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अन्तः दृष्टि या सूझ द्वारा सीखना (Learning by Insight)
Sep 01, 2022   Ritu Suhag

अन्तः दृष्टि या सूझ द्वारा सीखना (Learning by Insight)

'अन्तः दृष्टि द्वारा सीखना' नामक सिद्धान्त गेस्टाल्टवादी (Gestaltist) मनोवैज्ञानिकों की देन है।इन मनोवैज्ञानिकों में वर्देमीअर (Wertheimer),कोहलर (Kohler),कोफ्फका(Koffka),और लेविन(Lewin) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

गेस्टाल्ट (Gestalt) एक जर्मन शब्द हैं।'गेस्टाल्ट का अर्थ एक आकृति की पूर्णता या समग्रता के रूप में लिया जा सकता है।अत: गेस्टाल्ट सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति किसी वस्तु को आंशिक रूप से नहीं अपितु पूर्ण रूप से सीखता है।वह वस्तु को एक इकाई के रूप में ही देखता है तथा उसके सम्पूर्ण रूप को ग्रहण कर बाद में उसके विभिन्न भागों पर दृष्टि डालता है।इसी कारण किसी फूल को पूर्ण रूप में देख कर तथा समझ कर ही बाद में उसके भागों का विश्लेषण करना अच्छा रहता है।इसी तरह साइकिल के पम्प को अपने पूर्ण रूप में देखने और समझने के बाद उसके भागों का अध्ययन करना अधिक सुगम होता है।'वास्तविक अर्थों में गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिक सीखने को केवल प्रयास करते हुए भूल सुधारने अथवा किसी उद्दीपन के प्रति सहज स्वाभाविक अनुक्रिया व्यक्त करने जैसा कार्य नहीं मानते वे उसे एक उद्देश्यपूर्ण,अन्वेषणात्मक और रचनात्मक प्रक्रिया मान कर चलते हैं।उनके अनुसार सीखने वाला जो कुछ सीख रहा होता है,उसका समग्र रूप में प्रत्यक्षीकरण करता है तथा उसमें निहित संयोगों अथवा संयोजनों (Connections) का ठीक प्रकार विश्लेषण करता है।इस प्रत्यक्षीकरण और विश्लेषण के पश्चात् वह बहुत ही समझदारी से किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है।इन मनोवैज्ञानिकों ने सीखने वाले द्वारा सम्पूर्ण परिस्थिति का प्रत्यक्षीकरण(Perception of the total situation)और बुद्धिमत्तापूर्ण उचित अनुक्रिया व्यक्त करने (reacting intelligently)की योग्यता के लिए अन्तः दृष्टि (Insight) शब्द का प्रयोग किया ।अन्तः दृष्टि या सूझ एक प्रकार की वह मानसिक योग्यता है जो मनुष्यों तथा उच्च श्रेणी के पशुओं में अधिक पाई जाती है। इसके द्वारा किसी भी समस्या का हल अचानक ही मस्तिष्क में आ जाता है।

कोहलर ने अपने बन मानुषों और चिम्पैंजियों की सीखने की प्रक्रिया का वर्णन करने में सबसे पहले इस शब्द 'Insight' का प्रयोग किया।उन्होंने अन्तः दृष्टि या सूझ द्वारा सीखने के नाम से प्रसिद्ध सिद्धान्त को प्रकाश में लाने के लिए कुत्ते,मुर्गियों,वन मानुष तथा चिम्पैंजिओं पर बहुत प्रयोग किए।इनमें से कुछ का वर्णन नीचे किया जा रहा है।

1.अपने एक प्रयोग में कोहलर ने सुल्तान नामक चिम्पैंजी को पिंजरे में बन्द कर दिया और पिंजरे की छत में केले को इस तरह लटका दिया कि वह उछल कर भी उसे प्राप्त न कर सका।पिंजरे में एक और एक लकड़ी का बाक्स भी रख दिया गया। सुल्तान ने उछल-उछल कर केले को प्राप्त करने के अनेक प्रयत्न किए परन्तु वह सफल नहीं हुआ।लेकिन अचानक ही उसे एक विचार सूझा।उसने बाक्स को लटकते हुए केले के नीचे रखा,उस पर चढ़ कर एक छलांग लगाई और इस तरह उसने केले को प्राप्त कर लिया।

2.दूसरे प्रयोग में कोहलर ने समस्या को कुछ अधिक कठिन बनाने का प्रयत्न किया।अब इसमें केले तक पहुंचने के लिए छलांग लगाने में 2 बक्सों की आवश्यकता पड़ती थी चिम्पैंसी ने इस समस्या को भी पहले की तरह ही हल किया।

