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Information Processing Theories of Learning(अधिगम के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त)
Dec 09, 2022   Ritu Suhag

अधिगम के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त(Information Processing Theories of Learning)

अधिगम के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त अधिगम के ऐसे सिद्धान्तों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें अधिगम की प्रक्रिया को स्पष्ट करने हेतू सूचना प्रक्रियाकरण (Information Processing) का उपयोग किया जाता है। इस दृष्टि से इन सिद्धात्तों के बारे में भली भांति जानने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम सूचना प्रक्रियाकरण के अर्थ एवं अवधारणा से अच्छी तरह परिचित हो जाएं।सूचना-प्रक्रियाकरण क्या है ? (What is Imformation Processing ?)सरल शब्दों में सूचना प्रक्रियाकरण से तात्पर्य एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें प्राप्त सूचना का भलीभांति विश्लेषण और मंथन करके उससे कुछ निश्चित सूचना, ज्ञान या अनुभव प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। जांयसी और वील के शब्दों में "सूचना प्रक्रियाकरण पद व्यक्तियों द्वारा सम्पन्न ऐसी सभी गतिविधियों के लिए प्रयुक्त होता है जिनमें वे अपने वातावरण में उपस्थित उद्वीपनों से वांछित सूचनाएं या आंकड़े प्राप्त करते हैं,उनका व्यवस्थापन करते हैं, समस्याओं से अवगत होते हैं,इनके समाधान हेतु अवधारणाओं और तरीकों की तलाश करते हैं तथा ऐसा करने में उपयुक्त शाब्दिक और अशाब्दिक संकेतों का प्रयोग करते हैं।'(Information processing refers to the ways people handle stimuli from the environment, organise data, sense problems, generate concepts and solutions to problems and employ verbal and non-verbal symbols - Joyce & Weil, 1972 P.9)इस प्रकार सूचना प्रक्रियाकरण के माध्यम से व्यक्ति विशेष किसी प्राप्त सूचना, आंकड़े या इन्द्रिय जनित अनुभवों का भलीभांति मंथन और विश्लेषण कर उसे आगे अपने प्रयोजन हेतु काम में लाने का प्रयत्न करता है। यही कारण है कि सूचना प्रक्रियाकरण उसे अपनी विभिन्न प्रकार की समस्याओं को हल करने हेतु नवीन अनुभव एवं समाधानों की उपलब्धि में तथा अपने व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने के कार्यों में अच्छी तरह सहायक होता है।

सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त(Imformation Processing Theories) -नए अनुभव ग्रहण करने, समस्याओं का हल ढूंढ़ने और अपने व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने हेतु व्यक्ति विशेष प्राप्त सूचनाओं का जिस ढंग से प्रक्रियाकरण करते हैं उसी आधार पर अधिगम के जिन महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को विकसित किया गया है उन्हें ही मनोविज्ञान में अधिगम के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्तों(Information Processing Theories) का नाम दिया गया है।इस प्रकार के सभी सूचना प्रक्रियाकरण अधिगम सिद्धान्तों के द्वारा जिस मुख्य प्रश्न का उत्तर देने का प्रयत्न किया जाता है वह यही होता है कि "जब कोई व्यक्ति विशेष किसी अधिगम परिस्थिति से गुजर रहा होता है तो उस समय संज्ञानात्मक रूप से (Cognitively)उसके मस्तिष्क में किस प्रकार की प्रक्रियाएं होती हैं।"फलस्वरूप इन सिद्धान्तों के द्वारा इस बात पर प्रकाश डाला जाता है कि मानव मस्तिष्क अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सूचना का कैसे आभास करता है,उसका किस प्रकार प्रक्रियाकरण करता है और उसे किस प्रकार उपयोग में लाता है।एक तरफ से देखा जाए तो हमारे मस्तिष्क द्वारा किए जाने वाले इस सूचना प्रक्रियाकरण की तुलना कम्प्यूटर की कार्यप्रणाली से की जा सकती है।कम्प्यूटर में सूचना प्रक्रियाकरण के लिए जिन तीन विभिन्न अवयवों एवं गतिविधियों अदा (Input),प्रक्रिया(Processing) एवं प्रदा (output) का प्रयोग किया जाता है वही बात मानव मस्तिष्क द्वारा सम्पन्न सूचना प्रक्रियाकरण के लिए भी उपयुक्त ठहरायी जा सकती है।मानव मस्तिष्क अपने परिवेश में उपस्थित उद्दीपकों के प्रति अनुक्रिया करता हुआ इन्द्रिय जनित अनुभवों को ग्रहण करता है।ऐसा करने में वह यह भलीभांति निर्णय लेता रहता है कि किन अनुभवों को वह आगे प्रक्रिया हेतु अदा (Input) के रूप में स्वीकार करे। इसके बाद वह इस सूचना का भलीभांति प्रक्रियाकरण (Processing) करने में कितना समर्थ रहेगा,यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्राप्त सूचना को वह उसकी जटिलता और प्रकृति के हिसाब से किस स्तर का समझता है।जिस रूप में भी सूचना व्यक्ति विशेष द्वारा अदा के रूप में ग्रहण की जाती है, प्रक्रिया के रूप में उसका प्रक्रियाकरण किया जाता है,उसी रूप में वह प्रक्रियाकृत सूचना अब आगे प्रदा (output) के रूप में उसके व्यवहार में परिवर्तन लाने या अनुभव की गई समस्या का समाधान करने में सहायक होती है।

