Educational Psychology-Concept,Scope and Role(शिक्षा मनोविज्ञान अवधारणा, क्षेत्र एवं भूमिका)
After reading this article you will be able to answer the following questions-
*What is education psychology?
*What is the scope of education psychology?
*What is the role of education psychology in teaching learning process?
शिक्षा मनोविज्ञान की अवधारणा(Concept of Educational Psychology)
सामान्य तौर पर शिक्षा मनोविज्ञान की अवधारणा से हमारा तात्पर्य शिक्षा मनोविज्ञान पद के लिये हमारे द्वारा बनाई गई उसकी कोई छवि या उसके प्रति बनाई गई आम धारणाओं से ही होता है। इस अर्थ में हम उसके बारे में जो कुछ भी जानते हैं या जानना चाहते है वह अधिकतर उसके अर्थ तथा प्रकृति द्वारा उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों, पूरे किये जाने वाले प्रयोजनों आदि बातों में ही प्रतिबिम्बित होता है। इस दृष्टि से अगर हम शिक्षा मनोविज्ञान के संप्रत्यय या अवधारणा (Concept) से अच्छी तरह परिचित होना चाहते हैं तो हमें उससे सम्बन्धित निम्न बिन्दुओं पर आवश्यक जानकारी लेना अच्छी तरह सहयोगी सिद्ध हो सकता है।
शिक्षा मनोविज्ञान-अर्थ एवं परिभाषाएं (Educational Psychology Meaning and Definitions)
A.शिक्षा मनोविज्ञान की व्याख्या व्यावहारात्मक मनोविज्ञान के रूप में (Educational Psychology as an applied Psychology)
मनोविज्ञान को व्यवहार के विज्ञान (Science of behaviour)के रूप में परिभाषित किया जाता है।एक स्वतन्त्र विषय के रूप में इसका अध्ययन अब विद्यालयों और महाविद्यालयों में जोर पकड़ता जा रहा है और अब इसका व्यवहारिक रूप में प्रयोग जीवन के विविध क्षेत्रों में भली-भांति किया जाने लगा है। जिस प्रकार हर विज्ञान विषय जैसे भैतिक शास्त्र, इंजीनियरिंग, यांत्रिकी, गणित आदि के अध्ययन सम्बन्धी दो पहलू सैद्धान्तिक और व्यवहारिक (Pure and Applied) हुआ करते हैं, इसी तरह मनोविज्ञान को भी विज्ञान होने के नाते दो पहलुओं-सैद्धान्तिक मनोविज्ञान तथा व्यवहारिक मनोविज्ञान में बांटा जा सकता है।मनोविज्ञान अपने सैद्धान्तिक रूप में (Pure aspect) हमारे व्यवहार के अध्ययन के लिये नियमों का प्रतिपादन करता है,सिद्धान्तों का निर्माण करता है और उचित विधि उपायों एवं तकनीकी सुझावों को जन्म देता है।यह सभी विषय, सिद्धान्त और विधियां इसके व्यावहारात्मक पहलू(Applied aspect) के व्यवहारिक रूप से काम में लाये जाते हैं।औद्योगिक मनोविज्ञान,अपराध मनोविज्ञान,शिक्षा मनोविज्ञान,सैन्य मनोविज्ञान आदि विषय मनोविज्ञान के इसी व्यवहारिक पक्ष(Applied aspect) का प्रतिनिधित्व करते हैं।व्यवहारात्मक मनोविज्ञान की ये सभी शाखायें मानव-जीवन के विविध क्षेत्रों में मनोविज्ञान के व्यवहारिक उद्देश्य को दर्शाती हैं। मनोविज्ञान व्यवहार के अध्ययन के रूप में काम में लाया जाता है।इस दृष्टि से औद्योगिक मनोविज्ञान में उद्योग जगत् से जुड़े हुये व्यक्तियों के व्यवहार का उन्हीं के परिवेश में अध्ययन करने का प्रयत्न किया जाता है तो अपराध मनोविज्ञान में अपराधी के व्यवहार का अपराध से सम्बन्धित वातावरण में अध्ययन किया जाता है।अन्य सभी शाखाओं में भी विभिन्न सम्बन्धित व्यक्तियों का उन्हीं के वातावरण में अध्ययन किया जाता है।इस प्रकार उपरोक्त विवेचन एवं चित्रात्मक प्रस्तुति से यह स्पष्ट हो सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान,मनोविज्ञान विषय के एक विशिष्ट व्यवहारात्मक रूप का प्रतिनिधित्व करता है।एक व्यवहारात्मक मनोविज्ञान के रूप में इसकी परिभाषा अग्र शब्दों में दी जा सकती है :
"शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहारात्मक मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें मनोविज्ञान विषय के नियम, सिद्धान्त एवं क्रियाविधि आदि को शिक्षा के क्षेत्र में काम में लाने का प्रयत्न किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह यह विषय है जिसमें विद्यार्थी के व्यवहार का शैक्षिक वातावरण के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है।"
अपने व्यवहारात्मक रूप में शिक्षा मनोविज्ञान का विषय इस प्रकार शिक्षा के कार्य, प्रयोजन एवं कार्य प्रणाली को अधिक से अधिक उन्नत एवं प्रभावशाली बनाने का प्रयत्न करता हुआ उसी रूप में दिखाई देता है,जिस प्रकार कि औद्योगिक मनोविज्ञान उद्योग जगत् में मानव व्यवहार सम्बंधी गुत्थियों को सुलझाकर मानवीय संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग हो सकने का मार्ग प्रशस्त करता है अथवा अपराध मनोविज्ञान जिस प्रकार अपराध से जुड़े हुये व्यक्तियों तथा वातावरण का अध्ययन कर अपराधियों को पहचानने और उनके व्यवहार का उचित परिमार्जन करने में सहायता देता है।
B.शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ एक स्वतंत्र विषय के रूप में(Educational Psychology as a Discipline) मनोविज्ञान की एक शाखा के रूप में अवतरित होने वाले विषय शिक्षा मनोविज्ञान ने अब एक स्वतंत्र विषय के रूप में अपने पैर अच्छी तरह जमा लिये हैं।यद्यपि इसका कार्य शिक्षा जगत् तक ही सीमित है,परन्तु फिर भी इसका अध्ययन एक स्वतंत्र विषय के रूप में कर पाना अब काफी सम्भव है।उसके इस रूप को समझने में जहां विद्वानों द्वारा दी गई कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएं हमारी सहायता कर सकती हैं,वहां यह जानकारी कि शिक्षा मनोविज्ञान का दूसरे सम्बंधित विषयों जैसे शिक्षा और दर्शन आदि से क्या नाता है हमारी काफी सहायता कर सकती है।आगे हम यही स्पष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं।
शिक्षा मनोविज्ञान की कुछ परिभाषायें और उनका विश्लेषण(A Few Definitions and their Analysis)
