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बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त(Bandura's Social Learning Theory)
Sep 01, 2022   Ritu Suhag

बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त(Bandura's Social Learning Theory)

दूसरे के व्यवहार का निरीक्षण या अवलोकन करना और उससे प्राप्त अनुभव व्यक्ति विशेष को अपने परिवेश से सम्बन्धित अनेक बातों को सीखने और समझने में बहुत कुछ सहायता कर सकते हैं।इस तरह के विचारों के प्रतिपादक और संज्ञानात्मक सम्प्रदाय से जुड़े हुए मनोवैज्ञानिकों को जिन्होंने दूसरों के व्यवहार को देखकर अपेक्षित अधिगम अनुभव अर्जित करने की बात कही,मनोविज्ञान की दुनिया में उन्हें सामाजिक मनोवैज्ञानिकों का नाम दिया और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को सामाजिक अधिगम सिद्धान्त कहा गया।प्रसिद्ध अमेरिकन मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षा शास्त्री अल्बर्ट बंडूरा की गिनती ऐसे ही सामाजिक मनोवैज्ञानिक के रूप में की जाती है और जिस सामाजिक अधिगम सिद्धान्त को उन्होंने जन्म दिया उसे उनके ही नाम से "बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त" कहा जाता है।यह अधिगम सिद्धान्त अपने आप में क्या है,इस पर प्रकाश डालते हुए स्वयं बंडूरा ने (जैसा कि लेविन, 1978 ने अपनी पुस्तक में लिखा है) निम्न प्रकार टिप्पणी की है"हम अपने परिवेश में उपस्थित उद्दीपकों के प्रति आँख बन्द करके अपनी अनुक्रिया व्यक्त नहीं करते बल्कि जो कुछ भी हमें अपने परिवेश में उचित अनुक्रिया करने के लिए उपलब्ध है उससे सही अनुक्रिया के चुनाव के लिए हम अपनी अन्तः दृष्टि और पूर्वानुभवों को काम में लाते हैं।इस प्रकार के चयन सम्बन्धी निर्णय हमारे ऐसे अप्रत्यक्ष अथवा निरीक्षण जन्य अनुभवों पर आधारित होते हैं जिनमें प्रायः दूसरों के व्यवहार की छाप होती है अथवा उसका अनुकरण होता है।"

(We do not blindly respond to environmental stimuli. Rather, we pick and choose from many environmental options, basing our decisions on our own insights and past experiences. This we do through vicarious or observational learning, by incorporating and imitating the behaviour of those around us.)