सूचना प्रक्रियाकरण के ये सिद्धान्त मानव अधिगम प्रक्रिया को कैसे स्पष्ट करते हैं यह जानने के लिए अब आगे हम कुछ प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित अधिगम सिद्धातों की चर्चा करना चाहेंगे।एक बात जो इन सभी सिद्धान्तों में हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देगी वह यह है कि इस प्रकार के सभी अधिगम सिद्धातों के प्रतिपादक मनोवैज्ञानिक अधिगम की प्रक्रिया का अध्ययन स्मृति के अध्ययन के माध्यम से करना चाहते हैं।यही कारण है कि उनके द्वारा प्रतिपादित इन सभी सिद्धात्तों में स्मृति से सम्बन्धित विशेष शब्दावली जैसे-अस्थायी स्मृति(temporary Memory),अल्प कालीन स्मृति(Short Term memory),दीर्घकालीन स्मृति (Long Term Memory)प्रत्यास्मरण (recall),पुनरुद्धरण(Retrieval) इत्यादि का प्रयोग किया गया है।

आइये अब कुछ प्रमुख सिद्धात्तों का एक एक करके वर्णन किया जाए।

1.त्रिचरणीय सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त (Three Stage Information Processing(Theory ):-इस सिद्धान्त को प्रकाश में लाने का श्रेय प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अटकिन्सन तथा शिफरिन (Atkinson & Shiffrin – 1968, 1971) को जाता है। यह सिद्धान्त यह प्रतिपादित करता है कि हमारा अधिगम उस सूचना प्रकियाकरण का प्रतिफल है जिसे हमारे मस्तिष्क में निम्न तीन चरणों या स्तरों में सम्पन्न किया जाया है।

