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Naturalism(प्रकृतिवाद)
Sep 11, 2022   Ritu Suhag

Naturalism(प्रकृतिवाद)

Naturalism(प्रकृतिवाद)

भूमिका(Introduction)

प्रकृतिवाद वह दर्शन है जिसके अनुसार प्रकृति अंतिम सत्ता है।यह प्रकृति को मूल तत्त्व मानता है।इस दर्शन के अनुसार प्रकृति ही सब कुछ है तथा इसके अलावा अथवा दूर कुछ भी नहीं है।वस्तु प्रकृति में ही जन्म लेती है और फिर उसी में ही विलीन हो जाती है।सभी दार्शनिक समस्याओं का अंतिम उत्तर केवल प्रकृति के ही पास है।प्रकृतिवादी इन्द्रियानुभूत ज्ञान को ही सच्चा एवं उचित ज्ञान मानते हैं तथा इस प्रकार के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को स्वयं निरीक्षण एवं परीक्षण करना चाहिए।प्रकृतिवादियों के अनुसार प्रकृति अपने आप में एक आत्मनिर्भर सत्ता है।इसके अपने प्राकृतिक नियम,प्राकृतिक शक्तियाँ एवं प्राकृतिक पदार्थ तथा क्रियाएँ हैं।प्रकृतिवाद के अनुसार केवल प्राकृतिक संसार ही वास्तविक संसार हैं तथा प्रकृति अपने आप में सम्पूर्ण इकाई तथा अंतिम वास्तविकता है।

प्रकृतिवाद का अर्थ(Meaning of Naturalism)

प्रकृतिवाद का अर्थ है-प्रकृति में विश्वास।इसके अनुसार वास्तविकता एवं प्रकृति दोनों एक ही चीज है।यह एक आत्मनिर्भर सत्ता है और इसके अपने नियम एवं शक्तियाँ हैं।'प्रकृति की ओर लौटो' प्रकृतिवादियों का नारा है।प्रकृतिवादियों के अनुसार मनुष्य की अपनी एक प्रकृति होती है और प्रकृतिवादी मनुष्य को उसकी अपनी प्रकृति के अनुरुप आचरण करने की स्वतन्त्रा पर बल देते हैं।वे मनुष्यों को किसी भी प्रकार के सामाजिक एवं आध्यात्मिक बंधनों एवं नियमों में जकड़कर नहीं रखना चाहते।इस दर्शन के अनुसार प्रत्येक वस्तु पर प्रकृति की छाप है इससे आगे,पीछे एवं इसके अतिरिक्त कोई वस्तु नहीं है।वास्तव में प्रकृति अंतिम वास्तविकता तथा स्वयं में सम्पूर्ण इकाई है।इस वाद के अनुसार प्राकृतिक पदार्थ एवं क्रियाएँ ही सत्य हैं।वास्तव में प्रकृति शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है एक भौतिक प्रकृति के रूप में और दूसरा-बालक की प्रकृति के रुप में।भौतिक प्रकृति का पदार्थ रुप में अध्ययन करने से हमें दर्शन मिलता है और यह दर्शन जीवन एवं शिक्षा के उद्देश्यों की ओर संकेत करता है;वहीं दूसरी ओर जब हम बालक की प्रकृति के संबंध(विषय) में विचार करते हैं तो इससे हमें उसकी इच्छाओं,रुचियों,शक्तियों एवं मूल प्रवृत्तियों आदि का बोध होता है।अगर संक्षिप्त शब्दों में प्रकृतिवाद को स्पष्ट किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो यह मानती है कि यह भौतिक संसार ही सत्य है इसके अतिरिक्त कोई अन्य संसार नहीं है और यह आत्मा को एक पदार्थजन्य चेतन तत्त्व के रूप में स्वीकार करती है।

प्रकृतिवाद के समर्थक (Supporter/Propounder of Naturalism)

प्रकृतिवाद के समर्थक एवं प्रकृतिवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले कुछ प्रमुख दर्शनिक हैं-अरस्तु(Aristotle),कॉम्टे(Comte), हॉब्स(Hobbes),बैकन(Bacon),डार्विन(Darwin),लैमार्क(Lamark),हक्सले(Huxley),हरबर्ट स्पैन्सर(Herbart Spencer),लॉक(Locke),बर्नाड शॉ(Bernard Shaw),सेमुअल बटलर(Samual Butler),टैगोर (Tagore),कार्ल मार्क्स(Karl Marx ) एवं रुसो(Rousseau)

प्रकृतिवाद की परिभाषाएँ(Definitions of Naturalism)

प्रकृतिवाद से संबंधित कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं

डब्ल्यू.ई.हॉकिंग के अनुसार "प्रकृतिवाद तत्त्वमीमांसा का वह रुप है जो प्रकृति को पूर्ण वास्तविकता मानता है अर्थात् यह परा प्राकृतिक या दूसरे जगत को अपने क्षेत्र बाहर रखता है।""Naturalism is the type of metaphysics which takes nature as the whole of reality. That is, it excludes whatever is supernatural or other worldly."—W.E.Hocking

जेम्स वार्ड के अनुसार-"प्रकृतिवाद वह सिद्धांत है जो प्रकृति को ईश्वर से पृथक मानता है,आत्मा को पदार्थ के अधीन मानता है और अपरिवर्तनशील नियमों को सर्वोत्तम मानता है। ""Naturalism is the doctrine which separates nature from God, subordinate spirit to matter and sets up unchangeable laws as supreme."-James Ward

एडम्स के अनुसार-"प्रकृतिवाद एक ऐसा पद है जिसका अनुप्रयोग शिक्षा सिद्धांत में प्रशिक्षण प्रणालियों पर ढीले तौर से लागू किया गया है जोकि विद्यालयों एवं पुस्तकों पर निर्भर नहीं बल्कि छात्रों की वास्तविक जीवन दक्षता पर निर्भर करता है। ""Naturalism is a term loosely applied in educational theory to system of training that are not dependent on schools and books but on the manipulation of the actual life of the educand."-Adams

जॉयस के अनुसार -"प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना है अथवा प्रकृति एवं मनुष्य के दार्शनिक चिंतन में उन बातों को स्थान देना है जो हमारे अनुभवों से परे नहीं हैं। ""Naturalism is a system whose silent characteristic is the exclusion of whatever is spiritual or indeed whatever is transcendental of experience form our philosophy of nature and man."-Joyce