प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित अधिगम की बजाय सामाजिक अधिगम सिद्धान्त इस तरह निरीक्षण अथवा अप्रत्यक्ष अधिगम (अप्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित अधिगम) का पक्षधर है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादकों का यह मानना है कि जो कुछ भी हमारे द्वारा सीखा जाता है उसमें अधिकांश हमारे द्वारा दूसरों को देखने और सुनने के माध्यम से ही अर्जित किया जाता है। बालकों में शुरू से ही अपने परिवेश में विद्यमान सभी बातों और प्रक्रियाओं का गहन अवलोकन करने की आदत होती है और इसी के फलस्वरूप वे दूसरों के विशेषकर अपने माता-पिता, परिवार के सदस्य, अपने अध्यापक तथा अपने से अन्य बड़ों के व्यवहार का अवलोकन करते रहते हैं। उनका यह अवलोकन, केवल अवलोकन तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि वे जो देखते हैं उसका अनुकरण करने की कोशिश करते हैं। निरीक्षण अथवा अवलोकन जन्य अधिगम को अर्जित करने की क्षमता या योग्यता बालकों में कितनी होती है, इस बात को प्रयोगशाला परीक्षणों तथा दिन-प्रतिदिन की बातों का अवलोकन कर अच्छी तरह सिद्ध किया जा • सकता है। एक बालक जब अपने पिता अथवा परिवार के बड़े सदस्यों को भोजन की थाली सिर्फ इस वजह से फैकते हुए देखते है क्योंकि उस थाली में उस सदस्य की पसन्द का भोजन नहीं है तब वह बालक स्वतः ही इस प्रकार के व्यवहार सम्बन्धी अनुभवों को अर्जित करना और इस अर्जित व्यवहार को ऐसी ही परिस्थितियों में ज्यों की त्यों प्रस्तुत करना सीख जाता है। इसी तरह एक बालक अपने उन चहेते अभिनेताओं के व्यवहार को अपने व्यवहार में शामिल करने और उनका अनुकरण करना सीख जाता है जिनके बारे में वह कहानी और उपन्यासों में पढ़ता है, टेलीविजन के पर्दे पर और चलचित्रों में देखता है। इन परिस्थितियों में वे व्यक्ति जिनके व्यवहार का अवलोकन कर वह अपने व्यवहार में उतारने अथवा अनुकरण करने का प्रयत्न करता है। उन्हें मॉडल या प्रतिमान की संज्ञा दी जाती है और इसी अर्थ में निरीक्षण या अवलोकनात्मक अधिगम को प्रतिमानीकरण अथवा मॉडलिंग (Modelling) का नाम दिया जाता है। इस तरह यद्धपि प्रत्यक्ष अनुभवों को अधिगम हेतु सबसे अधिक प्रभावपूर्ण और शक्तिशाली संसाधन माना जाता हैं परन्तु इस कार्य में अप्रत्यक्ष अनुभवों की भूमिका को भी नजरअन्दाज नहीं किया इस तरह के विचारों के प्रतिपादक और संज्ञानात्मक सम्प्रदाय से जुड़े हुए मनोवैज्ञानिकों को जिन्होंने दूसरों के व्यवहार को देखकर अपेक्षित अधिगम अनुभव अर्जित करने की बात कही, मनोविज्ञान की दुनिया में उन्हें सामाजिक मनोवैज्ञानिकों का नाम दिया और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को सामाजिक अधिगम सिद्धान्त कहा गया। प्रसिद्ध अमेरिकन मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षा शास्त्री अल्बर्ट बंडूरा की गिनती ऐसे ही सामाजिक मनोवैज्ञानिक के रूप में की जाती है और जिस सामाजिक अधिगम सिद्धान्त को उन्होंने जन्म दिया उसे उनके ही नाम से "बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धान्त" कहा जाता है। यह अधिगम सिद्धान्त अपने आप में क्या है, इस पर प्रकाश डालते हुए स्वयं बंडूरा ने (जैसा कि लेविन, 1978 ने अपनी पुस्तक में लिखा है) निम्न प्रकार टिप्पणी की है"हम अपने परिवेश में उपस्थित उद्दीपकों के प्रति आँख बन्द करके अपनी अनुक्रिया व्यक्त नहीं करते बल्कि जो कुछ भी हमें अपने परिवेश में उचित अनुक्रिया करने के लिए उपलब्ध है उससे सही अनुक्रिया के चुनाव के लिए हम अपनी अन्तः दृष्टि और पूर्वानुभवों को काम में लाते हैं। इस प्रकार के चयन सम्बन्धी निर्णय हमारे ऐसे अप्रत्यक्ष अथवा निरीक्षण जन्य अनुभवों पर आधारित होते हैं जिनमें प्रायः दूसरों के व्यवहार की छाप होती है अथवा उसका अनुकरण होता है।"(We do not blindly respond to environmental stimuli. Rather, we pick and choose from many environmental options, basing our decisions on our own insights and past experiences. This we do through vicarious or observational learning, by incorporating and imitating the behaviour of those around us.)