(1) इन्द्रियानुभूत रजिस्ट्री स्तर (Sensory registry Level) (ii) अल्पकालीन स्मृति स्तर (Short term Memory or STM Level)(iii) दीर्घकालीन स्मृति स्तर (Long term Memory or LTM Level) इन्द्रियानुभूत रजिस्ट्री स्तर ( Sensory registry Level)अधिगम अथवा स्मृति की प्रक्रिया की शुरुआत वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों के प्रति हमारी इन्द्रियों के द्वारा अन्तः क्रिया करने से होती है।इन्द्रिय जनित अनुभवों को प्राप्त सूचना के रूप में हमारी किसी एक इन्द्री या एक से अधिक इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार के रजिस्टर्ड या इन्दराज की गई इन्द्रियजनित अनुभूति या सूचना(Sensory information) अब स्नायु तन्त्र द्वारा हमारे मस्तिष्क में इसके उपयुक्त अर्थापन (interpretation) के लिये पहुंचती है। यह इन्द्रियानुभूत सूचना हमारे स्नायु तन्त्र (Nervous System) में बहुत ही कम समय यानी मात्र 3-5 सैकेन्ड तक केवल मात्र अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये तथा मस्तिष्क को अध्ययन के लिये या सूचना का प्रक्रियाकरण करने हेतु कुछ समय देने के लिये ही विद्यमान रहती है।इस दौरान या तो मस्तिष्क द्वारा इस सूचना के प्रक्रियाकरण का कार्य उसी समय संपादित कर उसके प्रति वांछित अनुक्रिया करने का आदेश दे दिया जाता है या फिर उसे आगे अल्पकालीन स्मृति में संजोने के लिये आगे भेज कर उसके प्रक्रियाकरण का कार्य फिलहाल टाल दिया जाता है।मस्तिष्क द्वारा इन्द्रियानभूत सूचना का प्रक्रियाकरण कर जो तात्कालिक कदम उठाये जाते है वे कुछ इस प्रकार के हो सकते हैं।(i) सूचना अनुपयोगी और महत्वहीन है,कोई ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।अतः इन्दराज (Sensory registry) को निरस्त (cancell) कर दिया जाये (ii)इस पर थोड़ा बहुत ध्यान देते हुये उसके प्रति वांछित अनुक्रिया की जाये।इस प्रकार की वांछित अनुक्रिया के रूप में इस चरण की सूचना प्रक्रियाकरण के उदाहरणार्थ हम कार चलाने सम्बंधी अपनी उन गतिविधियों को ले सकते हैं जब हम एक ओर तो दूसरों से बात करते रहते हैं तथा दूसरी ओर मार्ग की परिस्थितियों में जैसे जैसे बदलाव आता है इन सूचनाओं एवं अनुभूतियों को अपनी इन्द्रियों से ग्रहण करते हुये तथा प्राप्त सूचनाओं का प्रक्रियाकरण करते हुए अपनी कार चलाने की क्रिया को यथानुकूल दिशा और गति प्रदान करते रहते हैं।इस अवस्था में सूचना प्रक्रियाकरण के कार्य को इसी प्रथम चरण में समाप्त कर लिया जाता है इसे आगे अल्पकालीन स्मृति चरण के लिये नहीं छोड़ा जाता ।

अल्पकालीन स्मृति (Short term Memory ) स्तर

जिस सूचना का प्रक्रियाकरण प्रथम इन्द्रियानुभूत स्तर (Sensory level) पर नहीं होता उसे आगे अल्पकालीन स्मृति स्तर पर संपन्न करने के प्रयत्न किये जाते हैं।अल्पकालीन स्मृति में सूचना को संजोये रखने की अवधि सामान्यतया 20 सैकेन्ड तक जा सकती है। इस अवधि में व्यक्ति विशेष द्वारा आगे जैसी जरूर हो रिहर्सल तथा पुनरावृत्ति द्वारा उचित वृद्धि की गुजांइश रहती है।सूचना के प्रक्रियाकरण में इस प्रकार की स्मृति को ही सबसे अधिक काम में लाया जाता है अतः इसे काम करने वाली स्मृति (Working Memory) या सक्रिय स्मृति (Active Memory) भी कहा जाता है।इस प्रकार की स्मृति में संजोयी जाने वाली सूचना का मस्तिष्क द्वारा भलीभांति इस प्रकार प्रक्रियाकरण किया जाता है कि उसका अर्थ निकालकर तथा उचित बोध करके उसके प्रति वांछित अनुक्रिया करने के आदेश दिये जा सकें। सूचना प्रक्रियाकरण के इस स्तर पर सूचना का प्रक्रियाकरण करने हेतु जिन तीन प्रकार के तरीकों का इस्तेमाल व्यक्ति विशेष द्वारा किया जाता है वे निम्न हैं

(i) प्राप्त सूचना का चंक्स (Chunks) के रूप में इनकोडिंग करना (Encoding information (ii) प्राप्त सूचना को सुविधानुसार या उसकी प्रकृति अनुसार उचित भागों या उपभागों में बांट कर

प्रत्येक उपभाग में विभक्त सूचना को अलग अलग रूप में प्रक्रियाकरण करना। (iii) कौशलों के रुप में प्राप्त सूचनाओं का उस समय तक पर्याप्त अभ्यास करना जब तक वे स्वचालित (Automatic) न हो जायें।

