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Intelligence—Nature, Theories and Measurement(बुद्धि - प्रकृति, सिद्धान्त एवं मापन)
Oct 07, 2022   Ritu Suhag

Intelligence—Nature, Theories and Measurement(बुद्धि - प्रकृति, सिद्धान्त एवं मापन)

Intelligence—Nature, Theories and Measurement(बुद्धि - प्रकृति, सिद्धान्त एवं मापन)

After reading this article you will be able to answer the following questions-

# बुद्धि की प्रकृति एवं अर्थ (Nature and Meaning of intelligence)

# बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

#एक कारक सिद्धान्त (Unitary or Monarchic Theory)

# बहु कारक सिद्धान्त (Multifactor or Anarchic Theory)

# स्पीयरमैन कृत द्वि कारक सिद्धान्त (Spearman's Two Factor Theory) # थर्स्टन कृत ग्रुप तत्त्व सिद्धान्त (Thurstone's Group Factor Theory)

# गिलफर्ड का बुद्धि सम्बन्धी सिद्धान्त और बुद्धि प्रतिमान (Guilford theory involving a model of intellect) 

# बुद्धि का मापन कैसे किया जाता है (How intelligence is measured?)

# बुद्धि परीक्षा से बुद्धि का परीक्षण कैसे किया जाए ?(How to test Intelligence with an intelligence test)

# क्या बुद्धि को कपड़े के टुकड़े या शरीर के तापक्रम की तरह मापा जा सकता है ? (Can Intelligence be measured like a piece of cloth or temperature of the body?) # मानसिक आयु तथा बुद्धि लब्धि की अवधारणा क्या है?( Explain the Concept of Mental Age and Intelligence Quotient)

# बुद्धि लब्धि का वर्गीकरण कैसे किया जाता है?( How Classification of I. Q. Is done ? )

# बुद्धि लब्धि का एक रहना अर्थात उसकी निरन्तरता (The Constancy of I. Q.) # बुद्धि परीक्षणों के लाभ तथा कमियाँ  (Uses and Limitations of Intelligence Tests)

Introduction

पशुओं की तुलना में मनुष्य को कई ज्ञानात्मक योग्यताओं से सम्पन्न माना जाता है जो उसे विवेकशील प्राणी बनाती हैं। वह तर्क कर सकता है; भेद कर सकता है; समझ सकता है और नई स्थिति का सामना भी कर सकता है। निश्चित रूप से वह पशुओं से श्रेष्ठ है, परन्तु सभी मनुष्य एक जैसे नहीं होते। व्यापक रूप से व्यक्तिगत विभिन्नताएं पाई जाती हैं। एक अध्यापक अपने विद्यार्थियों में आसानी से ये विभिन्नताएं देख सकता है। कई विद्यार्थी बहुत जल्दी सीखते हैं और कई विद्यार्थी बहुत देर बाद सीखते हैं। कई विद्यार्थी तो एक बार देख कर ही उपकरणों (Tools) का प्रयोग करने लगते हैं, परन्तु कई विद्यार्थी बार-बार देखने पर एवं व्यक्तिगत रूप से निर्देश प्राप्त करने पर भी उनका अच्छी तरह से प्रयोग नहीं कर सकते। वे कौन से कारण हैं जिनसे एक व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा किसी विशिष्ट स्थिति के प्रति अधिक प्रभावशाली अनुक्रिया करता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि रुचि, अभिवृत्ति, प्राप्त ज्ञान एवं कौशल का सफलता प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, परन्तु फिर भी कोई ऐसी चीज अवश्य है जो इन विविध विभिन्नताओं का कारण है । मनोविज्ञान में इसे 'बुद्धि' कहा जाता है प्राचीन भारत में महान ऋषि इसे 'विवेक' कहते थे ।

प्रकृति एवं अर्थ (Nature and Meaning)

बुद्धि के अर्थ और उसकी प्रकृति से अवगत होने के लिये बहुत लम्बे समय से प्रयत्न किये जाते रहे हैं। यहाँ इनसे परिचित होने हेतु हम निम्न बिन्दुओं पर चर्चा करना चाहेंगे।

A. बुद्धि का अर्थ एवं परिभाषायें

B. बुद्धि के सम्बन्ध में कुछ स्थापित तथ्य

C. बुद्धि के बारे में फैली भ्रान्तियाँ।

बुद्धि का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Intelligence)

प्रायः उस व्यक्ति को बुद्धिमान कहा जाता है जो जीवन की सामान्य स्थितियों का सामना करने में सफल हो। 'बुद्धि' में ऐसी कौन सी चीज है ? मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न तरीकों से इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है। इसके परिणामस्वरूप 'बुद्धि' की कई परिभाषाएं बन गई हैं। इनमें से कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं

1. वुडवर्थ एण्ड मार्क्यूइस (Woodworth and Marquis ) — "बुद्धि का अर्थ है प्रतिभा का प्रयोग करना। किसी स्थिति का सामना करने या किसी कार्य को करने के लिए प्रतिभात्मक योग्यताओं का प्रयोग बुद्धि है।" "Intelligence means intellect put to use. It is the use of intellectual abilities for handling a situation or accomplishing any task."

2. स्टर्न (Stern)- "बुद्धि व्यक्ति की वह सामान्य योग्यता है जिसके द्वारा वह सचेत रूप से नवीन आवश्यकताओं के अनुसार चिन्तन करता है। जीवन की नई समस्याओं एवं स्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालने की सामान्य मानसिक योग्यता 'बुद्धि' कहलाती है।" "Intelligence is a general capacity of an individual consciously to adjust his thinking to new requirements. It is general mental adaptability to new problems and conditions of life." 

3. डैविड-वैक्सलर (David Wechsler) - "बुद्धि व्यक्ति की वह संयुक्त और समग्र क्षमता है। जिसके द्वारा वह उद्देश्यपूर्ण कार्य करता है। विवेकपूर्ण चिन्तन करता है और अपने वातावरण का प्रभावशाली ढंग से सामना करता है।" "Intelligence is the aggregate or global capacity of an individual to act purposefully, to think rationally, and to deal effectively with his environment."

इन परिभाषाओं का विश्लेषण (Analysis of these Definitions)

ऊपर हमने 'बुद्धि' की कुछ परिभाषाओं का उल्लेख किया है, इसकी और भी परिभाषाएं उद्धृत की जा सकती हैं। इन परिभाषाओं को यदि अलग-अलग लिया जाए तो 'बुद्धि' का पूर्ण चित्र सामने नहीं आता क्योंकि ये परिभाषाएं आंशिक रूप से इस बात पर बल देती हैं कि

(a) बुद्धि सीखने की योग्यता है।

(b) यह अमूर्त चिन्तन की योग्यता है।

(c) यह नवीन स्थितियों में समायोजन की योग्यता है।

वैक्सलर (Wechsler) द्वारा दी गई परिभाषा में उपर्युक्त तीनों बातें सम्मिलित हैं। परन्तु मनोवैज्ञानिक की विभिन्न रायों के कारण इस परिभाषा की भी आलोचना हो रही है। किसी एक परिभाषा पर सहमत होने के प्रयास व्यर्थ ही सिद्ध हुए हैं पर कुछ अंग्रेश मनोवैज्ञानिकों ने 'बुद्धि' की उचित परिभाषा के सम्बन्ध में कुछ सहमति प्रकट की है। उनकी दृष्टि में 'बुद्धि' में निम्नलिखित योग्यताएं सम्मिलित हैं

(a) वस्तुओं तथा विचारों में स्थिति अनुसार उचित सम्बन्ध रखना।

(b) उन सम्बन्धों को नई स्थितियों में प्रयोग करना। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बुद्धिपूर्ण व्यवहार को दो वर्गों में बांटा जा सकता है— सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक अथवा अमूर्त (Abstract) तथा मूर्त (Concrete)। यदि हम व्यक्ति की क्रियाओं की सफलता को निश्चित करने वाले तत्त्वों का विश्लेषण करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि सफलता या असफलता में ज्ञानात्मक एवं मानसिक योग्यताएं महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती हैं। रैक्स एवं मारग्रेट (Rex and Margaret) के कथनानुसार, "बुद्धि एक ऐसा तत्त्व है जो सभी मानसिक योग्यताओं में सामान्य रूप से विद्यमान होता है।" ("Intelligence is a factor that is common to all mental abilities"

अतः किसी की बुद्धि का अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उसके कार्य का मूल्यांकन क्या है; किसी स्थिति के प्रति उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है। इस प्रकार यदि हम वास्तविक भूमि पर विचार Meaning का प्रयास करें तो हम बुद्धि की निम्नलिखित परिभाषा दे सकते हैं- "बुद्धि में व्यक्ति की वे मानसिक एवं ज्ञानात्मक योग्यताएं सम्मिलित हैं जो उसे जीवन की वास्तविक समस्याओं को सुलझाने में सहायता देती हैं और उसके आनन्दपूर्ण एवं सन्तुष्ट जीवन-यापन में सहायक होती है।" ("Intelligence consists of an individual's those mental or cognitive abilities which help him in solving his actual life-problems and leading a happy and well contented life.")