प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित अधिगम की बजाय सामाजिक अधिगम सिद्धान्त इस तरह निरीक्षण अथवा अप्रत्यक्ष अधिगम (अप्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित अधिगम) का पक्षधर है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादकों का यह मानना है कि जो कुछ भी हमारे द्वारा सीखा जाता है उसमें अधिकांश हमारे द्वारा दूसरों को देखने और सुनने के माध्यम से ही अर्जित किया जाता है। बालकों में शुरू से ही अपने परिवेश में विद्यमान सभी बातों और प्रक्रियाओं का गहन अवलोकन करने की आदत होती है और इसी के फलस्वरूप वे दूसरों के विशेषकर अपने माता-पिता, परिवार के सदस्य, अपने अध्यापक तथा अपने से अन्य बड़ों के व्यवहार का अवलोकन करते रहते हैं। उनका यह अवलोकन, केवल अवलोकन तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि वे जो देखते हैं उसका अनुकरण करने की कोशिश करते हैं। निरीक्षण अथवा अवलोकन जन्य अधिगम को अर्जित करने की क्षमता या योग्यता बालकों में कितनी होती है, इस बात को प्रयोगशाला परीक्षणों तथा दिन-प्रतिदिन की बातों का अवलोकन कर अच्छी तरह सिद्ध किया जा • सकता है। एक बालक जब अपने पिता अथवा परिवार के बड़े सदस्यों को भोजन की थाली सिर्फ इस वजह से फैकते हुए देखते है क्योंकि उस थाली में उस सदस्य की पसन्द का भोजन नहीं है तब वह बालक स्वतः ही इस प्रकार के व्यवहार सम्बन्धी अनुभवों को अर्जित करना और इस अर्जित व्यवहार को ऐसी ही परिस्थितियों में ज्यों की त्यों प्रस्तुत करना सीख जाता है। इसी तरह एक बालक अपने उन चहेते अभिनेताओं के व्यवहार को अपने व्यवहार में शामिल करने और उनका अनुकरण करना सीख जाता है जिनके बारे में वह कहानी और उपन्यासों में पढ़ता है, टेलीविजन के पर्दे पर और चलचित्रों में देखता है। इन परिस्थितियों में वे व्यक्ति जिनके व्यवहार का अवलोकन कर वह अपने व्यवहार में उतारने अथवा अनुकरण करने का प्रयत्न करता है। उन्हें मॉडल या प्रतिमान की संज्ञा दी जाती है और इसी अर्थ में निरीक्षण या अवलोकनात्मक अधिगम को प्रतिमानीकरण अथवा मॉडलिंग (Modelling) का नाम दिया जाता है। इस तरह यद्धपि प्रत्यक्ष अनुभवों को अधिगम हेतु सबसे अधिक प्रभावपूर्ण और शक्तिशाली संसाधन माना जाता हैं परन्तु इस कार्य में अप्रत्यक्ष अनुभवों की भूमिका को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता।क्योंकि इन्हीं के माध्यम से हमें निरीक्षण या अवलोनात्मक अधिगम का अर्जन होता है।अधिकांश परिस्थितियों में तो इन्हें ही प्रत्यक्ष अनुभवों के स्थान पर अधिक उपयुक्त,मितव्ययी तथा उपयोगी पाया जा सकता है।अप्रत्यक्ष अनुभवों की ऐसी भूमिका तथा योगदान पर अपने विचार व्यक्त करते हुये अलवर्ट बंडूरा ने लिखा है-स्वयं की सफलताओं या असफलताओं से सबक लेते हुये क्या करना सही है इस तरह के अधिगम अर्जन के माध्यम से हम अपने बच्चों को तैरना,किशोरों को ओटोमोबाइल चलाना तथा अनुभवहीन मैडीकल विद्यार्थियों को सर्जरी करने की शिक्षा और प्रशिक्षण नहीं देते।ऐसा करने के कितने मँहगे और खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।इस प्रकार की संभावनाओं के परिप्रेक्ष्य में ही हमारी उचित उदाहरणों(अप्रत्यक्ष अनुभवों) द्वारा निरीक्षण या अवलोकनात्मक अधिगम करने सम्बन्धी आश्रितता बढ़ जाती है।"

