नई शिक्षा नीति-1986 का सार एवं भूमिका
(New Education Policy-1986, Its Role and Essence)
1. आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास की नींव (Education of Spiritual and Physical Development)- नई शिक्षा नीति के अनुसार शिक्षा विद्यार्थी के भौतिक तथा आध्यात्मिक विकास का आधार है। यह विद्यार्थी को इस भौतिक दुनिया में रहना सिखाती है तथा साथ ही साथ उसका आध्यात्मिक विकास भी करती है।
2. शिक्षा सबके लिए अनिवार्य (Education, Compulsory for All)- आयोग ने शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए इस शिक्षा को सबके लिए अनिवार्य करने की सिफारिश की।
3. मानव शक्ति का विकास (Development of Human Power) - मानव जिसे भगवान ने अपनी सभी रचनाओं में से श्रेष्ठतम् बनाया, उसे शक्तियों का भण्डार भी उपहार में दिया। परन्तु ये सभी शक्तियाँ मानव के आन्तरिक मन में गहरे छुपी हुई हैं। इन शक्तियों का बाहर निकलकर, तराशकर, शिखर पर पहुँचाने का कार्य शिक्षा करती है। लेकिन यह तभी संभव है जब बालक को पूर्ण शैक्षणिक वातावरण तथा उपयुक्त अवसर प्रदान किए जाएं।
4. सर्वोत्तम घन विनियोग (The Greatest Financial Investment) - आयोग की सिफारिश के अनुसार, 'सरकार तथा समाज शिक्षा पर जितना धन खर्च करता है उतना ही ज्यादा उसका लाभ मिलता है। वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में किया गया खर्च एक दीर्घकालीन तया श्रेष्ठ विनियोग है"।
5. सांस्कृतिक विकास में शिक्षा का योगदान (Contribution of Education in Cultural Development)- आयोग के अनुसार शिक्षा ही एकमात्र व सशक्त साधन है जो किसी भी देश या राष्ट्र की संस्कृति को संरक्षित कर उसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। शिक्षा मानव की अज्ञानता दूर कर उसमें सामाजिक मूल्यों, राष्ट्र-प्रेम, नैतिकता, देश-भक्ति की भावना पैदा करने के साथ-साथ उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मस्तिष्क तथा आत्मा का भी पूर्ण रूप से विकास करती है। इसके अतिरिक्त शिक्षा धर्म-निरपेक्षता एवं प्रजातांत्रिक गुणों का विकास भी करती है, जो भारत देश के दो महत्त्वपूर्ण तथा विशेष आदर्श हैं।
6. अनुसंधान एवं विकास का आधार (Basis of Research and Development)- मानव जीवन तथा इस ब्रह्माण्ड के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक अनुसंधान करने के लिए केवल शिक्षा ही एक सबल साधन है। उसके अतिरिक्त यह राष्ट्र की आत्मनिर्भरता एवं विकास में भी योगदान देती है।
7. समाज की संलग्नता (Involvement of Society) - शिक्षा की इस नीति के तहत समाज की संलग्नता पर विशेष बल दिया गया है, जिसमें माता-पिता, समुदाय, स्वैच्छिक संस्थाएँ, नियोजकों एवं अध्यापकों का योगदान मुख्य रूप से अपेक्षित है। इस नीति के पीछे यह सोच थी कि जब समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों के सदस्य शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय रूप से योगदान देंगे तो विद्यालयों में उपस्थिति का बढ़ना स्वाभाविक होगा। इससे पास प्रतिशत भी बढ़ जाएगा। परिणामस्वरूप शिक्षा में अपव्यय तथा अवरोधन (Wastage and Stagnation) पर रोक लगेगी।
शिक्षा की राष्ट्रीय-प्रणाली
(National System of Education)
संविधानिक सिद्धान्तों पर आधारित नई शिक्षा नीति निम्न प्रकार से है-
1. सामान्य शिक्षात्मक ढाँचा (Common Structure of Education)-राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत पूरे देश में एक समान शिक्षा लागू करने की सिफारिश की है। यह समान शिक्षा का ढाँचा (10+2 + 3) की परिकल्पना करता है। वर्तमान समय में यह शिक्षा का (10+2+3) ढाँचा लगभग देश के सभी हिस्सों में प्रचलित है। इस (10+2+3) से अर्थ है-
(i) 10 का अर्थ है-5 वर्ष की प्राईमरी शिक्षा, 3 वर्ष की उच्च प्राईमरी शिक्षा और 2 वर्ष की उच्च विद्यालय शिक्षा ।