बुद्धि के सम्बन्ध में कुछ स्थापित तथ्य (Some Established facts about Intelligence)

1. प्रकृति एवं पोषण से बुद्धि का सम्बन्ध (Rolation of Intelligence with Nature and Nurture) - प्रकृति एवं पोषण के साथ बुद्धि का सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिये मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रयास किये हैं। उनके अध्ययनों के परिणामस्वरूप ज्ञात हुआ है कि 'बुद्धि' वंश , परम्परा की उपज होती है। बच्चे के बौद्धिक विकास के लिये ये दोनों आवश्यक हैं।

2. बुद्धि का वितरण (Distribution of Intelligence) - 'बुद्धि' के वितरण की दृष्टि से भी व्यक्तियों में विभिन्नता होती है। बुद्धि वितरण के सम्बन्ध में यह एक निश्चित सिद्धाना है कि अधिकांश व्यक्तियों की बुद्धि औसत होती है बहुत कम लोग प्रतिभा सम्पन्न होते हैं और बहुत कम व्यक्ति मन्द बुद्धि होते हैं।

3. बुद्धि की वृद्धि (Growth of Intelligence )-  'बुद्धि परीक्षाओं' से स्पष्ट हुआ है कि जैसे बच्चे की आयु बढ़ती है, वैसे उसकी बुद्धि भी बढ़ती है। परन्तु प्रश्न उठता है कि बुद्धि में वृद्धि कब समाप्त हो जाती है। मानसिक वृद्धि की आयु प्रत्येक व्यक्ति की अलग-अलग होती है। परन्तु अधिकांश व्यक्तियों में 16 या 18 वर्ष की आयु में वृद्धि अपनी चरम सीमा तक पहुंच जाती है। इसके पश्चात बुद्धि की लाम्बिक वृद्धि (Vertical growth) रुक जाती है, परन्तु क्षैतिज वृद्धि (Horizontal growth)। ज्ञान एवं कौशल प्राप्त करना व्यक्ति के समूचे जीवन में जारी रहता है। 4. बुद्धि एवं लैंगिक विभिन्नतायें (Intelligence and Sex Differences) - मर्दों और औरतों में एक-दूसरे से कम या अधिक बुद्धि होती है इस बात का परीक्षण करने के लिये अध्ययन किये गये हैं। कई हालातों में दोनों में कोई विशेष अन्तर नहीं देखा गया है। अतः यह विचार उचित प्रतीत होता है कि लैंगिक विभिन्नता बौद्धिक विभिन्नता का कारण नहीं होती।

5. बुद्धि तथा जातीय अथवा सांस्कृतिक विभिन्नतायें (Intelligence and racial or cultureal differences) – क्या किसी विशेष जाति या सांस्कृतिक समूह में दूसरों की अपेक्षा अधिक बुद्धि होती है। कई अनुसन्धान-कर्त्ताओं के द्वारा इस सिद्धान्त पर प्रश्न सूचक चिन्ह लगाया जा रहा है कि गोरी जाति के लोगों में हब्शियों में अधिक बुद्धि होती है। अब यह तथ्य स्थापित हो चुका है 'बुद्धि' किसी विशिष्ट जाति का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है। सभी जातियों में अच्छी बुद्धि वाले व्यक्ति भी होते हैं और मन्द-बुद्धि वाले भी।

बुद्धि के बारे में फैली भ्रान्तियाँ (Mis conception about Intelligence)

बुद्धि की प्रकृति और अवधारणा को लेकर बहुत सी भ्रान्तियाँ फैली हुई हैं। उनके निवारण हेतु यहां हम संक्षेप में यह स्पष्ट कर रहे हैं कि बुद्धि क्या नहीं है अर्थात बुद्धि को किन अर्थों में या प्रयोजन हेतु ग्रहण नहीं किया जाना चाहिये।

1. ज्ञान बुद्धि' नहीं यद्यपि ज्ञान प्राप्ति अधिकांश रूप से 'बुद्धि' पर ही निर्भर करती है।

2. स्मृति 'बुद्धि' नहीं हो सकती, हो सकता है कि अत्यन्त बुद्धिमान व्यक्ति की स्मरण शक्ति मन्द हो। इसके विपरीत एक मन्द बुद्धि व्यक्ति की स्मरण शक्ति तेज भी हो सकती है।

3. बुद्धि असामान्य व्यवहार, पिछड़ेपन तथा अपराध वृत्ति के विरुद्ध गारंटी का काम नहीं करती। परन्तु उपलब्धि, समायोजन (Adjustment) तथा चरित्र निर्माण में 'बुद्धि' का बहुत हाथ रहता है।

बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

ऊपर हमने बुद्धि के बारे में जो कुछ भी चर्चा की है उसकी सहायता से हम इस बात को समझ सकते हैं कि बुद्धि किस प्रकार काम करती है। किस प्रकार का व्यवहार व्यक्ति को बुद्धिमान या बुद्धिहीन बनाता है। परन्तु इससे इस बात की व्याख्या नहीं होती कि बुद्धि का ढांचा क्या है अर्थात् बुद्धि में कौन से तत्त्व सम्मिलित हैं। मनोविज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत किए गए बुद्धि सम्बन्धी सिद्धान्तों द्वारा इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया गया है। नीचे हम कुछ सिद्धान्तों का वर्णन करेंगे

1. एक कारक सिद्धान्त (Unitary or Monarchic Theory)- इस सिद्धान्त के अनुसार 'बुद्धि' में केवल एक प्रतिभात्मक क्षमता (Intellectual competency) सम्मिलित होती है जो व्यक्ति की सभी क्रियाओं में विद्यमान होती है। जिस व्यक्ति में शक्ति होती है वह पूर्व की ओर भी वैसे चलता है जैसे पश्चिम की और इसी प्रकार यदि व्यक्ति में 'बुद्धि' का भंडार है तो वह उसे जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रयुक्त कर सकता है और सभी क्षेत्रों में एक जैसी सफलता प्राप्त कर सकता है। परन्तु जीवन की वास्तविक स्थितियों में इस सिद्धान्त द्वारा प्रस्तुत धारणा ठीक नहीं बैठती। हम देखते हैं कि गणित में योग्य विद्यार्थी गम्भीर रुचि एवं परिश्रम के बावजूद भी नागरिक शास्त्र में योग्य नहीं बन पाता। विज्ञान के प्रयोगों को सफलतापूर्वक करने वाला विद्यार्थी, उसी योग्यता के साथ भाषा नहीं सीख पाता। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बुद्धि में कोई एक अकेला तत्त्व नहीं होता। अतः एक कारक सिद्धान्त मान्य नहीं है।

2. बहु- कारक सिद्धान्त (Multifactor theory or Anarchic theory)- इस सिद्धान्त के मुख्य समर्थक थार्नडाइक (Thorndike) थे। जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है, इस सिद्धान्त के अनुसार 'बुद्धि' कई तत्वों का समूह होती है और प्रत्येक तत्त्व में कोई सूक्ष्म योग्यता निहित होती है। अतः सामान्य बुद्धि नाम की कोई चीज नहीं होती बल्कि 'बुद्धि' में कई स्वतन्त्र, विशिष्ट योग्यताएं निहित रहती हैं जो विभिन्न कार्यों को सम्पादित करती हैं। इस प्रकार एक कारक एवं बहु-कारक सिद्धान्त अतिवादी सिद्धान्त हैं। जिस प्रकार यह निश्चित नहीं है कि बुद्धि की अच्छी मात्रा द्वारा जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त हो सकती है, उसी प्रकार यह भी निश्चित नहीं कि विशिष्ट योग्यताओं से मनुष्य विशिष्ट क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है और शेष क्षेत्रों में पूर्ण रूप से असफल रहता है। गार्डनर मरफी (Gardner Murphy) के विचारानुसार, 'एक क्षेत्र की प्रतिभा का दूसरे क्षेत्र की प्रतिभा (Brightness) के साथ एक निश्चित सकारात्मक सम्बन्ध होता है ।" ("There is a certain positive relationship between brightness in one field and brightness in another and so on. " - 1968, p. 358) इससे हम आसानी के साथ इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि सभी कार्यों में एक उभय-निष्ठ तत्त्व (Common Element) अवश्य होना चाहिए। यह सिद्धान्त इस निष्कर्ष को पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करने में असफल है और इसी के परिणामस्वरूप स्पीयरमैन (Spearman) कृत द्वि-कारक सिद्धान्त का जन्म हुआ।

3. स्पीयरमैन कृत द्वि-कारक सिद्धान्त (Spearman's Two Factor Theory)- इस सिद्धान्त के समर्थक 'स्पीयरमैन थे। उनके अनुसार प्रत्येक प्रकार की क्रिया में एक सामान्य तत्व 'G' (General) होता है जो सभी बौद्धिक क्रियाओं में विद्यमान रहता है और एक विशिष्ट तत्त्व 's' (Specific) होता है जो सभी क्रियाओं में विद्यमान नहीं रहता। इस प्रकार 'सामान्य बुद्धि' नाम की कोई चीन अवश्य है जो सभी क्रियाओं में विद्यमान रहती है। और इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट योग्यताएं होती हैं जिनके द्वारा मनुष्य विशिष्ट समस्याओं का सामना करता है। उदाहरणस्वरूप किसी व्यक्ति की 'हिन्दी' की योग्यता में कुछ तो उसकी 'सामान्य बुद्धि' होती है और कुछ भाषा सम्बन्धी 'विशिष्ट योग्यता' होती है अर्थात् G + 3, या गणित में उसकी योग्यता का कारण होगा G+32 1 इस प्रकार कई विशिष्ट योग्यताएं हो सकती हैं। 'G' तत्त्व न्यूनाधिक रूप से सभी विशिष्ट क्रियाओं में विद्यमान रहता है।स्पीयरमैन कृत इस द्वि-कारक सिद्धान्त की विभिन्न दृष्टिकोणों से आलोचना हुई है।

1. स्पीयरमैन (Spearman) के कथनानुसार 'बुद्धि' को प्रकट करने वाले दो तत्व होते हैं, परन्तु जैसा कि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है, इसमें दो नहीं बल्कि कई तत्त्व होते हैं।

2. स्पीयरमैन के अनुसार प्रत्येक कार्य में कुछ विशिष्ट योग्यता का होना आवश्यक है। परन्तु यह धारणा उचित नहीं जान पड़ती क्योंकि इसका यह अर्थ हो जाता है कि विभिन्न कार्यों में एक 'सामान्य तत्त्व' के अतरिक्ति और कुछ भी सामान्य नहीं होता और नर्सिंग कम्पाऊंडर तथा डाक्टर के व्यवसाय को एक ग्रुप में नहीं रखा जा सकता। वास्तव में 51, 52, 53, 94 के तत्त्व एक-दूसरे से अलग नहीं होते। यह एक दूसरे की सीमा को पार करके कई 'सामान्य तत्वों' को जन्म देते हैं। एक दूसरे की सीमा को पार करके 'ग्रुप' के निर्माण से सम्बन्धित विचारधारा ने 'ग्रुप तत्त्व सिद्धान्त' को जन्म दिया।

4. ग्रुप-तत्त्व सिद्धान्त (Group Factor Theory) - जो सभी तत्त्व प्रतिभात्मक योग्यताओं में तो सामान्य नहीं होते परन्तु कई क्रियाओं में सामान्य होते हैं उन्हें 'ग्रुप-तत्त्व' की संज्ञा दी गई है। इस सिद्धान्त के समर्थकों में थर्स्टन (Thurstone) का नाम प्रमुख है। प्रारम्भिक मानसिक योग्यताओं का परीक्षण करते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि कुछ मानसिक क्रियाओं में एक प्रारम्भिक तत्त्व सामान्य रूप से विद्यमान होता है जो उन क्रियाओं को मनोवैज्ञानिक एवं क्रियात्मक एकता प्रदान करता है और उन्हें अन्य मानसिक क्रियाओं से अलग करता है। मानसिक क्रियाओं के कई ग्रुप होते हैं। उनमें अपना एक प्रारम्भिक तत्त्व होता है। थर्स्टन (Thurstone) तथा उनके साथियों ने ऐसे नौ तत्त्वों का उल्लेख किया है। वे इस प्रकार हैं

