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Equality of Opportunities in Education, Article 28, 29, 350 and 351 (शिक्षा में अवसरों की समानता, अनुच्छेद 28, 29, 350 एवं 351)
Sep 18, 2022   Ritu Suhag

Equality of Opportunities in Education,Article 28, 29, 350 and 351(शिक्षा में अवसरों की समानता,अनुच्छेद 28, 29, 350 एवं 351)

After reading this article you will be able to answer the following questions-

-what is equality of opportunity in education?

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Equality of Opportunities in Education,Article 28, 29, 350 and 351(शिक्षा में अवसरों की समानता,अनुच्छेद 28, 29, 350 एवं 351)

शिक्षा में अवसरों की समानता(Equality of Opportunities in Education)

शिक्षा में अवसरों की समानता एवं इससे संबंधित विभिन्न तथ्यों की विवेचना के संदर्भ में हम निम्न अनुच्छेदों की चर्चा कर सकते हैं

अनुच्छेद-28 धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थिति के विषय में स्वतन्त्रता(Freedom as to Attendance at Religious Instruction or Religious Worship in Certain Educational Institutions)

अनुच्छेद-28 शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने के बारे में उपबंध करता है। इस दृष्टिकोण के आधार पर शिक्षण संस्थाओं को चार वर्गों में बाँटा गया है

1.पूर्ण रुप से राज्य-निधि से पोषित संस्थाऐं;

2.राज्य द्वारा प्रशासित किंतु किसी न्यास या विन्यास के अधीन स्थापित संस्थाऐं;

3.राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाऐं; तथा

4.राज्य निधि से सहायता प्राप्त करने वाली संस्थाऐं। राज्य द्वारा पूर्ण रूप से पोषित संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पूर्ण रुप से वर्जित है।किसी न्यास या विन्यास के अधीन स्थापित शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पर कोई प्रतिबंध नहीं है; लेकिन राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त एवं सहायता प्राप्त शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा छात्रों एवं उनके सरंक्षकों की सहमति से दी जा सकती है, अन्यथा नहीं।इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य जनता से वसूल किए गए करों का उपयोग किसी धर्म-विशेष के उत्थान अथवा पोषण के लिए नहीं कर सकता है।इस संदर्भ में यहाँ यह प्रश्न उठता है कि 'धार्मिक शिक्षा' क्या है? संविधान में इसकी परिभाषा नहीं दी गई है।क्या महापुरुषों, ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं के उपदेश एवं उनका जीवन चरित्र धार्मिक शिक्षा है? क्या पाठ्यपुस्तकों में इनका समावेश निषेधित है?लेकिन यहाँ यह बात विशेष रूप से महत्त्व रखती है कि महापुरुषों के संदेश,उपदेश,जीवन-परिचय एवं आदर्श किसी धार्मिक शिक्षा की परिधि में नहीं आते क्योंकि ये किसी धर्म विशेष का गुणगान नहीं करते अपितु ये तो जीवन के शाश्वत मूल्यों का चित्रण करते हैं। इनमें तो सभी धर्मों के आदर्श सम्मिलित (सन्निहित) होते हैं।

उदाहरणार्थ- यदि किसी पाठ्यक्रम में गुरुनानक के उपदेश सम्मिलित हैं। तो इसका आशय किसी धर्म-विशेष का पोषण करना नहीं है; अपितु यह तो गुरुनानक के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं का एक शैक्षणिक अध्ययन एंव शोध मात्र है।उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि छात्रों में नैतिकता का संचार करने तथा उनके चरित्र का निर्माण करने के लिए पाठ्यक्रमों में महापुरुषों के संदेश, उपदेश, जीवन-परिचय एवं आदर्शों का अध्ययन सम्मिलित करना वांछनीय है। ये छात्रों में चरित्र-निर्माण एवं नैतिकता का पोषण करते हैं किसी धर्म-विशेष का नहीं; अतः नैतिक शिक्षा एवं धार्मिक शिक्षा में विशेष अंतर है।अनुच्छेद-28, धार्मिक शिक्षा का निषेध करता है न कि नैतिक शिक्षा का ।

अनुच्छेद-29,अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण(Protection of Interests of Minorities)