थॉमस और लैंग के अनुसार “प्रकृतिवाद, आदर्शवाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधीन मानता है और विश्वास करता है कि अन्तिम वास्तविकता भौतिक है,आध्यात्मिक नहीं।""Naturalism as opposed to Idealism, subordinates mind to mater and holds that ultimate reality is material, not spiritual."-Thomas and Lang

जे.एस. रॉस के अनुसार-"प्रकृतिवाद एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग शिक्षा संबंधी सिद्धांतों में उन शिक्षा प्रणालियों के लिए किया जाता है जो विद्यालयों और पुस्तकों पर आधारित होने के बजाय शिक्षार्थी के वास्तविक जीवन को क्रियात्मक रुप से प्रभावित करने के प्रयास करती हैं।'"Naturalism is a term loosely applied in educational theory to systems of training that are not dependent on schools and books but on the manipulation of the actual life of the educated."-J.S. Ross

आर.बी. पैरी के अनुसार "प्रकृतिवाद विज्ञान नहीं अपितु विज्ञान का समर्थक है। अधिक विशिष्ट तौर पर यह इस बात का समर्थक है कि वैज्ञानिक ज्ञान अंतिम और इसमें विज्ञानोत्तर या दार्शनिक ज्ञान का कोई स्थान नहीं है।'"Naturalism is not science but an assertion about science. More specifically it is the assertion that scientific knowledge in final, leaving no room for extra scientific or philosophical knowledge."-R.B. Perry

रस्क के अनुसार- " प्रकृतिवाद एक दार्शनिक स्थिति है जिसे वे लोग अपनाते हैं जो दर्शन की शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या करते हैं।""Naturalism is a philosophical position adopted by those who approach philosophy from purely scientific point of view."-Rusk

प्रकृतिवाद के रूप अथवा सम्प्रदाय(Forms and School of Naturalism)

प्रकृतिवादी दर्शन के तीन रूप एवं सम्प्रदाय हैं

1.भौतिकवादी या पदार्थवादी प्रकृतिवाद (Physical Naturalism)

2.यंत्रवादी या मशीनी प्रकृतिवाद(Mechanical Naturalism)

3.जीव-विज्ञान संबंधी या विकासवादी प्रकृतिवाद(Biological or Evolutionary Naturalism)

1.भौतिकवादी या पदार्थवादी प्रकृतिवाद(Physical Naturalism)- प्रकृतिवाद दर्शन का यह रूप भौतिक विज्ञान के आधार पर मानव के अनुभवों,विचारों,संवेगों,भावनाओं,दृष्टिकोणों तथा उसके व्यक्तित्व आदि को समझने का प्रयास करता है।पदार्थवादी प्रकृतिवाद का संबंध बाहय प्रकृति(External Nature)से है।यह मानवीय अनुभवों,क्रियाशीलता एवं कार्यकलापों की व्याख्या भौतिक वस्तुओं एवं प्राकृतिक नियमों के आधार पर करता है।

2.यंत्रवादी या मशीनी प्रकृतिवाद(Mechanical Naturalism)-

दर्शन के इस रूप के अनुसार विश्व एक प्राणविहीन बड़ा यंत्र(बड़ी मशीन) है अर्थात् समस्त(समूचा) संसार पदार्थ की बनी हुई एक ऐसी बड़ी मशीन है तथा मनुष्य इस बड़ी मशीन में छोटे यंत्र के समान है अथवा केवल इसका एक अंश एवं भाग मात्र है। इस यंत्र एवं मशीन का संचालन बाह्य प्रभावों एवं प्रकृति द्वारा निर्धारित एवं निश्चित किए गए नियमों के अनुसार होता है अर्थात इसकी अपनी एक संचालन शक्ति है और यह शक्ति इसे बाहय प्रभावों द्वारा प्राप्त होती है।यंत्रवादी प्रकृतिवाद के अनुसार पदार्थ ही सब कुछ हैं और जो कुछ भी इस संसार में विद्यमान है वह पदार्थ के रूप में ही विद्यमान है और मनुष्य भी इन पदार्थों का एक रुप है।इस दर्शन के समर्थक मनुष्य को एक मशीन अथवा यंत्र के रूप में देखते हैं एवं उसे और अधिक अच्छी बनाना चाहते हैं।

3.जीव-विज्ञान संबंधी या विकासवादी प्रकृतिवाद(Biological or Evolutionary Naturalism)-

प्रकृतिवाद का यह रूप डार्विन के विकासवादी सिद्धांत पर आधारित है। विकासवादी सिद्धांत(Theory of Evoluation) के अनुसार मनुष्य का विकास पशुओं अर्थात् निम्न प्राणियों से सहज विकास की प्रक्रिया के आधार पर हुआ है तथा मनुष्य इस विकास प्रक्रिया का सर्वोच्च एवं उत्कृष्ट रुप है।यह वाद मानव की प्राकृतिक शक्तियों,झुकावों एवं भावों के विकास पर विशेष बल देता है। विकास की प्रक्रिया में यह सिद्धांत मुख्य रुप से निम्नलिखित नियमों को विशेष महत्ता प्रदान करता है

1.जीवन के लिए संघर्ष(Struggle for Existence)

2.वातावरण के साथ सांमजस्य एवं अनुकूलन(Adaptation to Environment)

3.योग्यतम का जीवित रहना या सबसे उपयुक्त का अस्तित्व(Survival of the Fittest)

शिक्षा में प्रकृतिवाद(Naturalism in Education)

