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समाकलित शिक्षा (INTEGRATED EDUCATION)
Jan 17, 2025   Ritu Suhag

समाकलित शिक्षा (INTEGRATED EDUCATION)

समाकलित शिक्षा (INTEGRATED EDUCATION)
विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के बच्चे पढ़ने के लिये आते हैं। जो बच्चे शारीरिक रूप से अक्षम यानि अन्धे, बहरे आदि होते हैं वे एक दम से पहचाने जाते हैं लेकिन जो बालक मानसिक रूप से अस्थिर होते हैं उनको पहचानना काफी मुश्किल कार्य है। जो बालक शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग होते हैं वे सामान्य बच्चों के मुकाबले कुछ कम सीख पाते हैं। विशिष्ट शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार के बच्चों में छिपी हुई योग्यता को उभारना है ताकि उसकी योग्यता का प्रयोग देश के हित में किया जा सके। आज के समय की यह आवश्यकता है कि प्रतिभावान बालकों की ओर ही ध्यान न दिया जाए बल्कि जो बालक सामान्य से कम हैं उनकी तरफ भी उचित ध्यान देकर उनकी योग्यता में और निखार लाया जाये। अगर सामान्य बुद्धि से नीचे वाले बच्चों की तरफ उचित ध्यान दिया जायेगा तो वे बड़े होकर राष्ट्र की उन्नति में सहयोग कर सकेंगे।
शिक्षा-शास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों में इस बात को लेकर काफी मतभेद रहे हैं कि बालकों को विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट विद्यालयों में दी जाये या फिर इनको भी सामान्य विद्यालयों में ही पढ़ाया जाये। आखिरकार यह निर्णय किया गया कि जहां तक सम्भव हो इस प्रकार के बालको को सामान्य विद्यालयों में ही पढ़ाया जाये ताकि वे मुख्य धारा से अलग न हों। 
कोठारी कमिशन ने यह सुझाया कि शारीरिक रूप से अपंग बालकों को शिक्षा, दया की दृष्टि से नहीं बल्कि उनके सदुपयोग के आधार पर देनी चाहिये। उचित शिक्षा देने से शारीरिक रूप से अपंग बालक में आत्म-विश्वास पैदा होता है तथा वह भी अपने आप को समाज का अभिन्न अंग मानता है। कमिशन ने आगे यह भी सुझाया कि अपंग बालक को शिक्षा देने का मूल उद्देश्य यह होना चाहिये कि बालक अपने आप को सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण में समायोजित कर सके। इस बात का ध्यान रखा जाये उनकी शिक्षा किसी भी प्रकार से सामान्य बालकों से अलग न हो। इस बात की आवश्यकता है कि वह 3Rs (Reading, Write and Mathematics) के साथ किसी दूसरे क्षेत्र जैसे प्रैक्टीकल, व्यक्ति, सामाजिक सांस्कृतिक सम्बन्ध आदि में सामान्य बालकों से पीछे न रहे। अक्षम बालकों के लिये 'विशेष विद्यालयों' की स्थापना की शुरुआत 18वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। लेकिन जब से मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश किया है तो यह महसूस किया गया कि हमें इन विशिष्ट बालकों को अलग नहीं करना चाहिये क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक व शिक्षा की दृष्टि से उचित नहीं है।
