लार्ड मैकाले अंग्रेजी साहित्य का बहुत बड़ा विद्वान था। वह 10 जून, 1934 ई. को भारतीय गवर्नर-जनरल की काऊंसिल के कानून सदस्य के रूप में भारत आया था। जब मैकाले भारत आया तब उसे जनरल कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनसे शीघ्र ही प्राच्य और पाश्चात्य दलों के विचार पर सहमति मांगी गई क्योंकि उस समय भारत में शिक्षा के माध्यम के विषय में प्राच्य-पाश्चात्य विवाद छिड़ा हुआ था। प्राच्य दल भारतीय भाषा के माध्यम से बालकों को शिक्षा देने के पक्ष में था जबकि पाश्चात्य दल पूर्ण रूप से अंग्रेजी भाषा का समर्थन कर रहे थे। इस विवाद के कारण अंग्रेज भारत में शिक्षा के माध्यम की समस्या सुलझाने में असमर्थ सिद्ध हो रहे थे। एक कानूनी सदस्य होने के नाते मैकाले को इस विषय पर अपना मत देना था कि शिक्षा के माध्यम के लिए कौन-सी भाषा उपयुक्त हो सकती है और सरकारी धन का सबसे अच्छा उपयोग क्या हो सकता है। मैकाले को यह राय भी देनी थी कि 1813 के आज्ञा-पत्र अधिनियम में भारत में किस तरह की शिक्षा व्यवस्था का आदेश दिया जाए। लार्ड मैकाले ने 2 फरवरी, 1835 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक को अपना प्रभावशाली विवरण-पत्र प्रस्तुत किया जिसे इतिहास में मैकाले विवरण-पत्र के नाम से जाना जाता है। यद्यपि मैकाले-शैक्षिक संरचना के संबंध में कोई अतिश्योक्तिपूर्ण सिफारिशें नहीं की लेकिन मैकाले ने अपने विवरण-पत्र के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के लिए वह सब कुछ कर दिया जो शायद सेना के सैकड़ों जनरल भी नहीं कर सकते थे। मैकाले ने अपने विवरण-पत्र में कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी जिसने समस्त भारत को एक आंग्ली (English) बना दिया।
1813 के आज्ञा-पत्र की धारा 43 की व्याख्या निम्नलिखित रूप में की है-
1. धनराशि के खर्च की व्याख्या-मैकाले ने कहा कि एक लाख रुपये की धनराशि व्यय करने के लिए सरकार पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वह इस राशि को स्वेच्छानुसार खर्च कर सकती है।
2. भारतीय विद्वान की व्याख्या-मैकाले के अनुसार भारतीय विद्वान मुसलमान मौलवी एवं संस्कृत के पंडित के अलावा अंग्रेजी भाषा और साहित्य का विद्वान भी हो सकता है।
3. साहित्य शब्द की व्याख्या-मैकाले के अनुसार साहित्य शब्द से तात्पर्य मात्र भारतीय साहित्य, संस्कृत, अरबी से नहीं है बल्कि अंग्रेजी साहित्य से भी है।
4. विवरण-पत्र की मुख्य बातें (Main Points of Minutes)- मैकाले द्वारा प्रस्तुत विवरण-पत्र के मुख्य बातों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया जा सकता है-
(a) अंग्रेजी का समर्थन और उसका गुणगान ।
(b) प्राच्य साहित्य एवं ज्ञान की शिक्षा को निरर्थक, अनावश्यक तथा मूर्खतापूर्ण बताया गया।
(c) अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने योग्य तथा भारतीय भाषाओं को गंवारू तया अविकसित कहा।
(d) भारतीय विद्वान वे ही हैं जो लॉक के दर्शन और मिल्टन की कविता से पूर्णतः परिचित हैं।
(e) उच्च वर्ग के लिए उच्च शिक्षा संस्थाओं की व्यवस्था की जाए क्योंकि सरकार के पास सामान्च लोगों की शिक्षा व्यवस्था के लिए पर्याप्त धन का अभाव है। उच्च वर्ग शिक्षित होगा तो निम वर्ग के पास शिक्षा स्वतः पहुंच जाएगी।
(f) शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक तटस्था की नीति आवश्यक है।
5. निस्यन्दन सिद्धांत के प्रतिपादन के कारण निस्यन्दन सिद्धांत को प्रतिपादित करने के पीछे निम्नलिखित कारण प्रतीत होते हैं-
(i) उच्च वर्ग को शिक्षित करके उन्हें जनसाधारण की शिक्षा का उत्तरदायित्व दिया जा सकता है।