दीर्घकालीन स्मृति (Long term Memory)स्तर

जिन सूचनाओं का प्रक्रियाकरण (Processing) अल्पकालीन स्मृति स्तर पर नहीं हो पाता उन्हें दीर्घकालीन स्मृति स्तर पर संपादित करने की चेष्टा की जाती हैं। दीर्घकालीन स्मृति अपने नाम के अनुरूप ही ऐसी स्मृति होती है जिसमें उपलब्ध सूचनाओं को बहुत ही लम्बे समय तक उनके अपने विशाल रूप में भलीभांति संजोये रखा जा सकता है।एक तरह से इस प्रकार की स्मृति का उपयोग इन्द्रिजनित अनुभवों एवं सूचनाओं का स्थायी भंडारण करने हेतु किया जाता है।दीर्घकालीन स्मृति में भलीभांति व्यवस्थित एवं भंडारित सूचना सामग्री का प्रक्रियाकरण अब हमारे मस्तिष्क द्वारा विविध प्रकार की तकनीकों का प्रयोग करके किया जाता रहता है। सूचना प्रक्रियाकरण के फलस्वरूप जो कुछ भी प्राप्त होता है वह कोडेड (Coded) रूप में ही होता है।सूचना प्रक्रियाकरण परिणामों को प्रयोग में लाने हेतु इन्हें फिर अल्पकालीन स्मृति में वापिस भेजना होता है ताकि वहां इनको अपेक्षित रूप से इनकोडिंग करके आवश्यक अनुक्रियायें करने के आदेश मस्तिष्क द्वारा प्राप्त हो सकें 

प्रक्रियाकरण स्तर सम्बंधी सिद्धान्त (Thory of Levels of Processing)

सूचना प्रक्रियाकरण के इस सिद्धान्त को प्रकाश में लाने का श्रेय प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक क्रेक एवं लोखार्ट (Kraik and Lokhart, 1972) को जाता है। यह सिद्धान्त मुख्य रूप से निम्न धारणाओं को लेकर अधिगम अर्जन की व्याख्या करने का प्रयत्न करता है।

1.स्मृति केवल एक ही प्रकार की होती है और इसे इन्द्रियानुभूत अल्पकालीन और दीर्घ कालीन स्मृति (Sensory; Short Term and Long Term Memory) में विभाजित करना ठीक नहीं है।

2. हमारी स्मरण रखने या सीखने की योग्यता इस बात पर निर्भर करती है कि हम प्राप्त सूचना का प्रक्रियाकरण कितनी गहनता से करते हैं।

3.सूचना के प्रक्रियाकरण की गहनता का यह स्तर बहुत कुछ सतही (Very shallow) स्तर पर भी हो सकता है और बहुत अधिक गहरा भी।

4.सूचना के प्रक्रियाकरण का यह स्तर जितना गहरा एवं गम्भीर होगा उतनी ही अच्छी तरह से कोई चीज़ सीखी जा सकेगी या याद रखी जा सकेगी। उदाहरण के लिए ऐसी सूचनाएं जो सशक्त दृश्य अनुभूतियों या पूर्वज्ञान के साथ बहुत अधिक साहचर्य के रूप में हमें उपलब्ध होती हैं उनका सम्बन्ध काफी गहरे स्तर पर किए जाने वाले प्रक्रियाकरण से ही होता है। इसी प्रकार ऐसी सूचनाएं जो हमारी रुचि या प्रयोजनों को अच्छी तरह से पूरा करने में हमारी मदद करती हैं उनका प्रक्रियाकरण भी दूसरी अन्य प्रकार की सूचनाओं की तुलना में अधिक गहराई से किया जाता है।