1. स्किनर,"शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने से सम्बंधित है।"("Educational Psychology is that branch of Psychology which deals with teaching and learning."--- 1958, 2.क्रो एवं क्रो,"शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक के सीखने सम्बन्धी अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।"("Educational Psychology describes and explains the learning experiences of an individual from birth through old age."-1973
उपरोक्त दोनों परिभाषाएं इस बात पर बल देती हैं कि शिक्षा मनोविज्ञान सीखने और सिखाने का मनोविज्ञान है।शिक्षा की प्रक्रिया में सीखने और सिखाने का एक विशेष स्थान है और शिक्षार्थी इस प्रक्रिया की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कड़ी है।अतः शिक्षा मनोविज्ञान को शैक्षणिक पृष्ठभूमि में शिक्षार्थी के अनुभवों और व्यवहारों को अध्ययन करने का साधन बताना उचित ही ठहरता है।
3.शिक्षा मनोविज्ञान की एक और परिभाषा जो पील महोदय द्वारा दी गई है,मेरे अपने विचार में सबसे अधिक संक्षिप्त एवं तर्कसंगत है।यह परिभाषा इस प्रकार से है- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का विज्ञान है। "
(“Educational Psychology is the science of Education.”– 1956,Peel यहां यह प्रश्न उठता है कि शिक्षा मनोविज्ञान को शिक्षा का विज्ञान कहना कहां तक उचित है।उत्तर के लिए हमें पहले शिक्षा और शिक्षा मनोविज्ञान के आपसी सम्बन्धों पर विचार करना होगा। शिक्षा और शिक्षा मनोविज्ञान(Education and Educational Psychology)
शिक्षा अपने आप में सभी प्रकार से विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने का एक साधन है।इसका उद्देश्य विद्यार्थी के व्यवहार में उचित परिवर्तन कर उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा प्रदान किया जाता है जैसा कि पील महोदय के निम्न वक्तव्य से स्पष्ट होता है"शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों को,उसके अपने विद्यार्थियों के विकास को समझने,उनकी क्षमताओं की सीमाओं और विस्तार को जानने और उनके सीखने की प्रक्रियाओं से अवगत होने में सहायता करता है।"("Educational Psychology helps the teacher to understand the development of his pupils, the range and limits of their capacities, the processes by which they learn and their social relationships." - 1956,इस प्रकार से शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य की तुलना एक इंजीनियर से की जा सकती है। इंजीनियर तकनीकी विशेषज्ञ होता है जो अपने कार्य क्षेत्र से सम्बन्धित कार्यों जैसे पुल और सड़क बनाना इत्यादि के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल एवं तकनीकी जानकारी प्रदान करता है।ठीक उसी प्रकार से शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में एक तकनीकी विशेषज्ञ होने के नाते,निम्न कार्यों के लिये आवश्यक जानकारी,सिद्धान्त एवं नियम तथा विधियां प्रदान करता है।
(A)शैक्षणिक पृष्ठभूमि में शिक्षार्थी के व्यवहार को समझने के लिए।
(B)उसके व्यवहार में उचित परिवर्तन करके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने के लिए। इस प्रकार से शिक्षा मनोविज्ञान को शिक्षा का विज्ञान एवं तकनीकी शास्त्र कहना एक प्रकार से उचित ही लगता है।
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति(Nature of Educational Psychology)
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति क्या है ? प्रायः यह प्रश्न सभी रूप में पूछा जाता है। इस प्रश्न बहुत कुछ समाधान पूर्ववर्णित शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ और परिभाषाओं के उचित मनन और विश्लेषण द्वारा मिल सकता है।सर्वसम्मति से शिक्षा मनोविज्ञान को शिक्षा का विज्ञान माना जाता है। इस दृष्टिकोण से इसकी प्रकृति विज्ञानमय मानने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। शिक्षा और शिक्षा दर्शन से इसके आपसी सम्बन्धों द्वारा भी इस बात की पुष्टि होती है।इसकी प्रकृति को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम निम्न तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं
1.शिक्षा मनोविज्ञान,मनोविज्ञान विषय की व्यवहारात्मक शाखाओं में से एक है। मनोविज्ञान के सिद्धान्त,नियम एवं विधियों का प्रयोग करके यह विद्यार्थियों के अनुभवों और व्यवहार का अध्ययन करने में सहायक होता है।
2.मनोविज्ञान में जीवधारियों के जीवन की समस्त क्रियाओं से सम्बन्धित व्यवहार का अध्ययन होता है जबकि शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक पृष्ठभूमि में विद्यार्थी के व्यवहार का अध्ययन करने तक ही अपने आपको सीमित रखता है।
3.शिक्षा मनोविज्ञान 'शिक्षा क्यों' और 'शिक्षा क्या' जैसे प्रश्नों का उत्तर देने में अपने आपको असमर्थ पाता है।ये प्रश्न शिक्षा दर्शन द्वारा सुलझाए जाते हैं।शिक्षा मनोविज्ञान तो विद्यार्थियों को संतोषजनक ढंग से उचित शिक्षा देने के लिए उचित जानकारी,कौशल और तकनीकी परामर्श देने का प्रयत्न करता है।
4.शिक्षा मनोविज्ञान की गिनती कलात्मक विषयों में की जाती है अथवा विज्ञान विषयों में, यह निर्णय करने में कोई भूल नहीं की जानी चाहिये और शिक्षा मनोविज्ञान को सभी दृष्टि से एक विज्ञान ही माना जाना चाहिए। इस प्रकार की मान्यता के पीछे इसकी प्रकृति और इसका स्वरूप ही है जो सभी तरह से विज्ञानमय (Scientific) ही नजर आता है। यह ऐसा क्यों है। यह सिद्ध करने के लिए हमें पहले यह जानने का प्रयत्न करना होगा कि वे ऐसी कौन-सी बातें या विशेषतायें हैं जिनके विद्यमान होने पर किसी विषय को विज्ञान का दर्जा दिया जा सकता है।
विज्ञान कहलाने हेतु आवश्यक विशेषतायें (Criteria for Terming a Subject as a Science)
सामान्यतया किसी भी विषय को विज्ञान का दर्जा दिया जा सकता है अगर वह कुछ निम्न शर्तों को पूरा करता है
*उसके पास तथ्यों का ऐसा व्यवस्थित भंडार हो जिसकी सर्वमान्य नियमों एवं सिद्धान्तों के माध्यम से पुष्टि की जा सके।
*जिसमें सत्य की खोज पर जोर दिया जाता रहे।
*जो मात्र सुनी-सुनाई बातों,रूढ़िवादिता तथा अंधविश्वासों पर विश्वास नहीं करता हो।जिसका यह विश्वास हो कि प्रत्येक घटना के पीछे कोई ना कोई निश्चित कारण होता है।