(a) मौखिक तत्त्व (Verbal factor )- इसका सम्बन्ध शब्दों तथा विचारों के साथ है।

(b) स्थान-सम्बन्धी तत्त्व (Spatial factor ) — इसका सम्बन्ध व्यक्ति के किसी स्थान विशेष (Space) में किसी चीज के परिणाम आदि के बारे में है।

(c) अंक सम्बन्धी तत्त्व (Numerical factor)- अंकों से सम्बन्धित हिसाब किताब को शीघ्र एवं शुद्ध रूप से करना

(d) स्मृति तत्त्व (Memory factor ) — जल्दी से याद करने की योग्यता।

(e) शाब्दिक प्रवाह सम्बन्धी तत्त्व (Word fluency factor)— तेजी के साथ पृथक् शब्दों पर सोचने की योग्यता ।

(f) निगमन तर्क तत्त्व (Inductive reasoning factor ) — इसका सम्बन्ध चिन्तन की निगमन प्रणाली से है।

(g) आगमन - तर्क तत्त्व (Deductive reasoning factor ) - यह चिन्तन की आगमन प्रक्रिया से सम्बन्धित है।

(h) प्रत्यक्षीकरण सम्बन्धी तत्त्व (Perceptual factor )- इसका सम्बन्ध प्रत्यक्षीकरण (Perception) से है।

(i) समस्या समाधान सम्बन्धी योग्यता तत्त्व (Problem solving ability factor )— समस्याओं को हल करने की योग्यता से इसका सम्बन्ध है।

'ग्रुप तत्त्व' सिद्धान्त की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह 'सामान्य तत्त्व' की धारणा का खण्डन -करती है। शीघ्र ही थर्स्टन को अपनी इस त्रुटि का अनुभव हो गया और उन्होंने 'ग्रुप-तत्त्वों' के अतिरिक्त एक 'सामान्य तत्त्व' को भी ढूंढ निकाला।

5. गिलफोर्ड का बुद्धि सम्बन्धी सिद्धान्त और बुद्धि प्रतिमान (Guilford, Theory involving a model of Intellect)

जे. पी. गिलफोर्ड और उसके सहयोगियों ने बुद्धि परीक्षण से सम्बन्धित कई परीक्षणों पर कारक विश्लेषण (Factor analysis) तकनीक का प्रयोग करते हुये मानव बुद्धि के विभिन्न तत्त्वों या कारकों को प्रकाश में लाने वाला प्रतिमान (Model of Intellect) विकसित किया है। उन्होंने अपने अध्ययन प्रयासों के द्वारा यह प्रतिपादित करने की चेष्टा की है कि हमारी किसी भी मानसिक प्रक्रिया अथवा बौद्धिक कार्य को तीन आधारभूत आयामों (basic dimension)- संक्रिया (operation), सूचना सामग्री या विषय वस्तु (contents) तथा उत्पाद (products) में बांटा जा सकता है। संक्रिया से हमारा तात्पर्य हमारी उस मानसिक चेष्टा, तत्परता और कार्यशीलता से होता है जिसकी मदद से हम किसी भी सूचना सामग्री या विषय वस्तु को अपने चिन्तन तथा मनन का विषय बनाते है या दूसरे शब्दों में इसमें चिन्तन तथा मनन का प्रयोग करते हुये अपनी बुद्धि को काम में लाने का प्रयास कहा जा सकता है। हम जिस रूप में चिन्तन या मनन करते हैं अथवा चिन्तन और मनन के लिये जिस प्रकार की विषय वस्तु या सूचना सामग्री की सहायता लेते हैं उसे बुद्धि को प्रयोग में लाने का दूसरा आधारभूत आयाम विषय वस्तु (Contents) कहा जा सकता है तथा बौद्धिक संक्रिया के द्वारा सूचना सामग्री या विषय वस्तु को लेकर जिस प्रकार का बौद्धिक प्रक्रिया की जाती है उसके परिणामस्वरूप जो कुछ भी हमें प्राप्त होता है उसे उत्पाद (Products) का नाम दिया जाता है। इन तीनों आधारभूत आयामों-संक्रिया, विषय वस्तु तथा उत्पाद को भी उनके अपने विशिष्ट तत्त्वों या कारकों में विभाजित किया जा सकता है। । गिलफर्ड ने अपने बुद्धि प्रतिमान में संक्रिया को उसके 5 विशिष्ट तत्वों, विषय वस्तु को 5 तथा उत्पाद 6 विशिष्ट तत्त्वों में बांटने का प्रयास किया है और फिर इन विशिष्ट तत्त्वों या कारकों (Specific finctor) की अन्तः क्रिया के माध्यम से बुद्धि में 5 x 5 × 6 = 150 तत्त्वों या कारकों की उपस्थिति का संकेत दिया है। उपरोक्त प्रतिमान के माध्यम से गिलफोर्ड ने यह बताने की चेष्टा की है कि मानव बुद्धि को अलग अलग प्रकार की 150 मानसिक योग्यताओं का समूह कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में उसने बुद्धि में 150 विभिन्न तत्त्वों या कारकों की उपस्थिति की बात कही है और इन तत्त्वों तथा कारकों को 5 प्रकार की संक्रियाओं (Operations), 5 प्रकार की विषय वस्तु या सूचना सामग्री (Contents) तथा 6 प्रकार के उत्पाद (Products) की अंतः क्रिया का प्रतिफल बताया है। बुद्धि में निहित उपरोक्त तीन प्रकार के आधारभूत आयामों और उनके खंडीय विभाजक तत्त्वों की निम्न रूप में व्याख्या की जा सकती है।

1. विषय वस्तु या सूचना सामग्री (Contents) का पंच खंडीय विभाजन आकृति जन्य-दृश्यात्मक (Figural visual)- आकृति जन्य वे सभी विशेषतायें जिनको देखकर अनुभव किया जा सकता है जैसे दिखाई देने वाली वस्तु का रंग, रूप, आकार तथा अन्य दृश्यात्मक आकृति जन्य विशेषतायें । आकृति जन्य-श्रवणात्मक (Figural-auditory) आकृतिजन्य वे सभी विशेषतायें जिनके बारे में सुनकर जानकारी प्राप्त की जाती है जैसे किसी भी उद्दीपन (Stimulus) की वाणी, ध्वनि और उसके द्वारा कही गई बात की प्रकृति एवं विशेषतायें। संकेतात्मक (Symbolic)— संख्या (numbers), अक्षर ( letters), प्रतीक (symbols) तथा चित्रीय उद्दीपकों को इस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है।

भाषागत (Semantic ) - शब्दों के अर्थ तथा विचारों के रूप में ग्रहण की जाने वाली सूचना सामग्री व्यवहारगत (Behavioural) व्यक्तियों के द्वारा अपने कार्यों एवं अभिव्यक्ति के द्वारा प्रदत्त सूचना सामग्री।

2. संक्रियाओं (Operations) का पंच खंडीय विभाजन संज्ञान (Cognition)- पहिचान तथा खोज सम्बन्धी प्रक्रियायें। स्मृति (Memory) सूचना सामग्री का चिन्तन मनन की विषय वस्तु को स्मृति में संजोना (Retention) तथा पुनः स्मरण (Recall) करना। बहुविध उत्पादन (Divergent production )- किसी भी समस्या का एक मात्र सर्वोत्तम हल या समाधान प्रस्तुत करना। मूल्यांकन (Evaluation)— चिन्तन मनन की जाने वाली विषय वस्तु या प्रदत सूचना के बारे में निर्णय लेना जैसे कि वह अच्छी है या बुरी, लाभदायक है या हानिकारक इत्यादि ।

3. उत्पाद (Product) का छः खंडीय विभाजन इकाईयाँ (Units)— छोटी-छोटी परन्तु सार्थक विषय वस्तु सम्बन्धी सूचनायें जैसे कोई एक संख्या, अक्षर या शब्द वर्ग या श्रेणी (Classes) किसी समान विशेषता के आधार पर संप्रत्यय के रूप में विकसित इकाईयों का समूह जैसे पुरुष स्त्री जनसमूह सम्बन्ध (Relations)—- संप्रत्ययों को जोड़ने वाला संपर्क सूत्र प्रणाली (Systems) - सम्बन्धों का संगठित अथवा वर्गीकृत रूप । 

रूपान्तरण (Transformation) - विषय सामग्री के स्वरूप में परिवर्तन लाना या उसकी पुनः संरचना। अनुप्रयोग (Implications ) — विभिन्न प्रकार की सूचना सामग्री के आधार पर निष्कर्ष निकालना अथवा उसे प्रयोग में लाना।

गिलफोर्ड ने अपने उपरोक्त त्रि-आयामी प्रतिमान (Three dimensional model) के माध्यम से यह प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया है कि किसी भी मानसिक या बौद्धिक कार्य को करने में प्रत्येक आयाम से सम्बन्धित कम से कम एक तत्त्व या कारक (और इस तरह कम से कम तीन कारकों) की अवश्य ही जरूरत पड़ती है। इस बात को एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयत्न किया जाए। माना हमें कलेन्डर की सहायता से यह मालूम करना है किसी अमुक तिथि को सप्ताह का कौन सा दिन होगा। इस बौद्धिक कार्य को करने के लिये विषय वस्तु (Contents) के रूप में हमें भाषागत (Semantic) बौद्धिक तत्त्व के रूप में कैलेन्डर में छपे हुये शब्दों और संख्याओं को पढ़ना और उनका अर्थ समझना अवश्य ही आना चाहिये इसके पश्चात् संक्रिया (operations) हेतु हम स्मृति (Memory) संज्ञा (Cognition) तथा एक विधि चिन्तन (Convergent Thinking) आदि प्रक्रियाओं की सहायता ले सकते है। परिणामस्वरूप हमें उत्पाद (Products) के रूप में अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। यहां उत्पाद के रूप में हमें सम्बन्ध (Relations) नामक बौद्धिक तत्त्व से जुड़ना होगा। महीने की अमुक तारीख को सप्ताह का कौन सा दिन होगा दूसरा ज्ञान सम्बन्ध नामक बौद्धिक तत्त्व से हो अपेक्षित है। इस प्रकार का ज्ञान होने के पश्चात् ही हम इसकी सहायता से आगे पीछे के तारीखों में सप्ताह के कौन से दिन होंगे यह ज्ञात करने में यानि दूसरे शब्दों में सीखे हुये ज्ञान का रूपान्तरण (Transformation) करने में आसानी होगी।

