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थोर्नडाइक का संयोजनवाद अथवा सीखने की प्रयास एवं त्रुटि विधि (Thorndike's connectionism or Trial and Error learning)
Aug 31, 2022   Ritu Suhag

थोर्नडाइक का संयोजनवाद अथवा सीखने की प्रयास एवं त्रुटि विधि (Thorndike's connectionism or Trial and Error learning)

थोर्नडाइक ने मुर्गियों, चूहों और बिल्लियों पर अनेक प्रयोग किए तथा इन प्रयोगों के आधार पर सीखने सम्बन्धी अपने नियमों तथा सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया । इन प्राणियों को उसने सीखने सम्बन्धी विभिन्न परिस्थितियों में रखा और उनकी सीखने की प्रक्रिया का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया। उसके द्वारा किए गए एक प्रयोग को उदाहरण के लिए नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है ।

थोर्नडाइक ने एक भूखी बिल्ली को एक उलझन संदूक (Puzzle Box) में बन्द कर दिया । संदूक इस प्रकार बनाया गया था कि उसमें केवल एक दरवाज़ा था जोकि एक लीवर के ठीक प्रकार दबने से खुल सकता था । संदूक से बाहर कुछ दूरी पर भोजन सामग्री के रूप में एक मछली रख दी गई । मछली की गंध ने इस परिस्थिति में एक शक्तिशाली अभिप्रेरक (Motive) का कार्य किया और बिल्ली सन्दूक से बाहर आने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करने में जुट गई।इस प्रकार बिल्ली ने सभी तरह से उल्टे सीधे पंजे चलाए तथा उछल कूद की।इन उल्टे सीधे प्रयत्नों के फलस्वरूप एक बार संयोगवश उसका पंजा लीवर पर ठीक तरह से पड़ गया और दरवाजा खुल गया बिल्ली ने बाहर निकल कर अपनी भूख शांत कर ली।दूसरी बार फिर प्रयोग को दोहराया गया।बिल्ली को भूखा रख कर उसी संदूक में बन्द कर दिया गया।मछली की गंध ने फिर बिल्ली को संदूक से बाहर आने के लिए अभिप्रेरित किया तथा बिल्ली ने फिर वही उल्टी सीधी उछल कूद,नोचना,खरोंचना शुरू कर दिया तथा पहले की तरह ही अब भी काफ़ी प्रयत्नों के बाद लीवर पर पैर अचानक पड़ने से दरवाज़ा खुला।परन्तु इस बार दरवाजा खुलने में कम समय लगा।इस प्रकार की प्रयोग सम्बन्धी क्रिया कई बार दोहराई गई और यह पाया गया कि बिल्ली के उल्टे सीधे प्रयत्नों की संख्या धीरे-धीरे कम होती गई और उसे बाहर निकलने में जितना समय लगता था उसकी मात्रा घटती चली गई, यहां तक कि बिल्ली ने बिना कोई त्रुटि किए पहली बार में ही लीवर को ठीक प्रकार दबा कर दरवाज़ा खोल दिया।इस प्रकार से प्रयास करते-करते बिल्ली दरवाजा खोलना सीख गई।यह प्रयोग सीखने की प्रक्रिया में निम्न सोपानों की उपस्थिति का संकेत देता है :

1.चालक (Drive) या अभिप्रेरक (Motive)- प्रस्तुत प्रयोग में भूख ने चालक या अभिप्रेरक का कार्य किया । गन्ध ने बिल्ली को और अधिक उत्तेजित बना दिया ।

2. लक्ष्य (Goal)- संदूक से बाहर निकल कर मछली खाना ।

3.लक्ष्य प्राप्ति में बाधा (Block in achieving goal)- संदूक से बाहर निकलने का रास्ता बन्द था।

4.उल्टे-सीधे प्रयत्न (Random Movements) - बिल्ली ने बाहर निकलने के लिए सभी तरह के उल्टे सीधे प्रयत्न किए ।

5.संयोगवश सफलता मिलना (To get chance success)- अपने उल्टे सीधे प्रयत्नों को करते रहने में संयोगवश उसका एक प्रयत्न सफल हो गया ।

6.सही प्रयत्न का चुनाव (Selection of proper movement)- उल्टे-सीधे (सही-ग़लत)प्रयत्नों में से दरवाजा खुलने का जो सही तरीका था उसे बिल्ली द्वारा चुन लिया गया 