*जिसमें अध्ययन तथा अनुसंधान हेतु वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया जाता है। परीक्षण और प्रयोगों के आधार पर वस्तुगत तथा पक्षपात रहित निर्णय तथा निष्कर्ष निकाले जाते हों।परिणाम और निष्कर्षो को पुनः निरीक्षण तथा अवलोकन के लिये खुला छोड़ दिया जाता हो तथा प्राप्त नवीन जानकारी के आधार पर पुरानी मान्यताओं में परिवर्तन लाने की पूरी छूट दी जाती हो।
*जो कुछ घटित हो रहा हो उसके आधार पर भविष्यवाणी की जा सकती हो।जो कुछ नियम एवं सिद्धान्तों के रूप में विचार रूप में प्राप्त हो उसे व्यवहारिक रूप से प्रयोग में लाना संभव हो।आइये देखें, शिक्षा मनोविज्ञान को विज्ञान कहने के लिये आवश्यक उपरोक्त कसौटी पर कितना कसा जा सकता है।
1.शिक्षा मनोविज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष में उसके पास व्यवस्थित एवं तर्कसंगत विषय वस्तु का ऐसा भंडार है जिसकी उपयुक्त प्रनियमों, सिद्धान्तों तथा सामान्यीकरणों के द्वारा उचित रूप से पुष्टि की जा सकती है। विज्ञानों की तरह ही यहाँ नियम एवं सिद्धान्तों के रूप में अनेक प्रनियमों तथा सिद्धान्तों जैसे सीखने के नियम,अभिप्रेरणा के सिद्धान्त,बुद्धि सिद्धान्त,व्यक्तित्व सिद्धान्त आदि देखने को मिलते हैं।
2.विज्ञान के प्रनियमों एवं सिद्धान्तों की तरह ही शिक्षा मनोविज्ञान के प्रनियमों एवं सिद्धान्तों को पूरे विश्व में मान्यता प्राप्त है और इन्हें विज्ञान सिद्धान्तों की तरह ही शिक्षण के विभिन्न क्षेत्रों में व्यवहारिक रूप से उपयोग में लाने का प्रयत्न किया जाता है।
3.शिक्षा मनोविज्ञान में भी अध्ययन तथा अनुसंधान करने में विज्ञानों की तरह तर्कसंगत,वस्तुगत तथा पक्षपात रहित दृष्टिकोण का प्रयोग करते हुये वैज्ञानिक विधि का सहारा लिया जाता है।यहां वस्तुगत अवलोकन तथा प्रेक्षण पर जोर दिया जाता है।प्रयोग तथा परीक्षणों में पर्याप्त वैधता, वस्तुनिष्ठा तथा विश्वसनीयता रखी जाती है तथा उचित निष्कर्ष निकालकर उनकी वैधता(Validity) परखी जाती है। सुनी-सुनाई तथा एकतरफा तथ्यों पर ध्यान न देकर उनकी सच्चाई को तोलने और परखने का प्रयत्न किया जाता है।
4.शिक्षा मनोविज्ञान विज्ञान की तरह इस बात पर विश्वास करता है कि प्रत्येक घटना एवं व्यवहार के पीछे कोई ना कोई विशेष कारण छुपे रहते हैं।इसी को आधार बनाकर शिक्षा मनोविज्ञान के व्यवहारगत कारणों को जानकर सुधार तथा उपचार के प्रयत्न किये जाते हैं।
5.जो भी नियम या सिद्धांत एक बार बना लिए जाते है,उनमें परिवर्तन लाने की पूरी आजादी शिक्षा मनोविज्ञान में भी वैसी ही मिलती है जैसी कि अन्य विज्ञान विषयों में एवं नवीन जानकारी के प्राप्त होने एवं प्रयोग तथा परीक्षणों के आधार पर कोई नई बात सिद्ध होने पर मनोविज्ञान के प्रनियमों,सिद्धान्तों तथा संग्रहित तथ्यों में उचित परिवर्तन कर लिये जाते हैं।तथा उसके व्यावहारिक प्रयोग की दिशा में भी परिवर्तन कर लिया जाता है।जैसे कि पहले सृजनात्मकता के तत्व तथा उसके पोषण के लिये कुछ विचार तथा सिद्धान्त काम में लाये जाते रह सकते हैं परन्तु नवीन अनुसंधानों के आधार पर अब इनमें आवश्यक परिवर्तन लाया जा सकता है।
6.शिक्षा मनोविज्ञान में भी प्राप्त वर्तमान जानकारी के आधार पर आगे की भविष्यवाणी की जा सकती है। बालक की आगामी वृद्धि एवं विकास का मार्ग चित्र बनाया जा सकता है, जो वातावरण उसे मिल रहा है तथा जो क्षमतायें उसके पास हैं, उसके आधार पर उसके किसी क्षेत्र विशेष में मिलने वाली सफलता का पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर अब यह अच्छी तरह कहा तथा समझा जा सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति और स्वभाव विज्ञान विषयों से ही मेल खाता है, कलात्मक विषयों से नहीं। अतः इसकी गिनती विज्ञानों(Sciences) में ही होनी चाहिये,कलाओं (Arts) में नहीं।
शिक्षा मनोविज्ञान की विज्ञानों में गिनती कर लेने के बाद जो नया प्रश्न अब उभर कर सामने आता है वह यह है कि क्या इसे वही दर्जा दिया जा सकता है जो पूर्व स्थापित जाने-माने वैज्ञानिक विषयों,भौतिकशास्त्र(Physics),रसायन शास्त्र(Chemistry),जीव-विज्ञान,वनस्पति विज्ञान,नक्षत्र विज्ञान आदि को प्राप्त है। इसका उत्तर सभी रूप में नकारात्मक ही रहेगा।शिक्षा मनोविज्ञान किसी भी तरह अभी ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह इन विशुद्ध विज्ञान विषयों की बराबरी कर सके।इसका कारण यह है कि शिक्षा मनोविज्ञान वास्तविक रूप में व्यवहार का विज्ञान ही है।इसमें व्यवहार का अध्ययन किया जाता है और यह अध्ययन कभी भी उतना तर्कसंगत,वस्तुगत,वैध तथा विश्वसनीय नहीं बन सकता जितना कि प्राकृतिक तथा भौतिक रसायन विज्ञानों में किये जाने वाला अध्ययन हो सकता है। इसमें प्रयुक्त विधियां तथा तकनीकें भी उतनी वैज्ञानिक नहीं हो सकतीं अतः इनके परिणामों में उचित वैधता,निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता का कुछ अभाव ही नजर आता रहता है।परन्तु समय के साथ अब परिवर्तन आ रहा है तथा मनोवैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसंधानों में अधिक से अधिक वैज्ञानिकता का प्रादुर्भाव होता जा रहा है और वह दिन दूर नहीं जबकि हम मनोविज्ञान के नियमों एवं सिद्धान्तों को शिक्षा के क्षेत्र में अधिक से अधिक वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग करने में सिद्ध हस्त हो सकेंगे।'
शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र(Scope of Educational Psychology)
किसी भी विषय के उसके अपने क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?(What do you mean by Scope of a Subject ?)
किसी भी विषय के क्षेत्र का विस्तार और उसकी सीमाओं को आंकने से पहले निम्न प्रश्नों का उत्तर देना सार्थक होगा
(a)इसके अपने कार्यक्षेत्र की सीमाएं कहां तक हैं ?
(b)इसके अध्ययन में क्या-क्या शामिल किया जाना चाहिए अथवा इसके अन्तर्गत क्या पाठ्य सामग्री होनी चाहिए ?