शिक्षा में प्रकृतिवाद एक प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट हुआ।शिक्षा में प्रकृतिवाद की नींव सबसे पहले बेकन(Bacon) और कॉमेनियस(Comenius) ने रखी।प्रकृतिवाद पारम्परिक शिक्षा प्रणाली के विरुद्ध विद्रोह है।शिक्षा के क्षेत्र में प्रकृतिवादी शिक्षा को बच्चे के स्वभाव एवं मनोविज्ञान पर आधारित करना चाहते हैं।प्रकृतिवादी पुस्तकीय ज्ञान अथवा पुस्तकीय शिक्षा को उचित नहीं मानते। उनके अनुसार वास्तविक शिक्षा वह शिक्षा है जो बालक की प्रकृति के अनुकूल उसका उचित विकास करे।प्रकृतिवाद बालक के विकास में हस्तक्षेप करने वाले सभी अधिकारों का विरोध करता है।दूसरे शब्दों में प्रकृतिवाद जीवन की कृत्रिमता की प्रतिक्रिया है।प्रकृतिवादी शिक्षा प्रणाली में अनुशासन की कठोरता,अप्रासंगिक एवं अप्राकृतिक विधियों का कोई स्थान नहीं है।प्रकृतिवाद सादगी का प्रतीक है एवं 'प्रकृति की ओर लौटो' प्रकृतिवादियों का नारा है।यह वाद शिक्षा प्रक्रिया में प्राकृतिक नियमों को लागू करता है तथा उन पर विशेष बल देता है।इसी संदर्भ में रॉस का विचार है कि-“ प्रकृतिवाद एक ऐसा शब्द है जिसका शिक्षा संबंधी सिद्धांतों में उन शिक्षा प्रणालियों के लिए प्रयोग किया जाता है जो विद्यालयों और पुस्तकों पर आधारित होने के बजाय शिक्षार्थी के वास्तविक जीवन को क्रियात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास करती हैं।"अतः संक्षिप्त रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवाद पारम्परिक शिक्षा प्रणाली के विरुद्ध विद्रोह है।

प्रकृतिवादी शिक्षा की मुख्य विशेषताएँ(Main Characteristics of Naturalistics Education)

प्रकृतिवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

1.प्रकृति की ओर लौटो(Back to nature)

2.प्रकृति ही समुचित वास्तविकता है।(Nature is ultimate reality)

3.शिक्षा में छात्र का केन्द्रीय स्थान अर्थात् बाल केन्द्रित शिक्षा।(Child centred education)

4.प्रकृति के नियम निश्चित एवं अपरिवर्तनशील हैं।

5.प्रकृति एवं वास्तविकता एक ही चीज (वस्तु) है।

6.ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान का मुख्य द्वार है।(Sense are the gateway of knowledge)

7.मनुष्य (मानव) स्वयं में पदार्थ है।

8.भौतिक संसार ही वास्तविक संसार है।

9.चिंतन,मनन,कल्पना एवं तर्क सभी मानसिक क्रियाएँ हैं।

10.आध्यात्मिकता के विरुद्ध

11.समाज एक कृत्रिम ढाँचा है।

 12.प्रकृति का अपना इतिहास एवं सिद्धांत है।

13.स्वतन्त्रता छात्र के लिए आवश्यक है।

14.पुस्तकीय ज्ञान का विरोध(Opposition of bookish knowledge)

15.प्राकृतिक परिणामों द्वारा अनुशासन। 16.मूल अर्थात् मौलिक प्रवृत्तियों द्वारा शिक्षा।(Education through basic Instincts)

17.शिक्षा में अध्यापक को गौण भूमिका

18.वैज्ञानिक ज्ञान पर बल एवं प्रगतिशील शिक्षा।(Emphasis on scientific knowledge and progressive education)

19.स्वतन्त्र वातावरण में स्वाभाविक विकास।

20.निषेधात्मक शिक्षा(Negative Education)निषेधात्मक/नकारात्मक अभावात्मक शिक्षा(Negative Education)-प्रकृतिवादियों के अनुसार निषेधात्मक शिक्षा में गुणों की शिक्षा प्रदान नहीं की जाती अर्थात् इसमें(निषेधात्मक शिक्षा)सत्य (गुणों) की शिक्षा न देकर असत्य(अवगुणों) से बचने की शिक्षा दी जाती है।इस संदर्भ में उनका विचार है कि गुणों की शिक्षा से अधिक महत्त्वपूर्ण अवगुणों से बचना है।नकारात्मक शिक्षा प्रकृतिवाद की एक अति महत्त्वपूर्ण विशेषता है ओर इस शिक्षा के संदर्भ में रुसो का विचार है कि बालक की प्रारम्भिक शिक्षा(5 से 12 वर्ष की आयु तक) नकारात्मक होनी चाहिए।नकारात्मक/निषेधात्मक शिक्षा के अन्तर्गत सत्य की शिक्षा न देकर,असत्य से बचने की शिक्षा दी जाती है तथा गुणों की शिक्षा से अधिक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है-अवगुणों से बचना।निषेधात्मक शिक्षा के संदर्भ में रुसों ने अपने ग्रंथ 'एमील' में चर्चा की है।रुसी का विचार है कि मैं उसे नकारात्मक शिक्षा कहता हूँ जो ज्ञान के साधन इन्द्रियों को पूर्णता प्रदान करती है।नकारात्मक शिक्षा से आशय निष्क्रियता का समय बिल्कुल नहीं है।यह अच्छाई नहीं सिखाती अपितु बुराई से बचाती है;यह सच्चाई का संचार नहीं करती अपितु गलतियों से बचाती है।(“I call negative education that which tends to perfect the organs that are the instruments of knowledge.A negative education does not mean the time of idleness,far from it.It does not give virtue,it protect from vice;it does not inculcate truth,it protects from errors.")

प्रकृतिवादी निषेधात्मक शिक्षा के माध्यम से इस बात पर विशेष बल देते हैं कि शिक्षा के संदर्भ में बालक को यह सीखना ज्यादा महत्त्वपूर्ण,जरुरी एवं अच्छा है कि उन्हें क्या नहीं सीखना चाहिए।इस शिक्षा के संदर्भ में रॉस का विचार है कि "यह बालक को उस मार्ग पर चलने देती है जो उसे बड़ा होने पर सत्य की ओर ले जाएगा।यह मार्ग बालक को उस समय अच्छाई की ओर ले जाएगा जब उसमें(बालक में) अच्छाई को पहचानने की योग्यता उत्पन्न हो जाएगी।"("It disposes the child to take the path that will lead him to truth when he has reached to understand it,and to goodness, when he has acquired the faculty of recognizing and loving it.")