कारक बुद्धि सिद्धान्तों के बारे में निष्कर्ष (Conclusions about Factors Theories of Intelligence)

उपरोक्त वर्णित सभी बुद्धि सिद्धान्त अपने-अपने ढंग से बुद्धि की संरचना में विभिन्न कारकों या तत्त्वों का योगदान स्वीकार करते हैं। सभी अपनी-अपनी दृष्टि से तर्क प्रस्तुत करते हैं और अपने को सही माने जाने की बात कहते हैं। कुछ सीमा तक उनकी बातों में वजन भी है। एक तत्त्व के सिद्धान्त (One factor or unitory Theory) की इस बात में काफी सच्चाई है कि बुद्धि जहां तक उसके व्यावहारात्मक उपयोग का प्रश्न है जिन्दगी में अपने पूरे समझे समूचे रूप में (सभी तरह की मानसिक योग्यताओं के संयुक्त रूप में) ही प्रयोग में लायी जाती है। परन्तु उसका यह संपूर्ण रूप क्या है, इसके अन्तर्गत जितनी प्रकार की मानसिक योग्यतायें तथा कारक शामिल हैं इस बात की तह तक पहुंचने हेतु हमें विभिन्न बुद्धि सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में कुछ गहराई तक जाना होगा। सभी के विचारों का समन्वय करके ही हम बुद्धि की संरचना तथा उसके स्वरूप का उचित अवलोकन तथा मूल्यांकन कर सकते हैं। समन्वय के इस दृष्टिकोण को लेकर चला जाये तो हमें किसी भी बौद्धिक कार्य या मानसिक प्रक्रिया के निम्न प्रकार के कारक या तत्त्वों की उपस्थिति दृष्टिगोचर हो सकती है।

(a) स्पीयरमैन (Spearman) द्वारा प्रतिपादित 'सामान्य तत्त्व' (g)- जो सभी कार्यों में 'सामान्य' रूप से विद्यमान होता है।

(b) ग्रुप तत्त्व 'G' - जो विशिष्ट ग्रुप के कार्यों में विद्यमान होता है।

(c) विशिष्ट तत्त्व 's', 'S2' आदि- जो अत्यन्त विशिष्ट कार्यों में विद्यमान होते हैं। उपरोक्त तत्त्व या कारकों को संगठन की दृष्टि से या तो वर्नन द्वारा सुझाये गये क्रम में या गिलफर्ड द्वारा सुझाये गये बुद्धि प्रतिभा के रूप में आयोजित किया जा सकता है। 

बुद्धि को मापना (Measurement of Intelligence)

'बुद्धि परीक्षा' से ही हम व्यक्ति की बुद्धि के सम्बन्ध में जान सकते हैं। बुद्धि को मापने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने कई 'बुद्धि परीक्षाओं' का निर्माण किया है।

बुद्धि परीक्षाओं का वर्गीकरण (Classification of Intelligence Tests)

1. जहां तक प्रशासनिक दृष्टिकोण का सम्बन्ध है, बुद्धि को दो व्यापक वर्गों में बांटा जा सकता है -

(a) व्यक्तिगत परीक्षाएं (Individual Tests)- इसमें केवल एक व्यक्ति की परीक्षा ली जाती है।

(b) सामूहिक परीक्षाएं (Group Tests) इनमें व्यक्तियों के समूह की परीक्षा ली जाती है।

2. 'परीक्षा के रूप' के आधार पर बुद्धि परीक्षा को दो वर्गों में बांटा जाता है

(a) शाब्दिक या भाषात्मक परीक्षाएं (Verbal or language tests)

(b) अशाब्दिक या भाषा रहित परीक्षाएं (Non verbal or Non language tests)

(a) भाषात्मक परीक्षाएं (Verbal or language tests)- इन परीक्षाओं में भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें 'शब्दों' (मौखिक या लिखित रूप में) के द्वारा आदेश दिये जाते हैं तथा व्यक्तियों को जवाब देने के लिए भाषा के प्रयोग की आज्ञा होती है।

(b) अशाब्दिक या भाषा-रहित परीक्षाएं (Non verbal or Non-language tests)—इन परीक्षाओं में ऐसी क्रियाएं होती हैं जिन में भाषा का प्रयोग आवश्यक नहीं होता। आदेश भले ही भाषा द्वारा दिए जाएं परन्तु 'परीक्षा सामग्री' तथा 'अनुक्रिया' (Response) में भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता। ‘क्रिया-परीक्षाएं' (Performance Tests) ही भाषा रहित परीक्षाएं होती हैं। इन परीक्षाओं की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित होती हैं

(a) इस परीक्षा की 'परीक्षा सामग्री' ठोस वस्तुओं पर आधारित होती है।

(b) इन परीक्षाओं में जो कुछ व्यक्ति को करना होता है उसे परीक्षक द्वारा संकेतों या इशारों से समझाया जा सकता है।

(c) व्यक्ति की अनुक्रिया उसके कार्य पर निर्भर होती है।

(d) प्राय: ये परीक्षाएं व्यक्तिगत परीक्षाएं होती हैं। जैसा कि डा० पिल्लै (Dr. Pillai) ने कहा है, “ इन्हें ग्रुप-परीक्षा के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि इनमें परीक्षार्थी का व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण करना होता है और उसे आवश्यक निर्देशन देना होता है।" "These cannot be used as group tests, chiefly because it is necessary to supervise the individual testee at work and given him necessary direction. "

व्यक्तिगत भाषात्मक परीक्षाएं (Individual Verbal Tents)

जो परीक्षाएं व्यक्तिगत रूप से ली जाएं और जिन में भाषा का प्रयोग होता है- वे इसी वर्ग में आती हैं, जैसे स्टेनफोर्ड बिने परीक्षा (Stanford Binet Test)। वास्तव में फ्रेंच मनोवैज्ञानिक एल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) 'बुद्धि परीक्षाओं' का जन्मदाता है। उसने थीओडोर साईमन (Theodore Simon ) के साथ 1905 में एक परीक्षा तैयार की। इसमें विभिन्न स्तरों के लिए उत्तरोत्तर कठिन होती हुई तीस पूर्तियां हैं जैसे तीन वर्ष की अवस्था (At age 3) नाक, कान और मुंह की ओर इशारा करना। 7 वर्ष की अवस्था (At Age 7)- अपूर्ण चित्र में क्या कमी है ? सन् 1916 में स्टेनफ़ोर्ड (Stanford) विश्वविद्यालय के टरमैन (Terman) ने इसका संशोधन किया और सन् 1937 में मैरिल (Merril) के सहयोग से इसका नया रूप तैयार किया गया। इसे और 1900 में तैयार किये गये परीक्षण को स्टेनफोर्ड बिने स्केल (Stanford Binet Scale) कहा जाता है। इस स्केल की परीक्षाएं 2 से 22 वर्ष तक के व्यक्तियों के लिए बनाई गई हैं। इसमें सरल परीक्षा से जटिल परीक्षा तक क्रमानुसार विभिन्न परीक्षाएं सम्मिलित हैं। इन परीक्षाओं को उपयुक्त संशोधन कर विभिन्न देशों में अपनाया गया है। भारत में सबसे प्रथम प्रयास सन् 1922 में डा० सी० एच० रईस (Dr. C. H. Rice) द्वारा किया गया जब उन्होंने 'हिन्दुस्तानी बिने-क्रिया-स्केल' (Hindustani Binet Performance Scale) को प्रकाशित कराया। उत्तर प्रदेश की राज्य-मनो-विज्ञान-शाला ने भी स्टेनफोर्ड बिने परीक्षा का हिन्दी रूपान्तर तैयार किया। इस परीक्षा को कई वय वर्गों में बांटा गया है और इसे 'बुद्धि परीक्षा अनुशीलन' की संज्ञा दी गई है। भारत में प्रयुक्त होने वाली अन्य भाषात्मक व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षा 'सामान्य बुद्धि परीक्षा' के नाम से प्रसिद्ध है। यह परीक्षा विलियम स्टीफनसन (William Stephenson) की परीक्षा का भारतीय रूपान्तर है। इसे राजकीय शिक्षा एवं व्यावसायिक निर्देशन ब्यूरो, ग्वालियर (State Bureau of Educational and Vocational Guidance, Gwalior) द्वारा तैयार किया गया है। प्रौढ़ों के लिये भारतीय परिस्थितियों में प्रयुक्त होने वाला पहला व्यक्तिगत भाषात्मक बुद्धि परीक्षण जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की श्रीमती प्रभा रामा लिंगास्वामी ने तैयार किया है।

व्यक्तिगत क्रिया-परीक्षाएं (Individual Performance Tests)

इन परीक्षाओं में परीक्षा सामग्री तथा उन के उत्तर (Responses) क्रियाओं में होते हैं और इनमें भाषा का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता। इन में गत्यात्मक क्रियाओं (Motor-activities) से सम्बन्धित पूर्तियां सम्मिलित की जाती हैं। सामान्य रूप से निम्नलिखित क्रियाएं इन परीक्षाओं में देखने को मिलती हैं-

1. ब्लॉक बिल्डिंग या घनों द्वारा निर्माण (Block building or cube construction)— इसमें परीक्षच को ब्लाकों द्वारा बिल्डिंग डिज़ाईन बनाने को कहा जाता है। मैरिल पामर ब्लाक बिल्डिंग (Merril Palmer Block Building), कोह कृत ब्लाक- डिज़ाइन परीक्षा (Koh's Block Design Test), ऐलेक्जेण्डर कृत पास-एलांग परीक्षा (Alexander's Pass-along Test) आदि इस प्रकार की परीक्षा के कुछ उदाहरण हैं।