5. जिन बातों का हमारे लिए अधिक महत्त्व होता है ऐसी सार्थक चीजों पर हम निरर्थक या महत्त्वहीन चीजों की तुलना में अधिक ध्यान देते हैं और उनका प्रक्रियाकरण भी अधिक गहन स्तर पर ही होता है,परिणामस्वरूप उन्हें सीखना तथा याद रखना अधिक आसान होता है।सूचना प्रक्रियाकरण बहुधा विभिन्न स्तरों पर,जब तक उस स्तर की कार्यवाही पर विशेष ध्यान न दिया जाए,तब तक स्वचालित ढंग से स्वयमेव ही चलता रहता है।उदाहरण के लिए हमें प्रायः उद्दीपकों की इन्द्रियानुभूत विशेषताओं का पता नहीं होता या हमारी काम करने वाली स्मृति में क्या है यह भी ज्ञान नहीं होता जब तक कि इनसे सम्बन्धित सूचना के बारे विशेष रूप से जानकारी देने के लिए न कहा जाए।इससे यह स्पष्ट होता है कि सूचना के प्रक्रियाकरण में अवधान(Attention) का कोई विशेष स्थान नहीं है।इसलिए इसे एक आवश्यक संज्ञानात्मक प्रक्रिया न समझा जाकर सूचना प्रक्रियाकरण में एक अवरोध के रूप में ही स्वीकार किया जाना चाहिए।

मिलर का सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त (Miller's Information Processing Theory )जॉर्ज ए० मिलर द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धान्त पूर्व संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यक्त उन अधिगम सिद्धान्तों का ही कुछ अधिक विस्तृत रूप कहा जा सकता है जिन्होंने अधिगम की प्रक्रिया का अध्ययन स्मृति के माध्यम से ही करने का प्रयत्न किया है। इस सिद्धान्त से जुड़ी हुई मुख्य अवधारणाएं निम्नलिखित हैं-

1सूचना प्रक्रियाकरण नवीन अनुभवों को ग्रहण करने तथा व्यवहार करने के नए तरीकों को सीखने में मदद करता है।2.विद्यार्थी तब ही अच्छी तरह सीखते हैं जबकि वे सक्रिय रूप से सूचनाओं का प्रक्रियाकरण,भंडारण तथा पुनरुद्धरण (Retrieval) करते रहें।3.सूचना प्रक्रियाकरण विद्यार्थियों को वांछित संज्ञानात्मक संरचनाओं (विषयवस्तु का उचित अवबोध एवं समझ हेतु संरचित करना) के निर्माण में सहायक होता है।

4.उपलब्ध इन्द्रियानुभूत सूचना या आंकड़ों के उचित प्रक्रियाकरण के लिए उसका अच्छी तरह इनकोडिंग(Encoding) करना आवश्यक होता है। हमारी अल्पकालीन स्मृति (S.T.M.) द्वारा भी दीर्घ कालीन स्मृति (L.T.M.) को सूचना का स्थानान्तरण करते समय अपने द्वारा सम्पादित सूचना प्रक्रियाकरण कार्य में सूचना के इनकोडिंग रूप को ही काम में लाया जाता है।इसलिए सूचना प्रक्रियाकरण की क्रिया चाहे इन्द्रियानुभूति स्तर पर हो या अल्पकालीन स्मृति स्तर पर, सूचना का अर्थपूर्ण इनकोडिंग होना ही चाहिए।

5.मिलर (1956) ने संज्ञानात्मक प्रक्रियाकरण के सभी स्तरों पर विषयवस्तु के सार्थक संगठन अथवा इनकोडिंग हेतु चंकिंग (Chunking) की अवधारणा को प्रस्तुत किया। चंक (Chunk ) से मिलर का क्या अभिप्राय है यह समझने के लिए उदाहरण रूप में हम एक लम्बे चौड़ी द्विमान पद्धति (Bionary System) पर आधारित अंक श्रृंखला को लेते हैं जिसे दशमलव प्रारूप में निम्न प्रकार से इनकोडिंग किया जा सकता है