(ii) + 2 से तात्पर्य है-2 वर्ष की उच्चतर सैकेण्डरी/सीनियर सैकेण्डरी शिक्षा ।
(iii) + 3 का अर्थ है-महाविद्यालय कोर्स की 3 वर्ष की अवधि। यह शिक्षा स्नातक (कला, विज्ञान, वाणिज्य) की डिग्री के लिए।
2. राष्ट्र का एक पाठ्यक्रम (Single Curriculum for the Whole Nation)-शिक्षा की नई राष्ट्रीय नीति के अन्तर्गत जिस शिक्षा के ढाँचे को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पर आधारित किया गया वह (10+2) है। इस पाठ्यक्रम के तहत कोर पाठ्यक्रम (Core-Curriculum) आता है। इस पाठ्यक्रम में भारतीय स्वातन्त्रता संग्राम के इतिहास के विषय में बताया गया है। उसके अतिरिक्त धर्मनिरपेक्षता, भारतीय संस्कृति, परिवार नियोजन, लोकतंत्र, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि विषयों की व्यवस्था पर बल दिया गया है। इस पाठ्यक्रम की एक विशेषताः यह भी है कि इसमें राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों की चर्चा के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय भावना को विकसित करने पर जोर दिया गया है।
3. राष्ट्रीय प्रणाली की धारा (Concept of National System) - इस नीति के अनुसार शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली का सिद्धान्त देश के समस्त विद्यार्थियों पर बिना किसी भेदभाव के (जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, लिंग) समान रूप से लागू होता है।
4. खोज एवं विकास पर बल (Emphasis on Research and Development) - इस नई शिक्षा नीति में अनुसंधान और शिक्षा के विकास पर व्यापक प्रकाश डाला गया है। उसके अनुसार देश की विभिन्न संस्थाओं के साधनों को इकट्ठा करने के लिए और राष्ट्रीय महत्त्व की योजनाओं में उनकी भागीदारी आँकने के लिए खोज व विकास तथा विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के क्षेत्रों में विशिष्ठ साधन जुटाए जाने चाहिए ताकि इन संस्थाओं के कार्यक्रमों की नेटवर्क व्यवस्था स्थापित की जा सके।
5. आजीवन शिक्षा (Life long process of Education) - इस नई शिक्षा नीति के अनुसार किसी भी व्यक्ति की शिक्षा विद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय की डिग्री हासिल करते ही पूर्ण नहीं हो जाती है, अपितु शिक्षा तो आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है जो मानव के साथ-साथ चलती रहती है। इसलिए सार्वजनिक साक्षरता एवं अपनी रुचि के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार दिया जाना चाहिए। जो बच्चे विद्यालय या महाविद्यालयों में किन्हीं कारणों से दाखिला नहीं ले सकते, उनकी शिक्षा के लिए दूरगामी शिक्षा (Distance Education), मुक्त विश्वविद्यालय (Open University) तथा पत्राचार कोर्स (Correspondence Courses) के रूप में व्यवस्था की गई है।
6. अन्य भाषाओं से सम्बन्ध (Link with other Languages) - राष्ट्रीय एवं राज्य भाषा के साथ-साथ दूसरी विदेशी भाषाओं का ज्ञान और इन भाषाओं का आपस में तालमेल भी इस शिक्षा नीति का एक अंग है। भाषाई ज्ञान को उन्नत करने के लिए बहुभाषी शब्दकोषों एवं पारिभाषिक शब्दकोषों के प्रकाशन का कार्य शुरू किया जाना चाहिए।
7. सीखने का न्यूनतम स्तर (Minimum Level of Learning)- इस नई शिक्षा नीति ने लिखने के न्यूनतम स्तर की व्यवस्था प्रत्येक अवस्था में की है। इस बात का प्रबन्ध केवल इसलिए किया गया है कि प्रत्येक विद्यार्थी अपनी सांस्कृतिक एवं सामाजिक भिन्नता के प्रति सजग रहे और साथ-ही-साथ राष्ट्रीय एकता की भावना को पूर्ण रूप से विकसित कर सके।
8. परीक्षा एवं मूल्यांकन (Examination and Evaluation) - विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास का इस नई शिक्षा नीति में विशेष ध्यान रखा गया है। उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए परीक्षाओं का सफल प्रबन्ध करना चाहिए व उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के मूल्यांकन का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