प्रकृतिवाद की अवधारणा एवं सिद्धांत(Concept and Principles of Naturalism)

प्रकृतिवाद की प्रमुख अवधारणाओं एवं सिद्धांतों को निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है

 

1.कर्त्ता एवं कारण दोनों स्वयं प्रकृति ही है।

2.प्रकृति ही मानव एवं संसार का आधार है।

3.भौतिक संसार ही सत्य है तथा आध्यात्मिक संसार मात्र एक कल्पना

4.मनुष्य प्रकृति की श्रेष्ठ रचना है।

5. समस्त संसार प्रकृति द्वारा निर्मित है।

6.सभी प्रकार की क्रिया प्राकृतिक नियमों के अनुसार होती है;जैसे-बर्फ से पानी या पानी से बर्फ का बनना।

7.पदार्थ का नाश नहीं होता अपितु रुप परिवर्तन होता है।

8.मनुष्य का विकास निम्न प्राणी से उच्च प्राणी की ओर हुआ है।

9.मनुष्य कुछ प्राकृतिक शक्तियाँ लेकर पैदा होता है तथा बाहरी वातावरण से उत्तेजना प्राप्त ये शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं।

10.प्रकृतिवादी सिद्धांत पूर्णतः भौतिकवादी है।

11.प्रकृतिवादियों के अनुसार संसार एक बड़ी मशीन है तथा मनुष्य केवल इसका एक भाग है।

12.प्रकृति के नियम शाश्वत एवं अंतिम हैं। 13.प्रकृतिवादियों के अनुसार प्रथम एवं अंतिम वास्तविकता पदार्थ है तथा सभी वस्तुएँ पदार्थ से ही निर्मित अर्थात् पैदा (बनती) होती हैं।

14.प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति प्रकृति में होती है और वह इसी में ही विलीन जाती है।

15.प्रकृतिवादी किसी दैवीय शक्ति,आत्मा, श्रद्धा तथा ईश्वर आदि में विश्वास नहीं रखते।

16.प्रकृतिवादियों की अवधारणा के अनुसार प्रकृति की वास्तविकता एवं इसकी सही व्याख्या केवल विज्ञान के माध्यम से ही की जा सकती है।

प्रकृतिवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य(Naturalism and Aims of Education)

प्रकृतिवाद तथा शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1.जीवन संघर्ष के लिए योग्यता एवं शक्ति का विकास करना(To Develop the Ability and Power for Self Existence)-प्रकृतिवादियों का विचार है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को जीवन संघर्ष एवं अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए तैयार कर सके।संसार का प्रत्येक प्राणी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए निरन्तर संघर्ष करता रहता है।वास्तव में व्यक्तियों के अन्दर इस प्रकार की संघर्ष शक्ति एवं योग्यता का विकास करना ही प्रकृतिवादियों का प्रमुख उद्देश्य है।जीवन संघर्ष के लिए योग्यता एवं शक्ति के विकास के परिणामस्वरुप व्यक्ति वातावरण के साथ समायोजन कर सकता है तथा साथ ही वह अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने अस्तित्व की रक्षा भी कर सकता है।अतः शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को अपने अस्तित्व एवं एक अच्छे जीवन के लिए न केवल तैयार ही करे बल्कि उसका उचित विकास भी करे।

2.आत्म-अभिव्यक्ति(Self-expression)-प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य आत्म-अभिव्यक्ति(Self expression) और आत्म-संरक्षण(Self-preservation) है। इसी संदर्भ में स्पैन्सर का विचार है कि मनुष्य अथवा व्यक्ति को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए आत्म-संरक्षण आवश्यक है।आत्म-संरक्षण न केवल व्यक्ति को जीवन के प्रति एक दिशा एवं दृष्टिकोण प्रदान करता है अपितु इसके आधार पर ही व्यक्ति अपने वर्तमान एवं भावी जीवन के आधार को भी सुनिश्चित करता है;वहीं दूसरी ओर आत्म-अभिव्यक्ति उसे वातावरण एवं परिस्थितियों के अनुरुप सामंजस्य स्थापित करने में उचित सहायता प्रदान करती है।

3.मानवीय मशीन (यंत्र) की पूर्णता(Perfection of Human Machine)

प्रकृतिवादियों के अनुसार मनुष्य(मानव) सम्पूर्ण जगत रुपी मशीन का एक भाग अथवा अंग मात्र है।शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य इस मशीन एवं इसके मानव रुपी भाग एवं अंग को और अधिक अच्छा तथा विकसित बनाना है;ताकि इस जगत रुपी मशीन में कुशलता एवं पूर्णता लाई जा सके।मशीन की पूर्णता तभी संभव हो 'सकती जब इस मशीन के भागों एवं अंगों को अधिक सुदृढ़ एवं बेहतर बनाया जाए और मानव तो इस मशीन का विशेष एवं अनिवार्य अंग है।इसी संदर्भ में रॉस का विचार है कि-"शिक्षा का कार्य है कि वह मानवीय यंत्र को अधिक-से-अधिक उत्तम एवं सम्पूर्ण बनाए जिससे कि वह अपने आने वाले जीवन की कठिनाइयों समस्याओं को आसानी से सुलझा सके।"

4.व्यक्तित्व का पूर्ण विकास(Complete Development of the Individuality)-प्रकृतिवादियों का विचार है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का उसकी प्राकृतिक योग्यताओं के अनुसार उचित विकास करना है।व्यक्तित्व के पूर्ण एवं स्वतन्त्र विकास में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। प्रकृतिवादियों  का विचार है कि व्यक्तित्व का पूर्ण एवं स्वतंत्र विकास करना शिक्षा का एक विशिष्ट उद्देश्य है। शिक्षा न केवल छात्र के निजी व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से विकसित करने में मदद प्रदान करती है अपितु इससे समाज का स्वाभाविक एवं संतुलित विकास भी होता है।

5.वर्तमान एवं भावी प्रसन्नता प्राप्त करना(To Attain Present and Future Happiness)-प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य वर्तमान एवं भावी प्रसन्नता से संबंधित है। वही शिक्षा अच्छी है जो व्यक्ति को जीवन के लिए तैयार करे एवं प्रशिक्षण प्रदान करे।जब व्यक्ति अथवा छात्र विशेष जीवन के लिए तैयार होगा और इससे संबंधित समस्याओं को हल कर पाएगा तो वह निश्चित रूप से वर्तमान एवं भावी प्रसन्नता प्राप्त कर सकेगा।प्रसन्नता न केवल उसे भावी जीवन के लिए तैयार करती है अपितु वह उसके लिए आगे का मार्ग भी प्रशस्त करती है और इस प्रसन्नता की प्राप्ति में शिक्षा अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वाह करती है।