द्विमान पद्धति की अंक श्रृंखला दशमलव पद्धति में कोडेड प्रारूप -

इस तरह दशमलव पद्धति में प्रदत्त कोडों के रूप में द्धिमान पद्धति की लम्बी चौड़ी अंक श्रृंखला को याद करने में आसानी हो सकती है। यहां विभिन्न द्विमान अंकों को विभिन्न चंकों यानी समूहों के रूप में अलग अलग कोड देने का प्रयत्न किया गया है ताकि उन्हें अच्छी तरह अधिगम करने, उन्हें याद रखने तथा पुन प्रस्तुती करण के कार्य में आसानी रहे।यहाँ यह भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि इस प्रकार के कोडिंग और डिकोडिंग के कार्य में उसी को सफलता अर्जित हो सकती है जिसे द्विमान पद्धति और दशमलव पद्धति में अंक परिवर्तनों का समुचित जान हो।इसलिए सीखने और याद करने में विषय सामग्री के कोडिंग के लिए जो भी चंक यानी समूह विशेष बनाए जाते हैं ये सभी अवस्था में अधिगमकर्ता के लिए सार्थक एवं अर्थपूर्ण होने चाहिएं।6.चंकिंग (Chunking) की इस अवधारणा का उपयोग करते हुए हम किसी भी व्यक्ति को अपनी अल्पकालीन स्मृति में संजोई सूचना की धारण क्षमता में भी वृद्धि कर सकते हैं।वह आसानी से सूचना सामग्री को 5 से 9 चंकों (7 से दो कम या दो ज्यादा) में विभक्त कर अच्छी तरह धारण कर सकता है।इसलिए सूचना सामग्री को सदैव ही उसके उचित प्रक्रियाकरण एवं संतोषजनक अधिगम परिणामों हेतु चंकों(Meaningful units) अर्थात् सार्थक समूह या इकाइयों में संगठित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

7.सूचना प्रक्रियाकरण के सम्बन्ध में चंकिंग की अवधारणा के अतिरिक्त दूसरी महत्त्वपूर्ण अवधारणा कम्प्यूटर को मानवीय अधिगम के लिए एक उचित प्रतिमान मानने से सम्बन्ध रखती है।

मिलर के अनुसार मानव मस्तिष्क कम्प्यूटर की तरह ही सूचना सामग्री को अदा (Input) के रूप में स्वीकार करता है और प्रक्रिया (Process) के रूप में उसमें वांछित परिवर्तन लाता है और फिर उसे अपनी स्मृति में भंडारित एवं व्यवस्थित कर वांछित अनुक्रयाएं प्रतिफल (Product) के रूप में प्रस्तुत करता है।इस प्रकार जैसा कि मिलर का विचार है सूचना प्रक्रियाकरण के कार्य में मुख्यतया निम्न तीन प्रकार की क्रियाओं का समावेश होता है :-(i) सूचनाओं का संग्रह एवं व्यवस्थीकरण अर्थात् अपनी तरह से समझने हेतु उनकी एनकोडिंग करना। (Encoding)(ii)सूचनाओं को स्मृति में संजोए रहना का धारण करना(Retention)(iii)आवश्यकतानुसार सूचना का पुनरुद्धरण(Retrieval) 8.मिलर के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त में तीसरी महत्त्वपूर्ण अवधारणा को टोटे (TOTE) नाम से जाना जाता है।TOTE से यहाँ उसका अभिप्राय Test Operate Test exist पदावली से है।इस अवधारणा को काम में लाने पर बल देते हुए मिलर और उसके साथियों ने(Miller et al 1960) सुझाव दिया कि हमारे व्यवहार की मूलभूत इकाई के रूप में उद्दीपन अनुक्रिया प्रणाली के स्थान पर TOTE को स्थान दिया जाना चाहिए।इससे उनका यह अभिप्राय था कि व्यवहार करते समय व्यक्ति विशेष यही जांचने का प्रयत्न करता है कि प्राप्त सूचना के प्रक्रियाकरण के माध्यम से लक्ष्य की प्राप्ति हुई है या नहीं। अगर नहीं हुई है तो इसकी प्राप्ति के लिये उचित प्रयत्न किये जाते हैं और पुनः यह परीक्षण किया जाता है कि लक्ष्य की प्राप्ति हुई है या नहीं। इस प्रकार से "परीक्षण लेना और प्रयत्न करना"(Test operate) के चक्र की पुनरावृत्ति तब तक होती रहती है जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए या उसे प्राप्त करने की बात समाप्त ही कर दी जाए। इस तकनीक या अवधारणा का उपयोग करते हुए व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान करने या लक्ष्य प्राप्ति का वांछित तरीका सीखने में सफलता प्राप्त कर सकता है।