जैसा कि पहले बताया जा चुका है शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थियों के केवल शैक्षणिक परिस्थितियों में घटित व्यवहार के अध्ययन से ही अपने आपको सम्बन्धित रखता है। इसलिए यह आवश्यक है कि सही अर्थों में इसके द्वारा अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया से सम्बन्धित सभी समस्याओं को हल करने एवं सम्बन्धित व्यक्तियों को सहायता पहुंचाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। शिक्षा प्रक्रिया में सम्मिलित महत्त्वपूर्ण घटकों की अगर चर्चा की जाए तो कुछ निम्न तत्त्वों पर हमारी दृष्टि ठहरती है :
1.विद्यार्थी(The Learner)
2.सीखने सम्बन्धी अनुभव(Learning Experiences)
3.सीखने की प्रक्रिया(The Learning Process)
4.सीखने से सम्बन्धित परिस्थितियां या वातावरण(Learning Situations or Environment)
5.अध्यापक(The Teacher )
शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री जहां तक इसके क्षेत्र का प्रश्न है,यह सभी पांच उपरोक्त धुरियों के इर्द-गिर्द ही घूमती है।
1.विद्यार्थी (The Learner)
अगर हम पहली धुरी विद्यार्थी को ले कर चलें तो यह पाएंगे कि शिक्षा मनोविज्ञान में बहुत कुछ विषय सामग्री शिक्षार्थी अथवा विद्यार्थी को लेकर होती है। इस सामग्री के माध्यम से एक ओर जहां विद्यार्थी को अच्छी तरह जानने की आवश्यकता पर बल दिया जाता है वहां दूसरी ओर उसे जानने के लिए आवश्यक तकनीक एवं विधियों का उल्लेख भी होता है। कुछ निम्न प्रकार के प्रकरण (Topics) इस सामग्री में देखने को मिलते हैं व्यक्तिगत विभिन्नताएं और उनका मापन, व्यक्ति की जन्मजात योग्यताएं और क्षमताएं उसका आन्तरिक,बाह्य,चेतन,अचेतन और अर्धचेतन व्यवहार,शैशव काल से लेकर प्रौढ़ावस्था तक उसकी वृद्धि एवं विकास की दिशाएं एवं विशेषताएं इत्यादि ।
2.सीखने सम्बन्धी अनुभव(Learning Experiences)
दूसरा क्षेत्र सीखने सम्बन्धी अनुभवों को लेकर है। यद्यपि शिक्षा मनोविज्ञान में यह निर्णय नहीं लिया जाता है कि क्या पढ़ाना है अथवा 'कौन कौन से सीखने सम्बन्धी अनुभव विद्यार्थी को दिए जाने हैं', फिर भी सीखने सम्बन्धी सभी अनुभव विद्यार्थी को किस प्रकार दिए जाएं, यह बतलाने का उत्तरदायित्व शिक्षा मनोविज्ञान पर ही है। शिक्षा दर्शन द्वारा किसी एक स्तर पर किसी पाठ्य सामग्री को पढ़ाने के उद्देश्यों और मूल्यों से परिचित कराने के पश्चात् शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता अनुभव की जाती है। इस अवसर पर शिक्षा मनोविज्ञान ही यह निर्णय लेने में सहायक होता है कि कौन-कौन से सीखने सम्बन्धी अनुभव विद्यार्थी को उसके अपने विकास के स्तर के अनुसार कब दिए जाने चाहिएं जिससे कि वह उन्हें आसानी से सफलतापूर्वक ग्रहण कर सके। फलस्वरूप शिक्षा मनोविज्ञान में ऐसी विषय-सामग्री ली जाती है जो विद्यार्थी के लिए सीखने सम्बन्धी अनुभवों के उचित चुनाव के लिए आवश्यक ज्ञान और सिद्धान्त जुटा सके।
3.सीखने की प्रक्रिया(The Learning Process)
विद्यार्थी से परिचित होने और यह तय करने के बाद कि कौन-से सीखने सम्बन्धी अनुभव उसे दिए जाने हैं,इन अनुभवों को आसानी से और सफलतापूर्वक ग्रहण कराने की समस्या सामने आती है। इसलिए इस धुरी के इर्द-गिर्द शिक्षा मनोविज्ञान सीखना क्या है और कैसे सीखा जाता है,इस तथ्य को लेकर आगे बढ़ता है।फलस्वरूप इसमें कुछ इस प्रकार के प्रकरण जैसे सीखने के विभिन्न नियम एवं सिद्धान्त,स्मृति एवं विस्मृति(Remembering and Forgetting),प्रत्यक्षीकरण (Perception),संप्रत्यय निर्माण (Concept Formation),सोचने एवं विचारने की प्रक्रिया(Thinking and reasoning process),समस्या समाधान (Problem Solving),प्रशिक्षण स्थानान्तरण(Transfer of Training) आदि सम्मिलित होते हैं।
4.सीखने से सम्बन्धित परिस्थितियां एवं वातावरण(Learning Situations or Environment)
इस घुरी के इर्द-गिर्द शिक्षा मनोविज्ञान में सीखने सम्बन्धी परिस्थितियों और वातावरण को लेकर विषय सामग्री का ताना-बाना बुना रहता है। कुछ इस प्रकार के प्रकरण जैसे कक्षा का वातावरण, सीखने में सहायक समूह मनोविज्ञान, मूल्यांकन की विधियां, निर्देशन एवं परामर्श इत्यादि इसमें शामिल किए जाते हैं।
5.अध्यापक(The Teacher)
अन्तिम लेकिन महत्त्वपूर्ण धुरी अध्यापक है। अध्ययन और अध्यापन के किसी भी कार्यक्रम में अध्यापक का अपना अमूल्य स्थान है और इसलिए शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा उसे भुलाया नहीं जा सकता। इस धुरी से सम्बन्धित विषय-वस्तु को लेकर शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों को शिक्षा प्रक्रिया में अपने उत्तरदायित्व को भली-भांति निभाने के लिए अपने आपको जानने की आवश्यकता से परिचित कराता है।यह उनके अन्तर्द्वन्द्व (Conflicts),अभिप्रेरणा (Motivation),चिन्ता (Anxiety),अनुकूलन(Adjustment) और ऊंचा उठने की इच्छा आदि का वर्णन करता है।इसके अतिरिक्त यह अध्यापकों के लिए आवश्यक व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण, अभिरुचियों और प्रभावपूर्ण शिक्षण के लिए आवश्यक विशेषताओं आदि को चर्चा करता है,जिससे उन्हें सफल शिक्षक होने में पर्याप्त सहायता मिल सके।
शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र सीमाहीन है(Scope of Educational Psychology is Unlimited)
ऊपर की पंक्तियों में हमने शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र को पांच धुरियों के इर्द-गिर्द केन्द्रित करके सीमाओं में बांधने का कुछ प्रयास किया है।परन्तु शिक्षा मनोविज्ञान की सीमाओं का पूर्ण रेखांकन और उसके स्वरूप का पूर्ण दिग्दर्शन करना कुछ असम्भव सा ही है।इसका कारण यह है कि शिक्षा मनोविज्ञान अपने आप में उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होता हुआ एक विकासशील विषय है।नवीन खोजों और परीक्षणों के फलस्वरूप दिन-प्रतिदिन नवीन विचारधाराओं को जन्म देता हुआ अन्य विकासशील विज्ञानों की तरह यह भी अपने कलेवर में प्रतिवर्ष कई गुणा वृद्धि कर लेता है।परिवर्तन प्रकृति का नियम है और शिक्षा अपने आप में एक गतिशील विषय होने के कारण अपने स्वरूप में शीघ्रता से परिवर्तन ला रही है।नित्य नई-नई समस्याएं तीव्र गति से शिक्षा के क्षेत्र में सामने आ रही हैं जिन के समाधान के लिए शिक्षा मनोविज्ञान जी तोड़ प्रयत्न कर रहा है।