्ड देने का अधिकार दिया गया है जो नगण्य है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद अगर वह दोषी पाया जाता है तो बहुत दण्ड देने का अधिकार भी होना चाहिए। अन्यथा शिक्षकों और अधिकारियों की आपस में मिली भगत हो जाती है जिससे व्यवस्था बिगड़ जाती है।
2. जब तक केन्द्र सरकार पूरी धनराशि देने के लिए तैयार नहीं होगा तब तक निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का सारा कार्यान्वयन अधूरा रहेगा। क्योंकि अधिकतर राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति बदतर है।
3. जो बच्चे विद्यालय नहीं जा रहे उन्हें विद्यालय प्रबन्धन समिति द्वारा उनके माता-पिता (अभिभावक) को निर्देश देने को कहा गया है जो कि असंभव है। इसके लिए उस परिवार की समस्याओं के बारे में पूछकर उनकी समस्याओं का निदान करना चाहिए।
4. शिक्षकों को स्थानान्तरण का हक प्राप्त नहीं होता अगर प्रबन्धन समिति उसे प्रताड़ित करे तो उसे स्थानान्तरण कराने का हक होना चाहिए। इसी प्रकार, अगर कोई शिक्षक अनुशासनहीन हो तो समिति द्वारा उसका स्थानान्तरण किए जाने का हक होना चाहिए क्योंकि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर सकती है।
5. यह प्रारूप अनेक धाराओं में यह बताता है कि बच्चों, माँ-बाप, शिक्षकों के लिए कर्त्तव्यों का पालन न होने पर दण्ड का प्रावधान करता है जबकि राज्य प्राधिकारों या उनके प्रतिनिधियों को अनुपालन न करने पर दण्डित करने का प्रावधान नहीं करता।
6. शिकायतों के निपटारे के लिए भी इस प्रारूप में प्रभावशाली उपाय नहीं किए गए।
7. इस प्रारूप में कुछ ऐसे भी प्रावधान हैं जिनसे मातृभाषा में शिक्षण को नजरअन्दाज किया है।