(ii) कंपनी के पास जनसाधारण की शिक्षा के लिए आवश्यक धन नहीं था।
(iii) उच्च वर्ग को पाश्चात्य आचार-विचारों की शिक्षा देकर जनसाधारण को प्रभावित किया जा सके।
(iv) ऐसे उच्च शिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता थी जिन्हें उच्च पदों पर आसीन करके शासन को सुदृङ्ग बनाया जा सके।
6. निस्यन्दन सिद्धांत लागू करने का फल-मैकाले के निस्यन्दन सिद्धांत को क्रियान्वित करने से उच्च शिक्षा के प्रचार में तीव्रता तो आ गई, लेकिन शिक्षा उच्च वर्गों से छन-छन कर निम्न वर्गों तक नहीं पहुंची। इसका मुख्य कारण यह था कि जिन व्यक्तियों ने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की, उनके विचार और आदर्श बदल गए। उनमें श्रेष्ठता की ऐसी भावना जागी, जिसके कारण वे निम्न वर्गों से सम्पर्क स्थापित करने में मान हानि समझने लगे। इस संबंध में पं. जवाहर लाल नेहरू ने अपना विचार प्रकट करते हुए कहा था कि "अंग्रेजों ने भारत में एक नवीन वर्ग का निर्माण किया जो शासक की कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वत्र प्रयत्नशील रहता था।" यही कारण है कि निस्यन्दन सिद्धांत जिसके लिए लाया गया था, उस उद्देश्य को प्राप्त करने में पूर्णतः असफल रहा।
मैकाले के विवरण-पत्र की मुख्य विशेषताएं
(Main Features of Macaulay's Minutes)
1. अंग्रेजी भाषा आधुनिक ज्ञान की कुंजी-मैकाले का विश्वास था कि अंग्रेजी एक समृद्ध भाषा है। अंग्रेजी भाषा भारतीय भाषाओं जैसे-अरबी और संस्कृत से अधिक उपयोगी है।
2. भारतीय नवचेतना लाने में सक्षम मैकाले के अनुसार भारतीय बहुत पिछड़े हुए थे और उनकी भाषाए भी अधिक विकसित नहीं थीं। अतः इस स्थिति में उन्हें किसी विदेशी भाषा की आवश्यकता थी जो भारत में नवचेतना का उद्भव कर सके और यह विदेशी भाषा कोई और नहीं बल्कि अंग्रेजी ही हो सकती है। अंग्रेजी भाषा भारतीय पुनर्जागरण में उसी प्रकार सहायता करेगी जिस प्रकार इंग्लैंड में पुनर्जागरण लाने का कार्य लैटिन और ग्रीक भाषा ने किया था।
3. अंग्रेजी शासक वर्ग द्वारा बोली जाने वाली भाषा-मैकाले ने कहा कि अंग्रेजी भारत में शासक वर्ग द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। यह सरकार में उच्च पदों पर जो आसीन हैं उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। ऐसा लगता है कि यह पूरे पूर्व में व्यापार की भाषा बन जाएगी।
4. भारतीयों में भी अंग्रेजी सीखने की उत्सुकता- भारतीयों की अंग्रेजी में बहुत रुचि थी और वे अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए उत्सुक थे। मैकाले ने अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए एक संस्कृत महाविद्यालय के छात्रों द्वारा दायर की गई याचिका का प्रमाण दिया। याचिका के अनुसार छात्रों ने कहा कि वे दस से बारह वर्ष तक इन महाविद्यालयों में पढ़े और अपने आप को हिन्दू साहित्य और विज्ञान का विद्वान बना लिया और उनको इस विद्वता के प्रमाण-पत्र भी दिए गए परंतु इन सभी प्रमाण-पत्रों का कोई लाभ नहीं था क्योंकि उन प्रमाण-पत्रों के आधार पर आजीविका नहीं कमाई जा सकती थी। उन्होंने सरकार से अपने जीवनयापन के लिए कोई स्थान ढूंढ़ने की प्रार्थना की थी। इन्हीं प्रमाण-पत्रों के आधार पर मैकाले ने शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी करने की वकालत की थी क्योंकि अंग्रेजी ही ऐसी भाषा थी जो भारतीय जनता को ज्ञान एवं आजीविका की प्राप्ति करवा सकती थी।