सूचना प्रक्रियाकरण का दोहरा कोडिंग सिद्धात्त(Dual-coding Theory of Information Processing)यह सिद्धान्त ए० पेवियों (A. Paivio) नामक मनोवैज्ञानिक द्वारा प्रतिपादित किया गया है।इसके माध्यम से उसने अधिगम कार्य में शाब्दिक और अशाब्दिक दोनों प्रकार की सूचनाओं पर समान बल देने का प्रयत्न किया है।शाब्दिक और अशाब्दिक दोनों प्रकार की सूचनाओं की दोहरी सार्थकता के कारण ही इसे सूचना प्रक्रियाकरण का दोहरा सिद्धान्त कहा जाता है। अपने सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुए पेवियो (Paivio), ने लिखा है"मानव संज्ञान अनूठा है,क्योंकि यह एक साथ भाषायी तथा अभाषायी वस्तुओं एवं घटनाओं से निपटने की विशेष क्षमता रखता है।इसके अतिरिक्त भाषा तन्त्र की यह भी विलक्षणता है कि जहां एक ओर से यह भाषायी अदा और प्रदा (कथन ओर लेखन रूप में) दोनों को ही प्रत्यक्ष रूप में एक साथ संभाल सकता है तो वहाँ दूसरी ओर अशाब्दिक या अभाषायी वस्तुओं, घटनाओं तथा व्यवहारों के प्रतिपादन हेतु उचित संकेतात्मक अभिव्यक्ति में भी यह उचित सहायता करता है।सूचना प्रक्रियाकरण के किसी भी सिद्धान्त में इस दोहरी कार्यात्मकता को अवश्य ही ध्यान में रखा जाना चाहिये।"इस अधिगम सिद्धान्त में निहित प्रमुख अवधारणाओं के रूप में निम्न का उल्लेख किया जा सकता है।1. यह सिद्धान्त यह मानकर चलता है कि प्रक्रियाकरण (Processing) तीन प्रकार का होता है। जिन्हें प्रतिनिधित्वात्मक (Representational),संदर्भात्मक (Referential)तथा सहचर्यात्मक (Associative)प्रक्रियाकरण का नाम दिया जा सकता है। किसी भी अधिगम कार्य में तीनों या किसी भी एक प्रकार के प्रक्रियाकरण की आवश्यकता पड़ सकती है।(i)प्रक्रियाकरण के इन तीनों प्रकारों का संक्षिप्त परिचय निम्न है। प्रतिनिधित्वात्मक सूचना प्रक्रियाकरण(Representational informational processing) में सूचना सामग्री की जिस शाब्दिक एवं अशाब्दिक रूप में प्रस्तुतीकरण रहता है उसी का उसके प्रत्यक्ष रूप में प्रक्रियाकरण किया जाता रहता है।(ii) संदर्भात्मक सूचना प्रक्रियाकरण (Referential information processing) में शाब्दिक या भाषायी सूचना तन्त्र की अशाब्दिक सूचना तन्त्र द्वारा या इसके विपरीत अशाब्दिक सूचना तन्त्र भी भाषायी सूचना द्वारा प्रक्रिया करण रत रहता है।