7.स्थिरता (Fixation)- अन्त में बिल्ली ने तमाम गलत प्रयत्नों को छोड़ कर सही प्रयत्न करना सीख लिया और वह बिना किसी त्रुटि के पहले ही प्रयास में दरवाजा खोलना सीख गई।थोर्नडाइक ने उपरोक्त प्रयोग में बिल्ली द्वारा संदूक खोलना सीखने की विधि को प्रयास एवं त्रुटि विधि अथवा प्रयत्न एवं भूल विधि (Trial and Error Method) की संज्ञा दी। उसने कहा कि सीखने में हम निरन्तर प्रयास करते हुए अपनी भूलों या त्रुटियों को कम करते जाते हैं और इस तरह से ग़लत अनुक्रियाओं (Incorrect Responses) के स्थान पर सही अनुक्रियाओं (Correct Responses) को व्यक्त करना सीख जाते हैं।

थोर्नडाइक के सीखने के नियम(Thorndike's Laws of Learning)

थोर्नडाइक ने अपने प्रयत्न एवं त्रुटि सिद्धान्त को आधार बना कर सीखने सम्बन्धी कई नियमों का प्रतिपादन किया इनमें से कुछ मुख्य नियमों की चर्चा नीचे की जा रही है:

1.तत्परता का नियम (Law of Readiness)-

यह नियम सीखने की प्रक्रिया में भाग ले रहे व्यक्ति की मनोस्थिति को प्रकाश में लाता है। जिस काम को सीखा जा रहा है उसे सीखने के लिए अगर मन में उत्कृष्ट अभिलाषा हो तो उसे सीखने में बहुत आसानी होती है अगर जिसे हम सीखना न चाहें उसे बलपूर्वक सिंखाने का प्रयत्न किया जाए तो उसे सीखना कष्टप्रद होता है। अतः सीखने वाले की मनोस्थिति का सीखने की प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव पड़ता है तत्परता का यह नियम हमें यह चेतावनी देता है कि जब तक बच्चे में किसी कार्य को करने या सीखने की पर्याप्त रुचि या इच्छा दिखाई न दे तब तक उसे करने या सीखने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। दूसरी ओर यह भी संकेत देता है कि अगर बच्चा किसी कार्य विशेष को किसी समय या अवस्था में सीखना या करना चाहता है तो उस कार्य विशेष को करने या सिखाने का बहुमूल्य अवसर कभी भी व्यर्थ नहीं खोया जाना चाहिए।इस तरह तत्परता का यह नियम अधिगम की प्रक्रिया में बच्चे की रुचि, अभिरुचि तथा अभिप्रेरणा के महत्त्व को स्थापित करने का प्रयास करता है।

2. प्रभाव का नियम (The Law of Effect) - थोर्नडाइक (Thorndike) ने इसे निम्न शब्दों में प्रस्तुत किया है:1.जब एक परिस्थिति और अनुक्रिया के बीच एक संशोधनशील संयोग बनता है और उसके साथ ही या परिणामस्वरूप सन्तोषजनक अवस्था उत्पन्न होती है तो उस संयोग की शक्ति बढ़ जाती है।जब इस संयोग के साथ या इसके बाद दुःखदायी स्थिति पैदा होती है तो उसकी शक्ति घट जाती है।"When a modifiable connection between situation and response is made and is accompanied or followed by a satisfying state of affairs, that connection's strength is,other things being equal, increased.When a modifiable connection between situation and response is made and accompanied or followed by an annoying state of affairs,its strength is decreased."-सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सीखने के परिणामस्वरूप बच्चे को जब सन्तोष मिलता है अथवा आनन्द की अनुभूति होती है तो उस समय सीखने की क्रिया भली भांति सम्पन्न हो सकती है।इसके विपरीत जब सीखने के फलस्वरूप कोई सन्तोष नहीं मिलता बल्कि पीड़ा या दुःख की अनुभूति होती है तब सीखने की क्रिया में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है मानव स्वभाव ऐसा है कि हम अपने सुखद अनुभव और सफलताओं को सदैव याद रखने का प्रयत्न करते हैं जबकि कटु अनुभव, पीड़ा और असफलताओं को भूल जाना चाहते हैं। इसलिए सीखने के परिणामस्वरूप जो सन्तुष्टि- असन्तुष्टि, प्रसन्नता अप्रसन्नता अथवा सुख-दुख की अनुभूति होती है, उसके ऊपर सीखने की प्रक्रिया की सफलता अथवा असफलता निर्भर करती है।दूसरे शब्दों में थोर्नडाइक का यह नियम सीखने की प्रक्रिया में पुरस्कार और दंड के महत्त्व को प्रकाश में लाता है। बच्चे के सीखने पर यदि उसे कोई पुस्कार दिया जाए अथवा उसकी प्रशंसा की जाए तो उसे आगे और अधिक सीखने को प्रोत्साहन तथा अभिप्रेरणा मिलती है। जबकि किसी भी तरह का दण्ड और भय उसे आगे सीखने के लिए न केवल निरुत्साहित करता है बल्कि उस कार्य को सीखने के प्रति उसमें एक विशेष प्रकार की अरुचि और प्रतिकूल भाव उत्पन्न कर देता है।