5. अंग्रेजी सर्वश्रेष्ठ भाषा-मैकाले के अनुसार अंग्रेजी सभी पश्चिम की भाषाओं से श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा, "जो भी व्यक्ति अंग्रेजी भाषा को जानता है, उसके लिए यह विशाल बौद्धिक सम्पत्ति उसकी पहुंच में होगी जिसे इस धरती के सबसे बुद्धिहीन राष्ट्रों ने पैदा किया है तथा जो उसे नब्बे पीढ़ियों तक भंडारित करते रहे हैं।" मैकाले अरबी और संस्कृत भाषाओं को निम्न स्तर की भाषा मानता था। वह अंग्रेजी भाषा को ही उच्च स्तर की भाषा मानता था।
मैकाले का निस्यन्दन सिद्धांत (Filteration Theory of Macaulay)
1. सिद्धांत का अर्थ- 'निस्यन्ट' अर्थात् "छीनने की क्रिया।" व्यापारियों की कंपनी होने के कारण वे भारतीयों की शिक्षा पर कम से कम धन व्यय करना चाहते थे। अतः उन्होंने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि शिक्षा का नियोजन केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिए किया जाए क्योंकि शिक्षा इन वर्ग के लोगों से छन-छन कर निम्न वर्ग तक अपने आप पहुंच जाएगी। इस सिद्धांत के अर्थ को स्पष्ट करते हुए अरथर मेहतू ने कहा है "शिक्षा ऊपर से प्रवेश करके जनसाधारण तक पहुंचती थी। लाभप्रद ज्ञान, भारत के सर्वोच्च वर्गों में बूंद-बूंद करके नीचे टपकता था।"
2. सिद्धांत के समर्थक ईसाई मिशनरी, मुम्बई के गवर्नर की कौंसिल का सदस्य, फ्रांसिस वार्डन, कंपनी के संचालक और मैकाले निस्यन्दन सिद्धांत के प्रमुख समर्थक थे।
(i) ईसाई मिशनरियों का विचार था कि यदि उच्च वर्ग के भारतीय हिन्दुओं को अंग्रेजी शिक्षा देकर ईसाई धर्म अवलम्बी बनाया जाए तो निम्न वर्गों के व्यक्ति उनके उदाहरण से प्रभावित होकर स्वयं ही ईसाई धर्म में दीक्षित हो जाएंगे।
(ii) फ्रांसिसी वार्ड ने 23 दिसम्बर, सन् 1823 के अपने 'विवरण-पत्र' में यह विचार व्यक्त किया - "बहुत से व्यक्तियों को थोड़ा-सा ज्ञान देने की बजाए थोड़े से व्यक्तियों को बहुत-सा ज्ञान देना अधिक उत्तम और निरापद है।"
(iii) कंपनी के संचालकों ने 29 सितम्बर, 1830 को अपने 'आदेश-पत्र' में मद्रास के गवर्नर को यह परामर्श दिया- "शिक्षा की प्रगति उसी समय हो जाती है, जब उच्च वर्ग के उन व्यक्तियों को शिक्षा दी जाए, जिनके पास अवकाश है और जिनका अपने देश के नागरिकों पर प्रभाव है।"
(iv) मैकाले ने 1835 के 'विवरण-पत्र' में 'निस्यन्दन' सिद्धांत का समर्थन करते हुए कहा- हमें इस समय ऐसे वर्ग का निर्माण करने का पूरा-पूरा प्रयास करना चाहिए, जो हमारे और उन लोगों के बीच में दुभाषिए का काम करे, जिन पर हम शासन करते हैं।
3. आकलैंड द्वारा सिद्धांत की स्वीकृति-भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड आकलैंड ने "निस्यन्दन सिद्धांत" को सरकारी नीति के रूप में स्वीकार करते हुए 24 नवम्बर, 1839 के अपने 'विवरण-पत्र' में घोषणा की-"सरकार के प्रयास, समाज के उन उच्च वर्गों में उच्च शिक्षा का प्रसार करने तक सीमित रहने चाहिएं, जिनके पास अध्यापन के लिए अवकाश है तथा जिनकी संस्कृति छन-छन कर जनसाधारण तक पहुंचेगी।"
4. अंग्रेजी शिक्षा द्वारा ऐसे वर्ग का निर्माण किया जा सकता है जो रक्त व रंग से भले ही भारतीय हों, परंतु रुचियों, नैतिकता तथा विद्वता में अंग्रेज होगा।
5. भारतीय, अरबी व संस्कृति की शिक्षा की अपेक्षा अंग्रेजी शिक्षा के लिए अधिक उत्कंठित हैं।
6. भारतवासियों को अंग्रेजी का अच्छा विद्वान बनने के लिए प्रयास करने चाहिएं। उपर्युक्त तर्कों के आधार पर मैकाले ने यह मत दिया है कि प्राच्य शिक्षा की संस्थाओं पर धन व्यय करना मूर्खता है, तथा इनको बंद कर देना चाहिए। इनके स्थान पर अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाकर शिक्षा प्रदान करने के लिए संस्थाएं बनाई जाएं।
बैंटिक द्वारा विवरण-पत्र की स्वीकृति-1835 (Bentick's Approval of Minutes, 1835)