अनुच्छेद-29 का खण्ड (1) भारतीय नागरिकों को अपनी भाषा,लिपि एवं संस्कृति को अक्षुण बनाए रखने का अधिकार प्रदान करता है। भारत में आज भी बहुत से ऐसे अल्पसंख्यक वर्ग के लोग हैं जिनकी अपनी पृथक भाषा,लिपि और संस्कृति है और जो सर्वसाधारण के ज्ञान में नहीं है अथवा जो अखिल भारतीय या राज्य स्तर पर प्रख्यात नहीं है।खासतौर से ऐसा आदिवासी एवं जनजाति क्षेत्रों में है। ये लोग देश या प्रान्त के सुदर अंचल में एक तरफ निवास करते हैं।जहाँ किसी की दृष्टि ही नहीं जाती;अतः ऐसे में इनकी भाषा,लिपि एवं संस्कृति की रक्षा करना परमावश्यक है।अपनी भाषा,लिपि और संस्कृति की रक्षा ये अल्पसंख्यक वर्ग किसी भी प्रकार से कर सकते हैं।इनकी अभिवृद्धि के लिए विभिन्न संस्थाऐं स्थापित की जा सकती हैं तथा बाहरी भाषा,लिपि एवं संस्कृति को थोपे जाने से भी रोका जा सकता है;लेकिन यह अधिकार अनुच्छेद-29 के ही खंड (2) के अध्यधीन है।जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका हैं कि अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति की रक्षा किसी भी प्रकार कर सकते हैं।इनकी रक्षा के लिए राजनीतिक आंदोलन का सहारा भी लिया जा सकता है।इसे 'भ्रष्ट' साधन नहीं कहा जा सकता। चुनाव में यदि प्रतिद्वंद्वी को आर्य समाज एवं हिन्दी भाषा का 'विरोधी' कहा जाता है और चुनाव में 'ओम ध्वज्' का प्रदर्शन किया जाता है तो यह असंवैधानिक नहीं है।अनुच्छेद का उपखंड (2) धर्म, मूल, वंश, जाति एवं भाषा के आधार पर राज्य द्वारा पोषित या सहायता प्राप्त शिक्षा-संस्थाओं में प्रवेश निषेध को वर्जित करता है; अर्थात् राज्य द्वारा पोषित अथवा सहायता प्राप्त किसी संस्था में किसी व्यक्ति को मात्र धर्म, मूल, वंश, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं रखा जाएगा। इसी प्रकार यदि कोई विद्यालय जो अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा संचालित किया जा रहा है एवं राज्य निधि से सहायता प्राप्त करता है तो उसमें अन्य समुदाय के बच्चों को प्रवेश देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्य भी ऐसे विद्यालयों को अपने ही समुदाय के बच्चों के लिए प्रवेश को सीमित रखने के निर्देश नहीं दे सकता है। इसी प्रकार 'भाषा' के आधार पर भी किसी व्यक्ति को विद्यालय में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है। यदि राष्ट्रभाषा हिंदी के उत्थान की आड़ में अंग्रेजी न जानने वालों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में प्रवेश से वंचित किया जाता है तो यह असंवैधानिक है।

नागरिक के रूप में प्राप्त अधिकार(Rights got in the Form of Citizen)

अनुच्छेद-29 (2) के अन्तर्गत शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश का अधिकार व्यक्ति को एक नागरिक के रूप में प्राप्त है न कि समुदाय के सदस्य के रुप में। इसके प्रावधान सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, चाहे वे अल्पसंख्यक वर्ग के हों या बहुसंख्यक वर्ग के ।

#अनुशासनहीनता अथवा अयोग्यता के कारण प्रवेश नहीं मिलना(No Admission due to Indiscipline and Lack of Qualification)

अनुच्छेद-29 (2) के प्रावधान वहाँ लागू नहीं होंगे जहाँ किसी व्यक्ति को प्रवेश से निम्नांकित आधारों पर वंचित किया जाता है

1. अनुशासनहीनता के कारण।

2. निर्धारित अर्हता नहीं होने पर आदि।

#लिंग के आधार पर प्रवेश(Admission on the Basis of Sex)