6.बालक की प्रकृति एवं स्वभाव के अनुसार शिक्षा(Education According to the Nature of the Child)-प्रकृतिवादियों का विचार है वही शिक्षा उत्तम है जो बालक की प्रकृति एवं स्वभाव के अनुरूप प्रदान की जाए।प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा मुख्य रुप से बच्चे के जीवन,उसके स्वभाव एवं उसके अनुभवों के आधार पर ही प्रदान की जानी चाहिए।शिक्षा का उद्देश्य मुख्य रूप से बालक की प्रकृति एवं उसके स्वभाव को ध्यान में रखते हुए उसका उचित विकास करना है ताकि छात्रों को उनके वांछित उद्देश्यों तक पहुँचने के योग्य बनाया जा सके।लेकिन इसके लिए शिक्षा में बालक की प्रकृति रुचि एवं स्वभाव के अनुसार परिवर्तन करना अनिवार्य होता है।

7.मनुष्य को पर्यावरण के अनुकूल बनाना(Adjustment of Man According to His Environment)-शिक्षा का एक प्रमुख कार्य मनुष्य को पर्यावरण के अनुकूल बनाना है।शिक्षा वास्तव में व्यक्ति को न केवल सभ्य बनाती है अपितु वह व्यक्ति को पर्यावरण के साथ उचित एवं अनुकूल सामंजस्य करना भी सीखाती है।शिक्षा व्यक्ति को पर्यावरण के साथ अनुकूलन स्थापित करने की शक्ति प्रदान करती है तथा साथ ही विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य अपने अस्तित्व की रक्षा किस प्रकार करे का भी ज्ञान प्रदान करती है।इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रकृतिवादियों ने व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर विशेष बल दिया है।

8.मानवीय प्रवृत्तियों को पुनः विशा प्रदान करना(To Provide Re-direction to Human Instincts)-शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य मानवीय प्रवृत्तियों को पुन:दिशा प्रदान करना है।प्रत्येक मानव की अपनी विशेष प्रवृत्ति अथवा प्रवृत्तियाँ होती हैं।लेकिन प्रकृतिवादी मानव की इन प्रवृत्तियों का शोधन करना चाहते हैं अर्थात् उनको पुनः दिशा प्रदान करना चाहते हैं।वास्तव में मानव प्रवृत्तियाँ ही मानव व्यवहार को संचालित करती हैं।लेकिन शिक्षा का उद्देश्य इन प्रवृत्तियों में सकारात्मक शोधन करते हुए मानव एवं उसके व्यवहार को उचित दिशा एवं मार्ग प्रदान करना है तथा साथ ही मानव के अन्दर ऐसी विशिष्ट प्रवृत्तियों का विकास करना है जिससे कि वह अपने जीवन की एक विशेष दिशा प्रदान कर सके।

9.सामाजिक उन्नति प्राप्त करना(To Attain Social Progress)-शिक्षा का मुख्य आधार विकास है।किसी भी समाज की उन्नति उस समाज के लोगों पर निर्भर करती है।जब किसी समाज के लोग शिक्षित होंगे तो स्पष्ट हैं कि समाज अपने आप ही उन्नति करेगा।प्रकृतिवादी केवल व्यक्ति विशेष एवं अस्तित्व की रक्षा के लिए ही शिक्षा को प्रदान करना उचित नहीं मानते अपितु वे शिक्षा के द्वारा सामाजिक उन्नति प्राप्त करने पर भी बल देते हैं।इसी संदर्भ में बर्नाड शॉ का विचार है कि-“शिक्षा विकास की गति को तीव्र करे एवं सामाजिक उन्नति को शीघ्रता से प्राप्त करे"

10.खाली समय का सदुपयोग(Proper Use of Leisure Time)-प्रकृतिवादियों का विचार है कि बच्चों के खाली समय का उपयोग उसकी रुचियों के विकास के लिए किया जाए।इसके लिए उन्हें विभिन्न क्रियाओं एवं कार्यकलापों में सम्मिलित किया जाए।खाली समय के सदुपयोग से न केवल छात्र अपनी रुचियों का विकास कर सकेंगे अपितु विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम वे जीवन को वास्तविकता तथा बहुत से तथ्यों को भी जान सकेंगे।

11.जातीय अनुभवों का संरक्षण एवं उन्हें हस्तांतरित करना(Preservation and Transmission of Racial Experiences)-शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य जातीय अनुभवों का संरक्षण एवं उन्हें अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करना भी है।रॉस का विचार है कि "अनुभवों को हस्तांतरित करना एवं उनमें वृद्धि करना ही शिक्षा है।"वहीं इसी संदर्भ में बर्नाड शॉ का विचार है कि-"अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का संरक्षण एवं उसकी सुरक्षा के लिए उसे नई पीढ़ी को हस्तांतरित करना ही शिक्षा है।"अतः शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सभ्यता एवं संस्कृति का संरक्षण करना भी है।

12.प्राकृतिक शक्तियों का उचित विकास(Proper Development of Natural Powers)-रुसो का विचार है कि- "शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य छात्र की सभी प्राकृतिक शक्तियों का उचित विकास करना है।"इसके लिए बालक को प्राकृतिक पर्यावरण (समाज से दूर रखकर उसकी स्वयं की प्रकृति के अनुरुप शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।वहीं टैगौर का विचार है कि "बालक की प्राकृतिक शक्तियों का उचित विकास बालक की प्रकृति के अनुसार उचित प्राकृतिक वातावरण में ही हो सकता है।"

प्रकृतिवाद और पाठ्यक्रम(Naturalism and Curriculum)

प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम के संदर्भ में स्पेंसर ने पाँच मुख्य उद्देश्यों/क्रियाओं एवं उनसे संबंधित विषयों की चर्चा की है जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

मानव-क्रियाएँ/उद्देश्य(Human Activities)

1.आत्मरक्षा/आत्म-संरक्षण

2.जीवन की मौलिक आवश्यकता

3.सन्नतिपालन/संतान का पालन-पोषण

4.सामाजिक एवं राजनीतिक संबंधों का निर्वाह

5.अवकाश काल का सदुपयोग

रूसों के अनुसार पाठ्यक्रम- रूसों ने पाठ्यक्रम से संबंधित अपने विचार कुछ इस तरह अभिव्यक्त किए हैं-

पाठ्यक्रम (Curriculum)