(iii)सहचर्यात्मक सूचना प्रक्रियाकरण (Associative information processing) में भाषायी या अशाब्दिक तन्त्रों में अलग अलग रूप से विद्यमान सूचना के वाहकों का प्रक्रियाकरण होता रहता है। 2.यह सिद्धान्त यह मानकर चलता है कि अधिगम कार्य में सहायता पहुंचाने के लिये दो निम्न प्रकार की उपप्रणालियों (sub systems) काम करती हुई पाई जाती हैं। (i) पहले प्रकार की उपप्रणाली का सम्बंध अशाब्दिक वस्तुओं या घटनाओं (काल्पनिकता) का प्रतिनिधित्व करने तथा उनसे सम्बंधित सूचनाओं के प्रक्रियाकरण करने से होता है।(ii) दूसरे प्रकार की उपप्रणाली की सम्बंध भाषायी सूचनात्मक सामग्री के प्रक्रियाकरण से होता है। 3.उपरोक्त वर्णित दोनों उपप्रणालियों की कल्पना करते हुये पेवियों (Paivio) ने अपने अधिगम सिद्धान्त में मिलर के द्वारा प्रतिपादित चन्क (Chunk) के अनुरूप ही) सूचना सामग्री के प्रस्तुतीकरण या प्रतिनिधित्व में सहायक दो निम्न प्रकार की मूलभूत इकाइयों (Basic units for representation) की चर्चा की।(i)इमेजिन्स (Imagens) नाम की इकाइयाँ, जिनके द्वारा मानसिक प्रतिबिम्बों के रूप में विद्यमान अशाब्दिक सूचनाओं का प्रतिनिधित्व किया जाता है।(ii)लोगोजिन्स (Logogens) नाम की इकाइयाँ जिनसे भाषायी या शाब्दिक सूचनाओं का प्रतिनिधित्व किया जाता है।4.पैवियो के अनुसार जहाँ लोगोजिन्स सूचना इकाइयों का संगठन, साहचर्य और क्रमबद्ध नियोजन का ध्यान रखकर किया जाता है वहाँ इमेजिन्स सूचना इकाइयों का संगठन अंश- पूर्ण सन् (Part-whole relationship) को ध्यान में रखकर किया जाता है।5.उपरोक्त अवधारणाओं तथा व्यवस्था को अपनाते हुये एक अधिगम कर्त्ता प्राप्त शाब्दिक तथा अशाब्दिक सूचना सामग्री की अच्छी तरह प्रक्रियाकरण करने में सफल हो सकता है और यही सफलता उसे वांछित अधिगम अनुभव अर्जन करने में पूरी तरह सहायक सिद्ध हो सकती है। अधिगम के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्तों की शैक्षिक उपयोगिता(Educational Implications of the Theories of Information Processing) उपरोक्त वर्णित सभी सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त अपने अपने ढंग से अधिगम अर्जन हेतु निम्न प्रकार के संदेश एक अधिगम कर्त्ता को प्रदान करते हुये नजर आते हैं।1.सूचना सामग्री चाहे शाब्दिक रूप में उपलब्ध हो या अशाब्दिक रूप में इसका अच्छी तरह प्रक्रियाकरण और अधिगम तभी संभव है जबकि इसे सार्थक खंडों या इकाइयों में विभक्त कर लिया जाए। 2.विद्यार्थियों को सदैव ही इस बात में पर्याप्त सहायता दी जानी चाहिये कि वे उपलब्ध सूचना सामग्री में से अवश्य ही यह छांटने का प्रयत्न करे कि कौन सी ऐसी सामग्री है जो उनकी दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है तथा कौन सी कम महत्वपूर्ण या बिल्कुल महत्वहीन यही विश्लेषण करके उन्हें उसके प्रक्रियाकरण या अधिगम हेतु आगे बढ़ना चाहिये।

3.विद्यार्थियों की सूचना के समुचित प्रक्रियाकरण हेतु इस बात में सहायता की जानी चाहिये कि वे पूर्व उपलब्ध सूचनाओं या ज्ञान के साथ वर्तमान में ग्रहण की जा रही सूचनाओं या ज्ञान के साथ अच्छी तरह सम्बंध स्थापित कर सकें। 4. जहाँ तक संभव या सही हो विद्यार्थियों को वे सभी अवसर प्रदान किये जाने चाहियें जिनसे वे प्राप्त सूचनाओं की पुनरावृति या पुनरावलोकन द्वारा उन्हें अपनी स्मृति के संजों सकें। 5.अधिगम सामग्री तथा अधिगम अनुभवों(अनुदेशन प्रक्रिया) को सदैव ही बहुत ही व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ढंग से संगठित एवं नियोजित करने के प्रयत्न करने चाहियें ताकि सूचना सामग्री के प्रक्रियाकरण में सरलता,स्पष्टता और प्रभावोत्पादकता बनी रहे।6.विद्यार्थियों से सदैव ही यह आशा की जानी चाहिये कि वे सूचनाओं को बिना सोचे समझे स्टकर अपनी स्मृति में धारण करने की बजाय उनका उचित बोध करने तथा उन्हें अच्छी तरह समझकर उनके प्रक्रियाकरण करने में विश्वास रखें।Reference -Uma mangal &s.k. mangal 


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