लार्ड विलियम बैंटिक ने मैकाले के 'विवरण-पत्र' में व्यक्त किए गए सभी विचारों का अनुमोदन किया। उसके बाद 7 मार्च, 1835 को एक विज्ञप्ति द्वारा उसने सरकार की शिक्षा नीति को अग्रांकित शब्दों में घोषित किया - "शिक्षा के लिए निर्धारित सम्पूर्ण धन का सर्वोत्कृष्ट प्रयोग केवल अंग्रेजी की शिक्षा के लिए ही किया जा सकता है।"
इस विज्ञप्ति से भारतीय शिक्षा के इतिहास में अचानक एक नया मोड़ आ गया। टी.एन. सिक्येरा के शब्दों में- "इस विज्ञप्ति ने भारत के शिक्षा के इतिहास को नया मोड़ दिया। यह उस दिशा में, विषय में जो सरकार सार्वजनिक शिक्षा को देना चाहती थी, निश्चित नीति की पृथक् सरकारी घोषणा थी।"
मैकाले के विवरण-पत्र का मूल्यांकन (Evaluation of Macaulay's Minutes)
किसी वस्तु, विचार या क्रिया का मूल्यांकन किन्हीं निश्चित मानदंडों के आधार पर किया जाता है, मैकाले के विवरण-पत्र का मूल्यांकन तीन आधारों पर किया जा सकता है पहला यह कि उसका इरादा क्या था, दूसरा यह है कि उसने जो सुझाव दिए थे क्या वो भारतीयों के हित में थे तथा तीसरा यह है कि उनके कितने परिणाम भारतीयों के कितने हित में रहे।
मैकाले का इरादा-मैकाले का मत था कि प्राच्य साहित्य और ज्ञान-विज्ञान निम्न कोटि का है। इसलिए भारतीयों की दशा सुधारने के लिए उन्हें अग्रेजी शिक्षा देना आवश्यक हो गया है, वास्तव में मैकाले का इरादा भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति को जड़मूल से समाप्त करने का था। उसने बंगाल से अपने पिता को लिखे पत्र में स्वयं लिखा था- "यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा योजना को लागू किया जाता है तो 30 वर्ष बाद बंगाल के उच्च वर्ग में कोई भी मूर्ति उपासक शेष नहीं बचेगा।" अतः ये स्पष्ट है कि भारतीयों की दृष्टि से मैकाले का इरादा नेक नहीं था, वह भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति को नष्ट करना चाहता था तथा उसके स्थान पर पाश्चात्य संस्कृति, धर्म और दर्शन का विकास करना चाहता था। साथ ही अपने देश के शासन को सुदृढ़ करना चाहता था।
मैकाले के विवरण-पत्र के गुण (Merits of Macaulay's Minutes)
1. प्राध्य-पाश्चात्य विवाद के विषय में तर्कपूर्ण निर्णय-मैकाले ने बहुत ही अच्छी तरह से प्राच्य-पाश्चात्य विवाद को हल किया था। हालांकि उसने पाश्चात्यवादियों का समर्थन पक्षपातपूर्ण ढंग से किया था।
2. प्रगतिशील शिक्षा की वकालत-आरंभ में भारत में जो शिक्षा चल रही थी वह रूढ़िवादी तथा प्राचीन साहित्य प्रधान थी। मैकाले ने उसे आधुनिक ज्ञान-विज्ञान प्रधान तथा प्रगतिशील बनाने पर बल दिया।
3. पाश्चात्य भाषा, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की वकालत-ज्ञान अपने आप में प्रकाश है तथा अमृत के समान है। यह कहीं से भी प्राप्त हो, उसे स्वीकार करना चाहिए। मैकाले ने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की श्रेष्ठता स्पष्ट की, उससे भारतीयों को परिचित कराने पर बल दिया। यह उसके विवरण-पत्र की एक बहुत अच्छी बात थी।
4. शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक तटस्थता की नीति-मैकाले के समय हिन्दू पाठशालाओं में हिन्दू धर्म, मुस्लिम मकतब तथा मदरसों में ईस्लाम धर्म, और ईसाई मिशनरियों के स्कूलों में ईसाई धर्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती थी। मैकाले ने सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त स्कूलों में किसी भी धर्म की शिक्षा न दिए जाने की सिफारिश की। भारतीय संदर्भ में यह उसका अति उत्तम सुझाव था।