(b) छेदों में ब्लाक लगाना (To fit the blocks in the holes ) इस प्रकार की परीक्षा में परीक्षार्थी को कुछ ब्लाक तथा छेदों से युक्त एक बोर्ड दिया जाता है। परीक्षार्थी को इन विभिन्न छेदों से सम्बन्धित ब्लाक लगाने को कहा जाता है। सैगुइन फार्म-बोर्ड परीक्षा (Seguin Form Board Test) तथा गोडार्ड फ़ार्म बोर्ड परीक्षा (Goddard Form Board Test) इस परीक्षा के प्रसिद्ध उदाहरण हैं।

(c) भूल-भुल्लैयां को खोजना (Tracing a maze) परीक्षा सामग्री में क्रमानुसार कठिन होती हुई भूल भूल्लैयां सम्मिलित होती हैं। ये भूल-भुल्लैयां अलग-अलग कागशों पर छपी होती हैं। परीक्षार्थी को प्रवेश से अन्त तक इनका रास्ता ढूंढना होता है। 'पोर्टीयस भूल-भुल्लैयां-परीक्षा' (Porteus Maze Test) इसका उदाहरण है।

(d) चित्र पूर्णता (Picture Completion ) इसमें परीक्षार्थी को प्रत्येक चित्र के कुछ कटे हुये भाग दे कर उस चित्र को पूरा करने के लिये कहा जाता है। 'हीली चित्र पूर्णता परीक्षा' (The Healy Pictorial Completion Test) इस प्रकार की परीक्षा का अच्छा उदाहरण है। उपर्युक्त परीक्षाओं से स्पष्ट है कि इन परीक्षाओं में किसी न किसी प्रकार की क्रियाओं पर बल दिया गया है। व्यक्तिगत मानसिक योग्यता की पूर्ण बौद्धिक परीक्षा करने के लिये एक या दो परीक्षाओं की बजाये क्रियात्मक परीक्षाओं के समूह (group) को जिसे स्केल या बैटरी (Battery) में संगठित किया जाता है, प्रयोग किया जाता है। इन में से कुछ प्रसिद्ध स्केल निम्नलिखित हैं

(a) पिंटर-पेटरसन स्केल (Pinter Patterson Scale)

(b) आर्थर-पुआइंट स्केल (Arthur Point Scale)

(c) क्रियात्मक परीक्षाओं की एलेक्जेण्डर बैटरी (Alexander's Battery of Performance) हमारे देश में इस प्रकार के स्केल या बैटरियों का निर्माण के प्रयत्न किये गये हैं। डॉ. चन्द्रमोहन भाटिया द्वारा इस दिशा में किया गया प्रयास काफी उल्लेखनीय है। उन्होंने भाटिया परफोर्मेन्स टैस्ट बैटरी के नाम से एक बुद्धि परीक्षण तैयार किया है, जिसमें निम्न पाँच उप-परीक्षण हैं।

(a) कोह ब्लाक डिजाइन टैस्ट (Koh's Block Design Test)

(b) अलेक्जेन्डर पास एलांग टैस्ट (Allexander Pass along Test)

(c) पैटर्न ड्राइंग टैस्ट (Pattern Drawing Test)

(d) अंकों से सम्बन्धित तात्कालिक समृति परीक्षा (Immediate memory test for digits)

(e) चित्र निर्माण-परीक्षा (Picture construction)

इस बैट्री की अन्तिम तीन परीक्षाएं श्री भाटिया ने स्वयं विकसित की हैं जबकि पहली तीन उधार ली गई हैं।

वैशलर बुद्धि परीक्षण (Wechsler Bellevue Intelligence Scale)

यह परीक्षा दो रूप में मिलती है। पहला रूप 'WISC' बच्चों के लिए प्रयोग किया जाता है और दूसरा रूप 'WAIS' प्रौढ़ों के लिए प्रयोग किया जाता है। यह व्यक्तिगत परीक्षा है जिसमें भाषात्मक (Verbal) एवं क्रियात्मक (Performance) दोनों स्केलों की विशेषताएं विद्यमान हैं। इस स्केल में 12 उप-परीक्षाएं हैं। 6 उप-परीक्षाएं भाषात्मक-स्केल का निर्माण करती हैं और 6 क्रियात्मक-स्केल का निर्माण करती हैं। क्रमानुसार ये परीक्षाएं निम्नलिखित हैं। 

भाषात्मक स्केल (Verbal Scale)

1. सामान्य ज्ञान की परीक्षा (Test of General Information)

2. सामान्य बोध गम्यता (Comprehension) की परीक्षा की परीक्षा

3. गणितीय तर्क (Arithmetic Resoning)

4. अंक- विस्तार (Digit span) की परीक्षा

5. समानताओं (Similarities) में भेद कर सकने की परीक्षा

6. शब्द - ज्ञान की परीक्षा (Test of Vocabulary)

क्रियात्मक स्केल (Performance Scale)

7. अंक प्रतीक (Digit symbol) परीक्षा

8. चित्र- पूर्णता (Picture completion) परीक्षा

9. ब्लाक- डिज़ाईन (Block Design) परीक्षा

10. चित्र-व्यवस्था (Picture arrangement) परीक्षा

11. वस्तु संकलन (Object assembly) परीक्षा।

व्यक्ति की बुद्धि को मापने के लिए इन उप-परीक्षाओं में प्राप्त अंकों को जोड़ा जाता है।

सामूहिक भाषात्मक बुद्धि परीक्षाएं (The Group Verbal Intelligence Tests) ये परीक्षाएं एक साथ कुछ व्यक्तियों के समूह से ली जाती हैं और इसमें भाषा का प्रयोग आवश्यक होता है। इन में से कुछ पुरानी परीक्षाएं निम्नलिखित हैं

(a) सैनिक एल्फा परीक्षाएं (Army Alpha Tests) - ये प्रथम विश्व युद्ध में निर्मित की गई थीं।

(b) सैनिक सामान्य वर्गीकरण (Army General Classification ) - यह दूसरे विश्व युद्ध में निर्मित किया गया था। आजकल बहुत सी सामूहिक भाषात्मक परीक्षाएं प्रचलित हैं। भारत में भी इस प्रकार की परीक्षाओं के निर्माण के प्रयास किये जा रहे हैं। इन में से लोकप्रिय परीक्षाएं निम्नलिखित हैं

1. प्रो उदयशंकर द्वारा रचित सी० आई० ई० (C.LE.) सामूहिक भाषात्मक बुद्धि परीक्षा (हिन्दी)

2. डा० एस० जलोटा द्वारा निर्मित सामूहिक मानसिक योग्यता परीक्षा (हिन्दी)

3. मनोविज्ञान- ब्यूरो इलाहाबाद द्वारा निर्मित सामूहिक बुद्धि परीक्षा (हिन्दी)

4. प्रयोग महता कृत 'सामूहिक बुद्धि परीक्षा'- जिस का प्रकाशन 'मानसायन' देहली द्वारा हुआ है।

5. पंजाब विश्वविद्यालय के डा०पी०एस० हुण्डल द्वारा निर्मित सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षा (पंजाबी में)

6. केरल विश्वविद्यालय के डा० पी० गोपाला पिल्लै द्वारा निर्मित सामूहिक भाषात्मक बुद्धि परीक्षा (मलबालम में)

7. श्री पी० एल० श्रीमाली द्वारा निर्मित सामूहिक भाषात्मक बुद्धि परीक्षा (मलयालम में)

8. बिहार में स्थित शिक्षा एवं व्यवसायिक निर्देश ब्यूरो के श्री एस० एम० मोहसिन कृत सामूहिक बुद्धि की जांच (हिन्दी) 

भाषा रहित सामूहिक बुद्धि परीक्षाएं (The Group Non-Verbal Intelligence Tests)

इन परीक्षाओं में भाषा प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती और इन के द्वारा एक साथ कई व्यक्तियों की बुद्धियों का परीक्षण किया जाता है। व्यक्तिगत क्रियात्मक परीक्षाओं तथा भाषा रहित सामूहिक परीक्षाओं में भाषा रहित प्रकृति के संदर्भ मैं निम्न प्रकार का अन्तर होता है। क्रियात्मक परीक्षाओं में परीक्षार्थियों द्वारा ठोस वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। उनके उत्तर क्रियात्मक होते हैं। उनमें पेंसिल और कागत के प्रयोग की आवश्यकता भी बहुत कम पड़ती है । परन्तु भाषा रहित सामूहिक परीक्षा में परीक्षार्थियों को एक पुस्तिका दी जाती है और इस में कागज पेंसिल के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ती है। परन्तु इन परीक्षाओं में 'शब्दों' या 'अंकों को सम्मिलित नहीं किया जाता। इन में चित्र, रेखा गणित सम्बन्धी चित्र आदि सम्मिलित होते हैं जो उस पुस्तिका में प्रकाशित होते हैं। परीक्षार्थी को कुछ रिक्त स्थान भरने होते हैं। कुछ साफ़ तस्वीरें बनानी होती हैं। समानताओं एवं विषमताओं को दिखाना होता है। वह कागज और पेंसिल का प्रयोग तो अवश्य करता है परन्तु शब्दों और अंकों का प्रयोग नहीं करता। इस प्रकार की परीक्षाओं के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

1. सेना- बीटा परीक्षा (Army Beta Test) - यह परीक्षा प्रथम विश्व युद्ध में उन सैनिकों की बुद्धि परीक्षा के लिये विकसित की गई थी जो अनपढ़ थे और अंग्रेजी भाषा नहीं जानते थे।

2. शिकागो भाषा रहित परीक्षा (Chicago Non-Verbal Test)- यह परीक्षा 12 और 13 वर्ष के बच्चों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।

3. रैविन कृत प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज टैस्ट (Raven's Progressive Matrices Test) - यह परीक्षा यू० के० में विकसित हुई। यह अत्यन्त लोकप्रिय भाषा रहित सामूहिक बुद्धि परीक्षा है। इसे परीक्षार्थी की निम्नलिखित योग्यताओं की परीक्षा के लिए विकसित किया गया है

(i) रेखा गणित के चित्रों या डिजाइनों में परस्पर सम्बन्ध देखना।

(ii) डिजाइन के ढांचे को समझना ताकि उसे पूरा करने के लिए उसके उचित भाग को चुना जा सके।

सी० आई० ई० भाषा-रहित सामूहिक बुद्धि परीक्षा (C.I.E. Non-Verbal Group Test of Intelligence)