3.अभ्यास का नियम (The Law of Exercise)- इस नियम के अन्तर्गत दो उपनियम हैं, जिन्हें क्रमशः उपयोग का नियम (Law of Use) तथा अनुपयोग का नियम (Law of Disuse) के नाम से जाना जाता है।

उपयोग का नियम (Law of Use)- "जब एक संशोधनशील संयोग एक परिस्थिति और अनुक्रिया के बीच बनता है तो अन्य सब बातें समान होने पर उस संयोग की शक्ति बढ़ जाती है।" ("When a modifiable connection is made between a situation and response that connection's strength is, other things being equal, increased.") अनुपयोग का नियम (Law of Disuse ) - "जब कुछ समय एक परिस्थिति और अनुक्रिया के

बीच एक संशोधनशील संयोग नहीं बनता तो उस संयोग की शक्ति घट जाती है ।" "When a modifiable connection is not made between a situation and response, during a length of time that connection's strength is decreased.”सरल शब्दों में उपयोग का नियम यह बताता है कि यदि सीखने की किसी क्रिया को बार-बार दोहराया जाए तो वह अधिक प्रभावपूर्ण और स्थाई बन जाती है। लेकिन अगर सीखने वाली क्रिया को दोहराने के अवसर न मिलें तो इस प्रकार का सीखना विस्मृति के गर्भ में चला जाता है। इस प्रकार से उपयोगिता का नियम, सीखने की प्रक्रिया में अभ्यास और पुनरावृत्ति के महत्त्व को प्रकाश में लाता है।

इसके साथ ही सीखने की प्रक्रिया में पुरस्कार और दण्ड का प्रभाव एक सा नहीं होता और न परस्पर विरोधी होता है । प्रशंसा या पुरस्कार का परिणाम ताड़ना या दण्ड से अधिक प्रभावशाली होता है। प्रसन्नता तथा संतोष मिलने से संयोग जितना दृढ़ होता है,असन्तोष या अप्रसन्नता में वह उतना निर्बल नहीं होता । अतः सीखने की प्रक्रिया में निन्दा,ताड़ना या दण्ड के स्थान पर प्रशंसा,शाबाशी और पुरस्कार के प्रयोग से आशातीत सफलता मिलती हैं।

थोर्नडाइक द्वारा सुझाए गए कुछ और नियम (Some other laws of learning given by Thorndike)

1.बहुरूपी अनुक्रिया या विविध प्रतिक्रियाओं का नियम (Law of multiple response or varied reactions) - यह नियम बताता है कि जब सीखने वाले के सामने कोई नवीन समस्या उत्पन्न होती है तो उस समस्या को सुलझाने के लिए उनके मस्तिष्क में कई विचार उठते हैं तथा वह कई प्रकार से उसे हल करने के बारे में सोचता है।इस तरह उसके व्यवहार में बहुरूपी अनुक्रियाएं तथा विविध प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। वह एक के बाद दूसरा उपाय या तरीका प्रस्तुत समस्या को हल करने के लिए तब तक प्रयोग में लाता रहता है जब तक कि किसी उपाय से उसे पूरी सफलता न मिल जाए ।

2.तत्परता और अभिवृत्ति का नियम (Law of Set and Attitude) -इस नियम के अनुसार सीखने की प्रक्रिया प्राणी की सम्पूर्ण मनोवृत्ति अथवा तत्परता पर आधारित होती है। सीखने वाला एक कार्य को उस समय तक ठीक तरह से नहीं सीख पाता जब तक कि उसका इस कार्य के बारे में एक स्वस्थ दृष्टिकोण अथवा अभिवृत्ति विकसित नहीं हुई हो ।

3.समानता का नियम (Law of Analogy)- इस नियम के अनुसार एक व्यक्ति किसी नवीन परिस्थिति में अपनी अनुक्रिया (Response) व्यक्त करने के लिए पूर्व अनुभवों की सहायता लेता है । तुलना करके वह देखता है कि नवीन परिस्थितियों में अथवा किसी पूर्व परिस्थितियों में कितनी समानता है इस समानता के आधार पर वह नवीन परिस्थितियों में ऐसी अनुक्रियाओं को दोहराता है जो समान परिस्थितियों में पहले सफल हो चुकी हों।