9. विज्ञान एवं गणित की शिक्षा पर बल (Force for Science and Math Education)- विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की शिक्षा के लिए इस आयोग ने दसवीं कक्षा तक विज्ञान एवं गणित विषयों को अनिवार्य कर दिया। इसके पीछे आयोग का केवल एक ही उद्देश्य था कि किस प्रकार से हम अपनी शिक्षा को उस स्तर तक पहुँचाएँ, जहाँ विकसित देश पहले से अपनी शिक्षा के स्तर को पहुँचा चुके हैं।
समानता के लिए शिक्षा (Education for Equality)
नई शिक्षा नीति में एक अति सुन्दर व्यवस्था की गई, जिसके अनुसार प्रत्येक भारतीय, चाहे वो किसी धर्म, जाति, सम्प्रदाय, भाषा या क्षेत्र से सम्बन्ध रखता हो, को शिक्षा ग्रहण करने का समान अवसर दिया जाएगा। इस व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में जितनी भी समस्याएँ हैं और भविष्य में जो आ सकती हैं, उनको दूर किया जाएगा और प्रत्येक भारतीय नागरिक को समान शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार होगा। जिन व्यवस्थाओं में समानता के लिए राष्ट्र नीति बल देती है, वे निम्नलिखित हैं-
1. नारी-शिक्षा (Women Education)-20वीं सदी के प्रारम्भ तक भारत में नारी शिक्षा पर लगभग प्रत्येक व्यक्ति व सम्प्रदाय का दृष्टिकोण बहुत ही संकुचित था। ब्रह्म समाज ने जो प्रयास किया था वह भी पूर्णरूप से सफलता प्राप्त नहीं कर सका, क्योंकि उस समय का पढ़ा-लिखा समाज भी नारी की शिक्षा के प्रति उदासीन था। परन्तु इस नई राष्ट्र-शिक्षा नीति ने सदियों से चली आ रही इस सामाजिक बुराई को तोड़कर एक ऐसी व्यवस्था की कि प्रत्येक भारतीय के लिए यह आसान हो गया कि वह अपने सम्पूर्ण विकास के लिए शिक्षा ग्रहण कर सके। महिलाओं में शिक्षा के प्रति जागरूकता के लिए आयोग ने ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित तथा उनमें साक्षरता का प्रचार करने के लिए उन्हें प्राथमिक शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया। इसके अतिरिक्त इस शिक्षा नीति ने उन महिलाओं को, जो उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं, अधिक-से-अधिक अधिकार देने की सिफारिश की है।
2. अनुसूचित जातियों की शिक्षा (The Education for Scheduled Castes) - अनुसूचित जाति के बच्चों को शिक्षा देने के लिए नई शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित उपाय किए गए हैं-
(i) भिन्न व्यवसायों में लगे परिवारों के बच्चों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति की व्यवस्था करना तथा उनके लिए उपयोगी कार्यक्रम शुरू करना।
(ii) अनुसूचित जाति से सम्बन्धित व्यक्तियों को अध्यापन कार्य में शामिल करना।
(iii) जो परिवार 14 वर्ष तक के बच्चों को भी यदि विद्यालय में भेजते हैं, उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए।
(iv) क्रमिक कार्यक्रम के अन्तर्गत मुख्यालयों में स्थित होस्टलों (Hostels) में अनुसूचित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए सुविधाओं की व्यवस्था करना।
(v) अनुसूचित जातियों के बच्चों के नामांकन, पढ़ाई जारी रखने तथा पूर्ण-शिक्षा प्राप्ति के लिए आवश्यक वस्तुओं की सफल व्यवस्था करना।
(vi) जो बच्चे विद्यालय छोड़ चुके हैं (Dropouts) उनके लिए निरौपचारिक शिक्षा का विशेष प्रबन्ध करना।
(vii) शिक्षा प्रक्रिया में अनुसूचित जातियों के प्रभाव में वृद्धि करने के लिए नए साधनों का निरन्तर अनुसन्धान किया जाना ।
(viii) अनुसूचित जातियों की शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करने के लिए R.L.E.G.P. तथा N.R.E.P. जैसे साधनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त किया जाएगा जिन्हें हिन्दी में 'राष्ट्रीय ग्राम रोजगार कार्यक्रम तथा 'ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी' कार्यक्रम कहते हैं।