J. W. Jenkins ने इसका मौलिक रूप से निर्माण किया और हिन्दी माध्यम के स्कूलों के लिए C.IE. द्वारा इसका प्रकाशन हुआ। इस परीक्षा में निम्नलिखित प्रकार की पूर्तियां सम्मिलित हैं। नीचे प्रत्येक पंक्ति में बाईं ओर तीन आकार दिए हैं जो एक जैसे हैं। दाई ओर 5 आकार दिये गये हैं। इनमें से एक ऐसा आकार ढूंढो जो बाईं ओर दिये गये तीन आकारों में सबसे अधिक मिलता-जुलता हो। उसके नीचे रेखा खींच दो।

व्यक्तिगत बनाम सामूहिक परीक्षाएं (Individual V/s Group Tests)

व्यक्तिगत परीक्षाएं

1. इनसे एक समय में एक ही व्यक्ति का परीक्षण होता है। इसलिए ये समय, श्रम तथा आर्थिक दृष्टिकोण से अधिक खर्चीली है।

2. व्यक्तिगत परीक्षाओं का विशेष लाभ यह है कि इनके द्वारा बच्चों तथा प्रौढ़ों दोनों का परीक्षण हो सकता है।

3. इन परीक्षाओं में परीक्षक का परीक्षार्थी के साथ निकट सम्पर्क रहता है। अतः वह उसके व्यक्तिगत एवं भावात्मक तत्त्वों का भी ज्ञान प्राप्त कर सकता है जो परीक्षार्थी के बुद्धि परीक्षण में विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

4. व्यक्तिगत परीक्षाएं सामूहिक परीक्षाओं के समान वस्तुपरक (Objective) एवं स्वीकृत (Standardized) नहीं होतीं। इनकी व्यवस्था, अंकन तथा व्याख्या के लिए विशिष्ट योग्यता प्राप्त प्रशिक्षित परीक्षकों की आवश्यकता होती है।

सामूहिक परीक्षाएं

1. इन परीक्षाओं का दोहरा लाभ है, इनके द्वारा एक समय में व्यक्तियों के समूह का परीक्षण किया जा सकता है और साथ ही अलग-अलग व्यक्तियों का भी परीक्षण किया जा सकता है। उससे समय, श्रम तथा धन की बहुत बचत होती है।

2. इनके द्वारा 9 या दस वर्ष के नीचे के बच्चों का परीक्षण नहीं किया जा सकता।

3. इनमें परीक्षक का परीक्षार्थी के साथ वांछित सम्बन्ध स्थापित नहीं होता। वह परीक्षार्थी के बुरे स्वास्थ्य, मानसिक अवस्था, सामाजिक पृष्ठभूमि आदि की ओर ध्यान नहीं दे सकता। परीक्षक को केवल अंकात्मक स्कोर ही प्राप्त होता है उसे व्यक्तिगत परीक्षाओं के समान परीक्षार्थी के सम्बन्ध में अतिरिक्त सूचना प्राप्त नहीं होती।

4. सामूहिक परीक्षाएं अपेक्षाकृत अधिक वस्तुपरक एवं स्वीकृत (Standardised) होती हैं। इन के साथ जिन अंक पुस्तकाओं तथा निर्देश की व्यवस्था रहती है उनके कारण इनका प्रबन्धन, अंकन एवं व्याख्या आसान हो जाती है और इनके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं होती।

भाषात्मक बनाम भाषा-रहित तथा क्रियात्मक परीक्षाएं (Verbal Tests V/S Non-Verbal and Performance Tests)

बुद्धि-परीक्षण के लिए भाषात्मक परीक्षाओं के होते हुए भाषारहित एवं क्रियात्मक परीक्षाओं के निर्माण की क्या आवश्यकता थी? जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि भाषात्मक परीक्षाओं में भाषा सम्बन्धी योग्यता की आवश्यकता रहती थी। उनमें शब्दों और अंकों का प्रयोग होता था। परिणामस्वरूप बढ़िया भाषा- कुशलता रखने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत लाभ में रहते थे, परन्तु भाषा सम्बन्धी कमजोरी रखने वाले व्यक्तियों को हानि उठानी पड़ती थी। इस बुराई को दूर करने के लिए भाषा रहित एवं क्रिया परीक्षाओं का प्रयोग किया गया। इन परीक्षाओं के लाभ संक्षिप्त रूप से निम्नलिखित हैं

1. क्रियात्मक परीक्षाएं उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी हैं जिन्हें निम्नलिखित कारण से भाषा सम्बन्धी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

(a) हो सकता है कि वे कोई विदेशी भाषा बोलते हों।

(b) हो सकता है कि वह निरक्षर हों और पढ़ना लिखना न जानते हों।

(c) हो सकता है कि छोटे बच्चे होने के कारण अच्छी तरह लिख-पढ़ नहीं सकते हों।

(d) हो सकता है कि वे मानसिक रूप से पिछड़े व्यक्ति हों और भाषा समझने तथा भाषा में उत्तर देने में उन्हें कठिनाई होती हो।

(e) हो सकता है कि समाज के निम्न वर्गों से सम्बन्धित हों और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्राप्त न हुए हों।

2. भाषात्मक परीक्षा किसी एक प्रदेश के साथ सम्बन्धित होती है। इसलिए उसकी सामग्री में प्रदेश विशेष की बातें होती हैं, परन्तु भाषा रहित एवं क्रियात्मक परीक्षाएं भाषा और संस्कृति के प्रभाव से मुक्त होती हैं और उन्हें किसी भी देश या प्रदेश में प्रयुक्त किया जा सकता है। दुकानदारी (Shop Work), मशीनी-काम आदि में अभिरुचि का निश्चय करने के लिए क्रिया- परीक्षाएं बहुत उपयोगी सिद्ध होती हैं।

भाषा रहित तथा क्रिया परीक्षाओं की सीमाएं (Limitations of Non-Verbal and Performance Tests)

1. ये परीक्षाएं स्कूल में शिक्षा कार्य की प्रगति का पूर्व ज्ञान नहीं करा सकतीं क्योंकि स्कूल कार्य मुख्य रूप से भाषात्मक होता है।

2. क्रिया- परीक्षाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में काफी खर्च उठाना पड़ता है।

3. इनमें भाषात्मक परीक्षाओं की अपेक्षा अवसर-सफलता (Chance Success) की अधिक सम्भावना होती है। अतः ये इतनी विश्वसनीय नहीं होतीं ।

4. इन परीक्षाओं में अमूर्त धारणाओं से सम्बन्धित योग्यताओं का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं रहती। अतः ये परीक्षाएं औसत से ऊपर बुद्धि वाले व्यक्तियों में अन्तर स्पष्ट नहीं करतीं। अतः इन परीक्षाओं में गुण और अवगुण दोनों हैं। वास्तव में बौद्धिक योग्यता के परीक्षण का काम एक व्यापक काम है और इसे पूर्ण रूप से भाषात्मक या क्रियात्मक परीक्षाओं पर नहीं छोड़ जा सकता। व्यक्ति की बौद्धिक योग्यता का विश्वसनीय स्तर जानने के लिए अग्रलिखित बातों को दिमाग में रखना चाहिए

(a) क्रियात्मक एवं भाषात्मक परीक्षाओं को एक दूसरे का पूरक समझना चाहिए।

(b) बुद्धि परीक्षण के लिए कोई एक परीक्षा पर्याप्त नहीं।

(c) विभिन्न कोणों से परीक्षण होना चाहिए।

'बुद्धि परीक्षा' से बुद्धि का परीक्षण कैसे किया जाए ? (How to test the intelligence with an intelligence test?)

अब तक हम ने सैद्धान्तिक रूप से बुद्धि को मापने की समस्या पर विचार किया है। इस पर व्यावहारिक रूप से विचार करना अधिक समाचीन होगा अर्थात् 'परीक्षण' कैसे किया जाए ? नीचे हम एक सामूहिक भाषात्मक परीक्षा की सहायता से इसकी प्रक्रिया बताएंगे।

हम डा० एस० जलोटा (Dr. S. Jalota) कृत 'सामूहिक सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षा' (Group Test of General Intelligence) को लेते हैं।

कुछ परीक्षा के बारे में (Something about the test)

यह 'सामूहिक भाषात्मक मानसिक योग्यता परीक्षा' है। यह हिन्दी जानने वाले स्कूल के विद्यार्थियों के लिए तैयार की गई है। परीक्षा सामग्री चार भागों में बंटी हुई है

1. परीक्षा की पुस्तिका

2. उत्तर देने के लिए उत्तर- कापियाँ

3. उत्तरों का मूल्यांकन करने के लिए आंकन- तालिका (Scoring Key)।

4. परीक्षा निर्देशिका ।

परीक्षा पुस्तिका में पूर्तियों को हल करने का निर्देश होता है। कुल 100 प्रश्न (प्रत्येक पृष्ठ पर 20 प्रश्न) होते हैं जिन का उत्तर देने के लिए भाषा-योग्यता वांछित होती है। कुछ प्रश्नों के नमूने इस प्रकार है

1. तट का अर्थ- (i) गंगा, (ii) किनारा, (iii) बांध, (iv) पर।

2. 19, 17, 15, 13, 11, 9 इन संख्याओं के क्रम के अनुसार आगे की एक संख्या उत्तर-पत्र पर लिखो।

इन तमाम प्रश्नों के उत्तर बीस मिनट में देने होते हैं। प्रक्रिया (Procedure) परीक्षार्थियों के ग्रुप को आराम से बिठा दिया जाएगा। उन्हें उत्तर-पत्र तथा परीक्षा पुस्तिकाएं दी जाएंगी।

(a) उन्हें आदेश दिया जाएगा कि परीक्षा पुस्तिका में वे कुछ न लिखें।

(b) अपने उत्तर-पत्र में वे अपना संक्षिप्त परिचय लिखेंगे- जैसे नाम, कक्षा, स्कूल, पिता का नाम, जन्म तिथि, आयु।

(c) उन्हें परीक्षा पुस्तिका के आरम्भ में दिए गए निर्देशों को पढ़ने के लिए कहा जाएगा। अध्यापक भी उन्हें समझाने का प्रयास करेगा।

(d) अब उन्हें प्रश्नों का उत्तर लिखने को कहा जाएगा। उनकी अच्छी तरह निगरानी की जाएगी। परीक्षार्थियों को सभी प्रश्नों के उत्तर 20 मिनटों में देने होंगे।

(e) उत्तर-पत्रों को एकत्रित करने के पश्चात्, आंकन कार्य आकन तालिका की सहायता से किया जाएगा।

(f) परीक्षा निर्देशिका में दी गई तालिका से परीक्षार्थियों द्वारा प्राप्त अंकों को उनकी मानसिक आयु में परिवर्तित किया जाएगा।

(g) वास्तविक आयु, परीक्षार्थियों द्वारा दिये गये उनके व्यक्तिगत परिचय से नोट की जाएगी।

(h) अन्त में उनकी मानसिक आयु को वास्तविक आयु से भाग करके और भागफल को 100 से गुणा करके बुद्धि-लब्धि प्राप्त की जाएगी।

क्या बुद्धि को कपड़े के टुकड़े या शरीर के तापक्रम की तरह मापा जा सकता है ? (Can Intelligence be measured like a piece of cloth or temperature of the body?)