3.तीसरे प्रयोग में केले को और अधिक ऊंचाई पर लटकाया गया ताकि वह दोनों बक्सों का प्रयोग कर उछलने पर भी हाथ न आए।पिंजरे में एक डंडा रख दिया गया। इस प्रयोग में काफ़ी देर तक चिम्पैंजी दोनों बक्सों को रख कर उछल कूद करता रहा। अचानक ही उसे तरकीब सूझी तथा उसने डंडे का प्रयोग कर केले की प्राप्त कर लिया।

4.एक अन्य पेचीदे प्रयोग में भूखे चिम्पैंजी को पिंजरे में बन्द कर दिया गया तथा पिंजरे में दो विशेष प्रकार के छोटे बड़े डंडे रख दिए गए जिनके सिरे एक दूसरे में फंसाकर एक लम्बा डंडा बनाया जा सकता था।पिंजरे के बाहर केला इतनी दूर रखा गया कि चिम्पैंजी ने अपने हाथ पैरों को इधर उधर चला कर केले को प्राप्त करने की चेष्टा की।कुछ समय बाद एक-एक करके डंडों का प्रयोग किया परन्तु उसे सफलता नहीं मिली।अपने असफल प्रयत्नों के पश्चात् वह चिम्पैंजी डंडों से खेलने लगा।अचानक ही उन दोनों डंडों के सिरे आपस में फंस गए।फिर क्या था चिम्पैंजी ने तुरन्त समझ लिया कि अब लम्बे डंडे से केला प्राप्त किया जा सकता है।उसने इस लम्बे डंडे का प्रयोग किया और केला खींच कर खा लिया।अपने इस प्रकार के प्रयोगों द्वारा कोहलर ने निष्कर्ष रूप में यह घोषणा की कि विभिन्न समस्याओं को हल करने में उसके चिम्पैंजी ने प्रयास एवं त्रुटि विधि(Trial & Error Method)का प्रयोग नहीं किया उसके अनुसार चिम्पैंजियों ने सूझ या अन्तर्दृष्टि (Insight) का प्रयोग कर अपनी समस्याओं को हल करने में सफलता प्राप्त की।चिम्पैंजियों के सूझ या अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने के प्रमाण में उसने निम्न बातें कहीं (a)चिम्पैंजियों ने परिस्थितियों का अपने समग्र रूप में प्रत्यक्षीकरण किया ।

(b)परिस्थितियों में उपलब्ध सामग्री तथा समस्या के हर पहलू का गम्भीरता पूर्वक विश्लेषण कर उचित सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा की।

(c)अन्त में समस्याओं और उनसे सम्बन्धित पहलुओं को तुरन्त ही समझ कर उनका हल उनके मस्तिष्क में अचानक ही कौंध गया।इस प्रकार के प्रयोग अन्य गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों के द्वारा भी किए गए।इन सब प्रयोगों ने यह प्रदर्शित किया कि सूझ द्वारा सीखने की प्रक्रिया में सीखने वालों के द्वारा होने वाला प्रत्यक्षीकरण किसी अवस्था में जाकर इस प्रकार संगठित हो जाता है कि उसे अपनी समस्या का कोई हल यकायक ही सूझ जाता है।इस प्रकार गैस्टाल्ट वादियों ने उल्टे सीधे प्रयत्नों द्वारा इधर-उधर हाथ मार कर तथा अपनी भूलों को सुधार कर आगे बढ़ने के लम्बे मार्ग को छोड़ कर मानसिक शक्तियों को ठीक प्रकार उपयोग में लाते हुए प्रत्यक्षीकरण के क्षेत्र में नवीन व्यवस्था करके समस्या का बौद्धिक समाधान ढूंढने पर बल दिया।

अन्तः दृष्टि अथवा सूझ सिद्धान्त की शैक्षणिक उपयोगिता(Educational Implications of the theory of insightful learning)

अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त ने कुछ निम्न महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रकाश में लाने की चेष्टा की।

(a)सम्पूर्ण अपने अंश अथवा अवयवों से महत्त्वपूर्ण होता है।अतः परिस्थिति का समग्र रूप में प्रत्यक्षीकरण किया जाना चाहिए ।

(b)बिना सोचे समझे ऊल-जलूल प्रयत्न करते हुए उन्हें सुधार कर सफलता प्राप्त करना ठीक नहीं है।सीखने वाले को परिस्थिति का समग्र रूप में अध्ययन कर अपनी मानसिक शक्तियों का पूर्ण उपयोग कर नये प्रतिमान और सम्बन्ध खोज निकालने का प्रयत्न करना चाहिए ताकि समस्या का अन्तर्दृष्टि द्वारा कोई बौद्धिक हल सूझ सके।(c)सीखने में लक्ष्य की स्पष्टता और अभिप्रेरणा (Motivation) एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शिक्षा के क्षेत्र में इस सिद्धान्त ने इस प्रकार के काफ़ी क्रान्तिकारी विचारों को जन्म दिया है। मौटे तौर पर निम्न बातों की प्रेरणा इस सिद्धान्त के माध्यम से प्राप्त हो सकती है:

(a)जब कोई वस्तु पढ़ाई जाए अथवा उसे सीखने के लिए कहा जाए तब उसे अपने समग्र रूप में ही बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए।फूलदार पौधे के भाग अथवा फूल के विभिन्न भागों का ज्ञान कराते समय अध्यापक को प्रारम्भ में भागों का अलग-अलग रूप से ज्ञान नहीं कराना चाहिए बल्कि पौधे अथवा फूल को अपने समग्र रूप में प्रस्तुत कर उसकी सम्पूर्णता से परिचित करा कर ही भागों का अलग-अलग रूप से विश्लेषण करना चाहिए।इसी प्रकार गणित की किसी समस्या को हल करने के लिए समस्या अपने समग्र रूप में बच्चे के सामने रखी जानी चाहिए।फिर सम्पूर्ण समस्या का मनन तथा विश्लेषण करके ही उसे हल करने का प्रयत्न करना चाहिए।इसी प्रकार भाषा सीखने में भी शब्दों से पहले वाक्यों का और अक्षरों से पहले शब्दों का ज्ञान कराया जाना चाहिए ।

(b)पाठ्यक्रम के निर्माण तथा पाठ्यक्रम के संगठन में गेस्टाल्ट सिद्धान्त का पालन किया जाना चाहिए। किसी भी विषय को बिखरे हुए प्रकरणों अथवा तथ्यों का संग्रह मात्र ही नहीं बनाया जाना चाहिए।सारा विषय एक इकाई के समान प्रतीत हो,ऐसा प्रयत्न किया जाना चाहिए।इसी प्रकार विभिन्न विषयों तथा क्रियाओं से युक्त पाठ्यक्रम में पर्याप्त संगठन और एकता के तत्त्व दिखाई देने चाहिएं।

(c)किसी भी कार्य को सिखाने से पहले उससे होने वाले लाभों तथा उद्देश्यों का स्पष्ट ज्ञान आवश्यक है साथ ही अभिप्रेरणाओं को पूरा-पूरा स्थान देने का प्रयत्न भी किया जाना चाहिए।बच्चों में सीखने की इच्छा तथा रुचि पर्याप्त मात्रा में बनी रहे,इस बात के लिए पूरे प्रयत्न करते रहने चाहिए।

(d)सूझ सिद्धान्त का सबसे बड़ा योगदान सीखने की प्रक्रिया में बौद्धिक शक्तियों को अपना उचित स्थान दिलाने को लेकर है।प्रयास एवं त्रुटि विधि ने सीखने को मात्र यान्त्रिक क्रिया बना दिया था।बिना सोचे समझे उल्टे-सीधे प्रयत्न करके सीखने में परिश्रम तथा समय का जो अनावश्यक अपव्यय हो रहा था,उसे समाप्त करने में इस सिद्धान्त ने बहुत सहायता की।मनुष्य दूसरे प्राणियों की अपेक्षा अधिक सूझ-बूझ वाला प्राणी है,अतः उसे ऊल-जलूल प्रयत्न करके सीखना शोभा नहीं देता।उसे अपनी मस्तिष्क की शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए और इसी बात को ध्यान में रखकर अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त ने मानव को अपनी शक्तियों का उचित उपयोग करना सिखाया ताकि वह अपनी समस्याओं का बौद्धिक हल खोज सके।इस प्रकार रटे रटाये ज्ञान को ग्रहण करने अथवा दूसरे के बनाये रास्ते पर चलने की अपेक्षा अपना मार्ग स्वयं ढूंढ कर ज्ञान की स्वयं खोज करने पर इस सिद्धान्त ने बल दिया तथा इस प्रकार के विचारों ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तनों को जन्म दिया।रटने पर जोर देने वाली अथवा मानसिक शक्तियों का प्रयोग न कर गत्यात्मक क्रियाओं पर आधारित विधियों के स्थान पर आधुनिक वैज्ञानिक विधियों जैसे खोज विधि(Heuristic Method),विश्लेषण विधि(Analytic Method),समस्या समाधान विधि(Problem Solving Method) आदि को जन्म देने का श्रेय सूझ सिद्धान्त को ही है।

Reference-uma mangal and s.k.mangal


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