परिणामस्वरूप,शिक्षा मनोविज्ञान के दायरे में नई-नई धारणाओं,नियमों एवं विधियों का समावेश होता जा रहा है।इस दायरे का आकार निरन्तर वृद्धि पर है।इसकी कोई सीमा निश्चित रूप से बांधी नहीं जा सकती। वैसे भी इसके क्षेत्र को शब्दों में व्यक्त करने अथवा निश्चित सीमाओं में बांधने की चेष्टा करना भूल ही है।इससे न केवल शिक्षा मनोविज्ञान जैसे शीघ्रता से विकास को प्राप्त होते हुए विषय की अपने आप में हानि होगी बल्कि शिक्षा में बढ़ते हुए कदमों को भी एक भारी झटका लगेगा।इस अवस्था में इसलिए यही होना चाहिए कि हम शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र और उसकी सीमाओं को बांधने की चेष्टा न करके उसे उन्मुक्त रूप में खुला छोड़ दें ताकि उसके अन्दर उन सभी बातों का समावेश होता रहे जो शिक्षा जगत् की समस्याओं का समाधान करने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत जन्म ले रही हैं।
शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य एवं कार्य(Objectives and Functions of Educational Psychology)
शिक्षा मनोविज्ञान को अपने सार्थक रूप में शिक्षा का विज्ञान कहा जाता है।इस अर्थ में शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षा की प्रक्रिया और परिणामों से जुड़े हुये सभी व्यक्तियों के लिये वह सब कुछ प्रदान किये जाने के प्रयत्न अवश्य होने चाहियें जिनमें इन सभी को अपने-अपने उत्तरदायित्वों के निर्वाह में समुचित सहायता मिल सके।इस दृष्टि से शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति और उसके उपयोग क्षेत्र की वृहदता को ध्यान में रखते हुये शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन सम्बन्धी उद्देश्यों एवं कार्यों को निम्न पाँच वर्गों में विभाजित करके भली-भांति समझा जा सकता है :
A.विद्यार्थियों को उनके अधिगम कार्य में सहायता पहुंचाना तथा उनके सर्वांगीण विकास के लिये प्रयत्नरत रहना
B.अध्यापकों को उनके शिक्षण कार्य में सहायता पहुंचाना तथा अन्य शिक्षक उत्तरदायित्वों के निर्वाह में भी भरसक मदद करना।
C.शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत निर्देशन एवं परामर्श सेवा प्रदान करने वाले व्यक्तियों को अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने में सहायक सिद्ध होना।
D.शिक्षा अधिकारियों तथा प्रशासकों जैसे शैक्षिक नियोजनकर्त्ताओं,नीति निर्धारकों, पाठ्यक्रम निर्माणकर्त्ताओं,मूल्यांकन कार्य से जुड़े हुये व्यक्तियों,शैक्षिक प्रशासकों तथा प्रबंधकों आदि को अपने-अपने उत्तरदायित्वों के निर्वाहन में यथेष्ट सहायता प्रदान करना।
E.शैक्षिक अनुसंधानकर्त्ताओं को शिक्षा की प्रक्रिया तथा परिणामों में यथेष्ट सुधार लाने हेतु अपने-अपने कार्यों को ठीक प्रकार करने हेतु यथोचित सहायता प्रदान करना।इस प्रकार यह भली-भांति देखा जा सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान अपने वृहद् कलेवर के साध शिक्षा से जुड़े हुये सभी उपभोगकर्त्ताओं तथा प्रबन्धकर्ताओं की आवश्यकताओं को समुचित रूप से पूरा करने की पर्याप्त क्षमता रखता है और इस दृष्टि से यह पूरी तरह प्रमाणित हो जाता है कि शिक्षा मनोविज्ञान सही तौर पर शिक्षा का विज्ञान ही है क्योंकि इससे शिक्षा सम्बन्धी सभी कार्यों के उचित संपादन मेंरत सभी व्यक्तियों, समूहों तथा संस्थाओं को अपने अपने उत्तरदायित्वों के निर्वाहन हेतु सभी प्रकार की संभव सहायता प्रदान करने की प्रभावी भूमिका निभाई जाती है। शिक्षा मनोविज्ञान की शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में भूमिका(Role of Educational Psychology in the Teaching-Learning Process)
पिछले पृष्ठों में शिक्षा मनोविज्ञान की अवधारणा पर विचार करते हुये हमने यह स्पष्ट किया कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का विज्ञान है और जैसे विज्ञान हमारे जीवन में विविध कार्यों के संपादन में हमारी प्रभावपूर्ण ढंग से मदद करता है वैसी ही भूमिका शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा शिक्षा क्षेत्र में निभाई जाती है।विद्यालय सम्बन्धी शिक्षा प्रक्रिया के व्यावहारिक स्वरूप के दर्शन हमें कक्षा-कक्षों में अध्यापकों के नेतृत्व में सम्पन्न शिक्षण अधिगम गतिविधियों के रूप में ही भली-भाँति होते हैं और इस दृष्टि से अब यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि क्या शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को भी अपनी विज्ञान की प्रकृति तथा उसकी विषय-वस्तु में उपलब्ध सिद्धान्तों,विधियों तथा उपागमों द्वारा उसी तरह सहायता प्रदान की जा सकती है जैसी कि विज्ञान विषयों द्वारा हमें अपनी दिन-प्रतिदिन की दुनिया और कार्यक्षेत्रों में दी जाती है।अगर ध्यान से देखें तो अवश्य ही ऐसा होता है।शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान एक अध्यापक को अच्छा अध्यापक तथा एक विद्यार्थी को अच्छा विद्यार्थी बनने में यथोचित सहायता करता है और साथ ही इन दोनों की अन्तःक्रिया के फलस्वरूप चल रही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को भी वांछित दिशा और दशा प्रदान करने में अपनी प्रभावी भूमिका निभाता है।इस दृष्टि से जब यह प्रश्न उठता है कि शिक्षा मनोविज्ञान को शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में क्या भूमिका होती है तो इस प्रश्न का उत्तर भली-भांति आगे लिखे गए तीन प्रश्नों के उत्तरों के आधार पर ठीक तरह विश्लेषित किया जा सकता हैं।
A.शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान शिक्षक के तौर पर अपनी भूमिका निभाने में शिक्षकों की सहायता करने हेतु शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा क्या भूमिका निभाई जा सकती है ?
B.शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान विद्यार्थी के तौर पर अपनी भूमिका निभाने में विद्यार्थियों की सहायता करने हेतु शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा किस प्रकार की भूमिका निभाई जा सकती है ?
C.शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को उसके सम्पूर्ण रूप में सुचारू रूप से चलाने में शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा किस प्रकार की भूमिका निभाई जा सकती है ?