बुद्धि की माप जो एक कपड़े के टुकड़े की तरह या शरीर के तापक्रम की तरह नहीं की जा सकती। ऐसा क्यों नहीं हो सकता, इस विषय में निम्न बातें कही जा सकती हैं

1. बुद्धि की प्रकृति जिसे मापना चाहते हैं (Nature of the Intelligence we want to measure)— पहली बात तो यह है कि बुद्धि जिसे हम मापना चाहते हैं, कपड़े के या किसी लकड़ी के टुकड़े की तरह की वस्तु नहीं है। इसका कोई मूर्त रूप नहीं। यह अपने आप में एक विचार (Idea) या प्रत्यय (Concept) मात्र ही है। अतः इसकी माप-जोख इस रूप में नहीं हो सकती।

2. बुद्धि को मापने सम्बन्धी पैमाने तथा मापक की प्रकृति (Nature of the instrument or scale with which we want to measure intelligence)

(a) कपड़े को मापने के लिए हम फीते तथा मीटर आदि का प्रयोग करते हैं जिनसे सैंटीमीटर तथा इंच आदि की इकाईयों में माप-जोख की जाती है। इसी प्रकार शरीर का तापक्रम मापने के लिए सेंटीग्रेड, फ़ारेनहाइट आदि इकाईयों से युक्त थर्मामीटरों का प्रयोग किया जाता है। इन सभी मापकों में जिन पैमानों का प्रयोग किया जाता है उनमें पूर्ण स्वतन्त्र (Absolute) इकाईयां होती हैं तथा इनकी माप काफी अधिक विश्वसनीय (Reliable), यथार्थ (valid) तथा वस्तुनिष्ठ (objective) होती है। इसके विपरीत बुद्धि को मापने के लिए न तो इस प्रकार की इकाईयों से युक्त पैमाने (Scales) ही काम में लाये जा सकते हैं और न उपकरण (Instruments) ही।

(b) बुद्धि का बुद्धि परीक्षणों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है। कुछ चुने हुए प्रश्नों के उत्तर लेकर अथवा क्रियाओं को करा कर यह देखा जाता है कि किसी व्यक्ति विशेष द्वारा दिये गये उत्तर अथवा किया हुआ कार्य समूह के अधिकांश व्यक्तियों द्वारा दिये गये उत्तरों अथवा किये गये कार्य की अपेक्षा अधिक अच्छा है या कम। इस प्रकार से जैसा कि ग्रिफिथ का विचार है, " बुद्धि की माप समूह विशेष द्वारा किये गये कार्य अथवा दिये गये उत्तरों को आधार बनाकर की जाती है।"

अतः इसमें यथार्थता, विश्वसनीयता और वस्तुनिष्ठता की मात्रा मीटर या थर्मामीटर द्वारा दी जाने वाली माप की तरह नहीं हो सकती। यह हर अवस्था में एक सापेक्ष (Relative) माप (Measurement) को प्रकट करती है, शुद्ध एवं स्वतन्त्र माप (Absolute Measurement) को नहीं।

(c) एक और बात मापन यंत्रों को लेकर यहां बताना उचित होगा कि जहां फ़ीते, मीटर और धर्मामीटर को जहां, जैसे भी जिस समय जरूरत पड़े आसानी से किसी भी साधारण व्यक्ति द्वारा प्रयोग करके शुद्ध माप-जोख की सकती है, वहां बुद्धि परीक्षणों को इतनी अधिक आसानी से सब के द्वारा सब जगह प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इनके प्रयोग में लाने के लिए प्रयोगकर्त्ता को उचित प्रशिक्षण और अनुभव जुटाना आवश्यक होता है। परीक्षणों को लेने तथा परिणामों से उचित निष्कर्ष निकालने में भी पर्याप्त दक्षता और योग्यता की आवश्यकता होती है। अतः बुद्धि का मापन उतना सहज और सुगम नहीं जितना किसी कपड़े के टुकड़े या शरीर के ताप का होता है।

मानसिक आयु तथा बुद्धि-लब्धि की धारणा (Concept of Mental Age and Intelligence Quotient)

हम ने ऊपर 'मानसिक आयु' तथा 'बुद्धि लब्धि' का उल्लेख किया है। इनके सम्बन्ध में कुछ जानना उपयोगी होगा।

मानसिक आयु (Mental Age)— सब से पहले बिने (Binet) ने 'मानसिक आयु का प्रयोग किया था। निम्नलिखित उदाहरणों से इस धारणा को समझा जा सकता है। मान लो एक परीक्षा में 100 प्रश्न हैं (जैसे जलोटा कृत परीक्षा में) और परीक्षार्थियों की अधिकांश संख्या, जिनकी आयु 13 वर्ष 6 महीने है, 48 प्रश्नों का ठीक उत्तर देने में सफल हो जाती है, तो कोई भी व्यक्ति (जिसकी वास्तविक आयु चाहे कितनी ही क्यों न हो) जो 48 प्रश्नों के ठीक उत्तर दे सकता है, उसकी मानसिक आयु 13 वर्ष 6 महीने होगी।

बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient अर्थात् I.Q.)

जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम स्टर्न (William Stern) ने सब से पहले इसका प्रयोग किया था और बाद में टरमैन (Terman) ने भी इसका प्रयोग किया। स्टर्न (Stern) ने अनुभव किया कि यदि 6 वर्ष की आयु का बच्चा 8 वर्ष की आयु के बच्चे के समान कार्य करता है तो वह अपनी आयु के औसत बच्चों से 8/6 अर्थात् 133 दर्जे अधिक बुद्धिमान होगा अर्थात् व्यक्ति के मानसिक विकास को मापने के लिए उसने मानसिक आयु / वास्तविक आयु अनुपात बनाया और उसे बुद्धि-लब्धि (I.Q.) की संज्ञा प्रदान की। दशमलव - अनुपात को दूर करने के लिए उसने अनुपात को 100 से गुणा करने का नियम बनाया और इस प्रकार 1.Q. निकालने का निम्न सूत्र बन गया -

बुद्धि लब्धि (IQ) = मानसिक आयु ÷ वास्तविक आयु x 100 अर्थात् M.A. ÷ C.A. x100

बुद्धि लब्धि का वर्गीकरण (Classification of I.Q.)

स्टर्न द्वारा दिये गये बुद्धि लब्धि के सूत्र का प्रयोग करते हुए टरमैन ने अपने बुद्धि परीक्षणों के द्वारा बहुत से व्यक्तियों तथा बालकों की (विभिन्न आयु वर्गों के) बुद्धि परीक्षायें लीं। उसने पाया कि बुद्धि की दृष्टि से व्यक्तियों तथा बालकों में बहुत अधिक भिन्नतायें पाई जाती हैं। अगर इन भिन्नताओं का ध्यान से अवलोकन किया जाए तो व्यक्तियों को उनकी बुद्धि लब्धि के हिसाब से विभन्न बुद्धि समूहों में विभाजित किया जा सकता है जिसमें उन्हें औसत से कम या अधिक बुद्धिमान बताया जा सके। इस प्रकार का एक वर्गीकरण जिससे बुद्धि की दृष्टि से वैयक्तिक भेदों को समझने में मदद मिल सकती है, टरमन के अनुसार निम्न प्रकार का हो सकता है।

बुद्धि लब्धि (I.Q.)

140 और उससे ऊपर - प्रतिभाशाली (Gifted or Genious)

120-140 - बहुत अधिक या प्रखर बुद्धि वाला (very superior)

110-120 - अतिसामान्य या औसत से अधिक बुद्धि वाला (Superior)

90-110 - औसत या सामान्य बुद्धि वाला (Normal or Average)

75-90 - सीमा पर और अल्प बुद्धि( border lined and dull)

50-75 - मूर्ख (Morons)

25-50 - मूढ़ (Imbecile)

25 से कम - महामूर्ख या जड़ बुद्धि (Idiot)

बुद्धि लब्धि का एक रहना अर्थात् उसकी निरन्तरता (The Constancy of I.Q.) जैसा कि पहले कहा जा चुका है 'बुद्धि' 16 या 18 वर्ष की आयु तक बढ़ती है, परन्तु अधिकांश व्यक्तियों की बुद्धि-लब्धि एक ही रहती है। बुद्धि-लब्धि से हमें किसी व्यक्ति की बौद्धिक योग्यता का ज्ञान प्राप्त होता है अर्थात् अपनी आयु के व्यक्तियों की तुलना में उसकी बुद्धि का अनुपात मालूम होता है। यह ऐसा माप है जो हमें किसी व्यक्ति की बौद्धिक सम्भावनाओं का ज्ञान कराता है जो न्यूनाधिक रूप से स्थाई होता है।

यह ठीक है कि व्यक्ति की बुद्धि बढ़ती है परन्तु इसके साथ-साथ उसके सम-आयु वाले व्यक्तियों को आयु भी बढ़ती है। इसलिए 'बुद्धि लब्धि' (LQ.) जो किसी व्यक्ति की अपेक्षाकृत प्रतिभा सम्पन्नता या बौद्धिक योग्यता का परिचय देती है, व्यावहारिक रूप से एक ही रहती है। साधारण स्थितियों में दुर्घटना या बीमार को छोड़ कर व्यक्ति की बुद्धि-लब्धि समस्त जीवन एक ही रहती है या कम से कम उतने वर्षों तक एक ही रहती है जितने वर्षों के लिए मापन स्केल बनाया गया हो। बुद्धि लब्धि के इस तत्व को मनोवैज्ञानिक 'बुद्धि लब्धि की निरन्तरता' (The constancy of I. Q.) कहते हैं।