अवलोकनात्मक अधिगम इस तरह से विद्यार्थियों को उनके अपने प्रत्यक्ष अनुभवों तथा सफलताओं या असफलताओं से सबक लेकर सीखने के अलावा अप्रत्यक्ष अनुभवों यानी दूसरों के अनुभवों से सबक लेकर सीखने में मदद करता है।यहां किसी व्यक्ति को अब जहरीले साँप से अपने आपको कटवाकर साँप के विष से होने वाली संभावित मौत का अनुभव करने जैसे खतरों से खेलने की जरूरत नहीं है।वह इस बात को स्वाभाविक रूप से होने वाले ऐसे हादसों का अपने दैनिक जीवन में सिनेमा टेलीविजन और वीडिओ फिल्मों में दिखाये जाने वाले दृश्यों के अवलोकन से अच्छी तरह जान सकता है.

 

अधिगम कैसे होता है ?(How does Learning take place ?)

सामाजिक अधिगम सिद्धान्त के अनुसार अधिगम हेतु सामाजिक परिवेश जरूरी होता है।इस परिवेश में जब बालक दूसरों को व्यवहारगत क्रियाओं का निरीक्षण अवलोकन करता है तो इस प्रकार के व्यवहार को स्वयं अपने व्यवहार में ढालने की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप में बालक में शुरू हो जाती है।अपने से बड़ों या जिनसे प्रभावित होकर वह अपना आदर्श मानने लगता है,उनके जैसा होने की चाहत में वह उनके व्यवहार का अनुकरण करने की कोशिश करता हुआ उनके व्यवहार सम्बन्धी क्रियाओं का संपादन करना सीख जाता है।सीखने की यह प्रक्रिया किस तरह चलती है, यह स्पष्ट करने हेतु बंडूरा ने इस सदंर्भ में निम्न चार सोपानों का उल्लेख किया है।

1.व्यवहार के प्रति ध्यान देना और उसका प्रत्यक्षीकरण (Attending to and preceiving the behaviour) : इस प्रथम सोपान में अधिगमकर्त्ता (Learn) से यह अपेक्षा की जाती है कि वह किसी व्यक्ति विशेष (जिसे उसके सामने एक प्रतिमाम या मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है) के व्यवहार पर अपना ध्यान केन्द्रित कर उसका ठीक तरह से अवलोकन या निरीक्षण करे। यहाँ अधिगमकर्त्ता इस बात के लिये स्वतन्त्र होता है कि वह मॉडल के सम्पूर्ण व्यवहार या उसकी व्यवहारगत कुछ बातों के प्रति आकर्षित होकर उनको अपने निरीक्षण या अवलोकन का विषय बनाये।

2.)व्यवहार को याद रखना (Remembering the behaviour): इस द्वितीय सोपान में अधिगमकर्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि सम्पूर्ण व्यवहार या उससे सम्बन्धित बातों के ऊपर ध्यान देकर उसके द्वारा निरीक्षण या अवलोकन किया गया है। उनके प्रभाव को मानसिक बिम्बों के रूप में अपनी स्मृति के धारण कर ले।

3.स्मृति की क्रियात्मक रूप में परिणिति (Converting the memory into action) :इस सोपान में अधिगमकर्त्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह उस व्यवहार को,जिसका उसके द्वारा अवलोकन तथा स्मृति में धारण किया गया हो,अच्छी तरह विश्लेषण कर यह जानने का प्रयत्न करे कि उसकी तथा उसके परिवेश सम्बन्धी परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं में अवलोकन किये गये व्यवहार में से क्या कुछ अनुकरणीय है। इस तरह के निष्कर्ष पर पहुँचकर ही अधिगमकर्त्त के द्वारा अनुकरणीय व्यवहार के अनुकरण हेतु अपने प्रयत्न करने चाहियें।इस तरह अधिगमकर्ता द्वारा निरीक्षत मॉडल के व्यवहार सम्बन्धी उन्हीं बातों का अनुकरण कर अपने व्यवहार का अंग बनाने के लिये कदम उठाये जाते हैं जिन्हें वह ठीक समझता है।अलग-अलग अधिगमकर्त्ताओं द्वारा इस तरह प्रदर्शित मॉडल व्यवहार की अलग-अलग बातों को अपने अनुकरण और अधिगम का विषय बनाया जा सकता है और यही बात उनके अधिगम में व्यक्तिगत भेदों को जन्म देने का कारण बनती है। 