(ix) विद्यालय भवन, बालवाड़ी तथा प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों के चुनाव में इन जातियों की आवश्यकताओं का विशेष ध्यान दिया जाएगा।
3. अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा (The Education for Scheduled Tribes)-अनुसूचित जनजातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए :
(1) जनजाति क्षेत्रों में विद्यालय खोलने को प्राथमिकता देना।
(ii) अनुसूचित जातियों की तरज पर अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों को अध्यापन कार्य के लिए चुनना।
iii) बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा के लिए विशेष निर्देशन सामग्री के विकास करने का प्रावधान करना।
(iv) अनुसूचित जनजाति के बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ राष्ट्रीय मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विशेष सुविधाएँ (आवासीय पाठशालाएँ, उपचार कोर्स आदि) दी जानी चाहिए।
(v) जनजातीय लोगों की उन्नत सांस्कृतिक पहचान के उद्देश्य से शिक्षा के सभी स्तरों पर पाठ्यक्रम का निर्माण करने की सिफारिश ।
4. विकलांगों के लिए शिक्षा (Education for Handicapped)-नई, शिक्षा नीति में, विकलांगों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान विकसित करने के लिए निम्नलिखित प्रावधान हैं-
(i) विकलांग विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए स्वैच्छिक प्रयासों को प्रोत्साहित करने के सम्बन्ध में प्रयास।
(ii) जिला स्तर पर ऐसे बच्चों के लिए विशेष विद्यालयों की सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
(iii) विद्यालयों में निःशुल्क छात्रावास (Free Hostel Facility) की सुविधा मुहैया कराना।
(iv) विशेष विकलांगता के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों को नियुक्त करना।
(v) विकलांग बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था दूसरे बच्चों के साथ करना।
(vi) विकलांगों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का उचित प्रबन्ध करना।
(vii) विकलांग बच्चों की पढ़ाई के लिए अध्यापकों के लिए विशेष ट्रैनिंग कैम्प लगाना।
5. अल्पसख्यकों के लिए शिक्षा (Education for Minorities) - कुछ अल्पसंख्यक शिक्षा के क्षेत्र में या तो पिछड़े हुए हैं या वंचित हैं। ऐसे लोगों की शिक्षा के लिए नई शिक्षा नीति में निम्नलिखित प्रावधान
(i) ऐसे लोगों की शिक्षा की ओर समानता व सामाजिक न्याय के हितों की रक्षा का प्रावधान।
(ii) ऐसे विद्यालयों की स्थापना जहाँ इनकी भाषा एवं संस्कृति को सुरक्षित रखा जाए।
(iii) राष्ट्र के प्रति जागरूकता तथा राष्ट्रीय एकता के लिए सामान्य कोर पाठ्यक्रम (Common Core Curriculum) को इनकी शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाना।
6. शिक्षण दृष्टि से पिछड़े हुए अन्य वर्ग और क्षेत्र की शिक्षा (Education for Other Educational Backward Section and Areas) - शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े समाज के सभी वर्गों की शिक्षा के लिए नई शिक्षा नीति के अनुसार निम्नलिखित उपाय किए जाएँगे-
(i) पिछड़े समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पर्याप्त प्रेरणादायक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
(ii) मरुस्थलीय एवं पहाड़ी जिलों के दूर-दराज तथा अगम्य क्षेत्रों में विद्यालयों की स्थापना के लिए सामग्री मुहैया करवाई जाएगी।
(iii) द्वीपों में भी संस्थाएँ खोलने के लिए सरकार पूर्ण रूप से सहायता करेगी।
(iv) समाज के पिछड़े व्यक्ति, चाहे वो किसी भी वर्ग से सम्बन्ध रखते हों, उन्हें वजीफा, पाठ्य- सामग्री तथा अन्य प्रकार की सभी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाएंगी।
7. प्रौढ़ शिक्षा (Adult Education)- नई शिक्षा में प्रौढ़ों को शिक्षित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं-