मैकाले के विवरण-पत्र के दोष (Demerits of Macaulay's Minutes)
1. 1813 के आज्ञा-पत्र की धारा 43 की व्याख्या पक्षपातपूर्ण स्वीकृत घन के बारे में कहा था कि इसे किसी भी रूप में खर्च किया जा सकता है। साहित्य से अभिप्राय प्राच्य तथा पाश्चात्य साहित्य से है और भारतीय विद्वान से अभिप्राय भारतीय विद्वानों के साथ-साथ लॉक के दर्शन और मिल्टन की कविता को जानने वाले भारतीय विद्वानों से भी है, पक्षपातपूर्ण था। ये बात अलग है कि उसने अपने तर्कों द्वारा इसे उचित सिद्ध कर दिया।
2. प्राच्य साहित्य एवं संस्कृति की आलोचना द्वेषपूर्ण-मैकाले ने प्राच्य साहित्य और संस्कृति को बहुत निम्न कोटि का बताया तथा उसका मखौल उड़ाया। यह उसकी एक द्वेषपूर्ण अभिव्यक्ति थी। यदि उसने ऋग्वेद और उपनिषदों के आध्यात्मिक ज्ञान, अथर्ववेद के भौतिक ज्ञान और चरकसंहिता के आयुर्वेद विज्ञान का अध्ययन किया होता तो वह ऐसा कहने का दुस्साहस कभी न कर पाता।
3. अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने का सुझाव पक्षपातपूर्ण किसी भी देश की शिक्षा का माध्यम उस देश के नागरिकों की मातृभाषा अथवा मातृभाषाएं होती हैं। मैकाले ने अंग्रेजी को शिक्षा का माध्य बनाने का सुझाव देकर अनेक भारतीयों को शिक्षा प्राप्त करने से वंचित कर दिया था। इससे जन-शिक्षा को बड़ा धक्का लगा।
4. केवल उच्च वर्ग के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्या का सुझाव अनुचित शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसे किसी विशेष वर्ग तक सीमित रखना मानवीय अधिकारों का हनन है। इस दृष्टि ते मैकाले का सुझाव बहुत ही अनुचित था।
5. निस्यन्दन की पुष्टि अनुचित-मैकाले से पहले भी कई अंग्रेज विद्वान इस बात के पक्षधर थे, कि कंपनी को केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। निम्न वर्ग के लोग उनके संपर्क में आकर स्वयं ज्ञान प्राप्त कर लेंगे। लेकिन मैकाले ने इसकी पुष्टि बड़े तर्कपूर्ण ढंग से की जो आगे चलकर एक बार शिक्षा नीति का अंग बनी। यह उसका एक चतुरतापूर्ण सुझाव था।
मैकाले के विवरण-पत्र के प्रभावों को हम दो रूपों में देख सकते हैं-
1. तत्कालीन प्रभाव
2. दीर्घकालीन प्रभाव
1. तत्कालीन प्रभाव-
(i) शिक्षा नीति की घोषणा (Declaration of Education Policy) - मैकाले ने 1813 के आज्ञा-पत्र की धारा 43 की व्याख्या इतने तर्कपूर्ण ढंग से की कि तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक उससे सहमत हुआ और उसने अंग्रेजी माध्यम की यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान प्रधान शिक्षा नीति की घोषणा कर दी। इसके बाद जितनी भी शिक्षा नीति बनी वे इसी आधार पर बनीं।
(ii) अंग्रेजी भाषा राजकाज की भाषा घोषित-1837 ई. में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड आकलैंड ने फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को राजकाज की भाषा घोषित किया। ये मैकाले द्वारा दिए गए अंग्रेजी के पक्ष में दिए गए तर्कों का ही परिणाम था।
(iii) अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की शुरूआत शिक्षा नीति की घोषणा के पश्चात अंग्रेजी माध्यम के उच्च शिक्षा के स्कूल और कॉलेज खोले गए तथा इनकी नींव इतनी सुदृढ़ रखी गई कि हमारे देश में इस शिक्षा प्रणाली का विकास बहुत तेजी से हुआ तथा हमारी आज की शिक्षा भी इसी मूल रूप पर आधारित है।
(iv) सरकारी नौकरियों के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता-1844 के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग ने एक आदेश जारी कर यह निर्देश दिया कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समय अंग्रेजी जानने वाले अभ्यार्थियों को वरीयता दी जाए। यह वरीयता व्यावहारिक रूप में अनिवार्यता बन गई।