समाकलित शिक्षा का प्रत्यय अभी नया-नया है। स्वयं सेवी संस्थाएं इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक प्रभावी रूप से काम कर रही हैं। आधुनिक झुकाव यह है कि बच्चों को विशेष विद्यालयों की अपेक्षा सामान्य विद्यालयों में शिक्षा देनी चाहिए। समाकलित शिक्षा में छात्र को सामान्य विद्यालय में प्रवेश दिया जाता है। उसको न केवल सामान्य अध्यापक की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं बल्कि उसके पूरे समय के लिये एक प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक की सेवायें भी उपलब्ध होती हैं। अमेरिका में 1975 ई. में अमेरिकन कांग्रेस ने 'प्रत्येक अक्षम बच्चे की शिक्षा' का एक कानून पास किया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य अक्षम बालकों को मुख्य-धारा (Main-Streaming) में लाना था। मुख्य धारा से यह अभिप्रायः है कि शारीरिक तथा मानसिक दोष वाले बालक सामान्य बालकों के साथ पढ़ेंगे तथा उनको विशेष सहायता दी जायेगी। 
भारत में भी 'समाकलित शिक्षा' अमेरिका के 'मुख्यधारा-आन्दोलन' का ही नतीजा है। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य विकलांगों को मुख्य धारा में लाना है। कम अपंग बालकों को सामान्य कक्षा में पढ़ाने तथा उनकी अच्छी देखभाल, अध्यापक तथा दूसरी सहायता देने से अच्छे परिणाम सामने आये हैं। 1970 ई. में इस बात पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा था कि कम अपंग बालकों को विशेष शिक्षा की नहीं अपितु समाकलित व मुख्य धारा की आवश्यकता है।
मुख्य धारा की एक सीमा यह है कि सभी असमर्थ बच्चों को सामान्य कक्षाओं में नहीं पढ़ाया जा सकता। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि असमर्थ बच्चों को तभी सामान्य कक्षा में डाला जाये जबकि वहां का माहौल उसकी आवश्यकताओं के अनुकूल हों।
विशिष्ट बच्चों की कौंसिल (Council for Exceptional Children) ने कम असमर्थ बच्चों को मुख्य धारा में लाने की निम्न आवश्यकताएं बताई हैं।
1.प्रत्येक बालक को उचित शिक्षा दी जाए।
2.बच्चे की वास्तविक शैक्षिक आश्यकताओं की पूर्ति करना।
3.ऐसे साधन उपलब्ध करवाना जिससे कक्षा कक्ष से जुड़े कर्मचारी बच्चों की दूसरी समस्याओं को दूर कर सकें।
4.स्थायी अध्यापकों व विशेष शिक्षक की योग्यताओं का लाभ इन बालकों को मिले।
मुख्य-धारा को विद्यालयी वातावरण में सफल बनाने के लिये सभी का सहयोग आवश्यक है। यह सब माता-पिता, अध्यापकों, प्रबन्धकों के सहयोग से ही संभव हो सकता है कि असमर्थ बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ा जाये तथा उन्हें समाकलित शिक्षा के लिये प्रोत्साहित किया जाये।
समाकलित शिक्षा की विशेषताएँ(Characteristics of Integrated Education)
1.सामान्य बालकों के साथ विशेष सेवायें प्रदान करना।
2.स्थायी अध्यापकों व प्रशासकों की सहायता करना।
3.समय-सारणी जो समर्थ बच्चों के लिये हो वही समय-सारणी असमर्थ बच्चों पर लागू करना।
4.असमर्थ बच्चों को भी विद्यालय की अन्य गतिविधियों जैसे म्यूज़िक, कला, भ्रमण तथा व्यायाम आदि में शामिल करना।
5.समर्थ बच्चों के समान असमर्थ बालकों के लिये ऐसे प्रबन्ध करना कि वह भी लायब्रेरी, खेल के मैदान आदि को समान रूप से प्रयोग कर सकें।
6.समर्थ तथा असमर्थ बच्चों में स्वस्थ रिश्ता बनाने के लिये प्रोत्साहन देना।
7.प्रत्येक बच्चे को इस प्रकार की शिक्षा देना कि प्रत्येक मानव एक दूसरे से भिन्न होता है ताकि वे परस्पर एक दूसरे को समझ सकें।
8.अगर असमर्थ बच्चों को असमर्थता आड़े न आती हो तो उन्हें सामान्य कक्षा में पढ़ाना।
9.प्रत्येक बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान देना।
10.माता-पिता की सलाह पर ध्यान देना।
11.समय-समय पर अध्यापक, डाक्टर तथा मनोवैज्ञानिक से सम्पर्क बनाए रखना।