अनुकरणकिये गये व्यवहार का पुनर्बलन(Reinforcement of the imitated behaviour) इस अंतिम सोपान में प्रदर्शित मॉडल व्यवहार की जिन बातों की अनुकरण करने की चेष्टा एक अधिगमकर्त्ता द्वारा की जाती है उसके इन व्यवहार सम्बन्धी चेष्टाओं को ही भली-भांति पुनर्बलन प्रदान करने का कार्य ही अब शिक्षक,प्रशिक्षक या अभिभावक वर्ग द्वारा किया जाता है ताकि वह अनुकरण किये व्यवहार को अच्छी तरह अर्जित कर अपने व्यवहार का अंग बनाने में समुचित सफलता प्राप्त कर सके।बंडूरा द्वारा प्रतिपादित चारों सोपान किसी के अधिगम अर्जन में कैसे सहायक सिद्ध हो सकते हैं,आइये इस बात को एक उदाहरण द्वारा समझा जाये।माना कि कोई नव विवाहिता दूरदर्शन के किसी चैनल पर प्रसारित कोई ऐसा कार्यक्रम देखती है जिसमें किसी नवीन व्यंजन को तैयार करने सम्बन्धी ज्ञान और कौशल का प्रदर्शन किया गया हो।वह इस प्रदर्शन सम्बन्धी बातों को अपनी स्मृति के धारण करने का प्रयत्न करती है और फिर अपनी रसोई में जाकर प्रदर्शित विधि का अनुकरण करती हुई उस नवीन व्यंजन को तैयार करने में जुट जाती है।इस नये व्यंजन को तैयार करने सम्बन्धी उसके इस प्रकार के अधिगम प्रयत्नों को अब आगे जिस प्रकार का पुनर्बलन प्राप्त होगा,उसी के मुताबिक उसको अपने अधिगम कार्य में आगे सफलता मिल सकेगी।अब अगर पति तथा अन्य ससुराल वालों ने इस नये व्यंजन की सराहना की तो फिर अवश्य ही जो कुछ अवलोकन तथा अनुकरण द्वारा उसने सीखा है उसे उसके व्यवहार का स्थायी अंग बनने में देर नहीं लगेगी।इस प्रकार से सामाजिक अधिगम (अवलोकन तथा अनुकरण द्वारा अर्जित अधिगम) हमें अपने व्यवहार सम्बन्धी अनेक बातों के प्रभावपूर्ण अधिगम में यथेष्ट रूप से सहायक सिद्ध हो सकता है।कोई व्यक्ति किस प्रकार अपने प्यार या क्रोध का प्रदर्शन करता है,सहानुभूति या ईर्ष्या जताता है,बोलता है और लिखता है, भेष-भूषा धारण करता है तथा खाता-पीता है,मिलता-जुलता है या शर्माता है,सामाजिक अधिगम सिद्धान्त अनुसार यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति विशेष ने अधिगम अनुभव अर्जित करने के दौरान दूसरो के व्यवहार का (जिन्हें वह अपना आदर्श मानता है) किस रूप में अवलोकन,स्मृति धारण तथा अनुकरण किया है और फिर उनके द्वारा अनुकरण किये जाने इस व्यवहार को किस प्रकार का पुनर्वलन प्राप्त हुआ है।Reference-uma mangal and s.k.mangal


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