4.सहचारी स्थान परिवर्तन का नियम (Law of Associative Shifting) - यह नियम सीखने वाले की अनुक्रिया के स्थान परिवर्तन से सम्बन्धित है इस नियम के अन्तर्गत थोर्नडाइक ने यह घोषणा की कि कोई भी सम्भव अनुक्रिया (Response) किसी भी उद्दीपन (Stimulus) से प्रतिबद्ध या अनुबन्धित की जा सकती है । अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए थोर्नडाइक ने एक प्रयोग प्रस्तुत किया । इस प्रयोग में एक भूखी बिल्ली को खाना देने के साथ "खड़े हो जाओ" (Stand up) का आदेश देकर खड़ा होने को कहा गया । यह क्रिया कई बार दोहरायी गई। बाद में केवल खड़े हो जाओ (stand up) कहा गया और खाना नहीं दिया गया । यह देखा गया कि खाने के अभाव में भी केवल "खड़े हो जाओ"कहने से ही बिल्ली खड़ी हो जाती है।इस तरह जो अनुक्रिया प्रारम्भ में खाने और आदेश दोनों के लिए थी वह केवल आदेश के प्रति होने लगी।थोर्नडाइक के सहचारी स्थान परिवर्तन के इस नियम ने ही आगे जा कर अनुबन्धन सिद्धान्त (Theory of Conditioning) को जन्म दिया। 

थोर्नडाइक के सिद्धान्त और उसके विभिन्न नियमों का शैक्षिक महत्त्व(Educational Implication of Thorndike's Theory and his various laws of learning)

उसने बताया कि केवल पशु-पक्षी में ही नहीं बल्कि मनुष्यों में भी सीखने की प्रक्रिया प्रायः बार-बार प्रयत्न करने और भूल सुधार कर आगे बढ़ने के रूप में सम्पन्न होती है।एक बच्चा जब गणित के प्रश्नों को हल करता है तब वह प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त को प्रयोग में लाता देखा जा सकता है। समस्या को हल करने के प्रयास में पहले वह एक विधि को अपनाने की चेष्टा करता है।थोड़ी देर बाद कार्य में सफलता न मिलने पर दूसरी विधि को अपनाता है। इस तरह अन्त में प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त का पालन करते हुए अपनी समस्या को हल करने में समर्थ हो जाता है। विषयों को सीखने में ही नहीं बल्कि अनुसन्धान एवं आविष्कारों में भी इस सिद्धान्त की उपयोगिता असन्दिग्ध ही है। उदाहरण के लिए हम आर्कमिडीज सिद्धान्त के आविष्कार के बारे में सोच सकते हैं।आर्कमिडीज़ अपने सम्राट द्वारा सौंपी हुई एक समस्या समाधान के लिए बहुत चिन्तित था।उससे कह दिया गया था कि यदि वह समस्या को हल न कर सका तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।इस प्रकार की आज्ञा उसके लिए एक शक्तिशाली अभिप्रेरक या चालक (Drive) का कार्य कर रही थी।समस्या की गहराई और कठिनता उसके कार्य में बाधक सिद्ध हो रही थी।उसे हल करने के लिए उसने बहुत सोचा तथा प्रयोग किए। इन प्रयत्नों में से एक प्रयत्न अकस्मात जब वह स्नान कर रहा था,सफल हो गया।इस प्रकार उल्टे-सीधे प्रयत्नों को करते रहने तथा त्रुटिपूर्ण समाधानों का त्याग करते हुए अन्त में उसे संयोगवश सफलता मिल गई। इस सफलता के आधार पर उसने अपने नाम से प्रसिद्ध "आर्कमिडीज़ सिद्धान्त" दुनिया के सामने रखा ।इस तरह सीखने तथा ज्ञान की खोज करने में प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है लेकिन सीखने की प्रक्रिया में इसके प्रयोग को अधिक मान्यता और प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिए। वस्तुतः थोर्नडाइक के इस सिद्धान्त में यान्त्रिकता की गन्ध आती है।यह सिद्धान्त सीखने की क्रिया में बिना सोचे समझे अन्धेरे में इधर-उधर हाथ मारने या ऊल जलूल चेष्टा करने की प्रवृत्तियों को जन्म देता है।यह ठीक नहीं है।मानव एक सूझ-बूझ वाला विकसित प्राणी है।उसका अज्ञानी और नासमझ पशुओं की तरह बिना अपनी मानसिक शक्तियों को उपयोग में लाए हुए अनगिनत त्रुटि करते हुए सीखना कदापि श्रेयस्कर नहीं समझा जा सकता।प्रयत्न अवश्य किए जाने चाहिएं परन्तु उन प्रयत्नों में सूझ-बूझ तथा अन्तः दृष्टि अवश्य होनी चाहिए।तभी सीखने की क्रिया अधिक सुगम एवं प्रभावपूर्ण सिद्ध हो सकती है।