(i) दूरस्थ शिक्षा (Distance Education) के कार्यक्रमों का आयोजन।
(ii) ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवधान रहित (Obstacleless Education) शिक्षा के केन्द्र स्थापित करना।
(iii) प्रौढ़ शिक्षा द्वारा प्रत्येक प्रौढ़ को अपने देश की सांस्कृतिक धरोहर के महत्त्व को समझाना।
(iv) आवश्यक एवं रुचिपूर्ण व्यावसायिक प्रशिक्षण के कार्यक्रमों का आयोजन।
(v) विद्यार्थियों के बड़े समूहों तथा संगठनों का निर्माण करना।
(vi) रेडियो, दूरदर्शन, वाचनालयों एवं पुस्तकालयों के माध्यम से प्रौढ़ों की शिक्षा का प्रबन्ध करना ।
(vii) कर्मचारियों तथा मजदूरों की शिक्षा का प्रबन्ध उनके मालिकों के द्वारा कराने के लिए प्रोत्साहन ।
(viii) स्नातक शिक्षण संस्थाओं (Post Graduate Educational Institutions) की व्यवस्था करना।
ix) आत्म शिक्षण के सहायक साधनों की व्यवस्था करना ।
(x) प्रौढ़ों को शिक्षा में रुचि पैदा करने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा उपहारों का प्रबन्ध करना।
8. शिक्षा का व्यावसायीकरण (Vocationalization of Education) - देश में शिक्षा तथा शिक्षार्थी की हालत अत्यधिक शोचनीय है। ज्यादातर विद्यार्थी 10वीं पास करके नौकरी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं। यही हाल कुछ स्नातक (Graduate) व स्नातकोत्तर (Post-Graduate) विद्यार्थियों का है। यह बेरोजगारी की समस्या विद्यार्थियों को गलत रास्ते पर ले जाती है। जो विद्यार्थी कभी देश की उन्नति में अपने योगदान की कल्पना करता था, वह देश की अखण्डता तथा प्रभुसत्ता के लिए एक समस्या बन जाता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए नई शिक्षा नीति में माध्यमिक शिक्षा को व्यावसायिक रूप देने का हर संभव प्रयास किया गया है। यह प्रयास निःसन्देह देश की उन्नति में बड़ा कारगर सिद्ध होगा।
भारतीय शिक्षा प्रणाली जो केवल लिपिक (Clerk) तैयार कर सकती है। परन्तु माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा कृषि एवं उद्योग को प्रगतिशील बना सकती है, क्योंकि व्यावसायिक शिक्षा अपने आपमें एक अलग धारा है जिसका उद्देश्य अनेक कार्यक्षेत्रों में फैले व्यवसायों के लिए विद्यार्थियों की ऐसी जमात तैयार करती है जो अपने देश की उन्नति में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकें।
+ 2 स्तर पर, इसलिए नई शिक्षा नीति ने, व्यावसायिक शिक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध की व्यवस्था की है तथा साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा में लचीलापन लाने के लिए आठवीं कक्षा के बाद ही व्यावसायीकरण की योजना बनाई गई है। उस समय यह उम्मीद की गई थी कि सन् 1990 तक उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के 10% छात्रों और 1995 तक 25% छात्रों के लिए व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्ध कर दिया जाएगा। व्यावसायिक शिक्षा के प्रावधान के लिए निम्नलिखित संगठनात्मक ढाँचों की व्यवस्था है-
(i) मानवीय संस्थान विकास मन्त्रालय (Ministry of Human Resources Development) द्वारा संयुक्त व्यावसायिक शिक्षा परिषद् (Joint Council for Vocational Education) की स्थापना की जाएगी। यह परिषद् व्यावसायिक शिक्षा नीति का निर्माण करेगी और राष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा में सम्बन्ध स्थापित होगा।
(ii) + 2 के विद्यार्थियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा के कार्यक्रम राज्यों के व्यावसायिक शिक्षा विभाग द्वारा प्रयोगात्मक स्तर पर संचालित किए जाएंगे।
(iii) राजकीय व्यावसायिक शिक्षा-निदेशालय द्वारा जिला स्तर पर (District Career Guidance Cell) की स्थापना की जाएगी।