उद्देश्य (Objectives)
1.सामाजिक व संस्कृति को बढ़ावा देवे के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों को बढ़ाना देना।
2.बच्चों में जागरूकता की भावना पैदा करना ताकि वे आत्म निर्भर बन सकें।
3.स्वस्थ दृष्टिकोण हेतु समुदाय को शिक्षित करना।
4.बचपन की असमर्थताओं को दूर करना।
5.इनके पुनर्वास व सेवाओं का प्रबन्ध करना।
6.बच्चों में जल्द-से-जल्द असमर्थता का पता लगाना।
7.बच्चों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना।
8.बच्चों में प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास करना।
9.बच्चों में स्वयं की भावना का विकास करना ताकि वे जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकें।
10.शिक्षा को अधिक अर्थपूर्ण व लाभदायक बनाना।
11.प्रत्येक बालक को समान अवसर प्रदान करना।
12.असमर्थ बालकों की निपुणता तथा योग्यताओं को उभारना।
13.असमर्थ बालकों को मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक व शिक्षा के तौर पर मजबूत बनाना।
प्रकृति (Nature):-1. समाकलित शिक्षा में वही सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं जो सामान्य बालकों को दी जाती हैं।
2. असमर्थों को इस सामाजिक संसार में रहने के लिये अधिक विस्तृत क्षेत्र मिलता है।
3. यह असमर्थ बच्चों की विशेष आवश्यकताओं पर जोर देती है।
4. कुछ विशेष साधनों के साथ यह अन्धों, बहरों, वाणी-दोष, शारीरिक तथा मानसिक दोष बालकों को शिक्षा प्रदान करती है।
5. समाकलित शिक्षा में समर्थ तथा असमर्थ दोनों प्रकार के बच्चे शामिल होते हैं।
6. सामान्य बच्चों के साथ पढ़ने पर असमर्थ बच्चों को विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
7. समाकलित शिक्षा के द्वारा विद्यालय का वातावरण अच्छा बनता है।
8. समाकलित शिक्षा के द्वारा समर्थ तथा असमर्थ बच्चे एक दूसरे के नज़दीक आते हैं तथा एक-दूसरे को समझ कर अच्छे वातावरण की स्थापना करते हैं।
समाकलित शिक्षा का महत्व (Importance of Integrated Education)
कई आलोचक इस बात को लेकर आलोचना करते हैं कि विशेष शिक्षा बच्चों को शिक्षा के बराबर अवसर देने की बजाय पृथकता की भावना पैदा करती है। इस शिक्षा से असमर्थ बालकों में हीन भावना पैदा होती है। समाकलित शिक्षा का महत्व निम्न कारणों से है-
1. मानसिक विकास (Mental Growth)-विशेष शिक्षा ने बच्चों के मन में मनोवैज्ञानिक द्वन्द पैदा हो जाता है। असमर्थ बच्चे यह सोचते हैं कि वे साधारण बालकों से किसी प्रकार से कम हैं तभी उनको विशेष विद्यालय में शिक्षा दी जा रही है। लेकिन समाकलित शिक्षा में असमर्थ बालक को साधारण बच्चों की तरह समान अवसर प्राप्त होते हैं। बच्चों में हीन भावना का विकास नहीं होता। विशिष्ट बालकों को साधारण बालकों के साथ शिक्षा देने में उनका मानसिक विकास होता है।
2. सामाजिक मूल्यों का विकास (Development of Social Values)-सामान्य विद्यालयों में विशिष्ट बालकों को शिक्षा देने में उनमें सामाजिक गुणों का विकास होता है क्योंकि यहां पर बच्चे समाज के सभी प्रकार से बालकों के साथ सम्पर्क में आते हैं। इस प्रकार से असमर्थ बालकों में प्यार, दयालुता, समायोजन, सहायता, भाई-चारा आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