आइये इन तीनों प्रश्नों के उत्तर तलाशने के प्रयत्न किये जाये।
A.शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षा मनोविज्ञान एक शिक्षक की किस प्रकार सहायता करता है ?(How does Educational Psychology help the teacher in teaching-learning process ?)मनोविज्ञान अपने आप में तथा अपने महत्त्वपूर्ण शाखा शिक्षा मनोविज्ञान के माध्यम से शिक्षकों को अपने उत्तरदायित्वों को निभाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तव में देखा जाये तो एक शिक्षक की शिक्षा जगत में वही भूमिका होती है जो एक बांध या पुल बनाने वाले मिस्त्री या कारीगर की। वास्तविक जिन्दगी में होती है। हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि किसी मिस्त्री या कारीगर को जितनी अधिक तकनीकी या वैज्ञानिक जानकारी और प्रायोगिक कुशलता उसके पास बांध या पुल बनाने की होगी, उतनी ही अच्छी तरह से वह अपने कार्य को कर पायेगा। ठीक यह बात शिक्षक के साथ भी होती है।शिक्षा मनोविज्ञान ही उसके द्वारा प्रदत्त शिक्षा का विज्ञान और तकनीकी शास्त्र होता है। उसे जितना अच्छा ज्ञान और व्यावहारिक कौशल अपने इस विज्ञान और तकनीकी शास्त्र से प्राप्त होगा, उतनी ही अधिक सार्थकता उसे अपने शिक्षण अधिगम प्रयत्नों में मिल सकेगी। एक तरह से उसके शिक्षण तथा शिक्षक सम्बन्धी जो भी उत्तरदायित्व होंगे,उनका भली-भांति निर्वाह होना इस बात पर ही निर्भर करेगा कि उसे कितना और किस सीमा तक शिक्षा मनोविज्ञान का सैद्धान्तिक तथा व्यवहारात्मक ज्ञान है।शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में उसका कार्य विद्यार्थियों को शिक्षा देना यानी उनके व्यवहार में यथानुकूल परिमार्जन कर उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है।आइये, इस दृष्टि से शिक्षा मनोविज्ञान उसको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में कहाँ तक सफल सिद्ध हो सकता है,इस बात की चर्चा शिक्षक के द्वारा निभाये जाने वाले प्रमुख उत्तरदायित्वों के संदर्भ में की जाये।
1.विद्यार्थी को जानना(To know the learner)
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के सफल संचालन हेतु एक अध्यापक को बच्चों की शक्तियों और योग्यताओं का पता होना अति आवश्यक है। इसके बिना वह अपने कार्य में बिल्कुल आगे नहीं बढ़ सकता। शिक्षा मनोविज्ञान बच्चों के बारे में कुछ आगे लिखी बातें जानने में सहायता करता है :
(i)बच्चों के दृष्टिकोण,रुचियों,अभिरुचियों तथा अन्य अर्जित एवं जन्मजात योग्यताओं तथा शक्तियों का ज्ञान।
(ii)उनकी सामाजिक,संवेगात्मक,बौद्धिक,शारीरिक और सौन्दर्यात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उसके विकास के विभिन्न आयाम।
(iii) उनकी प्रगति करने की लालसा का स्तर।
(iv)उनका चेतन,अर्धचेतन एवं अचेतन व्यवहार ।
(v)उनका अभिप्रेरित व्यवहार।
(vi)समूह के अन्तर्गत उनके द्वारा किया जाने वाला व्यवहार।
(vii)उनका अपने परिवेश में समायोजन और उसके मानसिक स्वास्थ्य का स्तर।
2.विषय-वस्तु अथवा सीखने सम्बन्धी अनुभवों का चयन एवं आयोजन(To select and organise the subject matter or learning experiences)
बच्चों को जानने के पश्चात् जब उन्हें शिक्षा देने के लिए रंगमंच कुछ तैयार हो जाता है तो कुछ निम्न प्रकार की समस्याएं सामने आती हैं :
(a)शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में किस स्तर पर किस प्रकार के सीखने सम्बन्धी अनुभव अथवा सामग्री विद्यार्थियों को दी जानी चाहिए ?
(b)अनुभवों और सामग्री चयन करने के पश्चात् उसका क्रमबद्ध आयोजन किस प्रकार किया जाना चाहिए?इस प्रकार की शिक्षण-अधिगम सामग्री के प्रदान से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान के लिए न केवल बच्चे के विकास की अवस्थाओं से सम्बन्धित प्रमुख विशेषताओं से परिचित होना आवश्यक है,बल्कि सीखने के नियमों,सिद्धान्तों एवं सभी अनुकूल तथा प्रतिकूल परिस्थितियों का ज्ञान भी आवश्यक है।इन सभी बातों को जानने में केवल शिक्षा मनोविज्ञान ही अध्यापक की सहायता कर सकता है।
3.अध्यापन एवं सीखने की कला और तकनीक सुझाना(To suggest art and techniques of learning as well as teaching)
बच्चों को जानने और उसे क्या सिखाया जाना है, यह तय करने के पश्चात् सिखाया किस प्रकार जाए अथवा सीखा कैसे जाए, यह प्रश्न सामने आता है।इसका समाधान भी शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा मिलता है। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की प्रक्रिया का विवेचन करते हुए आवश्यक नियमों एवं सिद्धान्तों को सामने लाता है तथा किस प्रकार से अच्छी तरह सिखाया जाए अथवा सीखा जाए,इस तथ्य से शिक्षकों को अच्छी तरह अवगत कराता है।सीखने की प्रक्रिया में विद्यार्थी विशेष की रुचि कैसे जागृत की जा सकती है तथा उसके ध्यान को कैसे केन्द्रित किया जा सकता है,आदि महत्त्वपूर्ण बातें शिक्षा मनोविज्ञान द्वारा ही शिक्षक को मालूम पड़ती है।इस प्रकार से शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को यह बतलाने की चेष्टा करता है कि विद्यार्थी को किस प्रकार कुछ सिखाया जाए,दूसरे शब्दों में शिक्षा मनोविज्ञान उचित शिक्षण विधियों को जन्म देता है।इसके द्वारा ही यह सुझाव मिलता है कि कोई एक विधि अथवा तकनीक सभी परिस्थितियों में सभी प्रकार के विद्यार्थियों के लिए उचित नहीं ठहराई जा सकती।अतः परिस्थितियों को देखते हुए अध्यापक को अपनी विषय-सामग्री तथा अपने विद्यार्थियों के अनुकूल उपयुक्त विधि का चुनाव करने का शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान उसकी पूरी-पूरी मदद करता है।
4.सीखने के लिए उचित परिस्थितियों एवं वातावरण का आयोजन(To arrange suitable learning situations or Environment)
अध्यापन के समय उपलब्ध वातावरण एवं परिस्थितियों का भी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अपना एक विशेष महत्त्व है। शिक्षा मनोविज्ञान हमें यह बताता है कि किस प्रकार के अध्यापन और अध्ययन के लिए किस प्रकार की परिस्थितियों एवं वातावरण की आवश्यकता है।किस समय व्यक्तिगत शिक्षण की आवश्यकता है तो किस समय सामूहिक की सहायक सामग्रियों का प्रयोग कब और कैसे उचित वातावरण तैयार करने में सहायक सिद्ध हो सकता है ?किस प्रकार की परिस्थितियां विद्यार्थियों को सीखने एवं कार्य करने को अधिक से अधिक प्रेरित कर सकती हैं ? इस प्रकार से शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान द्वारा एक शिक्षक उपलब्ध परिस्थितियों एवं वातावरण को नियन्त्रित कर उसे अपने शिक्षण और अध्यापन के अनुकूल ढालने के उचित प्रयास में सफल हो सकता है।
5.उचित अनुशासन स्थापित करने में सहायता करना(To help in maintaining proper discipline)
शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की रचनात्मक अनुशासन स्थापित करने में बहुत सहायता करता है। अनुशासन सम्बन्धी समस्याएं मूल रूप में व्यवहार सम्बन्धी समस्याएं ही होती हैं जो कि अध्यापक एवं विद्यार्थियों के असन्तुलित व्यवहार एवं टूटते सम्बन्धों के कारण उत्पन्न होती हैं।शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थियों के व्यवहार के अध्ययन से अपना सम्बन्ध रखता है।अतः हमें विद्यार्थियों को निकट से जानने में बहुत सहायता कर सकता है।उनकी आवश्यकताओं, व्यवहार और क्षमताओं से यह हमें परिचित कराता है।आपसी व्यवहार को ठीक रूप देने में इससे बहुत सहायता मिलती है जिस से शिष्य और गुरु के बीच सम्बन्धों में पर्याप्त मधुरता लाई जा सकती है और रचनात्मक अनुशासन बनाये रखा जा सकता है और यही बात एक शिक्षक को शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में पर्याप्त रूप से सहयोगी सिद्ध हो सकती है। विशेषतया बालकों को भली-भांति समझकर बहुत सी कक्षा-कक्ष व्यवहार समस्याओं के समाधान में यहां एक अध्यापक को काफी फायदा रहता है।
6.वंशक्रम तथा वातावरण की भूमिका को समझने में सहायता करना(To help in understanding the roles of heredity and environment)
वंशक्रम तथा वातावरण दोनों विद्यार्थियों की वृद्धि एवं विकास में किस प्रकार का योगदान देते हैं। इस बात की जानकारी शिक्षकों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को एक वांछित रूप प्रदान करने में भली-भांति सहायता कर सकती है।उन्हें यह स्पष्ट आभास हो जाता है कि वंशक्रम द्वारा प्रदत्त बातों में तो बदलाव लाना उसकी वश की बात नहीं है परन्तु सीखने जैसी क्रिया तो वातावरणजन्य कारकों से ही ज्यादा प्रभावित होती है और ऐसे अर्जित व्यवहार के अर्जन में वातावरण का ही विशेष योगदान रहता है।अतः बालकों की कमियों का दोष वंशक्रम. के माथे न मढ़ कर उसे अपनी ओर से ऐसे प्रयास करने चाहिये कि बालकों को अच्छे शिक्षण-अधिगम के माध्यम से अपना विकास करने के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध हो सकें। कहना न होगा कि इस प्रकार का ज्ञान उसे शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन द्वारा ही संभव हो सकता है।
7.मापन एवं मूल्यांकन में सहायता (Helping in Evaluation and Assessment)
शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत मापन एवं मूल्यांकन की महत्त्वपूर्ण विधियों एवं उपकरणों का ज्ञान भी सम्मिलित होता है। अतः इसके अध्ययन से शिक्षक को विद्यार्थियों की योग्यता और क्षमताओं के उचित मूल्यांकन में भी पर्याप्त सहायता मिल सकती है।यह भी हम अच्छी तरह जानते कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान शुरू से लेकर अंत तक एक अध्यापक को इस प्रकार के मूल्यांकन की ज़रूरत पड़ती रहती है।शुरू में बालकों के प्रारम्भिक व्यवहार(entry behaviour) का पता लगाना होता है तथा अंत में शिक्षण-अधिगम के फलस्वरूप होने वाले अंतिम व्यवहार(terminal behaviour) की जाँच करनी होती है ताकि यह पता चल सके कि शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की पूर्ति किस सीमा तक हो पाई है।बीच में भी मूल्यांकन तकनीकों के द्वारा यह निदान करना आवश्यक हो जाता है कि शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया उद्देश्य पूर्ति की राह पर ठीक प्रकार चल रही है या नहीं। इन सभी बातों को ठीक तरह क्रियान्वित करते रहने में शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान अध्यापकों के लिये यथेष्ट रूप से सहयोगी सिद्ध हो सकता है।
8.मार्ग दर्शन में सहायता(To help in rendering Guidance)
अध्यापक मापन एवं मूल्यांकन 'की विधियों से अच्छी तरह परिचित होकर बालकों को जितना जान सकता है उतना शायद उनके माता पिता भी नहीं जान सकते। विद्यार्थियों को ठीक प्रकार जानने के अतिरिक्त शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान अध्यापक को निर्देशन एवं परामर्श सम्बन्धी सभी आवश्यक तथ्यों का अध्ययन करने का अवसर भी देता है इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सफलता प्राप्त करने हेतु विद्यार्थियों के उचित मार्ग दर्शन में अध्यापक की बहुत सहायता कर सकता है।
9.समस्यात्मक बालकों की सहायता करना(Helping the problem children)
कुछ बच्चे अति साधारण होते हैं। वे या तो पढ़ाई में पिछड़े हुए होते हैं अथवा अपनी अधिक मेधावी शक्ति के कारण उन्हें कक्षा में अन्य बच्चों के साथ तथा कभी-कभी अध्यापकों के साथ अपनी पटरी बिठाने में कठिनाई होती है। कुछ के अन्दर अपराधी प्रवृति पाई जाती है। ऐसे सभी बच्चों के उचित समायोजन में और उनसे यथानुकूल व्यवहार कर उन्हें ठीक रास्ते पर लाने के कार्य में शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक की काफी सहायता कर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की सफलता में उचित योगदान दे सकता है।
10.स्वयं अपने आप को समझना(To know about himself)
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में. अध्यापक को अपने कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए जितना विद्यार्थी को जानना आवश्यक है उतना ही स्वयं अपनी न्यूनताओं तथा विशेषताओं से परिचित होना भी अनिवार्य है। विशेष शिक्षण अधिगम परिस्थितियों में वह स्वयं कैसा व्यवहार करता है तथा उसकी अपनी रुचियों, आदर्श एवं दृष्टिकोण किस प्रकार के हैं, इस बात का पता होना भी एक सफल अध्यापक के लिए आवश्यक है। उपलब्ध वातावरण एवं परिस्थितियों से उसका समायोजन उसकी अपनी सफलता की पहली सीढ़ी है। अपने आपको पहचान कर परिस्थितियों को देख कर अपना समायोजन करते हुए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में आगे बढ़ते रहने में शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान अध्यापक की बहुत सहायता कर सकता है।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में एक शिक्षक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की उपयोगिता ऊपर बताये गये कुछ कार्यों तक ही सीमित नहीं है।अध्यापक का कार्य काफी बड़ा है और इस तरह से उसकी साधन सम्पन्न होने सम्बन्धी आवश्यकताएं भी बहुत हैं। शिक्षा मनोविज्ञान को शिक्षा का विज्ञान होने के नाते शिक्षक की उसकी सभी समस्याओं एवं कार्यक्षेत्र में कुछ-न-कुछ सहायता अवश्य ही करनी चाहिए और वह करता भी है। इसका ज्ञान उसे केवल कक्षा-कक्ष के अन्दर चलने वाली शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को ठीक तरह अंजाम देने तक ही सीमित नहीं रह जाता बल्कि शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के सभी प्रारूपों (चाहे वे औपचारिक हो या अनौपचारिक, पाठ्यक्रम विषयों के अध्यापन से सम्बन्धित हो या फिर सह पाठ्य क्रियाओं के कुशल संचालन में) को ठीक तरह संगठित करने में पूरी-पूरी मदद करता है।
B.शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षा मनोविज्ञान एक विद्यार्थी की किस प्रकार सहायता करता है ?(How does Educational Psychology help Student in Teaching-Learning Process?)