(iv) राज्य शिक्षा अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषदों (SCERT) तथा व्यावसायिक शिक्षा संस्थान (SIVES) द्वारा 10 + स्तर के विद्यार्थियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा के कार्यक्रम निर्धारित किए जाएँगे। ऐसे कार्यक्रमों के निर्धारण में N.C.E.R.T. द्वारा मार्गदर्शन किया जाएगा।
(v) ब्रिज कोर्सों (Bridge Courses) तथा ट्रांसफर कोर्सों (Transfer Courses) की व्यवस्था, N.C.E.R.T., S.C.E.R.T, R.C.E., SIVES तथा ऐसी ही अन्य संस्थाएँ, उन मार्गदर्शक सुझावों को ध्यान में रखते हुए करेंगी, जो Junior Council of Vocational Education (J.C.V.E.) की तरफ से सुझाए जाएंगे।
(vi) 10+2 के विद्यार्थियों को इंजीनियरिंग (Engineering) और टैक्नोलॉजी (Technology) से सम्बन्धित व्यावसायिक कोर्सों की शिक्षा प्रदान करने के लिए नई शिक्षा नीति के तहत 100 से ज्यादा व्यावसायिक संस्थानों की स्थापना की जाएगी।
(vii) नीति के अनुसार उन विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आरम्भ किया जाएगा जो स्व-रोजगार (Self-Employment) की कुशलता विद्यार्थियों में विकसित कर सकें।
(viii) N.C.E.R.T., रीजनल-शिक्षा-महाविद्यालयों, राज्य शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदों (SCERT) तथा टैक्निकल टीचर्स ट्रैनिंग इन्स्टीट्यूट्स (TTI) को भी अधिक सशक्त बनाना होगा।
9. तकनीकी एवं प्रबन्धकीय शिक्षा (Technical and Management Education) - तकनीकी एवं प्रबन्धकीय शिक्षा के परस्पर सह-सम्बन्ध और दूसरे पर निर्भरता के सम्बन्धों को देखते हुए यह अनुभव किया गया कि तकनीकी व शिक्षा प्रबन्ध का पुनर्निर्माण करना आवश्यक है। असंगठित यादी जर यह अनुभव एक सेवाओं के साँचे में भी विशेष रूप से सुधार की गई टैक्नोलॉजी (Technoगालि ग्रामीण क्षेत्रों और जब प्रबन्धकीय शक्ति की भी अत्यधिक आवश्यकता है। सरकार द्वारा इस ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा। मानव-शक्ति सूचना की स्थिति में सुधार लाने के लिए तकनीकी जनशक्ति सूचना प्रणाली (Technical Manpower Information System) को और अधिक विकसित एवं सशक्त किया जाएगा। आधुनिक युग, जिसे कम्प्यूटर युग भी कहा जाता है, में शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो गई। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए विद्यालय स्तर पर शुरू से ही बड़े पैमाने पर कम्प्यूटर शिक्षा (Computer Education) की व्यवस्था की जानी चाहिए। दूरस्थ शिक्षण प्रक्रिया में शामिल जनमाध्यम (Mass Media) का प्रयोग करके अधिक से अधिक लोगों को तकनीकी एवं प्रबन्धात्मक शिक्षा के योग्य बनाया जाएगा। तकनीकी एवं प्रबन्धात्मक कार्यक्रम मान्यताओं पर आधारित एक लचीले मापांक ढाँचे (Modular Pattern) के आरूप होंगे जिसमें बहुस्थलीय प्रवेश के प्रावधान होंगे। उसके अतिरिक्त स्त्रियों के हितों के लिए आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के लिए कारगर व औपचारिक व निरौपचारिक तकनीकी शिक्षा से सम्बन्धित कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। साथ-ही-साथ शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए उपयुक्त औपचारिक व अंश-उपचारिक तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम भी तैयार किए जाएंगे। जितने भी उच्चतर तकनीकी संस्थान हैं, उनके माध्यम से अनुसंधान कार्यों का शुभारम्भ किया जाएगा जो जनशक्ति उत्पादन में सहायक होगी।
11. कार्य-अनुभव (Work-Experience)- कोठारी आयोग (1964-66) के अनुसार, "कार्य अनुभव शिक्षा तया कार्य में सम्बन्ध स्थापित करने का एक साघन है।" (Work-experience is a mean/medium to establish relation between Education and Work)
इन दोनों के सम्बन्ध चाहे विद्यालय, घर, कार्यशाला, खेत या कारखाने में हो, परिणाम हमेशा लाभदायी होंगे। जैसे-
(i) व्यक्तियों को रोजगार प्राप्ति में सुविधा होगी।
(ii) शिक्षा एवं उत्पादन में उच्च स्तर के सम्बन्ध स्थापित होंगे।
(iii) विद्यार्थियों में कार्य के प्रति सम्मान व प्यार बढ़ेगा और वे स्वतः ही परिश्रम करने लगेंगे।