2. मैकाले के विवरण-पत्र के दीर्घकालीन प्रभाव-
(i) भारतीयों को पाश्चात्य साहित्य व ज्ञान-विज्ञान की जानकारी-मैकाले के द्वारा दिए गए सुझावों पर भारत में जिस अंग्रेजी माध्यम को यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान प्रधान शिक्षा की व्यवस्था की गई। उसके द्वारा भारतीयों को पाश्चात्य साहित्य के ज्ञान-विज्ञान की जानकारी हुई जिससे अनेक लाभ हुए।
(ii) भारत में अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व धीरे-धीरे भारत में अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व इतना बढ़ गया कि उसे जितना कम करने की कोशिश की जाती, वह उतना ही अधिक बढ़ जाता। अब हमारे देश से अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त करना कठिन प्रतीत होता है।
(iii) भारत में भौतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त-मैकाले के समय भारतीय शिक्षा के द्वारा सामयिक व्यवहार तथा आध्यात्मिक विकास पर अधिक जोर दिया जाता था। मैकाले के सुझावों के आधार पर भारत में जिस शिक्षा प्रणाली को लागू किया गया, उसमें पूरे देश की उन्नति का ध्यान रखा गया। जिसके फलस्वरूप भारत के भौतिक क्षेत्र में काफी उन्नति हुई।
(iv) भारत में राजनैतिक जागरूकता का उदय-अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों को मानवीय अधिकारों के प्रति जागरूकता करवाई। स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे का महत्त्व बताया। इससे भारतीयों में राजनैतिक चेतना जाग्रत हुई। नुरूल्ला व नायक ने ठीक ही लिखा है कि "यदि भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रादुर्भाव न हुआ होता तो कदाचित् भारत में स्वतंत्रता संग्राम ही शुरू नहीं हुआ होता।"
(iv) भारत में सामाजिक जागरूकता का उदय-उस समय भारत में अनेक सामाजिक बुराईयां थी, जैसे-जाति-प्रथा, विधवा-विवाह, सती प्रथा आदि। मैकाले ने जिस शिक्षा प्रणाली की नींव रखी, उससे भारतीय इन बुराइयों के प्रति सचेत हुए तथा उन्हें दूर करने के लिए प्रयत्नशील हुए जिससे उनमें अनेक सुधार हुए
निष्कर्ष (Conclusion)-मैकाले ने कुछ विद्वानों के मतों के अनुसार कार्य किए जो कि भारतीयों की उन्नति चाहते थे। मैकाले के इरादे भी नेक व भारतीयों की उन्नति करने वाले थे। मैकाले ने जो सुझाव अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली लागू करने के विषय में दिए उनसे भारतीयों को लाभ अधिक व हानि कम ही हुई है। मैकाले द्वारा दिए सुझावों के कारण ही हमारे देश में रूढ़िवादी शिक्षा के स्थान पर प्रगतिशील शिक्षा की शुरूआत हुई। जिसके कारण देश में भौतिक तरक्की हुई; सामाजिक सुधार हुए, राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई, स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तया हम स्वतंत्र हुए। आज हमने कृषि क्षेत्र व दूर संचार क्षेत्र एवं अंतरिक्ष तकनीकी में जो उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त की हैं, ये सब अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के ही परिणाम हैं। आज हम इसी भाषा के माध्यम से देश-विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। विशेषकर विज्ञान और तकनीकी की शिक्षा। इसी भाषा के माध्यम से हम विदेशों में अच्छी नौकरियां प्राप्त कर रहे हैं। अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाए रखना हमारी आवश्यकता है। अतः हम देख सकते हैं कि मैकाले के सुझावों से हमें हानि कम और लाभ अधिक हो रहा है।