शेशवास्था 

(i)प्रकृति की गोद बालक का वास्तविक पाठ्यक्रम

(ii)किसी विशेष औपचारिक पाठ्यक्रम का संगठन।

बाल्यावस्था

(i)तैरना, दौडना, कूदना, खेलना आदि।

(ii)ज्ञानेन्द्रियों के विकास पर उचित बल। (iii)पुस्तकीय ज्ञान का विरोध।

किशोरावस्था

(i)पाठ्यक्रम में प्राकृतिक विज्ञानों का समावेश।

(ii)सामाजिक विषयों का अध्ययन।

(iii)भाषा, संगीत, साहित्य, गणित एवं हस्तकला का पाठ्यक्रम में समावेश।

(iv)नैतिक शिक्षा प्रदान करना/पर बल।

(v)संवेगों पर नियन्त्रण रखना सीखना एवं पाठ्यक्रम द्वारा जिज्ञासा प्रवृत्ति को संतुष्ट करना।

(vi)सामाजिक भावना का विकास करना।

प्रकृतिवाद वास्तव में बालक को किसी विषय विशेष को पढ़ाने से संबंधित संस्तुति प्रदान नहीं करता।इस संदर्भ में रुसो ने विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम की व्यवस्था की है।स्पेंसर ने विज्ञान को केन्द्रीय विषय माना है जबकि हक्सले पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक एवं साहित्यिक दोनों प्रकार के विषयों के समावेश एवं उनको समान महत्त्व प्रदान करने के पक्ष में थे।

प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम की प्रमुख विशेषताएँ(Main Characteristics of Naturalist Curriculum)

प्रकृतिवादी पाठ्यक्रम से संबंधित कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1.धार्मिक अथवा धर्म शिक्षा का कोई स्थान न होना।

2.परम्परागत विषयों का विरोध एवं अवहेलना करना।

3.उदार शिक्षा (Liberal Education) पर नल

4.व्यावहारिक एवं जीवन उपयोगी पाठ्यक्रम पर बल।

5.पाठ्यक्रम में क्रियाओं एवं कौशलों को विशिष्ट स्थान

6.पाठ्यक्रम का जीवन से संबंधित होना अर्थात् सीखे हुए ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग होना।

7.बालक की प्रकृति,रुचि,योग्यता एवं अनुभव के आधार पर पाठ्यक्रम का संगठन।

8.विज्ञान केन्द्रीत पाठ्यक्रम पर उचित बल।

9.पाठ्यक्रम में प्रत्यक्ष ज्ञान एवं क्रियात्मक निर्णयों के विकास पर बल।

10.शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य प्रशिक्षण पर बल

11.प्राकृतिक अनुभव द्वारा नैतिक प्रशिक्षण पर बल

प्रकृतिवाद एवं शिक्षण-विधियाँ(Naturalism and Methods of Teaching)

प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों के संदर्भ में नवीन शिक्षण पद्धतियों/विधियों के प्रयोग पर बल देते हैं तथा प्राचीन रटने वाली शिक्षण पद्धतियों का खंडन करते हैं। वे शिक्षण की प्रक्रिया में प्रत्यक्ष अनुभवों एवं क्रिया पर विशेष बल देते हैं।प्रकृतिवाद सामूहिक शिक्षा की बजाय व्यक्तिगत भिन्नता के सिद्धांत के आधार पर प्रत्येक बालक को उसकी प्रकृति के अनुसार शिक्षा प्रदान करने पर बल देते हैं।जिससे कि प्रत्येक बालक का स्वाभाविक एवं उचित विकास हो सके।शिक्षण विधियों के संदर्भ में प्रकृतिवादी निम्नलिखित विधियों पर विशेष बल देते हैं

1.करके सीखना(Learning by doing) 2.अनुभव द्वारा सीखना(Learning by experience)

3.इन्द्रियों द्वारा सीखना(Learning through senses)

4.खेल द्वारा सीखना(Learning by play)

5.अवलोकन एवं प्रयोग द्वारा सीखना(Learning through observation and experiment)

6.पर्यटन (भ्रमण) द्वारा सीखना(Learning through excursions)

7.सूत्रों के प्रयोग द्वारा सीखना (Learning through use of maxims)

8.क्रियाओं द्वारा सीखना(Learning thoughts

9.शिक्षा में स्वतन्त्रता(Liberty in Education

प्रकृतिवादी विचारधारा की शिक्षण विधियां-

1.ह्यूरिस्टिक पद्धति (Heuristic Method)/आगमन विधि (Inductive Method)

2.डाल्टन पद्धति(Dalton Method)

3.मॉण्टेसरी पद्धति(Montessori Method)

4.निरीक्षण पद्धति(Observation Method)

5.खेल-विधि(Play-way Method)

6.योजना विधि(Project Method)

शिक्षण विधि के संदर्भ में रुसो का विचार है कि- "अपने छात्र को कोई भी शाब्दिक पाठ न पढ़ाओ बल्कि उसे अनुभव द्वारा सीखने के अवसर दो।”“Give your scholar no vervbal lesson,he should be taught by experience alone.प्रकृतिवादी इस बात पर विशेष बल देते हैं कि शिक्षण प्रक्रिया में बालक की सक्रिय सहभागिता होनी चाहिए।वे चॉक एवं टॉक(Chalk and Talk) विधि को शिक्षण के लिए सही नहीं मानते।प्रकृतिवादियों का यह विश्वास है कि बालक जिस क्रिया को अपनी इच्छा से करता है तथा उसमें अधिकाधिक रुचि लेता है तो उसी के माध्यम से बालक को सच्चा ज्ञान मिलता है।ज्ञान अर्जन के लिए बालकों पर पुस्तकों का बोझ डालना पूर्णतयाः अमनोवैज्ञानिक है;अतः बालक को प्राकृतिक वातावरण/परिस्थितियों में खेल,क्रिया एवं अनुभव के माध्यम से सीखने के उचित अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।

प्रकृतिवाद एवं शिक्षक(Naturalism and Teacher)