विद्यार्थियों को अपने अधिगम,व्यवहार, परिमार्जन एवं व्यक्तिगत विकास के कार्य में शिक्षा मनोविज्ञान विविध रूप से सहयोगी सिद्ध हो सकता है। वास्तव में शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-वस्तु, नियम, सिद्धान्त, विधियों एवं तकनीकों का अधिगम की प्रक्रिया और परिणामों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। दूसरे शब्दों में सीखने वाले को भी सभी दृष्टि से अधिगम उद्देश्यों की वांछित प्राप्ति कराने हेतु शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान बहुत सहायक सिद्ध होता है। संक्षेप में, शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा विद्यार्थियों को अधिगम की प्रक्रिया और उसके परिणामों की प्राप्ति के संदर्भ में विभिन्न प्रकार के कार्यों के सम्पादन द्वारा निम्न लाभों की प्राप्ति हो सकती है
1.उन्हें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को जानने और समझने में सहायता मिल सकती है।इससे वे अपने आप से भली-भांति परिचित हो सकते हैं।अपनी महत्त्वाकांक्षा के स्तर को अपनी योग्यता और क्षमता के स्तर के अनुकूल समायोजित कर सकते हैं।
2.अभिप्रेरणा और अधिगम के सिद्धान्तों एवं विधियों की जानकारी उन्हें सीखने के लिए अभिप्रेरित करने तथा सीखने में भली-भांति मदद करने में सहायक बन सकती है।
3.अवधान(Attention) की प्रक्रिया तथा सहायक तत्त्वों का ज्ञान और व्यवधान (Distraction) सम्बन्धी बातों की जानकारी उन्हें सीखने की प्रक्रिया में ध्यानरत रहने में भली-भांति मदद कर सकती है।
4.अधिगम और प्रशिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति में अपने आप से तथा अपने वातावरण से समायोजन करने में कितना लाभ है,यह जानकारी उन्हें जीवन में सफल रहने की ओर अग्रसर कर सकती है।
5.समूह गतिशास्त्र(Group Dynamics) तथा समूह व्यवहार(Group Behaviour) आदि से सम्बन्धित बातों की जानकारी उन्हें अपने व्यवहार को कक्षा या समूह व्यवहार तथा शिक्षण अधिगम परिस्थितियों के अनुकूल ढालने में सहायता कर सकती है।
6.मनोविज्ञान व्यवहार विज्ञान के रूप में विद्यार्थियों को दूसरों के व्यवहार को समझने, समायोजित होने तथा परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है।शैक्षिक परिस्थितियों में विद्यार्थियों द्वारा इस दिशा में क्या किया जाना चाहिए,शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान और कौशल उनकी इस दिशा में काफी मदद कर सकता है और परिणामस्वरूप उन्हें अधिगम में सजग रहकर ठीक प्रकार के परिणामों की प्राप्ति में अनुकूल सहायता मिल सकती है।इस तरह शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के दौरान उसमें अपनी ओर से आवश्यक अंतः क्रिया कर उसे सजीव बनाने तथा अधिक से अधिक अधिगम अनुभव अर्जित कर निर्धारित अधिगम उद्देश्यों को भली भांति प्राप्त करने में विद्यार्थियों द्वारा जो भी आवश्यक भूमिका निभाई जा सकती है उसे ठीक प्रकार निभाने में शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान उनकी काफी सहायता कर सकता है।
C.शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को उसके सम्पूर्ण रूप में सुचारू रूप से चलाने में शिक्षा मनोविज्ञान किस तरह उपयोगी है ?(How the Overall Process of Teaching Learning being
helped by Educational Psychology ?)
जैसा कि अभी तक कहा जा चुका है, उससे स्पष्ट है कि एक प्रकार से चाहे शिक्षकों द्वारा शिक्षण क्रियाएं सम्पन्न होती हों या विद्यार्थियों द्वारा अधिगम में रत होकर अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति करनी हो, ऐसे सभी प्रयत्नों में शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान और कौशल बहुत मूल्यवान सिद्ध हो सकता है। यही कारण है कि शिक्षक मनोविज्ञान और शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में एक विशेष प्रकार का उपभोग सामग्री तथा उपभोक्ता जैसा गहरा सम्बन्ध पाया जाता है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया से जुड़ी हुई सभी बातों, परिस्थितियों तथा व्यक्तियों को उनके अपने-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कराने में शिक्षा मनोविज्ञान की शैक्षणिक संदर्भ युक्त व्यावहारिक जानकारी अनेक प्रकार से बहुमूल्य सहयोग प्रदान करने में सदैव जुटी रहती है और इसी में सभी का वैयक्तिक एवं सामूहिक हित भी छुपा हुआ है। शिक्षा मनोविज्ञान किसी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को उसके सम्पूर्ण रूप में सुचारू रूप से चलाने में विविध तरीकों से अपना बहुमूल्य योगदान देता हुआ विद्यार्थियों का अधिक से अधिक हित चिन्तन करता पाया जा सकता है। इस बात की पुष्टि कुछ विद्यार्थियों (जिनके लिये शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का आयोजन होता है) द्वारा उठाये जाने वाले निम्नलिखित लाभों के आधार पर भली-भांति हो सकती है।
1.वंशानुकूल और वातावरण के संप्रत्यय,प्रक्रिया और अधिगम पर पड़ने वाले प्रभावों की सही जानकारी व्यर्थ के दुष्प्रचार से बचा सकती है।विशेषकर वे बालक जो निम्न जाति,वंश,पिछड़े वर्ग, प्रदेश,अल्प बुद्धि और अपंग मां-बाप की संतान हैं,सही जानकारी प्राप्त कर हीनता और निराशा के भावों को तिलांजलि देने में कामयाब हो सकते हैं तथा अपने परिश्रम से वातावरण को अपने अनुकूल ढालने का प्रयत्न कर सकते हैं।
2.अधिगम प्रक्रिया पर संसाधनों और सीखने सम्बन्धी परिस्थितियों के प्रभाव की जानकारी उन्हें ऐसी परिस्थितियों में अधिगम ग्रहण करने को अग्रसर कर सकती है जिनसे अधिगम के अच्छे से अच्छे परिणामों की प्राप्ति हो सके।
3.स्मृति सम्बन्धी प्रक्रिया की जानकारी उन्हें ठीक प्रकार स्मरण करने, धारणा शक्ति को बढ़ाने वाली उपयुक्त रूप से भण्डारण कर सकने तथा आवश्यकतानुसार स्मृति में संजोयी बातों का उपयोग कर सकने में मदद कर सकती है और इस प्रकार की क्षमता उनके अधिगम में काफ़ी सहायक सिद्ध हो सकती है।
4.सीखने तथा प्रशिक्षण का एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरण उन्हें अधिगम प्रक्रिया में काफ़ी सहयोगी सिद्ध हो सकता है।
5.अच्छी आदतें कैसे सीखी जाती हैं तथा बुरी आदतों से किस प्रकार छुटकारा पाया जा सकता है,इस प्रकार की व्यवहार परिमार्जन(Behaviour modification) तकनीकें उन्हें अधिगम द्वारा अच्छे परिणामों की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर कर सकती हैं।
6.बालकों के उचित व्यक्तित्व विकास के लिए सभी पक्षों का संतुलित एवं समन्वित विकास होना आवश्यक है।यह जानकारी सभी आयामों-शारीरिक,मानसिक, संवेगात्मक,सामाजिक,नैतिक, सौन्दर्यात्मक आदि के सन्तुलित विकास की ओर ध्यान दिलाकर अध्यापक और विद्यालय द्वारा इस ओर किये गये प्रयत्नों में सफलता हासिल करने में सहायता कर सकती है।
निष्कर्ष रूप में इस तरह शिक्षा मनोविज्ञान,शिक्षकों को उनके शिक्षण,विद्यार्थियों को उनके अधिगम तथा सम्पूर्ण शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अपने सभी निर्धारित शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में समुचित रूप से सहायक बनकर विद्यार्थियों के अधिक से अधिक हित चिन्तन में अपनी प्रभावशील भूमिका निभाता हुआ दिखाई दे सकता है।
Reference -uma Mangal and SK Mangal