(iv) यह बौद्धिक तथा हस्तकार्य में अन्तर समाप्त करने में सहायक होगा।
12. शिक्षा एवं पर्यावरण (Education and Environment)- पर्यावरण जिसे मानव ने अपने हाथों से विनाश के कगार पर पहुँचा दिया है उसके प्रति मानव को शिक्षा सचेत करने में कारगर है। पर्यावरण को कैसे सुरक्षित रखा जाए, यह मानव तथा पृथ्वी के अस्तित्व के लिए कैसे उपयोगी है, इन सब विषयों पर प्रकाश डालने वाली बातों तथा सुझावों को शिक्षा में शामिल करना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त इस शिक्षा को प्रत्येक स्तर पर लागू करना चाहिए।
13. शिक्षा सामग्री तया प्रक्रिया का नवीनीकरण (Reorienting the content and process of Education)-शिक्षा सामग्री तथा प्रक्रिया के नवीनीकरण के लिए, नई शिक्षा नीति के अनुसार, निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है-
(i) पाठ्यक्रम में कार्य अनुभव को विशेष स्थान
(ii) शिक्षा में संस्कृति का पुट
(iii) मूल्य शिक्षा
(iv) परीक्षा एवं मूल्यांकन प्रक्रिया सुधार
(v) खेल तथा शारीरिक शिक्षा
(vi) भाषाओं का विकास
(vii) विज्ञान की शिक्षा पर जोर
(viii) बढ़िया पुस्तकों का प्रबन्ध
(ix) पाठन-सम्बन्धी सामग्री का विकास
(x) गणित शिक्षा का आधुनिक तकनीकी पद्धतियों से सम्बन्ध स्थापित करना
(xi) पुस्तकालयों एवं वाचनालयों का सुधार
(xii) शिक्षा के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना
(xiii) नैतिक शिक्षा
(xiv) शिक्षा टैक्नोलॉजी (Education Technology) पर जोर ।
15. अध्यापक शिक्षा (Teacher Education) - नई शिक्षा नीति इस बात को स्वीकारती है कि देश के निर्माण तथा उन्नति में अध्यापकों का विशेष योगदान है। राष्ट्र का भविष्य अध्यापकों पर निर्भर करता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अध्यापक शिक्षा की राष्ट्रीय नीति के कार्यान्वयन कार्यक्रम में निम्नलिखित बातों पर प्रकाश डाला गया है-
(i) अध्यापकों की चयन पद्धति में आवश्यक सुधार करके योग्य अध्यापकों की भर्ती करना। (ii) स्वतन्त्र रूप से कार्य करने के लिए अध्यापकों के लिए उचित वातावरण का प्रबन्ध किया जाएगा ताकि वे बिना किसी व्यवधान के उच्च स्तर के नागरिक तैयार कर सकें।
(iii) माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापकों की शिक्षा के लिए पहले से कार्यरत अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय, बिना बाहरी हस्तक्षेप के काम करते रहेंगे।
(iv) अध्यापकों की शिक्षा के लिए बनाए गए कुछ महाविद्यालयों को संयुक्त संस्थानों (Comprehension Institutions) के रूप में विकसित किया जाएगा, जहाँ उच्च माध्यमिक (Higher Secondary) के बाद पाँच वर्षीय एकीकृत कोर्सों (Five years integrated courses) की व्यवस्था पहले से चल रहे बी.एड. तथा एम.एड. कोर्सों के अतिरिक्त होगी।
(v) अध्यापकों की कार्य-स्थितियाँ एवं आवासीय स्थितियों में आवश्यक सुधार किया जाएगा।
(vi) राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन में अध्यापकों का सक्रिय (active) सहयोग लिया जाएगा।
(vii) अध्यापकों से सम्बन्धित सब हर प्रकार की समस्याओं तथा शिकायतों को प्रभावी ढंग से हल किया जाएगा।
(viii) शिक्षा के प्रबन्ध में अध्यापकों को सम्मिलित किया जाएगा।
(ix) जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थाओं (District Institutions of Education and Training) की स्थापना केवल इस उद्देश्य से की जाएगी कि यहाँ प्राथमिक अध्यापकों के प्रशिक्षण का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे।
(x) इन संस्थाओं को आधुनिक तकनीकी (Modern Technology) के उपकरणों जैसे-कम्प्यूटर, वी.सी.आर. एवं दूरदर्शन आदि से जोड़ा जाएगा। ये संस्थान प्राथमिक शिक्षा के अध्यापकों के लिए पूर्व-सेवाकालिक (Pre-Service) तथा सेवाकालीन (In-service) प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था करेंगे।