बुद्धि परीक्षाओं के लाभ तथा कमियां (Uses and Limitations of Intelligence Tests)

A. बुद्धि परीक्षाओं के लाभ (Uses of Intelligence Tests)

1. चुनाव के लिए (For the purpose of solection )

विभिन्न क्रियाओं के लिए उचित उम्मीदवारों का चुनाव करने के लिए बुद्धि परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है जैसे

(a) किसी विशिष्ट शिक्षण कोर्स में दाखिला 

(b) छात्रवृत्तियां निश्चित करना ।

(c) कोई विशिष्ट उत्तरदायित्व सौंपने के लिए उम्मीदवार चुनना ।

(d) विद्यालय की विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं के लिए उचित विद्यार्थी चुनना आदि।

2. वर्गीकरण के लिए (For the purpose of classification ) - बुद्धि परीक्षाएं अध्यापक को विद्यार्थियों के वर्गीकरण- तीव्र बुद्धि, मन्द बुद्धि, औसत आदि करने में सहायता देती हैं। यथासम्भव उनके विभिन्न वर्ग बना कर वह शिक्षण-प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बना सकता है।

3. उन्नति के लिए (For the purpose of promotion)

केवल शिक्षा क्षेत्र में ही नहीं बल्कि अन्य व्यावसायिक एवं सामाजिक स्थितियों में भी व्यक्तियों को उन्नति प्रदान करने के लिए बुद्धि परीक्षाएं उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।

4. व्यक्ति की क्षमता जानने के लिए (For knowing one's potentiality)- बुद्धि परीक्षाएँ व्यक्ति की क्षमताओं का ज्ञान कराने में सहायता देती हैं जिससे किसी विशिष्ट क्षेत्र में व्यक्ति की सफलता की भविष्यवाणी करना सम्भव हो सकता है। इस शक्ति के ज्ञान से अध्यापक को निम्नलिखित बातों में सहायता मिलती है

(a) मार्ग-दर्शन प्रदान करना (Giving Guidance) - अध्यापक या मार्ग-दर्शक विद्यार्थियों को विभिन्न व्यवसाय अपनाने के लिए मार्ग-दर्शन प्रदान कर सकता है।

(b) सीखने की प्रक्रिया में सहायक (Helps in learning process ) - इस ज्ञान की सहायता से अध्यापक सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को अच्छी प्रकार से आयोजित कर सकता है। क्रो एण्ड क्रो (Crow and Crow) के कथनानुसार, "बुद्धि परीक्षाओं के परिणामों से अध्यापक को यह जानने में सहायता मिलती है कि बच्चा क्या सीख सकता है, कितनी जल्दी सीख सकता है; कौन सी शिक्षण विधियां अपनानी चाहिएं और कौन सी शिक्षण-सामग्री का प्रयोग किया जाए ताकि बच्चा अपनी शक्तियों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर सके ।" "Results of intelligence tests can help a teacher to discover what the child can learn, as well as the teaching methods that should be applied and the learning content that should be utilized to guide the learner to use his mental potentialities to their utmost."

(c) आकांक्षा का उचित स्तर स्थापित करना (To establish a proper level of aspiration)— सारे एण्ड टेलफ़ोर्ड (Sawrey and Telford) के कथनानुसार, "बुद्धि परीक्षा की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपयोगिता यह है कि इससे व्यक्ति की आकांक्षा का स्तर उसकी वास्तविक बौद्धिक योग्य के अनुसार स्थापित किया जा सकता है।"

5. निदानात्मक उद्देश्य के लिए (For Diagnostic Purpose)- बुद्धि परीक्षाओं की सहायता से प्रतिभा सम्पन्न, प्रतिभाहीन तथा मानसिक रूप से अवरुद्ध बच्चों को खोजा जा सकता है। इसके अतिरिक्त इनकी सहायता से बच्चों के समस्यापूर्ण व्यवहार के कारण भी खोजे जा सकते हैं और उनका सम्भव उपचार किया जा सकता है।

6. अनुसंधान कार्य में सहायता (Helps in Research work) - मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अनुसंधान कार्यों में बुद्धि परीक्षाएं अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। उदाहरणस्वरूप बुद्धि और विकास की प्रक्रिया में वंश-परम्परा तथा वातावरण की क्या भूमिका है, इस पर अनुसंधान करने वालों ने बुद्धि परीक्षाओं का प्रयोग किया है।

B. बुद्धि परीक्षाओं की कमियाँ (Limitations of Intelligence Tests)

बुद्धि परीक्षाओं की सीमाओं तथा त्रुटियों के कारण कई समस्याएं पैदा हुई हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं

1. बुद्धि परीक्षाएं और विद्यार्थी (Intelligence tests and students) बुद्धि परीक्षाएं कई विद्यार्थियों को 'बढ़िया' और कई विद्यार्थियों को 'घटिया' बता देती है। इससे कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। जिन बच्चों की बुद्धि थोड़ी सी मन्द होती है, वे बुद्धि परीक्षाओं के परिणामों से इस बात को जान लेते हैं कि वे जल्दी नहीं सीख सकते। इस से उन में निराशा पैदा हो जाती है। अनजाने में हीन भावना का विकास होने लगता है और उनका भविष्य नष्ट हो जाता है। इसके विपरीत जिन विद्यार्थियों की बुद्धि लब्धि कुछ ज्यादा होती है, उन्हें अपने आप पर जरूरत से ज्यादा विश्वास हो जाता है। इस अति विश्वास के कारण वे अपने काम में ध्यान नहीं देते। इसके अतिरिक्त अपनी श्रेष्ठता के प्रति सचेत होने के कारण वे दुर्व्यवहार भी करने लगते हैं और स्वयं समस्या बन जाते हैं।

2. बुद्धि - परीक्षाएं और अध्यापक (Intelligence tests and teachers)— किसी बच्चे की बुद्धि-लब्धि का ज्ञान कर लेने के पश्चात् अध्यापक उसकी शक्तियों एवं योग्यताओं के सम्बन्ध में एक स्थाई धारणा बना लेते हैं। वे उसे उसकी बुद्धि-लब्धि द्वारा ही देखते हैं। इस धारणा के प्रभाव में वे विद्यार्थियों को हतोत्साहित करते रहते हैं या उनमें अति-विश्वास पैदा करते रहते हैं जो हानिकारक सिद्ध होता है। विद्यार्थियों की बुद्धि-लब्धि जान लेने के पश्चात् अध्यापकों के अपने काम में भी ढील आनी शुरू हो जाती है। 'घटिया बुद्धि वाले' विद्यार्थियों की असफलता का उत्तरदायित्व वे उनकी बुद्धि-लब्धि पर डाल देते हैं और अच्छी 'बुद्धि वाले' विद्यार्थियों के सम्बन्ध में उनकी यह धारणा बन जाती है कि वे तो अपने आप ही काम कर लेंगे। अतः बुद्धि-लब्धि का ज्ञान अध्यापकों में अकर्मण्यता की प्रवृत्ति विकसित कर सकता है।

3. पृथकता एवं संघर्ष की उत्पत्ति करता है (Gives birth to segregation and conflicts)--- बुद्धि परीक्षा के परिणामों से 'पृथकता' की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है। अमेरिका में यह 'कार्लो और 'गोरों' में संघर्ष का कारण बने हैं। वास्तव में इन परीक्षाओं की भ्रामक धारणा तथा वंश परम्परा के तत्त्वों के साथ इन को सम्बन्धित करने के कारण ही यह संघर्ष उत्पन्न हुआ है। इसके विपरीत हम निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं

(a) कोई भी बुद्धि परीक्षा— चाहे वह कितनी ही परिष्कृत क्यों न हो अभ्यास एवं शिक्षण परिणामों तथा सांस्कृतिक, सामाजिक, जातीय एवं वातावरण सम्बन्धी तत्त्वों से स्वतन्त्र नहीं होती। अतः वह व्यक्ति की बुनियादी मानसिक योग्यताओं का मापन नहीं कर सकती। इसलिए इन्हीं परीक्षाओं के आधार पर किसी व्यक्ति को प्रवेश न देना या उसे काम का अवसर प्रदान न करना, अन्याय होगा। इस दिशा में नवीन अनुसन्धानों से स्पष्ट हुआ है कि वातावरण सम्बन्धी स्वस्थ स्थितियों जैसे स्वच्छता, पारिवारिक वातावरण, माता-पिता की शिक्षा, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, आर्थिक-सामाजिक स्थितियां, शिक्षा के अच्छे अवसर आदि का बुद्धि परीक्षाओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

(b) वास्तव में बुद्धि परीक्षाएं बच्चे की सम्पूर्ण योग्यताओं एवं शक्तियों के बारे में ज्ञान प्रदान नहीं करतीं। इन परीक्षाओं द्वारा केवल ज्ञानात्मक योग्यताओं का ही पता चलता है। ये रुचियों, दृष्टिकोणों तथा लक्ष्यों आदि महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को स्पर्श नहीं करतीं। अतः किसी व्यक्ति की भावी सफलताओं के बारे में ये विश्वसनीय रूप से कुछ नहीं बता सकतीं।

(c) क्रो एण्ड क्रो (Crow and Crow) के अनुसार, "इन परीक्षाओं के परिणाम परीक्षण-स्थितियों में निहित कई तत्त्वों, बच्चों के पूर्व अनुभवों तथा अन्य कई अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं। अतः किसी शिक्षा-प्रशासक या अध्यापक को केवल इन परीक्षा-परिणामों को ही किसी व्यक्ति की सीखने सम्बन्धी योग्यता के स्तर को मापने का साधन नहीं मानना चाहिए।" "The results of all such tests may be affected by many factors inherent in the testing conditions-the child's background of experience and other favourable or unfavourable elements. Hence no administrator, teacher or student of education should accept test results as the only measure of an individual's degree of ability to learn." इस प्रकार बुद्धि परीक्षाओं के परिणामों पर ज्यादा बल नहीं देना चाहिए। किसी व्यक्ति के सीखने की योग्यता को मापने के लिए केवल इन्हीं परिणामों को ही आधार नहीं मानना चाहिए। इसके कारण विद्यार्थियों को समझने में भूलें नहीं होनी चाहिएं। अतः इनके परिणामों की बुद्धिमता से व्याख्या करके इनका प्रयोग करना चाहिए। इनको साधन समझना चाहिए, साध्य नहीं।

Reference -Uma Mangal and SK Mangal 


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