आदर्शवादी जहाँ शिक्षक को एक प्राथमिक स्थान प्रदान करते हैं,वहीं प्रकृतिवादी अध्यापक की भूमिका को गौण मानते हैं।प्रकृतिवादी इस अवधारणा में विश्वास रखते हैं कि अध्यापक का यदि कोई स्थान है तो वह पर्दे के पीछे है।अध्यापक का कार्य सिर्फ यह देखना है कि बालक का उसकी रुचियों एवं रुझानों के अनुरूप स्वतन्त्र विकास हो रहा है या नहीं।इसी संदर्भ में रॉस का विचार है कि-"यदि अध्यापक का कोई स्थान है तो वह पर्दे के पीछे है।वह बालक के विकास का निरीक्षण करने वाला है न कि उसको सूचना,विचार,आदर्श एवं इच्छा शक्ति प्रदान करने वाला अथवा उसके चरित्र का निर्माण करने वाला।बालक इन सब बातों को तो स्वयं ही कर लेगा।वह किसी भी अध्यापक विशेष की अपेक्षा यह अच्छी तरह से जानता है कि उसे कब,क्या,कैसे और क्यों सीखना है?उसकी शिक्षा उसकी रुचियों एवं प्रेरणाओं का स्वतन्त्र विकास है,न कि इसके लिए अध्यापक द्वारा किया गया कृत्रिम प्रयास।

शिक्षक के संदर्भ में प्रकृतिवादी विचारधारा निम्नलिखित तथ्यों पर विशेष बल देती है

1.प्रकृतिवाद में प्रकृति ही बालक की वास्तविक शिक्षक है।

2.प्रकृतिवाद में शिक्षक का स्थान गौण है।

3.शिक्षक बालक के विकास का प्रेक्षक हैं।

4.अध्यापक का कार्य बालक का निरीक्षण करना है।

5.अध्यापक बालक के कार्य में तभी हस्तक्षेप करे जब बालक के रास्ते में कोई रुकावट आ जाए अथवा हस्तक्षेप जरुरी हो 6.अध्यापक का प्रमुख कार्य बच्चे के मनोविज्ञान का अध्ययन करना है।

7.अध्यापक का कार्य बच्चे को विभिन्न प्रकार के दमनों एवं मानसिक विकारों से बचाना है।

8.अध्यापक का कार्य बच्चे के लिए आदर्श-वातावरण की उपलब्धता सुनिश्चित करना एवं उन्हें उचित अवसर प्रदान करना है।

प्रकृतिवाद एवं बालक/छात्र(Naturalism and Child/Student)

 

जहाँ आदर्शवादी शिक्षा प्रक्रिया में छात्र को गौण स्थान प्रदान करते हैं;वहीं दूसरी ओर प्रकृतिवादी शिक्षा प्रक्रिया में छात्र को केन्द्रीय स्थिति प्रदान करते हैं।प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा प्रक्रिया में छात्र का स्थान केन्द्रीय एवं अति महत्त्वपूर्ण होता है।सबसे प्रथम बच्चा छात्र है तथा शेष चीजें अर्थात् अध्यापक,पाठ्यक्रम,विद्यालय,पुस्तकें आदि उसके पश्चात्।प्रकृतिवादी छात्र से संबंधित निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देते हैं-

1.शिक्षा प्रक्रिया में छात्र की केन्द्रीय स्थिति।

2.शिक्षा बच्चे की प्रकृति के अनुरूप होनी चाहिए।

3.प्रत्येक बालक अपने आप में एक पूर्ण इकाई है।

4.प्रत्येक बच्चे में व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है।

5.बच्चे का शिक्षण आवश्यकता एवं रुचि के अनुरुप प्राकृतिक ढंग से होना चाहिए।

6.शिक्षा का आयोजन बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए होना चाहिए।

7.बालक को एक बालक के रूप में ही समझना चाहिए न कि एक व्यक्ति के रुप में।

8.बच्चे के लिए अध्यापक,पाठ्यपुस्तकें एवं विद्यालय हैं न कि बच्चा इनके लिए। 9.बच्चे के विकास के लिए पूर्ण स्वतन्त्र वातावरण होना चाहिए।

प्रकृतिवाद एवं अनुशासन(Naturalism and Discipline)

अनुशासन के संदर्भ में प्रकृतिवादी विचारधारा को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

1.अनुशासन का स्वरुप मुक्त होना चाहिए अर्थात् मुक्त अनुशासन(Free disciplie) होना चाहिए।

2.प्राकृतिक एवं स्वाभाविक परिणामों के द्वारा अनुशासन(Discipline by natural consequences) की स्थापना पर बल । 3.अनुशासन में बाह्य हस्तक्षेप एवं एवं शारीरिक दंड का विरोध

4अनुशासन का प्रमुख आधार आनन्द (सुख) एवं दुःख होना चाहिए।सुख और दुःख उसे(बालक को) उचित क्रिया करने एवं अनुशासन में रहने के लिए स्वयं प्रेरित करते रहेंगे।यदि बालक की क्रिया अनुचित होगी तो प्रकृति उसे स्वयं दण्ड देगी।दण्ड के परिणामस्वरुप बालक को दुःख होगा और दुःख होने की वजह से वह उस क्रिया को करना अपने आप(स्वयं) छोड़ देगा। इसी संदर्भ में हरबर्ट स्पेंसर का विचार है कि-"जब एक बालक गिरता है अथवा वह अपने सिर को मेज पर पटकता है तो उसे दर्द का अहसास (महसूस) होता है।यह दर्द अथवा इसका अनुभव उसे अधिक सावधान बना देता है।इस तरह के दर्द से होने वाले बार-बार के अनुभवों की वजह से वह अंत में स्वयं अनुशासित हो जाता है।(“When a child falls,or runs its head against the table,it suffers pain,the remembrance of which tends to make it more,careful,and by repetition of such experiences,it is eventually disciplined into proper guidance of its movements."

5.अनुशासन में परम्परागत तरीकों का विरोध एवं बच्चे की अधिकतम स्वतन्त्रता पर बल

6.अनुशासन बालक की स्वयं की अनुभूति पर आधारित होना चाहिए।परन्तु प्रकृतिवादी अनुशासन के संदर्भ सकती है,जैसे कुछ प्रमुख बातें आपके सामने आ (i)क्या दो या तीन वर्ष के बालक को खुले उस्तरे के साथ खेलने देना चाहिए?ii)क्या बच्चे को तालाब में अकेले तैरना सीखने के लिए छोड़ देना चाहिए?

iii) क्या छोटे बच्चे अथवा जिसको इसकी जानकारी नहीं हो,को बिजली के खुले एवं नंगे तारों के पास छोड़ देना चाहिए?