(xi) ये संस्थाएँ उन कार्यक्रमों के लिए भी उपयोगी कोर्सों का संचालन करेंगी जो निरौपचारिक शिक्षा तथा प्रौढ़-शिक्षा के कार्यक्रमों में काम कर रहे हैं।
(xii) अध्यापकों को सम्मान तथा उनके व्यावसायिक महत्त्व के संरक्षण और उनके व्यावसायिक दुराचरण के उपचार के लिए अध्यापक संगठनों का सक्रिय उपयोग किया जाएगा।
(xiii) अध्यापकों के लिए आचार संहिता (Code of Conduct) का निर्माण कर उसे लागू करने का प्रावधान किया जाएगा। 16. शिक्षा का प्रबन्ध (The Management of Education)-नई शिक्षा नीति ने शिक्षा का प्रबन्ध निम्नलिखित स्तरों पर किया-
(i) राष्ट्रीय स्तर (At National Level)-केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड का मुख्य काम शैक्षिक विकास पर पुनः विचार करना होगा। साथ ही साथ यदि यह बोर्ड प्रणाली में सुधार लाने हेतु यदि कोई कमी पाती है तो उसमें परिवर्तन करने का पूर्ण अधिकार बोर्ड के पास सुरक्षित रहेगा। केन्द्र तथा राज्यों में शैक्षिक विभाग से जुड़े व्यक्तियों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए अधिक सक्रिय बनाया जाएगा।
(ii) राज्य स्तर पर (At State Level)-नई शिक्षा नीति ने राज्य सरकारों को भी विशेष अधिकार दिए हैं कि C.B.S.E. की तर्ज पर काम करते हुए अपने राज्यों में शिक्षा सलाहकार बोर्ड की स्थापना कर सकते हैं। (iii) जिला स्तर पर (At District Level)-नई शिक्षा नीति ने उच्चतर माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के प्रबन्ध के लिए जिला स्तर पर शिक्षा बोर्ड स्थापित करने का प्रावधान किया।
(iv) स्थानीय स्तर पर (At Local Level)- स्थानीय स्तर पर शिक्षा में सुधार के लिए, नई शिक्षा नीति के अनुसार, जो भी स्थानीय समुदाय हैं उनको उपयुक्त संस्थाओं के माध्यम से सलाह तथा सहयोग के लिए आमंत्रित किया जाएगा।
(v) स्वयंसेवी संस्थाएँ (Voluntary Agencies)- गैर सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाएँ शिक्षा के विकास और प्रबन्ध में योगदान देने में समर्थ हैं, उनको विश्वास में लेकर सहयोग के लिए आमंत्रित किया जाए। नई शिक्षा नीति में इस बात पर भी जोर दिया गया कि इन स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग के लिए उन्हें आर्थिक प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए।
17. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 का मूल्यांकन (Evaluation of the National Policy on Education of 1986)-नई शिक्षा नीति-1986 निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सकती है-
(i) नई शिक्षा नीति उच्चतर मूल्यों की प्रतिबद्धता के साथ 'विशेष व्यक्ति' (Wholeman) और 'सम्पूर्ण व्यक्ति' (Total man) के लक्ष्य की पूर्ति में सहायक होगी।
(ii) यह शिक्षा नीति विद्यार्थियों के दिमाग की संकीर्णता को दूर कर उसे विस्तृत करती है।
(iii) यह शिक्षा के अवसरों में समानता पैदा करने में सहायक है।
(iv) यह शिक्षा नीति भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए आधारभूत और अनिवार्य मूल्यों पर आधारित होने के कारण, प्रत्येक व्यक्ति की शिक्षा के लिए कटिबद्ध है।
(v) शिक्षा के निरीक्षण का विकेन्द्रीयकरण स्थानीय प्रेरणाओं को अधिक प्रोत्साहन देने में सहायक है।
(vi) यह शिक्षा नीति विद्यार्थियों को स्वयं का व्यवसाय चलाने में अत्यधिक सहायक है।
(vii) यह शिक्षा नीति राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर बल देकर कोर-पाठ्यक्रम की व्यवस्था करती है।
(viii) यह शिक्षा नीति वास्तविक रोजगार के अवसरों तथा संसार के कार्यों में तालमेल स्थापित करने में सहायक है।
(ix) नई शिक्षा नीति शिक्षा के विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता की भावना को भी जागृत करती है।
(x) यह शिक्षा नीति वर्तमान राष्ट्रीय ढाँचे 10 + 2 + 3 के अन्तर्गत सुचारु रूप से काम कर सकती है।