जहां तक थोर्नडाइक द्वारा सुझाए गए सीखने सम्बन्धी विभिन्न नियमों का प्रश्न है, यह अच्छी तरह से कहा जा सकता है कि थोर्नडाइक ने इन नियमों के द्वारा अध्ययन-अध्यापन क्षेत्र को बहुत कुछ देने का प्रयत्न किया है।उदाहरण के लिए इन नियमों की देन के रूप में कुछ निम्न तथ्य सामने रखे जा सकते हैं :

1.अध्यापक को इस बात को समझने का प्रयत्न करना चाहिए कि उसके विद्यार्थियों को कौन कौन सी बातें याद रखनी चाहिए जिन बातों को याद रखना है उनसे सम्बन्धित उद्दीपन और अनुक्रियाओं के संयोग को पुनरावृत्ति, अभ्यास कार्य और प्रशंसा तथा पुरस्कार आदि की सहायता लेते हुए अधिक दृढ़ बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। दूसरी ओर जिन बातों को भुलाना है उनसे सम्बन्धित उद्दीपन और अनुक्रियाओं के संयोग को,अनुपयोग और निन्दा,ताड़ना और दण्ड आदि कष्टप्रद परिणामों द्वारा कम शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए ।

2.सीखने से पहले बच्चे को सीखने के लिए तैयार करना अत्यन्त आवश्यक है। जिस बात को बच्चा सीखना चाहता है। उसमें उसकी पर्याप्त रुचि तथा अभिरुचि का होना अत्यन्त आवश्यक है।अतः बच्चे को सीखने के लिए भली-भांति अभिप्रेरित किया जाना चाहिए ।

3.कोई भी नई बात सीखने के लिए पहले जो कुछ भी सीखा जाता है अथवा अनुभव प्राप्त किए जाते हैं वह एक बुनियादी आधार का काम देता है।इसलिए अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान और अनुभवों का समुचित उपयोग करना चाहिए। एक परिस्थिति में जो कुछ भी सीख लिया जाता है उसे दूसरी समान परिस्थितियों में पूरी तरह उपयोग में लाने के प्रयत्न भी किए जाने चाहिएं।बच्चे को अपना कार्य स्वयं करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।समस्या का हल एकदम बच्चे के सामने रख देने की अपेक्षा उसे स्वयं हल खोजने के कार्य में लगाया जाना चाहिए।उसके द्वारा हर सम्भव प्रयत्न करते हुए तथा अपनी त्रुटियों को सुधारते हुए समस्या का सही समाधान ढूंढा जाना चाहिए।थोर्नडाइक के नियमों द्वारा सुझाया गया यह तथ्य ठीक है परन्तु आगे इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए बच्चे को अनावश्यक स्वतन्त्रता एवं ढील नहीं देनी चाहिए। वह अपना समय और शक्ति व्यर्थ में न खोए तथा अपनी त्रुटियों को बार-बार दोहराता न रहे, इस बात की ओर भी ध्यान देना चाहिए तथा प्रयास के समय सूझ बूझ तथा मानसिक शक्तियों का समुचित उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर देना चाहिए।

इस प्रकार से शिक्षा की दुनिया में थोर्नडाइक ने अपने नियमों और सिद्धान्तों के द्वारा बहुत कुछ देने का प्रयास किया हैं इनके द्वारा अधिगम को पूरी तरह से उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्य निर्देशित (Goal Directed) बनाने तथा अभिप्रेरणा (Motivation) को सीखने की प्रक्रिया का बहुमूल्य अंग बनाने का प्रयत्न किया गया है।अधिगम में अभ्यास कार्य तथा पुनरावृत्ति के महत्त्व को समझने तथा प्रशंसा, प्रोत्साहन और पुरस्कार आदि के मूल्य को ठीक ढंग से परखने में थोर्नडाइक ने बहुत ही सूझ-बूझ का परिचय दिया है ।

Reference -Uma Mangal and S.K.Mangal


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