(v)क्या बच्चे को अकेले पहाड़ी पर छोड़ देना चाहिए?

(a)क्या बच्चे को कुएँ के पास अकेला छोड़ देना चाहिए?आदि।उपर्युक्त प्रश्न निश्चित तौर से प्राकृतिक अनुशासन की अवधारणा पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं;लेकिन इस संदर्भ में प्रकृतिवादियों का विचार है कि बच्चे को प्रत्येक अवस्था में चेतावनी अथवा दिशा-निर्देश अवश्य प्रदान किए जाने चाहिए।परंतु ये चेतावनी अथवा दिशा-निर्देश बच्चे की स्वतन्त्रता में बाधक नहीं बनने चाहिए।अनुशासन के संदर्भ में पूर्व चेतावनी एवं दिशा-निर्देशों के अभाव में प्रकृति बालक को एक छोटी सी गलती के लिए बड़ी सजा दे सकती है।

प्रकृतिवाद एवं विद्यालय(Naturalism and School)

प्रकृतिवादी विद्यालय के औपचारिक स्वरुप के विरोधी हैं।उनका विचार है कि विद्यालय का संगठन एवं वातावरण कृत्रिम, कठोर एवं दृढ़ बंधनों से मुक्त होना चाहिए एवं यह स्वतन्त्रता पर आधारित होना चाहिए।प्रकृतिवादियों के अनुसार न तो विद्यालय में निश्चित एवं कठोर समय-सारिणी का प्रयोग किया जाना चाहिए और न ही बच्चों के मस्तिष्क में अध्यापक द्वारा बलपूर्वक ज्ञान हँसने का प्रयास किया जाना चाहिए।विद्यालय प्रकृति की गोद में स्थित होना चाहिए एवं वहाँ पर दंड का विधान नहीं होना चाहिए।

प्रकृतिवादी यह मानते है कि प्रकृति अपने आप में एक विद्यालय है जहाँ बच्चे प्राकृतिक सिद्धांतों एवं नियमों के आधार पर स्वयं सीखते हैं।टैगोर का विश्वभारती शिक्षा में प्रकृतिवाद का एक जीता-जागता उदाहरण है।यद्यपि प्रकृतिवाद प्रकृति को ही वास्तविक विद्यालय मानता है लेकिन फिर भी शिक्षा के लिए हमें सामाजिक विद्यालयों की स्थापना करनी ही पड़ती है।इस संदर्भ में उनका विचार है कि विद्यालय भवन इस तरह का होना चाहिए जिसमें प्राकृतिक वायु,प्रकाश एवं स्थान आदि की पूर्ण व्यवस्था हो तथा बालक के उचित विकास के लिए विद्यालय में पूर्ण

स्वतन्त्रता का वातावरण व्याप्त हो।

प्रकृतिवाद का मूल्यांकन(Evaluation/Assessment of Naturalism)

प्रकृतिवाद का मूल्यांकन इसके गुण एवं दोषों के आधार पर निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है

प्रकृतिवाद के गुण(Merits of Naturalism)

प्रकृतिवादी विचारधारा/दर्शन/शिक्षा के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं

1.प्रकृतिवादी विचारधारा मूल रूप से बाल केन्द्रित है अर्थात् इस विचारधारा में बालक का प्रमुख स्थान है।

2.मुक्त अनुशासन(Free Discipline) पर बल एवं समर्थन

3.बालक के आधार पर पाठ्यक्रम निर्माण पर बल

4.विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुरुप शिक्षा

5.नवीन शिक्षण विधियों/पद्धतियों पर बल।

6.अध्यापक की गौण भूमिका अथवा अध्यापक पर्यावरण निर्माता के रुप में

7.शिक्षा बालक के लिए,न कि बालक शिक्षा के लिए।

8.शिक्षा में बालक को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करना।

9.अनुशासन में प्राकृतिक परिणामों पर बल

10.पाठयक्रम में प्रकृति,रुचि,क्रिया एवं स्वतन्त्रता आदि पर बल

11.बाल मनोविज्ञान एवं इसके अध्ययन पर अधिक बल

12.विद्यालय में(के) प्राकृतिक वातावरण पर बल

13.अनुभव केन्द्रित क्रिया-केन्द्रित एवं जीवन केन्द्रित पाठ्यक्रम पर बल

14.सह-शिक्षा का समर्थन एवं लिंग पृथकता को अप्राकृतिक मानना

प्रकृतिवाद के दोष/अवगुण (Demerits of Naturalism)

प्रकृतिवादी विचारधारा/दर्शन/शिक्षा से संबंधित प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं

1.स्वतन्त्रता पर आवश्यकता से अधिक बल

2.शिक्षा तथा बालक के संदर्भ में आध्यात्मिक पक्ष/गुणों की अवहेलना

3.धार्मिक शिक्षा एवं मूल्यों की अवहेलना करना।

4.बालक को समाज से दूर रखना।

5.शिक्षक को बालक की अपेक्षा निम्न स्तर पर रखना

6.अनुशासन की प्राकृतिक परिणामों संबंधित अवधारणा का उचित न होना।

7.बालक के केवल वर्तमान जीवन को महत्त्व प्रदान करना तथा भविष्य की अवहेलना करना।

8.उच्च शैक्षिक उद्देश्यों एवं आदर्शों का अभाव होना।

9.पाठ्यपुस्तकों की अवहेलना,जबकि ये संस्कृति एवं सभ्यता की सरंक्षक होती हैं तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ज्ञान का प्रसार करती हैं।

10.प्रकृतिवादी शिक्षा में क्या नहीं सीखना चाहिए कि अवधारणा अर्थात् निषेधात्मक शिक्षा पर बल

11.प्रकृतिवादी शिक्षा में व्यक्तिकता को अत्यधिक महत्त्व प्रदान करना।

12.स्वयं अनुभव से संबंधित ज्ञान पर बल; लेकिन सभी प्रकार का ज्ञान स्वयं के अनुभव के आधार पर अथवा माध्यम से सीखना संभव नहीं।

13.प्रकृति की दोहरी अवधारणा अर्थात् भौतिक प्रकृति एवं मानवीय प्रकृति(बालक की प्रकृति एवं स्वभाव) में मतभेद

Reference- Dr Naresh Kumar Yadav


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