अनुच्छेद-29 (2) में शब्द 'लिंग' का लोप है। इसका अभिप्राय है कि शिक्षा संस्थानों में स्त्रियों के प्रवेश का अधिकार शिक्षा-संस्थानों के प्राधिकारियों के विनियमन के अधीन है।'अल्पसंख्यक' (Minorities) शब्द का अर्थ- 'अल्पसंख्यक' शब्द को यहाँ तकनीकी अर्थों में ग्राहय ( ग्रहण) किया गया है। इसका अभिप्राय ऐसे समुदाय से है जिसके सदस्यों की संख्या सम्पूर्ण राज्य की जनसंख्या की आधी से कम हो अर्थात् पचास प्रतिशत से न्यून हो।इसका निश्चय सम्पूर्ण राज्य में फैले लोगों की गणना के आधार पर किया जाएगा न कि किसी क्षेत्र विशेष में बसे लोगों के आधार पर। किसी एक क्षेत्र में किसी समुदाय के लोगों की संख्या कम हो सकती है;लेकिन यदि सम्पूर्ण राज्य में उनकी संख्या अधिक है तो अल्पसंख्यक वर्ग की श्रेणी में नहीं माना जाएगा।

अनुच्छेद-350,शिकायतों को दूर करने के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा(Language to be Used in Representations for Redress of Grievances)

अनुच्छेद-350 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति किसी शिकायत को दूर करने के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्रधिकारी को, यथास्थिति संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का अधिकार होगा।

अनुच्छेद-350 (क), प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ(Article - 350 (A),Facilities for Instruction in Mother-tongue at Primary Stage)

अनुच्छेद-350(क) के अनुसार प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है। 

अनुच्छेद- 350 (ख),भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी(Article- 350 (B),Special Officer for Linguistic Minorities)

इस अनुच्छेद के अनुसार

1.भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए एक विशेष अधिकारी होगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेगा।

2.विशेष अधिकारी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह संविधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए उपबन्धित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन विषयों के संबंध में ऐसे अन्तरालों पर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे, राष्ट्रपति को रिपोर्ट दे और राष्ट्रपति ऐसी सभी रिपोर्टो को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाऐगा और संबंधित राज्यों की सरकारों को भिजवाऐगा।

अनुच्छेद-351,हिन्दी भाषा के विकास के लिए निर्देश(Article-351, Direction for Development of the Hindi Language)

इस अनुच्छेद के अनुसार हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करना, उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सब तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके तथा उसकी मौलिकता में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी और 8वीं अनुसूची में वर्णित अन्य भारतीय भाषाओं के रूप शैली और पदावली को आत्मसात करते हुए तथा जहाँ तक आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ तक उसके शब्द भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से तथा गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करना संघ का कर्तव्य है। हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए इसको भी एक नीति-निर्देशक तत्त्व कहा जा सकता है। लेकिन यहाँ यह प्रश्न उठता है कि संघ और राज्य सरकारें इसे किस सीमा तक लागू करते हैं।

संविधान द्वारा मान्य भाषाऐं(The Languages Which are Constitutionally Recognised Under the Article-344 (1) and 351)

संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित भाषाओं को संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गई है

1.असमिया

2.बंगल

3.गुजराती

4.हिंदी 

5.कन्न

6.कश्मीरी

7.मराठी

8.मलयालम

9.उड़िया

10.पंजाबी

11.संस्कृत

12.सिंधी

13.तेलुगू

14.उर्दू

15.नेपाली

16.तमिल

17.कोंकणी ।

18.मणिपुरी

संविधान की आठवीं अनुसूची में 'संविधान संशोधन (92 वाँ) अधिनियम,2003' द्वारा निम्नलिखित चार भाषाओं को और जोड़ा गया है जिनको मिलाकर भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गई है

19.बोडो

20.डोंगरी

21.मैथिली

22.संभाली

आठवीं अनुसूची में जब मणिपुरी,कोंकणी एवं नेपाली भाषा को सम्मिलित किया गया तो उनकी संवैधानिकता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई।उच्चतम न्यायालय ने इस चुनौती को नकारते हुए कहा कि किसी भाषा को अनुसूची में स्थान देना या नहीं देना संघ का नीतिगत मामला है। ऐसे नीतिगत मामलों में न्यायालय द्वारा तब-तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है, जब तक कि वह

1.किसी संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन नहीं करता हो; अथवा

2.किसी संवैधानिक व्यवस्था के प्रतिकूल न हो; अथवा

3.दुर्भाग्यपूर्ण न हो।

Reference-Dr Naresh Kumar Yadav 


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