3. कम खर्चीली (Less Expensive)-विशेष शिक्षा देने के लिये काफी पैसा खर्च करना पड़ता है क्योंकि विशिष्ट बालकों के लिये सभी प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रबन्ध करना पड़ता है। इनके लिये विशेष रूप से प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक, डाक्टर आदि की आवश्यकता पड़ती है जबकि सामान्य विद्यालयों में इस प्रकार की काफी सुविधाएं पहले से ही होती हैं। विशिष्ट बालकों को सामान्य विद्यालयों में पढ़ाना कम खर्चीला होता है। इस दृष्टि से समाकलित शिक्षा अधिक सस्ती है।
4. समानता का सिद्धान्त (Principle of Equality)- भारतीय संविधान में प्रत्येक बालक को बिना किसी भेदभाव के एक समान शिक्षा देने की बात की गई है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये असमर्थ बालकों को समाकलित शिक्षा देना आवश्यक है।
5. प्राकृतिक वातावरण (Natural Environment)-जब असमर्थ बालक सामान्य बच्चों के साथ साधारण विद्यालयों में शिक्षा प्रदान करते हैं तो उनमें इस भावना का विकास नहीं होता कि वे किसी बात में सामान्य बालकों से कम हैं। समर्थ बालक भी उनको अपना साथी समझने लग जाते हैं तथा असमर्थ बालक अपने आप को सहजता से समायोजित कर लेते हैं।
6. शैक्षिक वातावरण (Academic Atmosphere)- जब असमर्थ बालक को सामान्य विद्यालय में डाला जाता है तो वह शैक्षिक तौर पर अपने आपको विद्यालय में समायोजित कर लेता है। अध्यापक का व्यवहार भी उनको अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करता है तथा बालक शैक्षिक दृष्टि से उन्नति करता है।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर हम यह कह सकते हैं कि विशेष शिक्षा की अपेक्षा असमर्थ बालक को सामान्य विद्यालय में शिक्षा देनी चाहिये। सामान्य शिक्षा के साथ-साथ उनको उनकी आवश्यकता के अनुरूप विशेष कक्षाओं में पढ़ाना चाहिये तथा उनके लिये विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापकों का प्रबन्ध करना चाहिए।
समाकलित शिक्षा के प्रकार (Types of Integrated Education)
सभी असमर्थ बालकों की आश्यकताएं अलग-अलग होती हैं। अतः इस प्रकार के बालकों को शिक्षा कई प्रकार से दी जानी चाहिये। समाकलित शिक्षा देने के कुछ मुख्य ढंग इस प्रकार हैं-
1. पहली श्रेणी में असमर्थ बालकों को सामान्य विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। उनकी आवश्यकता के अनुरूप उनके लिये प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक को बुलाया जाता है।
2. इस श्रेणी में उन बालकों को सामान्य कक्षा के पश्चात् विशेष कक्षा में पढ़ाया जाता है।
3. इस श्रेणी के असमर्थ बालक पूरा समय साधारण बालकों के साथ सामान्य स्कूल में पढ़ते हैं तथा स्कूल की प्रत्येक गतिविधि में भाग लेते हैं।
4. इस श्रेणी में वे असमर्थ बालक आते हैं जो आवासीय विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं तथा कुछ पढ़ाई वह नज़दीक के सामान्य स्कूल में करते हैं।
5. इस श्रेणी में सामान्य बालकों को विशेष विद्यालयों में रखा जाता है ताकि वे शैक्षिक तथा गैर-शैक्षिक गतिविधियों में भाग ले सकें।
6. इस श्रेणी में वे बालक आते हैं जो सामान्य विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं लेकिन घर पर विशेष शिक्षा का प्रबन्ध होता है।
7. इस श्रेणी में वे बालक आते हैं जिनके लिये अस्पताल या संस्था में कम समय के शिक्षा कोर्स चलाये जाते हैं।
Reference:- Inclusive education Book

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